किसानों के हित में मोदी की सुखद पहल
भरतचन्द्र नायकभारत में कृषि एक सांस्कृतिक उपक्रम रही है। किंवदन्ती है कि जब जनकपुर में अकाल पड़ा तब महाराज जनक व्यग्र होकर ऋषि-मुनियों की शरण में पहुंचे। उन्हें परामर्ष दिया गया कि अन्नपूर्णा धरती मां का पूजन करते हुए हल चलायें। ऐसा ही हुआ और जब उन्होनें हल चलाया तो वसुंधरा ने उन्हें एक सुकन्या भेंट की। हल की नोक को सित कहा जाता है और इस कारण उस कन्या का नाम सीता रखा गया, जो अवध के राजकुमार मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम के साथ व्याही गयी। महाराज जनक के हल जोतने से खूब बारिष हुई और वसुंधरा हरी-भरी हो गयी। दुर्मिक्ष से मुक्ति मिल गयी। आज भी जनपदीय अंचल में अन्नधन अनेक धन, रत्नाभूषण आधा धन और पूंछ डुलावन नाष धनकी कहावत प्रचलित है। खेती की उत्कृष्टता से भारत धन्य-धान से हमेषा संपन्न रहा है। लेकिन देष में विदेषी शासन के बाद कृषि की अवनति तो हुई फिर भी आजादी के समय कृषि का जीडीपी में योगदान कमोवेष पचास प्रतिषत बना रहा जो घट कर 13 प्रतिषत सिमट गया है। आजादी के पष्चात किसानों के सपने जगाये गये। हरित क्रांति का आगाज हुआ, देष खाद्यान्न में आत्मनिर्भर बनने से पीएल-480 खेती के इतिहास के पृष्ठों में दफन हो गया। लेकिन अन्नदाता किसान की दोहरी मुसीबत का अंत नहीं हुआ। किसान की मुसीबत का कारण उसका मौसम पर निर्भर रहना रहा। यदि प्रतिकूलता आयी तो किसान दाने-दाने के लिए मुंहताज हुआ और अच्छी फसल आने पर उसे सरकार द्वारा नियंत्रित समर्थन मूल्य से आगे लागत मूल्य के लाले पड़े रहे। कभी-कभी तो फसल खेतों में जलाने के लिए विवष हो जाना पड़ा। किसान के हाथ में लागत मूल्य से कम दाम आये और उपभोक्ता बिचैलियों के साथ ऊंचे दामों में खाद्यान्न खरीदनें को विवष रहा। इस परिस्थिति पर दर्जनों कमेटियों और आयोगों ने विचार किया लेकिन ऊंट के मुंह में जीरे की तरह किसान को जब-तब राहत देकर सरकारों ने कत्र्तव्य की इतिश्री मान ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 15 अगस्त 2015 को लालकिले की प्राचीर से फसल बीमा का कवच देने की घोषणा की थी, जो साकार हुई है। किसान पर फसल की बोनी से लेकर किसान के घर-खलिहान में फसल पहुंचनें तक यदि कोई होनी-अनहोनी, आसमानी-सुलतानी मुसीबत आती है तो प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना किसान का संकटमोचन सिद्ध होगी।प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की बुनियादी विषेषता यही है कि कृषि व्यवस्था को जोखिम रहित बनानें का यह नरेन्द्र मोदी का विनम्र प्रयास है। यह भी मान सकते है कि प्रधानमंत्री ने भारत के उभरते आर्थिक परिदृष्य में किसानों को साझेदार बनने की दिषा में एक क्रांतिकारी कदम उठाया है। जहां तक प्राकृतिक आपदा का सवाल है उसे वैज्ञानिक पहल के हस्तक्षेप से थोड़ी-बहुत राहत मिल रही है। लेकिन उससे अधिक आज किसान बाजार की चपेट में भी है। नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के रूप में सरकारी नीतियों में उसका बहुप्रतीक्षित हक उसे सौंपकर अपने वायदे पर खरे उतरे है। अब तक हकों के मामलें में किसान मूक प्राणी बना रहा। किसान की पीठ थपथपाते रहे कि वह जोखिम झेलता है, उसे निरंतर समर्थन की जरूरत रही है। खेती के बारें में मान लिया गया कि किसान कर्जग्रस्तता में जन्मता है, बड़ा होता है और जीवन लीला समाप्त कर देता है। किसान सरकारों के प्रलोभन का तलफगार बनाकर रखा गया। इसका राजनैतिक लाभ उठाना तत्कालीन सरकारों का शगल हो गया था। किसान को जोखिम से निपटने के लिए कौषल, हक दिये जाने के बजाय डोल, राहत का घूंट मिला। न जीने का हक मयस्सर हुआ और न मरने दिया गया। यही कारण है कि यूपीए के दस वर्षों के शासन में करीब डेढ़ लाख किसानों को जीवन लीला समाप्त करनें के लिए खुदकषी का षिकार होना पड़ा। