भ्रष्टाचारी हजम कर गए 20 अरब 32 करोड़ …
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शिवराज सरकार की कपिलधारा योजना का काला सच…
 
विनोद कुमार उपाध्याय
 
मध्यप्रदेश में  बलराम तालाब के बाद अब कपिलधारा कूप योजना में फर्जीवाड़ा सामने आया है। सरकार का दावा है कि प्रदेशभर में 3 लाख 15 हजार कपिलधारा सिंचाई कूप का निर्माण किया गया है। इनमें से 1 लाख 3 हजार 400 हितग्राही को विभिन्न विभागीय योजनाओं के जरिए सिचाई पंप के लिए अनुदान सहायता भी मुहैया करवाई गई। लेकिन जमीनी हकीकत इसके विपरीत है। प्रदेश के सभी जिलों में कपिलधारा कूप के निर्माण में फर्जीवाड़ा किया गया है। कहीं कूप ही नहीं खुदा है तो कहीं गहराई कम है तो कहीं कपिलधारा कूपों के नाम पर सिर्फ गड्ढे खुदे हैं। हजारों मामले ऐसे भी सामने आए हैं, जिसमें जिन किसानों के नाम पर कूप खुदा है उन्हें इसकी जानकारी ही नहीं है। ऐसे 1 लाख 27 हजार कपिलधारा कूपों में भ्रष्टाचार का मामला सामने आया है। यानी सरकार का सरपंच, सचिव, जनपद सीईओ, सहायक यंत्री और उपयंत्री आदि ने मिलकर करीब 20.32 अरब रूपए हजम कर गए हैं। सात साल बाद अब इस मामले की परतें खुल रही हैं। उल्लेखनीय है कि मनरेगा के तहत गरीब किसानों की गरीबी दूर करने और उनके जीवन में खुशहाली लाने के लिए कपिलधारा कूप योजना शुरू की गई थी। इस योजना में शुरुआती दौर में जिस तरीके की बंदरबांट फर्जी कामों की हुई थी, उसके परिणाम आने शुरू हो गए हैं। 2007-08 के कपिलधारा कूप मामले में शिकायतें आने लगी थीं। अब जिलेवार हुई जांच में भ्रष्टाचार सामने आने लगा है। इसमें सरपंच, जनपद सीईओ सहित सहायक यंत्री और उपयंत्री भी दोषी पाए जा रहे हैं। आलम यह है कि कपिलधारा योजना के तहत खोदे गए 3 लाख 15 हजार कुओं में से ज्यादातर खोदे ही नहीं गए हैं। अगर इस मामले की सही ढग़ से जांच की जाए तो हर पंचायत में भ्रष्टाचार उजागर होगा और पूर्व के जितने सरपंच और सचिव हैं वे इसके घेरे में आएंगे। दरअसल, सरकार की मंशा थी की हर किसान के खेत में अपना कुंआ हो ताकि सिंचाई के लिए उसे भटकना न पड़े। सरकार की इस महत्वाकांक्षी योजना का लाभ गरीबों के नाम पर रसूखदारों ने जमकर उठाया। वैसे देखा जाए तो जिस मनरेगा योजना ने प्रदेश के लोगों की आर्थिक स्थिति कुछ हद तक बेहतर की है उसका प्रदेश में जमकर मजाक उड़ाया जा रहा है। मनरेगा की राशि का उपयोग जहां नौकरशाह और अन्य रसूखदार अपनी सुविधाएं जुटाने में कर रहे हैं तो वहीं विकास कार्य महज कागजों पर हो रहे हैं।
अफसरों की मिलीभगत से फर्जी मूल्यांकन
कपिलधारा कूप निर्माण में किस तरह फर्जीवाड़ा किया गया है इसका ताजा मामला सतना जिले के जनपद पंचायत उचेहरा की मानिकपुर ग्राम पंचायत में सामने आया है। दादूलाल प्रजापति ने कपिलधारा कूप के लिए आवेदन किया था। स्थानीय अमले ने मिलीभगत कर उसके पहले से बने कुएं को ही कपिलधारा कूप बनाना दिखाते हुए पूरी राशि निकाल कर हड़प ली गई। गबन में जनपद सीईओ सहित सहायक यंत्री और उपयंत्री की भूमिका प्रमुख रही। मामला संज्ञान में आने के बाद जांच की गई। जांच में पाया कि कुआं पहले से बना था और उसका फर्जी मूल्यांकन कर राशि आहरित कर ली गई है। इस दौर में आ रही शिकायतों के भौतिक परीक्षण के लिए जितने भी उपयंत्री