भोपाल। मध्यप्रदेश के सरकारी महाविद्यालयों में पढ़ा रहे अतिथि विद्वान इन दिनों आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहे हैं। एक तरफ उनके साथ कांग्रेस सरकार की वादा खिलाफी है तो दूसरी ओर पिछले आठ माह गुजर जाने के बाद भी उन्हें उनके हक का मासिक वेतन सरकार के उच्चशिक्षा विभाग ने मुहैया नहीं कराया है। अतिथि विद्वानों का आरोप है कि कांग्रेस अपने वचन पत्र का पालन तो कर ही नहीं रही, साथ ही च्वाइस फिलिंग के नाम पर उन्हें अब बाहर का रास्ता दिखाया जा रहा है ।
इस संबंध में अतिथि विद्वान नियमितीकरण संघर्ष मोर्चा के प्रदेशाध्यक्ष डॉ. देवराज सिंह ने हिस से शनिवार को कहा कि प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनते ही सबसे पहले उसने जो कार्य किया वह है अतिथि विद्वानों का मानदेय रोक देने का। पिछले आठ माह से हमारे साथियों को उनका मानदेय नहीं दिया गया है। जिसके कारण से आज उनके सामने अपने परिवार की आर्थिक जरूरतों को पूरा नहीं कर पाने का संकट खड़ा हो गया है। आप सोच सकते हैं कि यदि ऐसा उन तमाम सरकारी कर्मचारियों के साथ होता जो नियमित सरकार के कर्मचारी हैं तो प्रदेश में इस वक्त क्या हालात होते ?
उन्होंने कहा कि उच्च शिक्षा विभाग दोबारा च्वाइस फिलिंग का भी हम विरोध कर रहे हैं। क्योंकि सरकार को पहले 1200 पदों पर भर्ती करना था। लेकिन अब च्वाइस फिलिंग सिर्फ 680 पर की जा रही है जोकि यह पूरी तरह भ्रामक है। इस कारण से सीधे तौर पर हमारे 520 साथी बाहर हो जा रहे हैं। नियमितीकरण संघर्ष मोर्चा के प्रदेशाध्यक्ष डॉ. देवराज सिंह का कहना यह भी था कि कमलनाथ सरकार ने लोक सेवा आयोग से चयनित असिस्टेंट प्रोफेसरों के पदभार संभालने पर प्रदेश के शासकीय महाविद्यालयों से तकरीबन ढाई हजार अतिथि विद्वानों को निकाल दिया है। अब जो च्वाइस फिलिंग करवाई जा रही है, वह सीधे तौर पर सरकार की वादा खिलाफी को दर्शाता है। क्योंकि कांग्रेस ने सरकार में आने के पहले अपने वचन पत्र में सभी अतिथि विद्वानों को नियमित करने का वादा किया था।