गोरा अवधेश और स्याह पन्नों का सच
गोरा अवधेश और स्याह पन्नों का सच
अनुराग उपाध्याय गोरे चहरे वाला अवधेश बजाज मन का भी उतना ही उजला है जैसा दिखता है !लेकिन सफ़ेद पन्नों पर उनकी स्याही सिर्फ काला ही देखती है और काला ही लिखती है ,सफ़ेद पन्नों का यह स्याह सच सत्ता के हुक्मरानों की नीदें उड़ा देता है !मध्यप्रदेश के सर्वाधिक मुखर और प्रखर पत्रकार अवधेश बजाज को लेकर मध्यप्रदेश के कुछ बड़े अफसर और बड़े नेता हमेशा स्यापा करते रहते हैं ,इस स्यापे की वजह है बजाज का अवधेशी अंदाज !इस अंदाज को वे ही लोग समझ सकते हैं जो उन्हें करीब से जानते हैं !अवधेश बजाज ने हमेशा ही तमाम मुख्यमंत्रियों उनके परिजन और निकट के लोगों के बारे में कई मर्तबा सनसनीखेज खुलासे किये हैं यही बात नेताओं को हांकने वाले उन अफसरों को हमेशा ही परेशान करती रहती है एक तो जो मीडिया को मैनेज करने का दावा करते हैं और दूसरा वे खुद ईमानदार नहीं हैं ,अवधेश बजाज के बारे में लिखना इसलिए भी जरुरी है की इस किस्म के पत्रकार मध्यप्रदेश में सिर्फ इतने भी नहीं बचे हैं जितनी दोनों हाथों में उँगलियाँ !अवधेश बजाज को पत्रकारिता विरासत में मिल गई लेकिन जैसे पत्थर पर घिसकर लोहे पर धार की जाती है ठीक वैसे ही समाज के सरोकारों पर बजाज ने स्वयं को घिसकर अपनी द्रष्टि को पैना किया और दिशाविहीन राजनीती और राजनेताओं पर प्रहार शरू किये लेकिन जितना उन्हें जाना ,पढ़ा और समझा जाता है ,उनका लेखन कहीं उससे अलहदा है बानगी देखिये - शंका और आस्था की रेखा सब आदमी की खीची हुई है। ऐसी कोई जड़ नहीं है जिसमें चेतन न छिपा हो और ऐसा कोई चेतन नहीं है जो जड़ में प्रविष्ठ न हो, जड़ में जिसने घर न बनाया हो। चट्टान से चट्टान में भी वही सोया है। चैतन्य से चैतन्य में भी वही जागा है। अस्तित्व परिवार है और अगर परिवार को तुम समझो, तो परिवार को जोडऩे वाले सेतु और धागे का नाम ही प्रेम है।इस किस्म के लेखन के लिए हालांकी बजाज को नहीं जाना जाता ,उनकी पहचान सुरसुरी नहीं सनसनी है लेकिन सनसनी के पीछे की संजीदगी अद्भुत किस्म की है आप भी मजा लें -''अविश्वास ज्यादा सत्य की झंकार देता है। इसलिए मनोवैज्ञानिक तुमसे यह नहीं पूछता है कि दिन में क्या सोचा? तुम्हारा सोचना इतना झूठा है कि उसकी कोई जरूरत नहीं। वह पूछता है, तुमने रात में सपने क्या देखे? सपने की डायरी बनवाता है। धीरे-धीरे सपनों में झांक-झांककर तुम्हारी बीमारी खोजता है। सपने में उतर-उतरकर, सपनों की व्याख्या कर-करके सपने के प्रतीकों को खोल-खोलकर देखता है, और तुम्हारे हृदय की खबर लाता है। तुम्हारे अचेतन में पड़े हुए विचारों की खबर लाता है जो कि तुम्हारी वास्तविकता है। ठीक वैसी ही घटना यहां भी घटती है। पहले तो तुम्हारा और मेरा संबंध रात में ही होगा। पहले तो तुम्हारा मेरा संबंध तुम्हारे सपने में ही होगा। क्योंकि तुम्हारे सपने में सचाई से ज्यादा सच है। और तुम्हारे सपनों में तुम ज्यादा भोले-भाले