और सहायक यंत्री मौके पर जाते तो वे भी लेनदेन कर मामला दबा देते थे। ड्रैगो के निरीक्षण प्रतिवेदन और जांच रिपोर्ट में पूरी हकीकत आने के बाद तत्कालीन जनपद सीईओ ओपी झा समेत तत्कालीन सहायक यंत्री आईपी पाण्डेय, संतलाल प्रजापति तत्कालीन उपयंत्री, जीपी मिश्रा तत्कालीन प्रभारी सहायक यंत्री (मूलत: उपयंत्री) मामले में दोषी पाए गए। अब सात साल बाद इस मामले में इन सभी आरोपी अधिकारियों पर विभागीय जांच शुरू करने के आदेश अधीक्षण यंत्री ने जारी कर दिए हैं और इसमें प्रस्तुतकर्ता अधिकारी कार्यपालन यंत्री ग्रामीण यांत्रिकी सेवा संभाग सतना को बनाया गया है।
कपिलधारा कूपों के नाम पर सिर्फ खुदे गढ्ढे
शासन की जनकल्याणकारी व विकास योजनाओं का प्रदेश के ग्रामीण अंचलों में किस तरह से मखौल उड़ाया गया है। उसकी बानगी प्रदेश के तीन से अधिक दर्जन जिलों की ग्राम पंचायतों में देखने को मिली है। जहां कपिलधारा कूपों के नाम पर सिर्फ कुछ फूट गहरे गड्ढे खुदवाए गए हैं। सालों से कूपों के निर्माण का काम अधूरा पड़ा है। फिर भी कूप निर्माण के नाम पर लाखों रुपए खर्च कर दिए गए हैं। इस फर्जीवाड़े में जितने दोषी सरपंच-सचिव है उतने ही दोषी निर्माण कार्य पर नजर रखने वाले उपयंत्री, सहायक यंत्री और मॉनीटरिंग अधिकारी यानी जनपद सीईओ भी हैं। जिनकी सरपरस्ती के बगैर आधे-अधूरे कपिलधारा कूपों के नाम पर लाखों का वारे-न्यारे होना संभव नहीं हैं। नया मामला दतिया जिले के हथलई गांव का है जहां कपिलधारा के कूप सिर्फ कागजों पर बने दिखाए गए हैं। गांव के किसानों ने बताया कि उनके खेतों में कपिलधारा का कुआं बना ही नहीं है तथा कागजों पर निर्माण होना बताया जा रहा है। इतना ही नहीं, किसानों के अधबने कुओं को भी पूरा कर कपिलधारा योजना के कुएं बताया गया है। यहां निर्माण कार्य मजदूरों से नहीं, बल्कि जेसीबी मशीन से कराया गया है।
कर्ज के कुओं में नहीं है पानी…
कपिलधारा कूप योजना से लाभान्वित हितग्राही अब अपने आप को इस योजना का लाभ लेने पर कोस रहे हैं। शासन-प्रशासन द्वारा हितग्राहियों की मांग पर कूप तो स्वीकृत कर दिए, लेकिन उन्हें कुआं निर्माण के बाद राशि का भुगतान नहीं किया। किसी ने कर्ज लेकर तो किसी ने जेवर बेचकर कुएं का काम शुरू करवाया, जो किस्त के अभाव में कुआं पूर्ण नहीं हो पाया। कोई हितग्राही चार साल से, तो कोई सालभर से कुएं की किस्त के लिए जनपद व ग्राम पंचायतों के चक्कर काट रहे हैं, लेकिन उन्हें राशि नहीं मिली। कर्ज देने वाले आंखे तरेर रहे हैं। इससे कई लोगों के बीच में विवाद भी हो रहे हैं। झाबुआ जिले के ग्राम पंचायत तलावली के ग्राम खेरमाल में सकरिया करकिया बामनिया को चार साल पूर्व 1 लाख 60 हजार रुपए का कपिलधारा कूप स्वीकृत हुआ था। सकरिया को इसमें से अभी तक मात्र 27 हजार रुपए मिले। घर के लोगों ने खुद कुआं खोदा। बाजार से कर्ज लेकर उसका जगत बनाया। इसमें डेढ़ लाख रुपए खर्च हो चुके हैं। रुपए मांगने पर पंचायत वाले उसे कुआं और गहरा करने का बोल रहे हैं। पहले से कर्ज में डूबे सकरिया ने बताया कि रुपए हों तो कुआं गहरा करवाएं। पहले ही सिर पर काफी कर्ज है। उधार देने वाले प्रतिदिन तकादा कर रहे हैं। घर से निकलना मुश्किल हो गया है। ग्राम खेरमाल के वेस्ता लाला वागुल को भी चार