Patrakar Priyanshi Chaturvedi
सुप्रीम कोर्ट की एक टिप्पणी में असफल प्रेम कहानियों का बेहद जीवंत वर्णन मिला है। कोर्ट ने कहा है कि भारत में माता-पिता के फैसले को स्वीकार करने के लिए बेटियां अपने प्यार को कुर्बान कर देती हैं और भारत में यह आम बात है। सुप्रीम कोर्ट ने एक व्यक्ति की उम्रकैद की सजा को खारिज करते हुए अपने फैसले में यह टिप्पणी की।
इस व्यक्ति ने एक महिला से गुपचुप शादी की और इसके तुरंत बाद दोनों ने खुदकुशी की कोशिश की। इसमें व्यक्ति जीवित बच गया, जबकि 23 वर्षीय पीड़िता को बचाया नहीं जा सका। बहरहाल, वर्ष 1995 की इस घटना में पुलिस ने व्यक्ति के खिलाफ पीड़िता की हत्या का मामला दर्ज किया।
शीर्ष अदालत ने कहा कि हो सकता है महिला अनिच्छा से अपने माता-पिता की इच्छा को मानने के लिए राजी हो गई हो, लेकिन घटनास्थल पर फूलमाला, चूड़ियां और सिंदूर देखे गए। इनसे ऐसा प्रतीत होता है कि बाद में उसका मन बदल गया। कोर्ट ने कहा कि महिला ने अपने प्रेमी से यह भी कहा हो कि उसका परिवार राजी नहीं है इसलिए वह उससे शादी नहीं करेगी।
जस्टिस एके सीकरी और जस्टिस अशोक भूषण की एक पीठ ने कहा, इस देश में यह आम बात है कि बेटियां अपने माता-पिता की इच्छा को स्वीकार करने के लिए अपने प्यार का बलिदान कर देती हैं, भले ही ऐसा वह अनिच्छा से करती हों। कोर्ट ने कहा कि पीड़ित और आरोपी एक-दूसरे से प्यार करते थे और लड़की के पिता ने अदालत के समक्ष यह गवाही दी थी कि जाति अलग होने के कारण उनके परिवार ने इस शादी के लिए रजामंदी नहीं दी थी।
व्यक्ति को कथित तौर पर उसकी हत्या करने का दोषी ठहराते हुए निचली अदालत ने उसे उम्रकैद की सजा सुनाई थी और इस फैसले की राजस्थान हाई कोर्ट ने भी पुष्टि की थी। सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की कि परिकल्पना के आधार पर आपराधिक मामलों के फैसले नहीं किए जा सकते और उसने व्यक्ति को बरी करते हुए कहा कि पर्याप्त संदेह के बावजूद अभियोजन पक्ष उसका दोष सिद्ध करने में सक्षम नहीं रहा है।
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