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जयंतीलाल भंडारी
पाकिस्तान से आए आतंकवादियों द्वारा उरी में सेना के कैंप पर हमले के बाद हमारी सरकार पाकिस्तान को माकूल जवाब देने की रणनीति बना रही है। इसके तहत पाकिस्तान पर आर्थिक प्रतिबंध लगाने और पाकिस्तान रहित सार्क देशों (दक्षिण एशियाई देशों का संगठन) की नई व्यूहरचना को भी मूर्तरूप दिया जाना जरूरी है।
उल्लेखनीय है कि नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद पाकिस्तान से कारोबार और मैत्री संबंध बढ़ाने के लिए प्रयास किए थे, लेकिन उन्होंने पाकिस्तान के आतंकी इरादों को भांपते हुए सबसे पहले नवंबर 2014 में काठमांडू में हुए 18वें सार्क समेलन के दौरान पाकिस्तान के विरोध को दरकिनार करते हुए दक्षेस के क्षेत्रीय उपसमूह बीबीआईएन (बांग्लादेश, भूटान, भारत और नेपाल) की एकसूत्रता पर जोर देकर क्षेत्रीय व्यापार बढ़ाने की रणनीति बनाई। साथ ही अंतर ग्रिड कनेक्टिविटी, जल संसाधन प्रबंधन जैसे अहम मुद्दों पर भी चर्चा हुई। भारत ने बांग्लादेश, भूटान व नेपाल के साथ बीबीआईएन मोटर वाहन अनुबंध पर नवंबर 2014 में हस्ताक्षर किए थे और 5 सितंबर को ढाका से पहला मालवाहक वाहन भी नई दिल्ली पहुंचा। यह भी महत्वपूर्ण है कि भारत ने बांग्लादेश, भूटान और नेपाल में 558 किमी सड़क निर्माण और उन्न्यन की महत्वाकांक्षी परियोजना को भी मंजूरी दी। इससे इन देशों के बीच अंतर-क्षेत्रीय व्यापार 60 फीसदी तक बढ़ेगा। बीबीआईएन के साथ अब श्रीलंका और मालदीव को भी समुद्री लिंक से जोड़ने के लिए कदम बढ़ाए गए हैं।
उल्लेखनीय है कि अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी के साथ वार्ता के दौरान पाकिस्तान की आतंकी भूमिका की आलोचना कर व्यापार संबंधों को नया परिवेश देने पर जोर दिया है। ऐसे आर्थिक परिदृश्य से पाकिस्तान के बिना भी दक्षिण एशियाई अर्थव्यवस्था को एकीकृत करने की संभावना बढ़ेगी।
यद्यपि सार्क 1985 में अस्तित्व में आया और 1994 में दक्षिण एशिया मुक्त व्यापार क्षेत्र (साटा) समझौते पर हस्ताक्षर हुए। मगर पाक की आतंकी और व्यापारिक रुकावटों के कारण सार्क देशों के आपसी कारोबार में खास बढ़ोतरी नहीं हुई। यही कारण है कि साटा विश्व का सबसे कमजोर मुक्त व्यापार संगठन बना हुआ है। विश्व व्यापार में सार्क का हिस्सा 5 प्रतिशत से भी कम है। सार्क देशों की चमकीली व्यापार क्षमताएं पाकिस्तान के कारण साकार नहीं हो पा रहीं। ये तब है जबकि भारत ने पाकिस्तान को 1996 से सर्वाधिक प्राथमिकता वाले देश (एमएफएन) का दर्जा दे रखा है। अब भारत को पाक से ये दर्जा तुरंत वापस ले लेना चाहिए।
उरी हमले के बाद पाकिस्तान से कारोबार की संभावनाएं प्राथमिकता में बिलकुल नहीं हो सकतीं। अब तो भारत को पाकिस्तान पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाने चाहिए। भारत से नदी समझौते के कारण पाक को जो लाभ हो रहे हैं, उन्हें भी तुरंत रोका जाना चाहिए। दक्षेस संगठन से पाकिस्तान को अलग-थलग करने की रणनीति पर जोर-शोर से काम करना चाहिए। पाकिस्तान को छोड़ते हुए सार्क के अन्य देशों के साथ व्यापार बढ़ाना चाहिए। इसमें कोई दो मत नहीं कि भारत पड़ोसी देशों के साथ संबंध सुधारकर कारोबार बढ़ाने की दक्षता रखता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पाकिस्तान में आने वाले नवंबर में होने वाले 19वें सार्क शिखर सम्मेलन में भाग न लेते हुए कड़ा संदेश देना चाहिए। यदि पाक को आतंकी देश घोषित करने के भारत के प्रयास सफल होते हैं तो संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों से पाकिस्तान के आर्थिक-कारोबारी रिश्ते खत्म हो सकते हैं। चूंकि पाकिस्तान कोई बड़ा उत्पादक देश नहीं है, साथ ही उसकी अर्थव्यवस्था भी बुरी स्थिति में है, ऐसे में आर्थिक प्रतिबंधों से उसकी कमर टूट जाएगी। हमें अन्य तमाम विकल्पों के साथ पाकिस्तान को आर्थिक तौर पर भी चुनौतियां देना होंगी, तभी हम उसे हर मोर्चे पर पस्त कर पाएंगे।(नवदुनिया से ,लेखक आर्थिक मामलों के जानकार हैं।)
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