साल पहले 1 लाख 60 हजार का कपिलधारा कूप मंजूर हुआ था। लाला के पड़पोते उदयसिंह ने बताया कि अभी तक कुएं की राशि के नाम पर उन्हें मात्र 33 हजार रुपए दिए। पंचायत सचिव और सरपंच का कहना था कि 9 मीटर खोदो तब बाकी की राशि मिलेगी। मशीन लगाकर बाजार से उधार रुपया लेकर नौ मीटर खुदाई करवा दी। कुएं में पानी भी है। उसकी मुंडेर बनवाना बाकी है। चार साल बाद भी राशि नहीं मिली। बारिश के पानी के साथ मिट्टी बहने से कुएं में मिट्टी भरती जा रही है। राशि मिलना तो दूर कोई कुआं देखने भी नहीं आया। ये तो महज उदाहरण है। अधिकांश पंचायतों में कपिलधारा कूप के लाभांवित हितग्राही राशि के लिए सालों से चक्कर काट रहे हैं। सोहागपुर में तो एक अजब ही मामला सामने आया है। यहां के निवासी सुरेश मायवाड़ के खेत में कपिलधारा कुआं खुदवाने के लिए 2014 में स्वीकृति मिली थी। 5 फीट कुआं भी खोदा गया लेकिन हाल ही में उन्हें यह नोटिस थमाया गया कि वे हितग्राही की पात्रता शर्तें पूरी नहीं करते इसीलिए निर्माण कार्य निरस्त किया जाता है। अब वे जनसुनवाई में तीन बार समस्या बताकर शिकायत कर चुके हैं लेकिन उनकी समस्या हल नहीं हो रही है। काम भी रुका हुआ है। मायवाड़ ने बताया नोटिस में कहा गया है कि कपिलधारा कुएं का निर्माण नहर क्षेत्र के सिंचिंत क्षेत्र में नहीं किया जा सकता। इसीलिए निर्माण कार्य निरस्त किया जाता है। इसके बाद वे 15 दिसंबर 2015, 9 फरवरी 2016 और 5 अप्रैल 2016 को वे जनसुनवाई में आवेदन दे चुके हैं लेकिन समस्या का कोई निराकरण नहीं हुआ। जिला पंचायत सीईओ सौरभ कुमार सुमन का कहना है कि मामले की जांच करके कार्रवाई की जाएगी। डिंडोरी जिले के समनापुर जनपद अंतर्गत ग्राम पंचायत सुंदरपुर में हितग्राही अशोक कुमार को 2013-14 में हितग्राही मूलक योजना के तहत कपिलधारा कूप स्वीकृत किया गया था। आवंटित राशि तत्कालीन सरपंच और सचिव ने निकाली, लेकिन कूप अब तक अधूरा है। आलीराजपुर के ग्राम सौरवा झिंझनी फलिया के निवासियों ने आवेदन दिया कि तीन साल से नल-जल प्रदाय योजना का इंतजार है।
कागजों पर कूप
विभिन्न स्तरों पर हुई जांच में यह तथ्य सामने आया है कि मनरेगा के तहत होने वाले कार्य अधिकारियों के साथ जनप्रतिनिधियों के लिए चारागाह साबित हो रही है। कागजों पर कपिलधारा बनाने की पोल खुली तो पहले उसे दबाने के प्रयास भी हुए। अधिकारियों ने गलत जांच रिपोर्ट भी प्रस्तुत कर प्रकरणों की दिशा बदलने की भरपूर कोशिश की। लेकिन जांच में यह बात सामने आई कि ग्वालियर, जबलपुर, आलीराजपुर, अनूपपुर, अशोकनगर, बालाघाट, बड़वानी, बैतूल, बुरहानपुर, छतरपुर, दमोह, दतिया, देवास, धार, डिंडौरी, खंडवा, खरगोन, गुना, हरदा, होशंगाबाद, झाबुआ, कटनी, मंदसौर, मुरैना, पन्ना, रतलाम, रीवा, सागर, सतना, उज्जैन जिलों में सबसे अधिक भ्रष्टाचार हुआ है। उधर, सरकारी दावा है कि कपिलधारा कुओं से प्रदेश में 4 लाख हेक्टेयर अतिरिक्त क्षेत्र में सिंचाई सुविधा निर्मित हुई है। किसान दो फसल और फल-सब्जियों के उत्पादन कर रहे हैं। रबी 2015-16 में औसतन 7.5 क्विंटल/हेक्टे के मान से प्रति क्विंटल चना/गेहूं की औसत दर 2,500 रूपये के मान से कुल 750 करोड़ रुपए अतिरिक्त कमाए।
सीएम के बधाई पत्र के बाद खुली पोल
