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चंबल के बीहड़ों में जहां कभी बूंदकों की धांय-धांय सुनाई देती थी, उसी बीहड़ में अब चीकू, अंगूर, अनार, पपीता और औषधीय फूल आदि खेती के मंसूबे सजाए जा रहे है।
देश विदेश के वैज्ञानिकों ने भी इस बात की संभावना जताई है कि इन बीहड़ों में औषधीय पौधे, फलदार वृक्ष और फूलों की खेती की जा सकती है। इन मंसूबे को पूरा होने की आशा तब और बलवती हो गई जब विश्व बैंक ने बीहड़ के विकास के लिए लगभग 1200 करोड़ देने की सहमति दे दी। बीहड़ के विकास को लेकर पिछले दिनों भारत सरकार और राजमाता कृषि विश्वविद्यालय ग्वालियर के संयुक्त तत्वावधान में 7 मार्च से 9 मार्च तक तीन दिवासीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया।
इस आयोजन में ब्राजील, जापान, दक्षिण अफ्रीका, इजरायल, जर्मनी स्वीट्जरलैंड देशों के वैज्ञानिकों के अलावा बैंगलौर , उड़ीसा और राजस्थानों के कृषि वैज्ञानिकों ने हिस्सा लिया। इन वैज्ञानिकों ने बीहड़ क्षेत्र खासकर मुरैना और भिंड का दौरा किया और उनके भूगौलिक स्थिति को समझा और फिर सम्मेलन में आकर अपने विचार व्यक्त किए। तीन दिवसीय सम्पन्न अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में वैज्ञानिकों के बीच हुए मंथन के दौरान यह तथ्य उभर का प्रकाश में आया कि चंबल के बीहड़ों को विकसित किया जा सकता है। मंथन से निकले तथ्यों को लेकर राजमाता कृषि विवि ग्वालियर फल, औषधीय वृक्ष और फूल के पौधे लगाने हेतु एक एक्शन प्लान तैयार करने जा रहा है। इसी प्लान के आधार पर राज्य सरकार विश्व वैंक से 1200 करोड़ देने का आग्रह करेगा।
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