हो, तुम ज्यादा निर्दोष हो। तो घबड़ाओ मत। और सपना कहकर इसका तिरस्कार मत करना। संसार सपना है, परमात्मा सत्य है। लेकिन परमात्मा अभी सपना मालूम हो रहा है और संसार सत्य मालूम हो रहा है। तुम शीर्षासन कर रहे हो। तुमने सारी चीजें उलटी कर ली हैं। तो सपना सच मालूम होता है और सच सपना मालूम होता है। तुम जरा इन मधुर सपनों को मौका देना। अभी सपने ही मालूम हों, चलो सपने ही सही। मगर ये सपने तुम्हारी सचाइयों से ज्यादा मूल्यवान हैं और अंतत: बड़ी सचाई की तरफ तुम्हें ले जायेंगे। ''मध्यप्रदेश के सत्ता के गलियारों में बजाज को इस्तेमाल करने वालों की कमी नहीं है लेकिन उनके भीतर रहने वाला पत्रकार एक दार्शनिक भी है इसलिए वह असावधानी का भ्रम पैदा कर देता है लेकिन खड़ा सच के साथ ही होता है ,चाँदी की चम्मच में घूस का च्यवनप्राश लेकर घूम रहे नौकरशाहों और राजनेताओं के कारण अवधेश ने कभी भी पत्रकारिता की कॉलर नीची नहीं होने दी ,उनके भीतर का दार्शनिक अंदाज पत्रकारों की जमात में उन्हें अलग ही मुकाम पर पहुंचा देता है !यही वजह है कि बजाज के समकालीन तमाम पत्रकार उनसे चिढ़ते हैं !बजाज सतत रंग बिरंगा लेखन कर रहे हैं तो उनके तमाम पत्रकार साथी तबादले -प्रमोशन ,ठेके ,लायसेंस की दलाली में लगे हैं !बजाज कहते हैं -''तुम्हारा एक अतीत है। तुम्हारी अतीत की जानकारियां हैं। तुम्हारे पास शब्दों की एक श्रृंखला है। जब भी कोई नई चीज घटती है, तुम अपने अतीत ज्ञान में उसको कोई जगह बैठाना चाहते हो। बैठ जाए तो तुम निश्चिंत हो जाते हो, बेचैनी नहीं होती। न बैठे तो मुश्किल होती है।तो जब ध्यान का स्वाद आएगा तब तुम मुश्किल में पड़ोगे। यह आइस्क्रीम का स्वाद नहीं है, न यह शराब का स्वाद है, न यह प्रेम का स्वाद है, न यह सौंदर्य का स्वाद है, यह स्वाद ही नहीं है जो तुमने जाने हैं। यह कुछ बड़ा अनूठा स्वाद है। यह तुम्हारी जीभ पर नहीं घटता, यह तुम्हारे पूरे व्यक्तित्व में घटता है। सिर से लेकर पैर के अंगूठे तक इसका कंपन होता है। यह कुछ बात ही और है, यह तुम्हें पागल कर देने वाली बात है, तुम बड़े घबड़ाओगे।यह दर्शन, यह अनुभूति, यह भावदशा इतनी नई है कि तुम्हारा मन हजार तरह के प्रश्र उठाने लगता है। मन कहता है संदेह करो, शंका करो, प्रश्रचिन्ह लगाओ। इसमें आगे मत जाना। पागल तो नहीं हुए जा रहे? सपना तो नहीं देख रहे? कोई धोखा तो नहीं खा रहे? किसी ने सम्मोहित तो नहीं कर लिया है? लौट चलो अपनी पुरानी दुनिया में। जानी-मानी थी। दुख था, ठीक था। लेकिन कम से कम जाना पहचाना था। आदमी जाने पहचाने की सीमा के बाहर नहीं जाना चाहता।'' बजाज के इस पहलू के बारे में लिखने का मन बहुत था ,पर लगा लोग इसे चापलूसी नाम दे सकते है लेकिन मेरी धारणा है कि बुआ बूढी है तो उसे अपच होगा जो पेट में भी दर्द करेगा ,अब अवधेश बजाज की खातिर बूढी बुआओं को तो दर्द सहना पडेगा |
Dakhal News 22 April 2016

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