प्रदेश में सर्वाधिक भ्रष्टाचार मंडला, डिण्डौरी, शहडोल, उमरिया, झाबुआ, धार आदि आदिवासियों जिलों में ही होता है, इन सब में मंडला संभवत: प्रथम स्थान पर माना जा सकता है। मंडला जिले में रोजगार गारंटी योजना चालू होने के बाद लगभग 6000 कुंओ का निर्माण किया गया है। जिनकी लागत 77 करोड़ रुपए आंकी गई है। इस 77 करोड़ रुपए के कार्य का कोई रिकॉर्ड जमीन पर मौजूद नहीं है। जिले में चुपचाप हो रहे इस फर्जीवाड़े का खुलासा 28 दिसम्बर 2009 को तब हुआ जब ग्राम अंजनिया के किसानों को मुख्यमंत्री का बधाई पत्र मिला। पत्र के बाद किसानों को यह ज्ञात हुआ हैं कि कपिलधारा योजना के तहत उनके विकास के लिए जिला पंचायत को ग्रामीण क्षेत्रों में कुओं का निर्माण भी करना था जो कागजों में किया जा चुका है। भेजे गए अपने पत्र में मुख्यमंत्री ने खेती को लाभ का धंधा बनाने के लिए खेतों को सिंचित करने के लिए कपिलधारा योजना के अंतर्गत कूप खनन पर इन आदिवासियों को बधाई दी थी। इस पत्र के प्राप्त होने के बाद संबंधित आदिवासियों ने खोज करनी शुरू की कि उनके खेत में जिला प्रशासन ने कुआं आखिर खोदा कहां हैं। इस तरह की खोज बिछिया जनपद की सबसे बड़ी ग्राम पंचायत अंजनिया के आनंद पूरन, कृष्णदयाल शंकर सहित कई लोगों ने प्रारंभ की। इस बारे में जब विस्तार से पड़ताल की तो आश्चर्यजनक तथ्य सामने आए, मंडला जिले में अब तक रोजगार गारंटी योजना चालू होने के बाद लगभग 6000 कुओं का निर्माण किया गया है। जिनकी लागत 77 करोड़ रूपये आंकी गई है। इस 77 करोड़ रुपए के कार्य का कोई रिकॉर्ड जमीन पर मौजूद नहीं है।
इस तरह जमकर बंदरबांट
कपिलधारा में व्याप्त भ्रष्टाचार के विषय में बताते हुए ग्राम के लोगों ने बताया कि स्कूल फलिये में बने एक कूप को वर्ष 2010 में दीपक सकरिया कटारा के नाम से कपिलधारा में हितग्राही बनाया था जिसकी लागत 58 हजार रुपए थी। फिर उसी कुंए को वर्ष 2013-14 में सार्वजनिक दर्शाते हुए ढाई लाख रुपए का गबन किया है। इसी तर्ज पर चरपोटा फलिये में भी कलजी मईड़ा चरपोटा को वर्ष 2007-08 में कपिलधारा योजना का लाभ देकर 58 हजार का कूप स्वीकृत किया था, जिसे वर्तमान में सार्वजनिक कूप दर्शाकर 2 लाख 71 हजार रुपए की राशि का गबन किया गया है। इसी प्रकार वालचंद, कारू, चुनिया और पारू द्वारा बनाए गए कूप को पूर्व में पारू को हितग्राही बनाकर 58 हजार की राशि स्वीकृत कर दी गई थी, जिसे वर्तमान में सार्वजनिक कूप बताकर 2 लाख 71 हजार की राशि का गबन किया गया है। उक्त तीनों कूप के विषय में जब जानकारी हासिल की गई तो पता चला कि उक्त तीनों कूप निजी भूमिपर भूमि मालिक ने अपनी जेब की राशि खर्च करके बनाए थे। कपिलधारा कूप योजना के अंतर्गत उन्हें कुछ राशि देकर लाखों की राशि का भ्रष्टाचार हुआ है। इसी तरह ग्राम देवीगढ़ के सभी फलियों में शासन की राशि का जमकर भ्रष्टाचार हुआ है। पूंजा मल्ला कटारा ने अपना दुखड़ा सुनाते हुए बताया कि चार वर्ष पूर्व उसका कूप कपिलधारा योजना के अंतर्गत स्वीकृत हुआ था लेकिन चार हाथ गड्ढा खोदकर कार्य की इतिश्री कर दी गई थी। फिर हितग्राही पूंजा ने बैंक ऑफ बड़ौदा से ऋण लेकर कूप का निर्माण किया है। उक्त कूप की स्वीकृत राशि 1 लाख 78 हजार रूपए उसे आज तक नहीं मिल पाई है। कानु भीलजी डामोर निवासी लाम्बी सादेड़ ने बताया कि 3 वर्ष पूर्व 1 लाख 58 हजार में स्वीकृत कूप की राशि आज तक नहीं मिल पाने के कारण कर्ज मे डुबा हुआ है।
