मध्यप्रदेश में भाजपा
भारतीय जनता पार्टी की विविधता भरी जीत का जादू क्या है? यह राजनीतिक विमर्श का एक बड़ा विषय है। भाजपा की जीत और कांग्रेस की हार का अर्थ क्या निकाला जाए? मध्यप्रदेश में नगरीय निकाय चुनाव के पहले चरण के चुनाव में राज्य में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी को बड़ी सफलता मिली है। राज्य के सभी नौ नगर निगमों में महापौर के पद पर भाजपा के उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की है। राज्य में पहले चरण में 135 नगरीय निकाय में मतदान हुआ था। इसमें सभी नौ नगर पालिका निगम ग्वालियर, सागर, सतना, रीवा, सिंगरौली, खंडवा, बुरहानपुर, रतलाम और देवास के महापौर पद पर भाजपा ने जीत दर्ज की। वहीं 26 नगरपालिका परिषद अध्यक्ष में से 17 और 100 नगर परिषद में से 57 पर भाजपा ने जीत दर्ज की है। हालांकि तात्कालिक तौर पर भाजपा ने अपनी जीत को राज्य सरकार द्वारा किए गए जनहितकारी कार्यो की जीत करार दिया।अपरोक्ष रूप से यह शिवराज की मेहनत और स्वीकार्यता को साबित करती है। मध्यप्रदेश में नगरीय निकाय के दो चरणों में चुनाव हुए हैं दूसरी चरण यानी दो दिसंबर को हुए मतदान की मतगणना सात दिसंबर को होना बाकी है। नगरीय निकायों में कांग्रेस की हार को उसकी नीति गत और जनता के बीच उपस्थिति की कमी को ही माना जा सकता है। कुछ लोग इसे कांग्रेस के ढुलमुल रवैये से जनता का मोहभंग हो चुका होना भी कहते हैं। यह भी सच है कि भारतीय जनता पार्टी के उदारवाद के आगे कांग्रेस के धर्मनिरपेक्षता और मोदी के विकास के नारे के आगे गरीबों की योजनाओं वाले हथियार पुराने पड़ गए हैं। जनता को अब जैसे नए नेतृत्व की तलाश है। निकाय चुनावों में उसने भाजपा के उदारवाद एवं विकास पर भरोसा जताया है। कांग्रेस की बार बार हार से राज्य में कांग्रेस-भाजपा के खिलाफ तीसरा विकल्प खड़ा करने में कई तरह की सुगबुगाहट भी जारी है लेकिन भारतीय जनता पार्टी की तत्परता के आगे क्षेत्रीय पार्टियां भी फिलहाल अपनी अप्रासंगिकता को ही जाहिर कर रही हैं। कांग्रेस संगठन जनता का विश्वास हासिल करने में निकायों में बुरी तरह नाकाम रहा है। स्थानीय नेता कह रहे हैं कि मध्यप्रदेश में कांग्रेस आत्म-मंथन करेंगे कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि राज्य की जनता नया विकल्प तो चाहती है लेकिन इसमें कांग्रेस शामिल क्यों नहीं हैं? सत्य यह है कि सत्ता से जुड़े निजी स्वार्थों के चलते क्षेत्रीय दलों के साथ कांग्रेस नेताओं ने अपने संगठनों की दुर्गति कर दी है। जनता उन पर भरोसा करने को तैयार नहीं है। चुनाव से यह संकेत भी मिला है कि मोदी लहर अब भी कायम है। यदि नरेंद्र मोदी और शिवराज सिंह चौहान दोनों अपने-अपने स्तरों पर नहीं करते तो निकायों में यह सफलता नहीं मिलती। मोदी ने राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के विकास के विचार को स्थापित और मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान ने। राजनीति का अर्थ शुद्ध सत्ता है और हारने वाले नेताओं, कांग्रेस और उसके घटकों को आज अपने वजÞन का सही-सही पता चल गया।