आओ बच्चों तुम्हें सिखाएँ म.प्र. के स्वर्णिम पाठ
अवधेश बजाज मध्यप्रदेश में इन दिनों राजनेताओं के भ्रष्टाचार और अत्याचार के नित नए मामले प्रकाश में आ रहे हैं । सत्ता साकेत में बैठे लोगों के चेहरों पर इन मामलों से शिकन तक नहीं आई है । ऐसा लगता है कि सरकार ने इसे सत्ता की नियति मान कर आत्मसात कर लिया है । ऐसे में सरकार को मेरा एक सुझाव है । पहले हिन्दी और सहायक वाचन में बाल गंगाधर राव तिलक, विपिन चंद्रपाल, महात्मा गांधी जैसे महापुरूषों के प्रेरणास्पद संस्मरणों को प्रकाशित किया जाता था, जिससे नई पीढ़ी संस्कार ग्रहण करती थी । चूँकि अब परिस्थितियां बदल चुकी हैं और मानवीय मूल्यों का ह्ास हुआ है । भ्रष्टाचार अब शिष्टाचार और अत्याचार अधिकार हो गया है । ऐसे में सरकार को पाठ्यक्रम में फेरबदल कर ÷ आधुनिक महापुरूषों ' के कारनामों को भी प्रकाशित करना चाहिए । इसकी बानगी के रूप में प्रस्तुत हैं कुछ अंश :-पाठ-१ दीपराज सिंह का साम्राज्य : किसी सूबे में दीपराज सिंह का साम्राज्य था । जब दीपराज सामान्य व्यक्ति था, तो बहुत ही नेकनीयत वाला ईमानदार था, किन्तु जब वह सत्ता में आया तो उसने अपना धनबल बढ़ाने की योजना पत्नी के सहयोग से बनाई । उसने एक सीमंट फैक्ट्री के मालिक से दोस्ती गांठी और उससे पत्नी के नाम पर चार डंपर उपहार में लिए । बदले में दीपराज ने फैक्ट्री मालिक को एक संस्कृति न्यास का सदस्य बनवा दिया । दीपराज ने फैक्ट्री मालिक को सस्ती जमीन मुहैया कराई, मुफ्त में पानी दिया और उसे मनमानी करने की छूट दे डाली । सत्ता की शह पाकर फैक्ट्री मालिक ने मजदूरों का शोषण करना शुरू कर दिया । मजदूरों ने जब विरोध प्रदर्शन किया तो उन्हें गोलियों से भून डाला । चूँकि फैक्ट्री मालिक को सत्ता का संरक्षण प्राप्त था, इसलिए उसका कुछ नहीं बिगड़ा और उसका दमन चक्र जारी रहा । सबक :- बच्चों, इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि मौका मिलने पर उसे जमकर भुनाना चाहिए और अपना लाभ होने पर सामने वाले को हर तरह से उपकृत करना चाहिए । साथ ही उसके अपराधों के प्रति आंखें मूंद लेना चाहिए । पाठ-२ दो हंसों का जोड़ा : एक समय की बात है । एक राज्य के नगरीय प्रशासन में रैदास विजयश्री और महेश मेंदोल नामक दो दोस्त चुन लिए गए । इसी बीच सरकार की ओर से गरीबों, निराश्रितों के लिए पेंशन योजना लागू की गई, जिसके क्रियान्वयन का दायित्व रैदास और महेश के कांधों पर आया । दोनों दोस्तों ने फर्जी दस्तावेज बनाकर गरीबों-निराश्रितों की पेंशन हड़प ली और अपना पेट बड़ा कर लिया । इतने से भी उन्हें सब्र नहीं हुआ तो उन्होंने सरकारी जमीन चंद धन्ना सेठों को कौड़ियों के मोल दे डाली और पर्दे के पीछे लंबा खेल खेल डाला । इस प्रकार दोनों दोस्ट करोड़ों-अरबों रूपये के मालिक हो गए । इनके कारनामों से सरकार इतनी प्रसन्न हुई कि इनमें से एक को विधायक और दूसरे को मंत्री बना दिया । इस प्रकार दो हंसों का यह जोड़ा जीवनभर मौज करता रहा । सबक :- बच्चों, इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि मौका मिलने पर अपना घर भरने का कोई अवसर हाथ से मत जाने दो । सरकारी धन और सम्पत्ति को अपने बाप-दादों की पूंजी मान कर जम कर लूट-खसोट करो । इससे सरकार भी खुश रहती है । पाठ-३ निलय शाह का मायाजाल : प्राचीन काल की बात है । एक छोटी-सी रियासत में एक बच्चे ने जन्म लिया। उसका नाम निलय रखा गया । वह बचपन से ही बेहद शरारती था । किशोरावस्था से ही उसे भोग विलास का शौक लग गया । जब वह बड़ा हुआ तो अपनी रियासत से चुनाव लड़कर मंत्री बन गया । चूंकि अब उसके पास सत्ता