बुंदेेलखंड में तो हर गांव में घोटाला
कपिलधारा योजना में एक, दो नहीं बल्कि सैकड़ों किस्से हैं घोटाले के। कहीं कागज पर कुंए खुद गए तो कहीं आधे-अधूरे काम के बाद पैसे के अभाव में निर्माण अटक गया। जहां मजदूरों को लगाना चाहिए था, वहां जेसीबी की मदद ली गई। घोटाले के इस खेल में पंचायत स्तर के नेता-अधिकारी ही नहीं बल्कि बैंक कर्मचारी और बड़े प्रशासनिक अधिकारियों का भ्रष्टाचार और लापरवाही भी सामने आए। ऐसे मामले कम नहीं हैं, जहां कुएं बने ही नहीं हैं। सिर्फ कागजी खानापूर्ति कर पैसे डकार लिए गए हैं। बुंदेलखंड के हर गांव में इस तरह का फर्जीवाड़ा सामने आया है।
पूर्व केंद्रीय ग्रामीण विकास राज्यमंत्री प्रदीप जैन का कहना है कि कपिलधारा कूप योजना में बंदेलखंड में जमकर घोटाला किया गया है। कागजों में कुंआ खोदने के इस भ्रष्टाचार में ग्राम पंचायत के जिम्मेदार बुनियाद तैयार करते रहे और उपयंत्री के फर्जी मूल्यांकन की रिपोर्ट से गबन का खाका तैयार होता रहा, मनरेगा की मजदूरी बैंक खातों में जमा होती है इसलिए फर्जी मस्टर रोल के आधार पर मजदूरों के बैंक खातों से बैंक कर्मियों की मिली-भगत से राशि आहरित कर ली गई। इस खेल में कमीशन का खूब बंदरबांट किया जाता रहा। मनरेगा के तहत सागर संभाग के पांच जिलों में कपिलधारा के कुंओं की खुदाई में भारी घोटाला हुआ है। सुर्खियों में आने के बाद भी प्रदेश सरकार इस महाघोटाले का सच सामने लाने से कतराती रही। जांच की औपचारिकताएं ही की जाती रहीं। जांच गुम होती गई। बड़ी मछलियों को साफ बचा लिया गया। पंचायत स्तर से लेकर अधिकारी और बैंक तक इस घपले में शामिल रहे। यह महाघोटाला ढाई अरब रुपए से अधिक का है। बंदेलखंड में सागर, छतरपुर, दमोह, पन्ना और टीकमगढ़ जिले में करीब 13767 शिकायतें प्रशासनिक तंत्र के पास पहुंची। शिकायत में कुंओं के निर्मित होने के बाद भी मजदूरों का भुगतान न होना आम बात थी। कागजों में ही कुंए खोद लिए गए। सरकारी राशि हजम कर ली गई। सागर जिले में 11953, छतरपुर में 13790, टीकमगढ़ में 9574, दमोह में 11071 और पन्ना जिले में 6935 कुएं स्वीकृत किए गए थे। इसके लिए करीब एक हजार करोड़ रुपए स्वीकृत किया गया था। सागर के लिये 225 करोड़, छतरपुर 245, टीकमगढ़ 176, दमोह 185 और पन्ना जिले में 121 करोड़ रुपए स्वीकृत किये गए थे। कपिलधारा योजना के नियमों के अनुसार निर्धारित मापदंड के अनुसार ग्राम पंचायत सम्बन्धित हितग्राही के खेत पर कुंआ खुदवाने का कार्य करती हैं। पहले एक कुंआं पर एक लाख 82 हजार रुपए व्यय किए जाते थे। लेकिन मनरेगा में मजदूरी दर के बढऩे के साथ यह राशि 3 लाख 26 हजार रुपए हो गई है। प्रति कुंआ लाखों रुपए व्यय करने का यह अधिकार ही भ्रष्टाचार को जन्म देता रहा। ग्राम पंचायत के जिम्मेदार और मूल्यांकन करने वाले इंजीनियर की मिली भगत से कागजों में ही कुंआ खुदवाकर मनरेगा की मजदूरी बैंक खातों में जमा होती है और फर्जी मस्टर रोल के आधार पर मजदूरों के बैंक खातों से बैंक कर्मियों की मिली-भगत से राशि आहरित कर ली गई। इस खेल में कमीशन का खूब बन्दरबांट किया जाता रहा। सरपंच संघ छतरपुर के पूर्व अध्यक्ष सुंदर रैकवार कहते हैं कि सरपंच-सचिव तो बदनाम है पर असली खेल तो उपयंत्रियों का होता है। कई कुंएं ऐसे हैं जिनका कार्य पूर्ण हो चुका लेकिन उपयंत्री कमीशन न मिलने तक इन्हें कागजों में अपूर्ण ही बताते रहे।