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के माध्यम से देष के अन्नदाता किसानों को बुद्धिमान मानने की साहसिक क्रांतिकारी पहल वास्तव में सराहनीय और सामयिक पहल है, जिसके लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दूरदृष्टि पूर्ण कदम को हमेषा स्मरण किया जायेगा। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में किसानों द्वारा अदा की जाने वाली प्रीमियम राषि कम कर दी गयी है, जो रबी फसल पर डेढ़ प्रतिषत खरीफ पर दो, अर्थकरी (नकदी फसल) पर पांच प्रतिषत होगी। इस योजना में मोबाईल फोन, बैंक एकाउंट और संभवतः आधार कार्ड के इस्तेमाल का प्रावधान किया जा रहा है, जिससे बीमा राषि का भुगतान सीधे किसान के खाते मंे जमा होगा। केष लैस आर्थिक प्रणाली से भी किसान जुड़ जायेगा। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का संदेष किसान तक कैसे पहुंचे और किसान खरीफ जून 2016 से योजना का घटक बने, इसके लिए देषव्यापी प्रचार अभियान भी जरूरी हो गया है। भूमि अधिग्रहण पुनर्वास विधेयक के माध्यम से नरेन्द्र मोदी ने विकास का जो संदेष देना चाहा था वह अडंगाबाजी की भेंट चढ़ गया है। लेकिन इस योजना से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मंषा किसान जान सकेंगे कि अक्षरषः एनडीए सरकार देष के 14 करोड़ किसान परिवार के हित के लिए प्रतिबद्ध है। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना किसानों की उम्मीदों पर खरी उतरेगी, इस बात का संकेत तो इसी बात से मिल चुका है कि इसमें बीमा के बारें में कोई लक्ष्मण रेखा खींचकर किसान के सामने मजबूरी नहीं छोड़ी गयी है। केष लैस योजना है, तथापि यदि विपक्ष इसे भारतीय जनता पार्टी और एनडीए सरकार के किसान संवाद की पटकथा कहकर भड़ास निकालते है तो बेमानी होगी। प्रधानमंत्री फसल बीमा के बारें में यह कहने में भी संकोच नहीं है कि यह एक वास्तविक पहल है। क्योंकि फसल बीमा का भी इतिहास है। पूर्ववर्ती प्रयास ओंस के कणों से प्यास बुझाने की कोषिष साबित हुए है। 1965 में केन्द्र सरकार ने फसल बीमा अध्यादेष पारित कर माॅडल योजना लायी गयी थी। दो दषकों तक यह माॅडल समितियों के माध्यम से गुजरा, लेकिन किसान मूकदर्षक बना रहा। बाद में अटलबिहारी वाजपेयी सरकार ने इसे अपनी प्रतिबद्धता में शामिल कर देष के अन्नदाता की चिंता की। प्रयास स्तुत्य होते हुए प्रारंभिक पहल होने से सीमित रही। भारत जैसे विषाल देष में मानसिकता बदलना आसान नहीं है। