सुहास और सहस्रबुद्धे एक ही रास्ते पर
राघवेंद्र सिंह
मध्यप्रदेश भाजपा के प्रभारी और राष्ट्रीय उपाध्यक्ष विनय सहस्रबुद्धे और तीन महीने पहले नवनियुक्त प्रदेश संगठन महामंत्री सुहास भगत में इत्तेफाक से ही सही काफी समानताएं हैं। दोनों मराठी मानुष हैं। मराठी होने के नाते मितभाषी और मितव्यीय हैं। संघ से संस्कारित होने के कारण संगठन को सुगठित करने में पारंगत माने जाते हैं। मप्र भाजपा को चौथी दफा सरकार में लाने के मिशन पर दोनों को यहां भेजा गया है। यहां के कार्यकर्ता स्वाभिमानी और देव दुर्लभ हैं इसलिए लंबे समय तक उन्हें कोई संगठन का पाठ नहीं पढ़ाए तो भी वो उन दुधारु गाय की तरह हैं जो उसके चरवाहे द्वारा एक खूंटे पर झूठ-मूठ बांधने का उपक्रम करे तो भी वह संगठन, संस्कारों और मर्यादाओं की रस्सी से बंधा रहता आया है। बिना चारे, भूसा और प्यासा रखे जाने पर भी सीधी गाय की तरह दूध देता रहा है जिसे पीकर चरवाहे आदि मलंग बने घूम रहे हैं। इसके लिए स्व. कुशाभाऊ ठाकरे, प्यारेलाल खंडेलवाल, नारायण प्रसाद गुप्ता की पुण्यायी और राजमाता विजयाराजे सिंधिया के अपार सहयोग और अथाह दौलत का जिक्र नहीं किया तो इन सब के साथ अन्याय होगा।
अब थोड़ी चर्चा करते हैं संघ द्वारा भाजपा में भेजे गए इन दोनों स्वयंसेवकों सहस्रबुद्धे और सुहास की। सुहास को हालांकि अभी दायित्व संभाले तीन महीने ही हो रहे हैं लेकिन कई बार ‘पांव पालने’ में भी दिखने लगते हैं। सो संगठन के मान से सुहास की प्रत्यंचा खिंची हुई कम दिख रही है। संभागीय संगठन मंत्री संगठन के हाथ-पांव और आंख-कान माने जाते हैं। वे सुहास के निर्देशों की अवहेलना कर रहे हैं। हांडी के चावल के तौर पर सुहास भगत ने रीवा बैठक में कहा था कि कोई भी संगठन मंत्री मंच, माइक और होर्डिंग्स शेयर नहीं करेगा लेकिन किसी संगठन मंत्री ने इसका पालन नहीं किया। संगठन मंित्रयों में होशंगाबाद के जितेंद्र लिटोरिया, ग्वालियर में प्रदीप जोशी, इंदौर में प्रदेश अध्यक्ष के साथ शैलेंद्र बरुआ मंच पर आसीन थे। संगठन स्तर पर इस कदर निर्देशों की अवज्ञा हो रही है तो कल कार्यकर्ता संगठन महामंत्री की नियुक्ति और संगठन क्षमता पर सवाल खड़े करेंगे। हालांकि वे विद्वान और सज्जन हैं इसलिए उन्हें अभी वक्त दिया जाना चाहिए लेकिन वे मंडल स्तर तक दौरे नहीं करेंगे तो लाख चतुर होने पर भी भाजपा को समझ नहीं पाएंगे।
एक पत्रकार के नाते मैं 1989 से प्रदेश भाजपा और कांग्रेस की रिपोर्टिंग कर रहा हूं। संगठन महामंत्री और प्रदेश प्रभारी स्तर पर इस तरह की सतही सक्रियता बहुत याद करने पर भी नजर नहीं आती। लगता है सब सत्ता और संगठन का आनंद ले रहे हैं। जैसे किसी अमीर घराने में पुरखों के पराक्रम से प्राप्त धन संपदा आने वाली पीढ़ियां भोगा करती हैं। सहस्रबुद्धे के पास भी नसीहतें तो हैं लेकिन कार्यकर्ता तो छोिड़ए पदाधिकारियों तक के लिए वक्त नहीं है। दिल्ली की राजनीति में व्यस्त हैं। मंत्री बनेंगे मोदी सरकार में। ऐसी खबरें