पूर्व मंत्री के गांव में कागजों में कुंए
प्रदेश सरकार के पिछले कार्यकाल के कृषि राज्य मंत्री रहे बृजेन्द्र सिंह के पन्ना जिले के गृह ग्राम इटौरा में भी कागजों में खुदे कुंओं का मामला सामने आने के बाद सनसनी फैल गई थी। वर्ष 2009-2010 के दौरान इस गांव में खोदे गए सात कुंए ढूंढे गए तो यह कागजों में मिले। इतना ही नहीं इन कुंओं से सिंचाई के लिए बुंदेलखंड पैकेज से पम्प के लिए बीस हजार रुपए भी दिए गए। करीब 20 लाख रुपए का भ्रष्टाचार सामने आने के बाद ग्रामीण विकास मंत्रालय विभाग ने पन्ना जिले के सभी कुंओं का सच जानने के लिए जांच टीमें गठित कर दी थी। इस मामले में गांव के सरपंच, सचिव और उपयंत्री के खिलाफ आपराधिक प्रकरण दर्ज करने का आदेश दिया गया है। पर पूरे जिले में कूप निर्माण की जांच का क्या हुआ इसका जवाब देने वाला कोई नहीं है। टीकमगढ़ जिले की जनपद निवाड़ी के ग्राम बपरौली में तो स्वयं मुख्यमंत्री का शुभकामना पत्र उपहास का कारण बना। किसान मोहनलाल लुहार को कपिलधारा कुंआं खोदने पर मुख्यमंत्री का शुभकामना पत्र प्राप्त हुआ। वह चौंक सा गया। लेकिन फिर सच्चाई भी सामने आ गई। जो घपलों की बानगी खोलती है।
कागजों पर ही खुद गए कुंए 
छतरपुर जिले के लौंडी के ग्राम सिजई में तो स्वयं एक पूर्व सरपंच ने कपिलधारा कुंओं से बहने वाली भ्रष्टाचार धारा की कलई खोल दी थी। लेकिन दर्जनों शिकायतों के बाद भी प्रशासन ने कुछ नहीं किया। मजेदार यह है कि कूप निर्माण के मस्टर रोल में बाकायदा मजदूरों का काम करना बताया गया है। जिसमें गांव के उप-सरपंच सहित एक दर्जन मजदूरों को केन्द्रीय सहकारी बैंक लौंडी के खाते से भुगतान करना बताया गया है। सचिव, इंजीनियर और बैंक कर्मचारियों की मिलीभगत से मजदूरों के खातों में राशि जमा की गई। उनके फर्जी हस्ताक्षर कर राशि का आहरण कर लिया गया। छतरपुर जिले की जनपद बिजावर में तो कागजों में ही कुंए खुद गए। ग्राम पंचायत राईपुरा में दरबारी बसोर, धनुवा अहिरवार की जमीन पर मात्र दस फुट कुंआ खोदा गया और मजदूरी पूरी आहरण कर ली गई। वहीं मुरली पाल, झल्लू बसोर, प्रेमलाल अहिरवार, परसुआ अहिरवार और शंकर अहिरवार की जमीन पर तो बिना कुंआ खुदे ही राशि हड़प कर ली गई। छतरपुर जिले में केन्द्र की राशि से संचालित इस जल संरक्षण की योजना में भारी आर्थिक अनियमितताओं के मामले को महाराजपुर विधानसभा से विधायक मानवेन्द्र सिंह ने वर्ष 2012 में विधानसभा में उठाया था। कुंओं में भ्रष्टाचार की धार का सच जानने के लिए प्रदेश स्तरीय जांच दल छतरपुर आया। रोजगार गारंटी परिषद के गठित इस जांच दल में आए विभिन्न विभागों के शीर्ष अधिकारियों को कहीं भ्रष्टाचार ही नजर नहीं आया। आरोप लगे कि अधिकारियों का सत्कार और मिलने वाले नजराने ने इस पूरे मामले को लीपने का काम कर दिया। वर्ष 2014 में एक बार फिर इस महाघोटाले की जांच होने की रस्म अदायगी हुई। सम्भागीय क्षेत्र में 34 दलों ने 2335 कुंओं का मौके पर निरीक्षण किया। सरकार ने यह सैम्पल सर्वे कराया था। हर ब्लॉक स्तर पर कार्यपालन यंत्री की निगरानी में उपयंत्रियों को जांच सौंपी गई। मजेदार बात यह है कि इस जांच को भी उन्हीं उपयंत्रियों से कराया गया जो जनपद कार्यालयों में पदस्थ थे और जिनकी निगरानी में ही कपिलधारा कुंओं का निर्माण कर मूल्यांकन किया जाता है। जांच का स्वांग रचा गया क्योंकि सैकड़ों गड़बडिय़ों के मामले उजागर होने पर भी कहीं कोई दोष नहीं पाया गया।
