योगेश्वर श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर विशेष
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सम्पूर्ण कलाओं के स्वामी भगवान श्रीकृष्ण

 

 

देश में महापुरूषों की कमी नही रही है। अनेक महापुरूषों ने देश में अपने-अपने तरीके से समाज सुधार व मानव कल्याण के कार्य किए हैं। जिन्होंने अपने क्रियाकलापों से समाज की धारा को ही बदलने का कार्य किया है उन्हें अवतार कहा जाने लगा। वैदिक वांगम्य में उन्हें आप्त पुरूष के नाम से जाना जाता है।

                       

योगेश्वर श्रीकृष्ण इन महापुरूषों की श्रेणी में अग्रणी हैं, क्योंकि श्रीकृष्ण महानता की चरम सीमा पार कर चुके थे, इसीलिए उन्हें आप्त पुरूष कहा जाता है। उनके मुख से निकले शब्द शास्त्र बन जाते थे, जिनका पथ प्रबुद्घ लोगों का मार्ग बन जाता था तथा उनके द्वारा किए गए कर्म एक उदाहरण प्रस्तुत करने वाले होते थे। उसी श्रीकृष्ण ने अपने गीता के उपदेश में कहा कि-

 

                 यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारतः।

                       अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम॥

 

यानि जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्घि होती है, धर्म की स्थापना के लिए तब-तब वे संसार में प्रकट होते हैं। हालांकि यह गौणिक वाक्य हैं, परन्तु इसे समझने की आवश्यकता है। ऐसे महामना जिनके जन्म दिवस को पूरी दुनिया बड़े चाव व खुशी से मनाती है तो प्रत्येक व्यक्ति उनके जन्म समय के बारे में जानना चाहता है। अब प्रश्न उठता है कि योगेश्वर श्रीकृष्ण का जन्म कब हुआ। उनके जन्म विषय में कम्प्युटर ज्योतिषी  ने काल गणना की है। यह गणना वैदिक विद्वानों से भी मेल खाती है। इस गणना पर विश्वास किया जा सकता है।

 

योगेश्वर श्रीकृष्ण का जन्म भाद्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को हुआ था

श्रीकृष्ण ने दुष्टों का नाश करने के लिए अपने जीवन में अनेक युद्घ किए थे। महाभारत का युद्घ उन सभी युद्घों में सबसे बड़ा और भयानक युद्घ था। महाभारत के युद्घ के दौरान एक पखवाडा 15 दिनों की बजाय 13 दिनों का आया था। इसी दिन सम्पूर्ण सूर्य ग्रहण भी लगा था तथा इस दिन जयद्रथ का वध भी हुआ था। इस युद्घ में श्रीकृष्ण की आयु 89 वर्ष 7 माह बनती है। इसके ठीक 36 वर्ष पश्चात फिर एक पखवाडा 13 दिनों का आया था, उस दिन श्रीकृष्ण ने अपने प्राण त्याग दिए थे।

 

श्रीकृष्ण के गुणों का बखान करना मुश्किल ही नही बल्कि असम्भव हैं। वे सम्पूर्ण मानव थे। वे योगियों में महायोगी, ऋषियों में महर्षि, तपस्वियों में तपस्वी, विद्वानों में महाविद्वान तथा महान दार्शनिक, अपराजय यौद्घा और उत्तम कोटी के वैज्ञानिक थे। श्रीकृष्ण एक अच्छे शिक्षक, लेखक और महान तत्ववेता थे। वे आप्त पुरूष थे, जिनकी तुलना किसी से नही की जा सकती है। इन गुणों के भंडार के कारण मृत्यु लोक के जन उन्हें भगवान कह कर पुकारते हैं। ऐसा कह कर वे न केवल अपनी जिम्मेदारियों से भागते हैं बल्कि श्रीकृष्ण की महानता को नकार कर उन्हें भगवान के चोले में समाहित कर रहे हैं। भगवान सृष्टि के जनक होते हैं परन्तु श्रीकृष्ण ऐसे नही थे लेकिन उनके अनेक गुण भगवान से मेल खाते थे। इसलिए उन्हें भगवान कहा जाने लगा। वैसे ऐसे महापुरूष जिनमें ‘बल, बुद्घि, ज्ञान, तप, यश और ऐश्वर्य’ ये छः गुण विद्यमान हों उन्हें भगवान कहा जाता है। श्रीकृष्ण में ये सभी गुण मौजूद थे।

