खेल में राजनीति का खेल नहीं
मध्यप्रदेश में खेल संघों के अफसरों को कथित राजनीति से दूर रखने के प्रयास किए गए हैं। यानी अब खेल विभाग में अफसरी और नेतागीरी साथ-साथ नहीं चल सकेगी। सालों से खेल संघों में खेल विभाग के अधिकारी और कर्मचारी न सिर्फ पदाधिकारी बनते आ रहे हैं, बल्कि चुनावी गतिविधियों में भी हिस्सेदारी करते हैं। इस वजह से जितना बड़ा अधिकारी खेल संघ में पदाधिकारी बनता है, उतना ही ज्यादा संबंधित संघ को विभाग से अनुदान व सहूलियतें मिल जाती हैं। यह पूरा मामला उत्कृष्टता की जगह पहुंच का बन जाता है। इस संदर्भ में खेल मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया ने विभागीय ढांचे से असंतुष्टि जताते हुए अपनी गतिविधियों को व्यवस्थित करने का जिक्र किया। खेलों को सबसे बड़ा नुकसान भ्रष्टाचार करने वाली उस मानसिकता से हो रहा है जिसमें खेल के नाम पर सेवाएं देते हुए कमीशन खाने की भावना प्रबल होती है। अधिकांश अधिकारी और कर्मचारी खेलों के कार्यक्रमों से लेकर उनके पदक वितरण तक में धांधली के आरोपों में घिरे मिले हैं।यह मामला मंत्री यशोधरराजे सिंधिया द्वारा हाल ही में बुलाई गई बैठक में उठा। बैठक में खेल मंत्री के असंतोष से जाहिर है कि खेलों की दुनिया में कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ है। इस बैठक में मप्र ओलंपिक संघ के अध्यक्ष रमेश मेंदोला, सचिव दिग्विजय सिंह एवं विधायक विश्वास सारंग सहित विभिन्न संघों के करीब आठ पदाधिकारी उपस्थित थे। आज प्रदेश की खेल नीति के अनुरूप खेलों की उत्कृष्टता पर ध्यान देने का समय आ गया है। आज प्रदेश में होने वाली अनेक प्रतियोगिताओं के दौरान इकट्ठे हुए खिलाड़ियों की दयनीय स्थिति का सबको पता है। मीडिया भी किसी न किसी रूप में जनता के सामने सच रख ही देता है। लेकिन खेल संगठनों से जुड़े अधिकारियों की नींद नहीं टूट रही। खिलाड़ियों ने भी कई बार आलोचना करते हुए दयनीय सुविधाओं की तरफ अधिकारियों का ध्यान आकर्षित करने की कोशिश की है परंतु फायदा नहीं हुआ है। खेल संघों में अयोग्य और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाले पदाधिकारियों ने खेल संस्कृति को लगभग खत्म कर दिया है। इसकी जगह स्पोर्ट्स बिजनेस ने ले ली है। खेल संघों की राजनीति करने वाले अपने बिजनेस को बढ़ाने में लगे हुए हैं। खिलाड़ियों के हितों और खेलों की उत्कृष्टता की रक्षा करना इनका मकसद नहीं होता। ऐसे अधिकांश पदाधिकारियों पर खिलाड़ियों के चयन में भी इनके हस्तक्षेप के आरोप लगते रहे हैं। खेल के ऐसे पैरोकारों के लिए खेल संघ सिर्फ राजनीति और अपने वर्चस्व को बचाए रखने का जरिया ज्यादा बन जाता है। आज आवश्यकता इस बात की है कि खेलों में उत्कृष्टता के नए शिखर कायम किए जाएं और खेल संघों के पदाधिकारियों में जिम्मेदारी का भाव जाग्रत किया जाए तब ही यह कवायद सार्थक होगी।