म. प्र. में कैबिनेट ने एक नए विभाग "आनंद विभाग' के गठन का निर्णय लिया है । एक मित्र से प्राप्त शरद जोशी जी की याद दिलाता सटीक व्यंग
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खबर है कि सरकार ने एक आनंद विभाग बनाया है । सरकार चाहती है, जनता खुश रहे ।
मैं सरकार की चाहत देख कर ही खुश हो गया हूं । पत्नी नाराज है - " हम बरसों से कह रहे थे , मुंह लटकाए मत रहा करो , तो सुनते नहीं थे ।सरकार ने कहा तो तुरंत फ्यूज बल्ब से हैलोजन लाइट हो गए " । मेरा मुंह जरा लटका सा है ।लोग अक्सर टोकते हैं - क्या बात है भाई साहब , ये पंचर टायर सी सूरत क्यों बनाई है ? दोस्तों तक तो ठीक था पर अब मामला कानूनी है।
डरता हूँ , कही मेरे लटके मुंह के वजह से मुझे सरकार अपराधी न करार दे । नये विभाग के अधिकारी न जाने क्या नियम बना दें । हो सकता है नाखुश रहना कानूनन जुर्म करार दिया जाये । पर यह कैसे साबित होगा, कि आदमी खुश है या नहीं ? सरकारी अफसर पूछेगा - बताइए आप खुश हैं ? गरीब आदमी फौरन कहेगा - जी हुजूर बहुत खुश हूं । थाने में चोरी की रिपोर्ट लिखाने गया आदमी 10 मिनट में मान जाता है कि उसके यहां चोरी हुई ही नहीं थी । उसे वहम हो गया था । जो मालमत्ता गया , वह कभी उसका था ही नहीं । माया थी । मोह था । ऐसे में थानेदार जब डपट कर पूछेगा - बोल तू खुश है कि नहीं , तो मजाल है गरीब ना कर दे ।
फिर आनंद विभाग के पास क्या काम बचेगा ? मेरे एक मित्र कहते हैं - अब हमें आनंद टैक्स भरना होगा । इस टैक्स की रकम सरकार आनंद फैलाने के लिए खर्च करेगी ।क्या खेल - तमाशे , नाच -गाने पर ? किन्तु सरकार तो उल्टा उस पर मनोरंजन कर के जरिए लगाम कसती है !
कोई कह रहा था इस विभाग मे आध्यात्मिक गुरुओं को मंत्री बनाया जायेगा ! हां यही सही रहेगा ! हमें सदियों से सिखाया गया है - जगत मिथ्या है ! भूख , गरीबी , बीमारी सब मिथ्या है । इनसे लड़ो मत । स्वीकार कर लो । जब सारी दुनिया विज्ञान की मदद से भूख और गरीबी से लड़ रही थी , तब भी हम ब्रह्मानंद की खोज में लगे थे ।सदियों से ऐसा होता आया है। तो फिर सरकार को सेहत , रोजगार , सड़क किसी विभाग की जरूरत नहीं है । बस किसी खास योग या क्रिया से लोगों को खुश रहना सिखा दीजिए । और सरकर का काम खत्म । पर मेरे मित्र कहते हैं अगर सरकार के सारे विभाग अपना अपना काम ठीक से करें तो जनता की तकलीफ अपने आप दूर हो जाए और इस आनंद विभाग की जरूरत ही न पड़े । मित्र सरकार की मजबूरी समझ नहीं पा रहे है । लोगों की चिंता सरकार का कर्तव्य है । इस चिंता को सरकार अपनी सुविधा अनुसार जाहिर करती है । सड़क दुर्घटनाएं बढ़ने लगी तो सरकार को चिंता हुई विशेषज्ञों ने कारण बताए - सड़कों की इंजीनियरिंग खराब है, गड्ढे , अंधे मोड़ , तेज ढलान , टूटी पुलियाऐं , बगैर संकेतक के स्पीड ब्रेकर , आवारा पशु तमाम वजहें हैं । सरकार चिंतित हो गई और नियम बनाया कि। दुर्घटनाओं की एकमात्र वजह हेलमेट न पहनना है । अधिकारी हर सड़क , चौराहे पर हेलमेट के चालान बनाए, इससे साबित हो जाएगा यदि दुर्घटना होती है, तो नागरिक स्वयं जिम्मेदार है : क्योंकि वह हेलमेट नहीं पहनते...!
सरकार ने सफाई की चिंता की । लोगों ने कहा - शहर में कई किलोमीटर तक सार्वजनिक शौचालय नहीं है; ड्रेनेज लाइन और सीवरेज ट्रीटमेंट की व्यवस्था नहीं है कचरे को उठा कर ले जाने की व्यवस्था नहीं है । पर सरकार ने कहा -असल समस्या यह नही है दरअसल नागरिक सड़क पर गंदगी करते हैं । उन पर दंड लगाइए।
अब सरकार खुशी की चिन्ता कर रही है । खुदा खैर करे ..।
मैं दूध का जला हूं, यह आनंद विभाग की छांछ फूंक फूंक कर पीना चाहता हूं । क्या पता कल से पुलिस हर चौराहे पर मुस्कुराहट मीटर लगा कर मेरी खुशी चेक करे । मेरा तो रोज चालान कटेगा । पुलिस कहेगी - तुम पर उदास रहने का आरोप है ।500 रूपये निकालो । मैं कहूंगा - नहीं हुजूर.., मैं तो हमेशा खुश रहता हूं .., वह तो बस अभी 2 मिनट पहले बच्चे के स्कूल की फीस याद आ गई .., तो जरा सा.....!
साले .., सरकार को गुमराह करता है.., अरे मिसरा - लाना तो जरा मेरा डंडा .., इसकी मनहूसियत दूर करूं ।
मैं जोर-जोर से हंसता हूं- नहीं हुजूर नहीं .., देखिए मैं हंस रहा हूं..., भूख , गरीबी ,जुल्म , गैरबराबरी , जात पात, सब कुछ भूल कर मैं हंसूंगा... खूब खुश रहूंगा...! बस मुझे मेरे हाल पर छोड़ दीजिए...!"