 

बल - योगेश्वर श्रीकृष्ण ने कंस के धनुषकोटी यज्ञ के दौरान कंस सहित बडे़-बड़े महाबलियों को मलयुद्घ में पछाड़ कर यह सिद्घ कर दिया था कि उनसे अधिक बलशाली पृथ्वी पर कोई और नही है।

बुद्घि - कहा जाता है कि ‘बुद्घिर्यस्य बलम तस्य’ अर्थात जिनके पास बौद्घिक बल होता है, उसके समान बलवान कोई नही होता। जहां शारीरिक बल काम नही आया श्रीकृष्ण ने वहां बौद्घिक बल से शत्रु का नाश किया था। कालयवन की मृत्यु इसका अच्छा उदाहरण है।

ज्ञान - योगेश्वर श्रीकृष्ण महान विद्वान थे। चारों वेदों की अधिकतम ऋचाएं उन्हें कंठस्थ थी। इसी के परिणामस्वरूप उन्होंने महाभारत के युद्घ के दौरान मात्र एक घंटे में अर्जुन का मोह भंग किया था।

तप - कृष्णदत्त ब्रह्मचारी ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि श्रीकृष्ण एक महान तपस्वी थे। उन्होंने केदारनाथ में अपने 12 वर्ष की अखंड तपस्वा व शौध के फलस्वरूप सुदर्शन चक्र अस्त्र का निर्माण किया था। इस अस्त्र की काट संसार के किसी भी यौद्घा के पास नही थी। उन्होंने ब्रह्मचर्य तप का पालन करते हुए विवाह के 12 वर्षों पश्चात प्रद्युम्न जैसे परमवीर पुत्र को जन्म दिया था।

यश - श्रीकृष्ण की संसार में व्यापकता जगजाहिर है। अपने समकाल के दौरान उनकी महानता की गाथा से ऋषि, मुनि, महात्मा, राजा, प्रजा तथा आम नागरिक परिचित था। यह प्रसिद्घि ही यश कहलाती है।

ऐश्वर्य - बड़े से बडे़ राजा, सम्राट तथा इन्द्र आदि भी उनके ऐश्वर्य के सामने फीके थे। संसार में उपभोग की प्रत्येक वस्तु उनके पास थी। कहीं कोई न्यूनता या अभाव दृष्टिगोचर नही होता था। अतः श्रीकृष्ण सम्पूर्ण ऐश्वर्यशाली थे।

 

इन सभी छः गुणों से युक्त व्यक्ति विरले ही होते है। श्रीकृष्ण उनमें विरलों में से एक विरले थे। इसीलिए उन्हें भगवान की उपाधि से नवाजा गया है।

संसार में यह आम धारणा बनी हुई है कि भगवान श्रीकृष्ण के 16108 गोपियां थी और वे उनमें रमण रहते थे। इस पर भी कृष्णदत्त ब्रह्मचारी ने बड़ा सुन्दर विवरण किया है। उन्होंने लिखा है कि गोपियां वेद की ऋचाओं यानि वेद मंत्रों को कहते हैं। भगवान श्रीकृष्ण को वेद के कुल 19404 मंत्रों में से 16108 मंत्र कंठस्थ थे और वे उन्हीं मंत्रों के ज्ञान विज्ञान में रमण रहते थे। भगवान श्रीकृष्ण इन्हीं ऋचाओं का मंथन कर उनसे समाज के उत्थान का मार्ग ढूंढते रहते थे। श्रीकृष्ण जैसे पुरूष द्वारा 16 हजार रानियां अपने रनिवास में रखना तथ्यपरक भी नही लगता है।

 