थी, इसलिए उसने अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर अपनी कामपिपासा शांत करना शुरू कर दी । विभागीय काम के ठेके लेने वालों से सुंदर-सुंदर युवतियां बुलवाई और एनजीओ में लगी युवतियों को हम बिस्तर किया । जब उसे जंगल महकमा मिला तो उसने इस विभाग की कई महिला कर्मचारियों पर हाथ साफ किया । बाद में इसका विभाग बदला गया तो एक कर्मचारी की पत्नी पर उसका दिल आ गया । कर्मचारी ने पत्नी को मंत्री के साथ हमबिस्तर होने के लिए कहा तो वह थाने पहुंच गई, लेकिन फिर भी मंत्री का कुछ नहीं बिगड़ा । इस मंत्री के बेटे ने बाप के नक्शेकदम पर चलते हुए अपने दोस्तों के साथ एक युवती से गैंग रेप भी किया, मगर ऊपरी पहुंच के चलते मामला शांत कर दिया गया । सबक :- इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि अपनी कामपिपासा का कभी भी दमन मत करो । जहां भी मौका मिले, मुंह मारने से मत चूको । सत्ता आपके साथ है तो आपका कुछ नहीं बिगड़ेगा । पाठ-४ स्वरूप मिश्रा कांड : एक सूबे में स्वरूप मिश्रा नामक मंत्री था । उसका मामा देश का बड़ा नेता था। मामा के प्रभाव और अपनी पहुँच के बल पर उसने अपने गृह नगर में एक कॉलेज स्थापित कर लिया । किन्तु पड़ोस के गांव वाले यहीं से आना-जाना करते थे । स्वरूप के परिजनों को यह बात बहुत खलती थी । एक दिन वे पूरी फौज के साथ उक्त गांव में पहुंचे और ग्रामीणों को गांव छोड़ने के लिए धमकाया । ग्रामीण अड़े रहे, तो उन पर गोलियां चला दीं, जिसमें एक ग्रामीण मर गया और एक घायल हो गया । गांव वालों ने मंत्री के भाई-भतीजों के विरूद्ध नामजद रिपोर्ट की, किन्तु सत्ता ने ऐसा खेल खेला कि भाई-भतीजों को बचा कर फर्जी आरोपी खड़े कर दिए गए । हालांकि इस मामले में स्वरूप को मंत्री पद छोड़ना पड़ा, किन्तु वह अपने परिजनों को बचाने में सफल रहा । सबक :- इस कहानी से यह प्रेरणा मिलती है कि सत्ता मिलने पर उसका खूब दोहन करो । जमीन कब्जाओ, कॉलेज खुलवाओ और गरीब-गुरबे आड़े आएं तो उन्हें भून डालो । सत्ता आपको पूरा संरक्षण देगी और आपका बाल भी बांका नहीं होगा । पाठ-५ शूरवीर भतीजे : एक राजा था । उसका एक मंत्री था, जिसका नाम था ज्ञानेंद्र सिंह, जो महाभ्रष्ट था । जब उसे मंत्री बनाया गया, तो उसके भतीजों के पर निकल आए । राजा के एक सिपहसालार वंशपाल सिंह सिसौदिया के साथ भी यही था । दोनों भतीजे अय्याशियों के नए कीर्तिमान स्थापित करने लगे । हालांकि चाचा के प्रभाव और अवैध कमाई के कारण दोनों भतीजे कॉल गर्ल्स बुलाते रहते थे, मगर पैसा खर्च कर अय्याशी करने में इन्हें मजा नहीं आ रहा था । इसलिए दोनों ने अलग-अलग ही सही, मगर एक ही रास्ता अपनाया । गरीबों-दलितों की सुंदर लड़कियों को अगवा किया और फिर उनसे बलात्कार किया । जब खुद का मन भर गया था, तो ÷ जूठन ' दोस्तों के लिए छोड़ दी । दोनों मामले जनता की अदालत में पेश हो गए, मगर राजा ने बलात्कारी भतीजों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होने दी और मामले रफा दफा कर दिए । सबक :- बच्चों, यदि आपके परिवार-रिश्तेदार का कोई भी सदस्य मंत्री-विधायक बन जाए तो गरीबों की लड़कियों को उठाओ और उनका भोग करो । सत्ता आपको संरक्षण देगी और कानून आपके पैरों तले होगा । पाठ-६ कमाऊपूत की पूछ : एक राजा के दो मंत्री थे श्याम कृष्ण कुसमारिया और संजना बघेल । दोनों को भ्रष्टों से बहुत लगाव था । इसकी वजह यह थी कि वे इन मंत्रियों को कमाई के नए-नए रास्ते बताते थे । श्याम कृष्ण ने एक ऐसे डीएसपी को अपना ओएसडी बनाया, जिस पर धोखाधड़ी, षडयंत्र, अमानत में खयानत और भ्रष्टाचार के मामले दर्ज