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मध्य प्रदेश के सिंगरौली जिले के कसर ग्राम पंचायत क्षेत्र में बीते सोमवार 3 साल की मासूम सौम्या खुले बोरवेल में गिर गई थी, जिससे उसकी जान चली गई. इसी साल अप्रैल महीने में रीवा जिले के मनिका गांव के 6 वर्षीय मयंक कोल भी खुले गड्डे में गिरकर जिंदगी की जंग हार गया. जिस उम्र में उन्हें अपनी मां की गोद चहिए थी, वे लापरवाही के गड्ढों में समा गए.सौम्या और मयंक जैसे न जानें कितने मासूम बच्चे भी इसी मौत के कुएं का शिकार हो गए और हमारा सिस्टम अब तक कोई ठोस और कड़े कदम नहीं उठा पाया.
प्रमाण पत्र जारी करने के बाद भी खुले बोरवेल
खुले में बोरवेल का मामला सिंगरौली जिले के कठदहा ग्राम पंचायत क्षेत्र का है. इस गांव में खुले बोरवेल प्रशासन के दावों को आईना दिखा रहे हैं. ग्राम पंचायत ने 30 जुलाई को एक प्रमाण पत्र जारी किया कि गांव में शासकीय और प्राइवेट बोरबेल की खुदाई की गई है लेकिन कोई भी बोरवेल, नलकूप खुले में नही है, सभी ढके गए हैं. इसके बावजूद 5 अगस्त तक बोरवेल खुले दिखे, जिन्हें किसी तरह से ढका नहीं गया था.अब भी खुले बोरवेल के रूप में जगह जगह मौत के गड्डे सिस्टम को चुनौती दे रहे हैं. जिला प्रशासन की यही सुस्ती खुले बोरबेल में मौत का कारण बन रही है. जिले के कई ऐसे गावों ने खुले में बोरवेल के गड्डे है जिससे कोई बड़ा हादसा हो सकता है, लेकिन वावजूद इसके प्रशासन बेखबर है.
15 दिन पहले कलेक्टर को देनी होती है जानकारी
देश के विभिन्न राज्यों में खुले बोरवेल में गिरकर बच्चों की मौत होने की घटनाओं को रोकने के लिए 6 अगस्त 2010 को सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एसएच कापड़िया, जस्टिस केएस राधाकृष्णन और स्वतंत्र कुमार ने सभी राज्य सरकारों के लिए 6 बिंदुओं की गाइडलाइन जारी की थी. इसमें कहा गया था कि किसी भी भूस्वामी को बोरवेल के निर्माण एवं मरम्मत आदि से संबंधित कार्य की जानकारी 15 दिन पहले कलेक्टर या पटवारी को देनी होगी.
14 साल पहले जारी गाइडलाइन का नहीं हुआ पालन
बोरवेल की खोदाई करने वाली कंपनी का जिला प्रशासन या अन्य सक्षम कार्यालय में रजिस्टर होना अनिवार्य होगा. इसके अलावा बोरवेल के आसपास साइन बोर्ड लगवाने, चारों ओर कंटीली तारों से घेराबंदी कराने और खुले बोरवेल को ढक्कन लगाकर बंद कराने को कहा था, लेकिन इस गाइडलाइन का प्रदेश के किसी भी जिले में पालन होता दिखाई नहीं देता है.
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