अफसरों की टोली जो बन रही है मिसाल
raghvendra singh
 
 
 
राघवेंद्र सिंह
मध्यप्रदेश का एक इलाका ऐसा है जहां अफसरों की टोली कमाल का काम करने के कारण मिसाल बन रही है। यह क्षेत्र है चंबल नदी और उसके बीहड़ों का जो कभी बंदूक, गोली और छोटी-छोटी बातों पर खून-खराबे के लिये जाना जाता रहा है। यहां के लोग दिमाग से सोचते हैैं मगर ज्यादातर सुनते दिल की है। इसलिये अधिकारियों की टीम ने बदलाव के लिये इस मनोविज्ञान  को समझ काम किया तो मुश्किलों को कामयाबी में बदलते देर नहीं लगी....
हम बात कर रहे हैैं भिंड जिले की। कभी यहां समर्पित दस्युराज मलखान सिंह और मोहर सिंह के नाम का डंका भी था और दहशत भी। कालांतर में दुर्दांत डकैत मेहरबान सिंह और रमेश सिंह भी रहे जो एनकाउंटर में मारे गये। इस जिले में सात माह पहले  अक्टूबर 2015 में कलेक्टर इलैया राजा टी ने बागडोर संभाली। उनके साथ बेचमेट रहे नवनीत  भसीन यहां पुलिस अधीक्षक का जिम्मा संभाल रहे हैैं। इन दोनों मित्रों ने व जिला पंचायत अधिकारी प्रवीण सिंह  ने भिंड जिले की तकदीर और तस्वीर  बदलने का बीड़ा लिया। इसमें निर्णायक भूमिका अदा की जिला न्यायाधीश श्यामसुंदर गर्ग ने। एक तरह से इन अधिकारियों का यह योग समाज की सेहत सुधारने का त्रिफला बन गया। इसके वैद्य बन गये कानून के जानकार। 
कलेक्टर की अगुवाई में सबसे पहले शिक्षा के क्षेत्र में सफाई का अभियान शुरू किया गया। प्रदेश में चंबल क्षेत्र के साथ विंध्य का इलाका ऐसा है जहां शिक्षा माफिया का मकडज़ाल फैला हुआ है। आमतौर से बस आप एडमिशन ले लीजिये पास होना तय है। करोड़ों के इस कारोबार में बंदूक की नोंक पर खुलेआम नकल होती थी। महज  सात माह की कलेक्टरी में इलैया राजा, एस पी भसीन ने नकल पर सौ प्रतिशत रोक  की मुहिम चलाई। हालत यह है कि परीक्षा के नतीजा 20 प्रतिशत के आसपास तक सिमट गये। यह सब हुआ बिना किसी शोरशराबे के। स्थिति यह है कि नकल कराने वाले 200 शिक्षण संस्थानों की मान्यता  रद्द कर दी गई और पचास से अधिक स्कूल  संचालकों ने अगले सत्र से पाठशाला बंद करने का निर्णय लिया है क्योंकि नकल नहीं तो धंधा बंद।
जिला प्रशासन ने शिक्षा में सुधार के साथ मिशन के तौर पर  तहसीलों  में राजस्व प्रकरण निपटाने का लक्ष्य चुना है। कलेक्टर का मानना है कि कस्बे और गांवों में विवाद की जड़ ज्यादातर  खेती से जुड़े मामले होते हैैं। इसलिये सौ प्रतिशत निराकरण  की चुनौती को सामने रखकर काम कर रहे हैैं। इसी तरह प्रशासन ने स्वास्थ्य सेवाओं को भी अपने रडार पर लिया है। सरकार की लाइफ लाइन एक्सप्रेस रेल सेवा चलाती है। इसके तहत जिले के रेल्वे स्टेशन पर शहरी व ग्र्रामीण मरीजों का परीक्षण व आपरेशन तक किया जायेगा। रेल के डिब्बे में अस्पताल का यह अभियान रेलवे ट्रेक पर बीस दिन तक चलने वाला है।
