भूमि अधिग्रहण में जरुरी हैं सजगता
भूमि अधिग्रहण में जरुरी हैं सजगता
विकास के विस्तार के लिए धरती की आवश्यकता होती है। इसके लिए वनों और किसानों की जमीन ही सबसे पहले हस्तगत करने की योजना बनाई जाती है। लेकिन हम इससे भी इंकार नहीं कर सकते कि अधोसंरचना और विकास के काम भूमि की कमी होने पर रोक दिए जाएं। अब आवश्यकता इस बात की है कि मनुष्य को पर्यावरण, वन और कृषि के साथ एक संयुक्त विकास का मॉडल बनाना चाहिए। जहां कृषि भूमि या वन भूमि के कारण होने वाला पर्यावरणीय नुकसान की भरपाई हो सके। अक्सर होता है कि जिला प्रशासन, केंद्र या राज्य सरकार के विभागों, उपक्रमों की अधोसंरचना और विकास के लिए भूमि की आवश्यकता होने पर सबसे पहले उपयुक्त भूमि की तलाश में सड़क के किनारे किसानों की भूमि को प्राथमिकता देते हैं। कंपनियों की मानसिकता भी यही होती है। कलेक्टर उपलब्ध शासकीय भूमिमें से उपयुक्त भूमि प्रशासकीय विभाग को आवंटित करेंगे। जहां शासकीय भूमि उपलब्ध नहीं है, तो निजी भूमिधारकों की भूमि आपसी सहमति से क्रय की जाएगी। यहां सहमति का अर्थ किस संदर्भ में होगा इसका पता किसी को नहीं है। हो सकता है कि यह सहमति कोई कंपनी या शासन स्वयं भूमि की चार गुना से भी अधिक कीमत चुका कर हासिल कर ले। वास्तव में विकास की इस दौड़ में हमें विकल्पों को और अधिक व्यापक करना चाहिए ताकि भूमि पर अधिक भार न पड़े। भूमि अधिग्रहण से आजीविका और निर्वासन आमजन, किसान, मजदूर और गांवों में गुजर-बसर कर रहे अन्य लोगों के लिए निराशाजनक होता है। देश में आजादी से पहले से भू-अधिग्रहण अधिनियम, 1894 लागू था। लेकिन संविधान लागू होने के बाद से ही यह अधिनियम आलोचना का विषय रहा है। किसी भी काम को सार्वजनिक हित का बता कर भूमि ले ली जाती थी और नगण्य-सा मुआवजा देकर किसी व्यक्ति और उसके परिवार को विस्थापित कर भगवान भरोसे छोड़ दिया जाता था। इस कानून को लेकर लोगों की प्रतिक्रिया कितनी प्रतिकूल रही है, यह किसी से छिपा नहीं है। दरअसल, यह कानून किसान-विरोधी था। हजारों लाखों किसानों का दुर्भाग्य ये रहा वे ऐसे अंग्रेज परस्ती वाले कानूनों के तहत अपनी जमीनें आजाद भारत में भी लुटाते रहे। भूमि अधिग्रहण और संबंधित विस्थापितों के पुनर्वास और पुनर्स्थापन के लिए केंद्र सरकार द्वारा पिछले साल एक अधिनियम लाया गया, जिसे ‘भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास एवं पुन:स्थापन में उचित मुआवजा और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम 2013’ नाम दिया गया। ध्यान रखने की बात है कि यह अधिनियम कई जन-संघर्षों और आंदोलनों के फलस्वरूप वजूद में आ सका। संसद में सभी राजनीतिक दलों की सहमति से यह विधेयक पारित हुआ और इसे एक अप्रैल, 2014 से पूरे देश में लागू किया गया। आज सरकारें अधिक पारदर्शी और संवेदनशील कानून के तहत भूमि अधिग्रहण कर रही हैं फिर भी भूमि अधिग्रहण मामले में आज भी पर्याप्त सजगता की आवश्यक है।
Dakhal News 22 April 2016

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