भगवान श्रीकृष्ण की महानता के कारण उन्हें सम्पूर्ण षोडश कला युक्त माना जाता है, जबकि श्रीराम को 12 कलाओं के ज्ञाता समझा जाता है। भगवान श्रीकृष्ण की 16 कलाओं से पहले हमें कला की परिभाषा को जानना होगा। आखिर कला होती क्या है? किसी भी कार्य में विलक्षण प्रतिभा का होना कला कहलाती है। चन्द्रमा की भी 16 कलाएं होती है, जोकि शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से प्रारम्भ होकर प्रतिदिन बढती हुई पूर्णिमा को सम्पूण चन्द्रमा होने पर 16 कलाएं पूर्ण मानी जाती है। इसी प्रकार श्रीकृष्ण की प्रतिभा भी चंद्रकलाओं की भांति प्रतिदिन बढती हुई पूर्णता को प्राप्त होती रही है। इसी लिए उन्हें 16 कलाओं से युक्त महापुरूष माना जाता है।

षोडश कलाओं के विषय में अलग-अलग विद्वानों के भिन्न-भिन्न विचार हैं। अपने चिंतन के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण की 16 कलाएं 16 विभिन्न विषय हैं, जिनमें उन्हें पारंगतता प्राप्त थी। इन कलाओं के जानने के पश्चात संसार में जानने लायक कुछ और नही रह जाता। अकेले श्रीकृष्ण को उन 16 विषयों में महारत हासिल थी, जिन एक-एक विषय पर आजकल पीएचडी करवाई जाती है। ये कलाएं इस प्रकार से हैं।

 

श्रृंगार कला - भगवान श्रीकृष्ण को श्रृंगार की बारिकियों का इतना ज्यादा ज्ञान था कि उसके श्रृंगार रूप को देखकर गोकुल की कन्याएं (गोपिया) उनके मनमोहक रूप को निहारती रहती थी। उनके गले में दुपट्टा, कमर पर तगड़ी, पीताम्बर अंग वस्त्र, सिर पर छोटा मुकुट तथा उसपर मोर पंख श्री की सुन्दरता में चार चांद लगाता था।

वादन कला - भगवान को वादन के सभी स्वरों का पूर्ण ज्ञान था, जिसके परिणास्वरूप वे अपनी बांसूरी से बड़े बड़ों को अपने अनुचर बना लेते थे।

नृत्य कला - श्रीकृष्ण को नृत्य का पूर्ण ज्ञान था, इसी लिए गोकुल की देवियां उनके नृत्य की प्रशंसा करते-करते श्रीकृष्ण का नृत्य देखने की हठ करती थी।

गायन कला - श्रीकृष्ण एक अच्छे गायक भी थे। वेद के मंत्रों का गायन कर उन्होंने अर्जुन को मोहपाश के मुक्त कर दिया था।

वाकमाधूर्य कला - श्रीकृष्ण की वाणी में विलक्षण मधुरता व्याप्त थी। वे जिस किसी से भी वार्ता करते थे, वह हमेशा के लिए उनका हो जाता था।

वाकचातुर्य कला - उनकी वाणी में चतुरता भी थी। वे बडे़ सहज भाव से अपनी बात को मनवा लेते थे और सामने वाले को अपना विरोद्घि भी नही बनने देते थे। महाभारत में ऐसे अनेक प्रकरण सामने आए हैं।

वक्तृत्व कला - भगवान एक महान वक्ता थे। बड़े-बड़े धूरंधरों को उन्होंने अपने प्रभावशाली वक्तव्यों से धराशाही कर उनको उनके ही बनाए जाल में फांस लिया था। कालयवन उसका एक अच्छा उदाहरण है।

लेखन कला - श्रीकृष्ण ने मात्र एक घंटे के सुक्ष्मकाल में गीता की रचना कर एक ऐतिहासिक कार्य किया है। उनका मुकाबला आज तक या इससे पहले कोई नही कर सका। अतः भगवान एक उत्तम कोटी के लेखक भी थे।

वास्तुकला - भगवान श्रीकृष्ण को वास्तुकला का भी अकाटय ज्ञान था। पांडवों के लिए इन्द्रप्रस्थ और स्वयं अपने लिए राजधानी द्वारका का निर्माण वास्तुकला के बेजोड़ नमूने थे।