अधिकारियों की यह टोली दबाव में आये बिना कानूनी बारीकी सबको समाज कर सुधार में लगी है। इन अधिकारियों का कहना है कि हमारी ईमानदारी लोगों को दिखे तभी सफलता मिलेगी। इसके आगे कलेक्टर कहते हैैं लोगों को त्वरित न्याय मिले, दिखे और पक्षकारों के साथ बाकी लोग भी इससे महसूस करें यही हमारा लक्ष्य है। हम सब इसे चुनौती के रूप में लेकर काम कर रहे हैैं।
ग्वालियर कलेक्टर रहे पी.नरहरि ने अपने कार्यकाल में जनता से जुड़े कामों को लेकर वाहवाही  लूटी थी। उन्होंने एटीएम में दिव्यांगों के लिये सीढिय़ां  के साथ रेम्प बनवाने की शुरूआत की थी। इन दिनों वे कलेक्टर इंदौर हैैं और  जनता से सोशल मीडिया के जरिये सीधे संवाद कर समस्याएं सुलझाने में लगे हैैं। यह अलग बात है कि जनता में घुल मिलकर काम करने वाले अधिकारी कभी कभी नेताओं को नहीं सुहाते। चिटफंड ंपनियों वे बिल्डरों के खिलाफ कार्रवाई के कारण भी श्री नरहरि दबाव में नहीं आने के कारण चर्चाओं में हैैं। 
अनेक हैैं अच्छे अफसर
बात 1990 के दशक की है सुंदरलाल पटवा मुख्यमंत्री थे और उन्होंने भोपाल कलेक्टर की कमान एम.ए. खान को सौैंपी। खान पहले भोपाल नगर निगम के प्रशासक भी थे, तब उन्होंने भोपाल को अतिक्रमण मुक्त  करने के अभियान का नेतृत्व किया।  कांग्र्रेस  समर्थकों की  बहुलता वाले पुराने भोपाल  और  भाजपा समर्थकों के गढ़ बैरागढ़ को उन्होंने अतिक्रमणविहीन करने का बड़ा काम किया था। उनके इस काम  से राजधानी  सुंदर होने के साथ व्यवस्थित भी हुई। तब एक मंच से  तत्कालीन राष्ट्रपति तक ने श्री खान की तारीफ की थी। ऐसे ही आपातकाल के समय भोपाल कलेक्टर विजय सिंह के अतिक्रमण विरोधी अभियान को लोग याद करते हैं। बाद में श्री सिंह इंदौर कमिश्नर रहते हुये आगे बढ़ाया और खूब प्रशंसा प्राप्त की। अच्छे अफसरों के रूप में स्व. महेशनीलकंठ बुच  भी मील के पत्थर हैैं। उन्होंने भोपाल को सुंदर बनाने व व्यवस्थित करने में अहम रोल अदा किया। यही वजह है कि स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के बाद सरकार उनके सुझावों को मानती थी। जनता के भले के लिये ईमानदारी, निष्पक्षता से काम करने वाले अधिकारियों की टीम की हमेशा जय हो....
एक शेषन भी थे
अधिकारियों की अपनी कार्यशैली उनकी पहचान बनाती हैै। देश में चुनाव  सुधार  को कठोरता से लागू कराने के लिये मुख्य चुनाव आयुक्त तिरुनेल्लै नारायण शेषन का अमिट स्थान है। वे 1990 से 96 तक मुख्य चुनाव आयुक्त रहे और इस दौरान  उनकी ऐसी धमक थी कि राज्य सरकार  उनसे भय खाती थी। एक बार तो यह हुआ कि वे जिस रेस्ट हाउस में ठहरे थे  वहां बाथरूम खराब होने से बड़े अधिकारियों को सस्पेंड  कर दिया था। कलेक्टर के तबादले हो जाते थे। चुनाव में गड़बड़ी करने वाले दल, प्रत्याशी और अफसरा थर थर कांपते थे। इसलिये बहुत कुछ अफसर पर रहता है।
 
 
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Dakhal News 24 May 2016

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