श्रम की ताकत श्रमेव जयते
श्रम की ताकत श्रमेव जयते
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस हफ्ते कई श्रम सुधार कार्यक्रम पेश किए। श्रमेव जयते योजना पंडित दीनदयाल उपाध्याय के नाम से जारी की गई है। इस योजना से पहले मोदी ने ‘मेक इन इंडिया’ अभियान का स्थापित किया। इससे साबित होता है कि मोदी के कार्यक्रमों और योजनाओं में एक दिशा और विजन काम करता है। प्रधानमंत्री मोदी ने श्रम की ताकत को अपने भाषण में स्थापित भी किया है। उनका कहना था कि जितनी ताकत सत्यमेव जयते की है, उतनी ही ताकत श्रमेव जयते की है। मोदी ने ‘श्रमेव जयते’ के तहत कई योजनाएं पेश कीं, जिनमें कर्मचारी भविष्य निधि के लिए यूनिवर्सल अकाउंट नंबर के जरिए पोर्टेबिलिटी, आदि शामिल हैं। ये सभी कदम सरकार की विकास संबंधी पहल को बताते हैं। मजदूरी खत्म करने के लिए एक विधेयक पेश करने के लिए संशोधन लाने की योजना को बनाने की बात की गई है। यह सही है कि गरीब लोग ईपीएफ के बाजिब हकों से लाभान्वित नहीं हो पाते थे। वैसे भी देश में करीब 27 हजार करोड़ रुपए ईपीएफ में जमा हैं जिनका कोई दावेदार नहीं है। यह सभी उन गरीब अनपढ़ और प्रवास करने वाले मजदूरों के हैं जो कंपनी कानून के तहत अपना ईपीएफ अंशदान करते हैं लेकिन इसे समय पर निकाल नहीं पाते। यह गरीब कर्मचारियों की मेहनत का पैसा है। यह सही है कि नए सुधारों से कर्मियों का पीएफ सुरक्षित रहेगा, वे कहीं भी नौकरी करने जाएंगे पर उनका अकाउंट नम्बर नहीं बदलेगा और उनके पीएफ की राशि जरूरत में मिल जाएगी, डूबेगी नहीं। बेरोगजारों को रोजगार उपलब्ध होगा और प्रशिक्षण प्राप्त कर वह दूसरों को भी रोजगार उपलब्ध करा सकेंगे। श्रमेव जयते स्कीम में श्रमिकों के हितों की रक्षा होगी और शोषण बंद होगा। स्किल डवलपमेंट से युवाओं में मनोबल बढ़ेगा। आॅनलाइन इंटरनेट पर सभी जानकारी उपलब्ध होने व समस्याओं का निराकरण होने से लोगों की परेशानी कम होगी। लेकिन असल बात है कि हमें ऐसे लोगों के बारे में सजगता का प्रदर्शन करना होगा जो लोग या संस्थान श्रमिकों का शोषण करते हैं। प्रधानमंत्री औपचारिक और अनुपयोगी कानूनों को लगातार खतम कर रहे हैं। मोदी ने इन श्रम कानूनों के बारे में बात करते हुए कहा कि लेबर इंस्पेक्टर किस फैक्टरी का निरीक्षण करने के लिए जाएगा तो वह पूर्व से तय नहीं होगा और उसे 72 घंटे के में रिपोर्ट देना होगी। सतर्कता और सजगता मोदी के काम काज की पहचान बन चुकी है और इससे साबित होता है कि प्रधानमंत्री को अपने काम की दशा और दिशा दोनों का सही अनुमान है। वे श्रम कानूनों का आधुनिक प्रवृत्तियों के अनुरुप बदलाव कर रहे हैं। आज कुशल अकुशल श्रमिक आवश्यकता अनुरूप अपने श्रम को बेचता है। अब बंधन की जगह कुशलता का मामला बन रहा है।
Dakhal News 22 April 2016

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