समान अनुभूति ही संवेदना है
रीवा में स्व. कुशाभाऊ ठाकरे स्मृति भाषणमाला गुजरात के राज्यपाल ओ.पी. कोहली ने कहा कि व्यवहारिकता में सामुदायिकता, समरसता और संवेदना हैं। हम कह सकते हैं कि समान अनुभूति ही संवेदना है। श्री कोहली आज रीवा में अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय में स्व. कुशाभाऊ ठाकरे स्मृति भाषणमाला 'समाज में संवेदनहीनता: कारण एवं निवारण' में बोल रहे थे।राज्यपाल ने कहा कि एक नवजात शिशु को होने वाली पीड़ा का अनुभव माँ को तत्काल होता है, क्योंकि माँ शिशु में अपने को देखती है। दो पृथक शरीर होने पर भी आध्यात्मिक चेतना दोनों को जोड़ती है। चेतना का यही स्तर संवेदना है। उन्होंने गाँधी जी की चर्चा करते हुए कहा कि वे ऐसी व्यवस्था चाहते थे जो नीति पर आधारित हो। श्री कोहली ने कहा कि स्वतंत्रता के बाद हम भौतिक और तकनीकी विकास और ऐसी आर्थिक व्यवस्थाओं की ओर बढ़ते चले गये जिनमें नीति, मूल्य और संस्कारों का अभाव रहा परिणामस्वरूप हम एक धर्मविहीन समाज की ओर बढ़ते चले जा रहे हैं जिसमें नैतिक मूल्यों की, संस्कारों की, परमार्थ भाव की कमी होती जा रही है। इसके कारण ही सामाजिक अपराध और अनाचार बढ़ रहे हैं।श्री कोहली ने कहा कि परिवार संस्था का कमजोर हो जाना दुखद है। परिवार से ही समाज और समाज से ही देश बनता है। इसलिये संवेदनहीनता के निवारण के लिये परिवार संस्था को पुनर्जीवित करना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि दूसरों के लिये जीने का भाव ही संवेदना है।केन्द्रीय मंत्री थावरचन्द गेहलोत ने कहा कि यह चिंता और चिंतन का विषय है कि पत्थर, पेड़ और जल को पूजने वाले हम लोग इतने संवेदनहीन कैसे होते जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि मानवता हमें संवेदनशील बनाती है। अत: हमें मानवीय गुणों को अंगीकार करना चाहिये। हम परोपकारी और संवेदनशील बनें यह आज की आवश्यकता है। हम संकुचित भावना को छोड़े और विराट दृष्टिकोण को अपनाएँ जिससे समाज में संवेदनशीलता स्वत: विकसित होगी।वरिष्ठ समाजसेवी एवं चिंतक भगवत शरण माथुर ने कहा कि मानवीय संवेदना पर हर पल कुठाराघात होता जा रहा है। संसार में जितनी भी समस्याएँ हैं वे संवेदनहीनता के कारण ही हैं। उन्होंने कहा कि मैकाले की शिक्षा पद्वति ने हमारी शिक्षा से नैतिकता, मूल्य और आदर्श समाप्त कर दिये जिससे सामाजिक सदभाव समाप्त हो रहा है। इसी के कारण संवेदनहीनता बढ़ती जा रही है और अपराध बढ़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि सामाजिक सद्भाव, परोपकार और नैतिकता द्वारा ही इस संवेदनहीनता को समाप्त किया जा सकता है।जनसम्पर्क मंत्री राजेन्द्र शुक्ल ने कहा कि हमारी पीढ़ी को और आने वाली पीढ़ी को जो विकास मिल रहा है उसका उपयोग सामाजिक समरसता और संवेदनशीलता के साथ ही हो सकेगा। इसके लिये समाज से संवेदनहीनता को समाप्त किया जाना आवश्यक है। उन्होंने स्व. कुशाभाऊ ठाकरे का पुण्य स्मरण करते हुए कहा कि हमें उनके आदर्शों का अनुकरण करना चाहिए।सांसद जनार्दन मिश्र ने स्वतंत्रता के बाद की व्यवस्थाओं को संवेदनहीनता का कारण माना। उन्होंने कहा कि समाज के जागरूक होने पर संवेदना का विस्तार होगा और लोग एक-दूसरे के प्रति संवेदनशील बनेंगे।कुलपति के.एन. सिंह यादव ने कहा कि यह बड़ी चिंता का विषय है कि शिक्षित समाज में संवेदनहीनता अशिक्षित समाज की तुलना में अधिक है। कुल सचिव डॉ. पी.भारती ने स्वागत भाषण दिया। इस अवसर पर महापौर ममता गुप्ता, विधायक दिव्यराज सिंह, अरविंद भदौरिया सहित अनेक जन-प्रतिनिधि तथा गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।