पाककला - भगवान श्रीकृष्ण पाक शास्त्र के भी महान पंडित थे। सम्राट युधिष्ठर के राजसूय यज्ञ के दौरान खाने-पीने का पूरा सामान उनकी देख-रेख में ही तैयार किया गया था।

नेतृत्व कला - कृष्ण में नेतृत्व करने की क्षमता बेजोड थी। वे जहां भी गए नेतृत्व उनके पीछे-पीछे हो जाता था। सभी युद्घों से लेकर आम सभाओं में हमेशा सभी ने उन्हीं के नेतृत्व को स्वीकार किया था।

युद्घ कला - श्रीकृष्ण की अधिकतर आयु युद्घों में ही व्यतीत हुई थी परन्तु हमेशा उन्होंने सभी में विजय प्राप्त की। वे युद्घ की सभी विधाओं का सम्पूर्ण ज्ञान रखते थे।

शस्त्रास्‍त्र कला - योगेश्वर श्रीकृष्ण को युद्घ में प्रयोग होने वाले सभी व्यूहों की रचना, उन्हें भंग करने की कला तथा आग्नेयास्त्र, वरूणास्त्र तथा ब्रह्मास्त्र सहित सभी अस्त्र शस्त्रों का पूर्ण ज्ञान प्राप्त था।

अध्यापन कला - भगवान श्रीकृष्ण एक सफल अध्यापक भी थे। युद्घ क्षेत्र में जिस प्रकार उन्होंने अर्जुन को निष्कामकर्म योग, सांख्य योग, विभूति योग, भक्ति योग, मोक्ष सन्यास योग तथा विश्वरूप दर्शन योग का पाठ पढाया, वह हमेशा अनुक्रणीय रहेगा।

वैद्यक कला - श्रीकृष्ण आयूर्वेद के भी सम्पूर्ण ज्ञाता थे। कंस की फूल चुनने वाली दासी कुबड़ी के शरीर को सीधा करना तथा महाभारत युद्घ में अश्वथामा के प्रहार से मृतप्रायः हुए परीक्षित को जीवन दान देना इसके अकाट्य उदाहरण है।

 

पूर्वबोध कला - भगवान ने तप से अपनी आत्मा को इतना पवित्र और उर्द्घव गति को प्राप्त करवा लिया था कि उन्हें किसी भी घटना का पहले से ही अनुमान हो जाता था। यदि देखा जाए तो इन कलाओं को जानने के पश्चात और कुछ जानने योग्य नही रह जाता। इसलिए श्रीकृष्ण एक सम्पूर्ण मानव थे।

        

वैदिक विद्वान स्वामी विदेह योगी ने श्रीकृष्ण के विषय में कहा कि वे एक महामानव थे और उनकी तुलना अभी तक किसी भी महापुरूष से नही की जा सकती। पौराणिक मान्यताओं में राम और कृष्ण को छोड़ किसी भी अवतार के साथ कलाओं का जिकर नही आता है। राम सूर्यवंशी थे और संसार में 12 आदित्य माने जाते है। इसलिए राम को 12 कलाओं से युक्त माना जाता है। परन्तु श्रीकृष्ण चंद्रवंशी थे और चंद्रमा की 16 कलाएं होती हैं इसलिए उन्हें 16 कलाओं का ज्ञाता माना जाता है।

 

स्वामी जी ने कहा कि संसार में आम व्यक्ति अपने दिमाग का 2 से अढाई फीसदी ही प्रयोग करता है परन्तु कोई वैज्ञानिक 3 से साढे तीन फीसदी दिमाग प्रयोग करता है। लेकिन श्रीराम अपने दिमाग का 12 फीसदी और श्रीकृष्ण 16 फीसदी दिमाग का प्रयोग करते थे। इसलिए उन्हें 12 व 16 कलाओं से युक्त माना जाता है। चाहे कुछ भी हो श्रीकृष्ण एक महामानव थे और उनका जन्मदिन मनाना तभी सार्थक होगा जब हम उनके किसी एक गुण का भी अनुक्रण कर सकेंगे।

Dakhal News 24 August 2016

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