महिलाओं ने खोद लिया अपना कुंआ
एक तरफ जहां प्रदेश के आदिवासी बहुल जिलों में कपिलधारा कूप योजना में जमकर भ्रष्टाचार हुआ है वहीं खंडवा जिले के खालवा ब्लॉक के लंगोटी गांव की महिलाओं से सरकारी सहायता नहीं मिलने के बाद रात-दिन मेहनत करके गांव में कुंआ खोद दिया है। लंगोटी आदिवासी बहुल गांव है। 1,900 की आबादी वाले इस गांव में पानी को लेकर काफी समस्या हो गई। गांव में दो हैंडपंप थे, वो भी धीरे-धीरे कर के सूख गए। 2011 के बाद से ही पानी को लेकर परेशानी बढ गई थीं। और इस परेशानी का सारा बोझ गांव की औरतों पर आ गया। 26 साल की फूलवती कहती है कि सुबह उठकर दो से ढाई किलोमीटर दूर पैदल-पैदल बर्तन लेकर दूसरे गांव पानी के लिए जाना पड़ता था। वहां जाकर भी बिजली और खेत मालिक के रहम का इंतजार होता था। कई बार औरतों को खाली बर्तन लेकर वापस आना पड़ता था। पानी की परेशानी हर दिन बढती जा रही थी। हर महिला अपने घर में मर्दों से पानी को लेकर कुछ करने की मिन्नत करती रहती थी। मगर हर घर में यह आवाज जैसे उठती थी, वैसे ही खामोश हो जाती थी। फिर नई सुबह के साथ वही पानी के लिए जिल्लत और मशक्कत का सामना करना पड़ता था। अब महिलाओं के सब्र का बांध टूटने लगा था। घर की चारदिवारी के बीच निकलने वाली आवाज बाहर आना शुरू हो गई। एक-एक करके गांव की महिलाएं जुटने लगीं।
मिला सिर्फ आश्वासन
महिलाओं ने पंचायत के पास जाकर गुहार लगाई कि कपिलधारा योजना के तहत उनके गांव में कुआं खुदवा दिया जाए। महिलाओं को आश्वासन देकर टरका दिया गया। लेकिन महिलाएं अपनी जिद पर अडी रहीं। एक दिन, दो दिन, 10 दिन, महीना भर महिलाओं के पंचायत में आने का सिलसिला चलता रहा। पंचायत ने भी अपनी जान छुडानें के लिए फाइल बनाकर सरकारी अफसरों को भेज दी और महिलाओं को सरकारी दफ्तर का रास्ता दिखा दिया। सरकारी दफ्तरों में भी फाइल का वही हश्र हुआ, जो अकसर होता है। एक टेबल से दूसरी टेबल तो एक दफ्तर से दूसरे दफ्तर फाइलें चक्कर खाती रहीं। फाइलों के बाद अब चक्कर खाने की बारी गांव की महिलाओं की थी। लम्बे अरसे तक सरकारी अफसरों, बाबुओं के चक्कर लगाने के बाद उन्हें समझ में आ गया कि सरकारी काम करवाना आसान नहीं है।
संकल्प लेकर खोदा कुंआ
सरकारी उदासीनता ने महिलाओं को पूरी तरह से तोड़ दिया। लेकिन कहते हैं हर समस्या का समाधान भी चोट लगने के बाद ही निकलता है। महिलाएं नए सिरे उठने की तैयारी करने लगीं। सभी ने एक सुर में निर्णय लिया कि अब हम दूसरे गांव में कुंए पर पानी लेने नहीं जायेंगी। बल्कि कुंए को ही अपने गांव लेकर आएगी। कोई मदद करे या न करे। गांव की इन अनपढ़ और कम पढ़ी-लिखी 20 महिलाओं ने संकल्प लिया कि हम मिलकर गांव में कुंआ खोदेंगे। अब सवाल ये था कि कुआं कहां खोदा जाए। कौन अपनी जमीन पर गांव का कुआं खोदने की इजाजत देगा। इसका समाधान भी इस बैठक में हो गया। 