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मार्शल आर्ट का प्रयोग सर्वप्रथम भगवान श्रीकृष्ण ने किया था। कई पौराणिक ग्रंथों में इस बात की जानकारी मिलती है, लेकिन कई पौराणिक ग्रंथ में यह भी उल्लेख मिलता है कि मार्शल आर्ट की आरंभ कलरीपायट्टु नाम से भगवान परशुराम द्वारा किया गया था।
कलरीपायट्टु शस्त्र विद्या है जिसे आज के युग में मार्शल आर्ट के नाम से जाना जाता है। कलरीपायट्टु दुनिया का सबसे पुराना मार्शल आर्ट है और इसे सभी तरह के मार्शल आर्ट का जनक भी कहा जाता है।
इस विद्या के माध्यम से ही श्रीकृष्ण ने चाणूर और मुष्टिक जैसे दैत्य मल्लों का वध किया था तब उनकी उम्र 16 वर्ष की थी। मथुरा में दुष्ट रजक के सिर को हथेली के प्रहार से काट दिया था।
मान्यताओं के अनुसार श्रीकृष्ण ने मार्शल आर्ट का विकास ब्रज क्षेत्र के वनों में किया था। डांडिया रास उसी का एक नृत्य रूप है। कालारिपयट्टू विद्या के प्रथम आचार्य श्रीकृष्ण को ही माना जाता है। हालांकि इसके बाद इस विद्या को अगस्त्य मुनि ने प्रचारित किया था।
इस विद्या के कारण ही 'नारायणी सेना'( नारायणी सेना यानी नारायण श्रीकृष्ण की सेना। द्वापरयुग में जब दुर्योधन और अर्जुन दोनों श्रीकृष्ण से सहायता मांगने गए, तो श्रीकृष्ण ने दुर्योधन को पहला अवसर प्रदान किया। श्रीकृष्ण ने कहा कि वह उसमें और उसकी सेना नारायणी सेना में एक चुन लें। दुर्योधन ने नारायणी सेना का चुनाव किया। अर्जुन ने श्रीकृष्ण का चुनाव किया था। इसे चतुरंगिनी सेना भी कहते हैं।) उस समय यह सबसे प्रहारक सेना मानी जाती थी।
श्रीकृष्ण ने ही कलारिपट्टू की नींव रखी, जो बाद में बोधिधर्मन से होते हुए आधुनिक मार्शल आर्ट में विकसित हुई। बोधिधर्मन के कारण ही यह विद्या चीन, जापान आदि बौद्ध देशों में पहुंची। वर्तमान में कलरीपायट्टु विद्या विद्या केरल और कर्नाटक में प्रचलित है।
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