आ रही हैं। प्रदेश में एजेंडा फिक्स है। किसे लालबत्ती दिलानी है और किसे बत्ती देनी है। जबकि प्रदेश के प्रभारियों में सुंदर सिंह भंडारी से लेकर कुशाभाऊ, नरेंद्र मोदी, ओमप्रकाश माथुर, अरुण जेटली, अनंत कुमार तक ने इस दायित्व को निभाया है। इसी तरह संगठन महामंत्रियों में स्व. कुशाभाऊ ठाकरे लंबे समय तक संगठन महामंत्री रहे। अविभाजित मप्र में तीन क्षेत्रीय संगठन मंत्री की व्यवस्था थी। गोविंद सारंग छत्तीसगढ़, महाकौशल मेघराज जैन और कृष्णमुरारी मोघे मध्य भारत के क्षेत्रीय संगठन मंत्री हुआ करते थे। चाल, चरित्र और चेहरे में आदर्श और कार्यकर्ताओं में उनका आचरण अब के संगठन मंत्रियों से बेहतर माना जाता है।
कार्यकारिणी का गठन असली परीक्षा
संगठन मंत्रियों की व्यवस्था बदली और कृष्णमुरारी मोघे, कप्तान सिंह सोलंकी, माखन सिंह सोलंकी, अरविन्द मेनन के बाद अब सुहास भगत इस दायित्व से रूबरू हो रहे हैं। वे टेक्नोक्रेट हैं। पार्टी सत्ता में है और उनकी तुलना बहुत तेज चलने वाले मेनन से होगी। इसलिए भगत बहुत सधे कदमों और क्षिप्रा की भांति बहुत मंथर गति से चल रहे हैं। क्षिप्रा के तट पर तो महाकाल हैं और वहां सिंहस्थ भी लगता है। सुहास के पास भी सत्ता के शिव हैं और लोकतंत्र का महाकुंभ विधानसभा और लोकसभा चुनाव भी कराने हैं। बशर्ते वे चुनावी महाकुंभ के लिए संगठन को ठीक से संचालित करें और सत्ता में आदर्श दूरी संतुलन और समन्वय बनाए रखें। उनकी पहली अग्निपरीक्षा जुलाई में प्रदेश कार्यकारिणी के गठन में आने वाले असली कार्यकर्ताओं को लेकर होगी। जब पार्टी के वफादार पदों पर होंगे और दलाल दरवाजे के बाहर...अभी तक तो सुहास और सहस्रबुद्धे दोनों एक ही रास्ते पर हैं। हर शाख पर लापरवाह बैठे हैं...अंजाम-ए-गुलिस्तां...
कांग्रेस में तेल और तेल की धार...
मैहर और घोड़ाडोंगरी की हार के बाद मायूस प्रदेश में राज्यसभा चुनाव में विवेक तनखा की जीत से हारती आ रही कांग्रेस में हलचल है। शहडोल लोकसभा उपचुनाव की तैयारियों के लिए नेताओं की आवाजाही शुरू हो गई है। प्रदेश अध्यक्ष अरूण यादव ने दबाव में ही सही सक्रियता दिखाई। पूर्व केन्द्रीय मंत्री कमलनाथ के नेतृत्व में राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत से यादव की कुर्सी पर खतरे बढ़ा दिया है। उनके विरोधी ताकत हो रहे हैं, एेसे में राहुल गांधी के प्रिय श्री यादव ने गद्दी बचाने, सक्रियता दिखाने के लिए शहडोल पर जीत की बिसात बिछानी शुरू कर दी है। कांग्रेस नेताओं की तैनात करने लगी है। मगर वहां भाजपा जीती तो फिर यादव संकट में पड़ेगें। कांग्रेस लगता है अभी कुछ बदलाव के मूड में नहीं हैं, जबकि पार्टी हाईकमान पर परिवर्तनवादियों का पेशर लगातार बढ़ रहा है। कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी की ताजपोशी तक प्रदेश में कोई बड़ा निर्णय होता नजर नहीं आता। अभी तो सब तेल और तेल की धार देख रहे हैं...
(लेखक आईएनडी 24, न्यूज चैनल में प्रबंध संपादक हैं )