थे । हालांकि मंत्री के विभागीय कारिंदों ने उसे मंत्री का ओएसडी बनाने का विरोध किया, किन्तु मंत्री के आगे किसी की नहीं चली । इसी तरह संजना ने भी एक बेहद विवादित व्यक्ति को अपना निजी सहायक बनाया । इस महिला मंत्री का पति पहले ड्रायवर था, इस कारण वाहनों के रखरखाव और डीजल चोरी का उसे अच्छा ÷ज्ञान' था। पति महोदय ने अपने इस ÷ज्ञान' का उपयोग विभागीय वाहनों से चौथवसूली में किया और बैंक बैलेंस बढ़ाया । सबक :- बच्चों, यदि भाग्य से आप विधायक और फिर मंत्री बन जाओ, तो भ्रष्ट अधिकारियों पर आंख मूंदकर विश्वास कर उन्हें अपने साथ रखो । ये तुम्हें इतना धन दिलवा देंगे कि तुम्हारी सात पीढ़ियां बैठे-बैठे खा सकेंगी । पाठ-७ जिंदगी का नाम दोस्ती : जिंदगी में दोस्ती का बड़ा महत्व है । यह एक मंत्री ने सिद्ध कर दिया था । राजा को भी इस मंत्री पर बड़ा नाज था । इस मंत्री का नाम था रविशंकर खटीक । राजा ने जब इसे मंत्री बनाया तो इसके साथ इसके दोस्तों के भी पर निकल आए । इसने दोस्त को ÷ अपने राज ' का हवाला देकर मनमानी करने की खुली छूट दे दी । बस, फिर क्या था । दोस्त के पर निकल आए । मंत्री के प्रभाव का इस्तेमाल कर उसने मंत्री के गृहनगर में एक व्यक्ति का मकान हड़प लिया । सबक :- बच्चों, इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि यदि बड़े होने के बाद तुम्हारा कोई संगी-साथी मंत्री बन जाए तो बेखौफ होकर किसी का भी मकान हड़प लो । न हींग लगेगी न फिटकरी, फिर भी रंग चोखा आएगा । पाठ-८ सरकारी माल अपना : एक राजा का सिपहसालार नरेंद्रजीत सिंह जब मंत्री बना तो उसके रिश्तेदारों ने खूब आग मूती । राजा ने उसे दूसरी बार मंत्री तो नहीं बनाया, पर वह सिपहसालार तो बन ही गया । मंत्री न बन पाने के बावजूद इसके दामाद ने रेत का अवैध कारोबार शुरू कर दिया । हालांकि रेत उत्खनन के लिए सरकारी खजाने में कुछ धन देना पड़ता है, लेकिन अब अपना रिश्तेदार राजा का सिपहसालार हो तो, इसकी जरूरत नहीं समझी गई । दामाद ने जम कर रेत उत्खनन कर भंडारण किया और सरकार को खूब चूना लगाया । कहते हैं कि किसी का भला होता देख दूसरों का पेट दुखने लगता है । जब दामाद की तिजोरी भरने लगी तो ऐसे लोग कोर्ट चले गए और अवैध खनन मामले में नोटिस जारी करवा दिया, जिसमें सिपहसालार भी लपेटे में आ गया । इसके बाद भी सरकार का घुटना पेट की तरफ झुका । सबक :- बच्चों, इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि यदि तुम्हारा ससुर विधायक बन जाए तो मौका हान से मत जाने देना । रेत का खूब उत्खनन करना और सरकार को चूना लगाना । जले-भुने लोग कोर्ट चले भी जाएं तो भी मत डरना, क्योंकि तुम्हारा ससुर सत्तारूढ़ दल का होगा और तुम्हारा कुछ नहीं बिगड़ेगा । इस तरह के पाठ नए पाठ्यक्रम में शामिल किए जाने चाहिए, ताकि भावी पीढ़ी भ्रष्टाचारी, अत्याचारी और दुराचारी हो, क्योंकि आज वक्त ही ऐसा है । वक्त उन्हीं का साथ देता है, जो वक्त के साथ चलते हैं । इसलिए मौजूदा दौर को देखते हुए भावी पीढ़ी के लिए ऐसे ही ÷ प्रेरणादायी पाठ्यक्रम ' तैयार किये जाने चाहिए । एक बात और, सूबे के सरकारी स्कूलों में तो यह आसानी से लागू हो जाएगा, किन्तु निजी स्कूलों के विद्यार्थी भी इससे ' लाभान्वित ' हों, इसके लिए सरकार को कैबिनेट में प्रस्ताव लाकर उसे पास करना चाहिए । जरूरत लगे तो कानून में भी संशोधन करने से नहीं चूकना चाहिए । उम्मीद है कि सरकार इस पर गंभीरतापूर्वक विचार कर ऐसी पहल करेगी । (दखल)(धुरंदर पत्रकार अवधेश बजाज बिच्छू डॉट कॉम के संपादक हैं, उन्हें पढ़ने के लिये लॉग ऑन करें बिच्छू डॉट कॉम)