50 साल की गंगाबाई और 60 साल की उनकी जेठानी रामकली ने गांव के कुएं के लिये अपनी जमीन मुफ्त में दे दी। इतना ही नहीं गंगाबाई और रामकली ने कचहरी जाकर कुंएंं के लिए जमीन गांव को दिये जाने का हलफनामा भी दे दिया। चट्टान की तरह मजबूत इरादों वाली महिलाओं ने तय किया कि जिसके घर पर जमीन खोदने का जो भी औजार हो वो लेकर आ जाए। दूसरे दिन घर का काम निपटाकर महिलाएं अपने-अपने घरों से गैंती, फावडा, कुदाल, तगारी, तसले, हथौडे लेकर निकल पडीं। घरवालों ने रोकने की कोशिश की पर पानी सिर से ऊपर था, इसलिए महिलाओं ने किसी की एक नहीं सुनी। तय समय पर रामकली और गंगाबाई की जमीन पर सब महिलाएं जमा हुईं। नारियल फोड़कर जमीन खोदने की शुरुआत हो गई। दिन एक-एक कर बीतने लगे और धरती ने भी महिलाओं का साथ दिया। एक हाथ गहरा गड्ढा हुआ फिर दो हाथ, फिर पांच हाथ फिर आठ हाथ। मगर आठ हाथ के बाद जमीन के अंदर बड़ी-बड़ी चट्टानें आना शुरू हो गईं। यही इन महिलाओं की असली अग्निपरीक्षा थी। महिलाओं के हौसले नहीं टूटे, अलबत्ता चट्टान जरूर टूटने लगी। चट्टानें टूटने लगीं और महिलाओं की राह से हटने लगीं। एक दिन दोपहर में अचानक गांव में शोर होने लगा कि घाघरा पल्टन (औरतों का झुंड) के कुएं से पानी निकल आया है। पूरा गांव कुएं के आसपास जमा हो गया। बड़ा अनोखा मंजर था, कुएं की बड़ी-सी चट्टान टूटी बिखरी पड़ी थी और बीचोंबीच से पानी की धार फूट रही थी। गांव के ही नहीं बल्कि आसपास के, पंचायत के और सरकारी अफसर मौके पर पहुंच गए। यह देखने कि किस तरह गांव की महिलाओं ने अपने दम पर कुएं को गांव में लाकर दिखा दिया। आज वह कुंआ लंगोटी की 19 सौ की आबादी की प्यास बुझा रहा है।
इनकी जांच हो तो निकलेगा महाघोटाला
मनरेगा के तहत मजदूरों के बैंक खातों में राशि जमा करने का प्रावधान है। मजदूरों के खातों में जमा राशि कैसे आहरण कर ली जाती है, यह गंभीर मामला है। एक कुंए के निर्माण पर 1 लाख 84 हजार रुपए की राशि स्वीकृत होती है। सागर संभाग के पांचो जिलों में खोदे गए 27303 कुंओं में हुए घपले के आंकड़े से आर्थिक अनिमियतताओं की राशि का आंकड़ा भी दो अरब से अधिक पहुंच जाता है। साथ ही इस राशि में बुंदेलखंड पैकेज के तहत सिंचाई पंपों की राशि को जोड़ दिया जाए तो यह महाघोटाला साबित होगा। मनरेगा में महाभ्रष्टाचार से संबंधित प्रदेशभर की करीब 300 शिकायतें वर्ष 2009 से अभी तक मुख्यमंत्री पीजी सेल सहित अनेक विभाग प्रमुखों के पास की गईं लेकिन यहां भी जांच तीन साल बाद भी लंबित पड़ी हुई है। यह सब देखकर तो स्पष्ट होता है कि सरकारी तंत्र भी भ्रष्टाचार के इस दलदल में सना हुआ है और जांच नहीं कराना चाहता है। पूर्व केंद्रीय ग्रामीण विकास राज्यमंत्री प्रदीप जैन का कहना है कि मैंने स्वयं कई गांवों का दौरा किया है। कुएं वास्तव में बने नहीं हैं लेकिन कागज पर बने दिखाए गए हैं। इसके अलावा गड़बडिय़ों की गवाही भी सरकारी कागजात देते हैं। अधिकारी कुआं निर्माण का प्रमाणीकरण छह सितम्बर को दे रहे हैं वहीं निर्माणस्थल पर कार्य पूरा होने की तिथि 16 सित बर दर्ज है, जबकि वास्तव में निर्माण कार्य पूरा होने के बाद ही अधिकारी का प्रमाणीकरण जारी होता है।[बिच्छू डॉट कॉम से ]
Dakhal News 9 May 2016

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