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना भी पूर्ण प्रतिबद्धता के साथ अमल में आ रही है और दो वर्षों में देष के 50 प्रतिषत किसान इसके अंचल में लाये जाने का लक्ष्य है। पूर्ववर्ती बीमा योजनाएं भी अब तक कभी 23 प्रतिषत किसानों से आगे नहीं पहुंची और न वांछित लाभ या राहत दे पायी है। लिहाजा प्रधानमंत्री फसल बीमा पर देष के अन्नदाताओं की सारी आषाएं केन्द्रित हो गयी है। आगाज जब अच्छा होता है तो अंजाम भी सुखद होता है। प्रधानमंत्री फसल बीमा की खासियत यह है कि न्यूनतम प्रीमियम में अधिकतम लाभ सुनिष्चित करते हुए प्राकृतिक आपदा, कीट व्याधि जैसे जोखिम में अधिसूचित फसलें क्षतिग्रस्त होने पर वित्तीय सुदृढ़ता प्रदान करनें के लिए गांव को इकाई मानकर नवीनतम प्रौद्योगिकी रिमोट सेसिंग से क्षति का आंकलन कर 25 प्रतिषत राहत तत्काल दी जायेगी। इससे आय अर्जन में स्थायित्व बना रहेगा। वित्तीय सहायता का प्रवाह सत्त बना रहेगा। राज्य सरकारें बीमा कंपनियों का चयन कर मापदंड तय करनें के लिए स्वायत्त होगी। योजना के प्रावधान तय करनें के लिए राज्य स्तर पर समन्वय समिति और जिला स्तर पर निगरानी समिति गठित होगी। अधिसूचित क्षेत्र में अधिसूचित किसान, क्रेडिट कार्ड धारी, फसल ऋण लेने वाले, राज्य सरकार अन्य श्रेणी चाहे तो और स्वैच्छिक रूप से लाभार्थी बनने वाले किसान शामिल होंगे। जोखिम का दायरा असीमित हुआओला, पानी, सूखा, लैंड-स्लाईड, जलभराव इसमें शामिल है। पोस्ट हार्वेस्ट नुकसानी, कटाई के बाद 14 दिन तक खेत में फसल रहने पर आपदा की भरपायी होगी। प्राकृतिक आपदा से बोनी नहीं कर पाने पर भी दावा की भरपाई की जायेगी। अतिरिक्त जोखिम में आग, बिजली, तूफान, चक्रवात, बाढ़, सैलाब, भू-स्खलन, सूखा, कीट व्याधि भी शामिल है। योजना के दायरे से बाहर भी कुछ जोखिम है जो राहत भुगतान में देय नहीं है। युद्ध, दंगा, चोरी, वन्य पषु से क्षति, आपसी झगड़े से हुआ नुकसान और मौसम विभाग की चेतावनी पर अमल न करते हुए बोयी गयी फसल पर क्लेम स्वीकार नहीं किया जायेगा। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में एनडीए सरकार विषेष रूप से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की किसान के प्रति संवेदना परिलक्षित हुई है। कुल नुकसान के आंकलन के पूर्व 25 प्रतिषत अग्रिम दावा भुगतान जीएलएस रिपोर्ट के आधार पर कर दिया जायेगा। फसल कटाई के प्रयोग के आंकड़े तत्काल स्मार्टफोन के माध्यम से अपलोड करायें जायेंगे। क्षति की अंतिम रिपोर्ट प्राप्त होने के बाद शेष राषि किसान के खाते में अपने आप जमा हो जायेगी। प्रधानमंत्री फसल बीमा की परिधि असीमित आकाष जैसी है। क्योंकि पूर्व की बीमा योजनाओं में (फसल बोने की सीमा तहसील इकाई जैसी शर्तें थी) अब कोई ऐसी पाबंदी नहीं है। पूर्व में शर्त थी कि अधिसूचित फसल यूनिट में 100 हेक्टर में बोयी ही जाना चाहिए। अब इन बंधनों से किसान उन्मुक्त हो जायेगा।विकसित देष किसानों की मदद में बहुत आगे निकल चुके है। अमेरिका में यदि मौजूदा मौसम में किसान की फसल पिछले दो वर्षों की फसल से 20 प्रतिषत भी कम आती है तो वह बीमा योजना में हकदार हो जाता है। आज भारत में वित्तीय परिवेष भिन्न है। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के लिए केन्द्र को प्रस्तावित बजट में तमाम संकुचन के राह निकालना है। साहसिक पहल के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का किसान शुक्रिया अदा करेंगे। लेकिन राज्य सरकारें यदि योजना के अमल को प्रतिबद्धता ओढ़ती है तो किसान का मनोरथ पूर्ण होने से कोई शक्ति रोक नहीं सकती। योजना का अच्छा होना ही पर्याप्त नहीं है। केन्द्र और राज्य को पूरी प्रतिबद्धता के साथ योजना के अमल में जुटकर अन्नदाता के कर्ज से उन्ऋण होने के फर्ज का निर्वाह करना होगा। सारी कसरत केन्द्र और राज्य की सरकारों की संकल्प शक्ति की परीक्षा सिद्ध होगी।