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दुनिया में हथियारों की होड़ पिछले 5 सालों में पिछले 27 सालों के सर्वाधिक स्तर पर पहुंच चुकी है। स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट के अनुसार साल 2012 से 2016 के बीच पूरी दुनिया में खरीदे गए कुल हथियारों का 13 प्रतिशत भारत ने खरीदा। पूरी दुनिया में हथियार खरीदने के मामले में भारत के बाद सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, चीन और अल्जीरिया का स्थान है। साल 2007 से 2011 के बीच भारत ने दुनिया के कुल हथियारों की बिक्री के 9.7 प्रतिशत हथियार खरीदे थे जो किसी भी देश द्वारा इस दौरान खरीदे गए हथियारों से ज्यादा थे।
कुछ रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि पीएम मोदी द्वारा रक्षा क्षेत्रों में प्राइवेट कंपनियों पर भरोसा जताने का नतीजा सकारात्मक हो सकता है। हालांकि मोदी सरकार के ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम के बावजूद देसी हथियार कंपनियां भारत की रक्षा जरूरतों को पूरा करने में सक्षम नहीं हैं। भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सेना को आधुनिक बनाने के लिए 250 अरब डॉलर (करीब 167 लाख करोड़ रुपए) खर्च करने का इरादा जताया है।
इयान मॉर्लो के अनुसार भारत सरकार लोकहीड मार्टिन कॉर्प और एसएएबी एबी जैसी कंपनियों को भारत में हथियार बनाने का ठेका देना चाहती है लेकिन ये कंपनियां देश की लालफीताशाही के डर से हिचक रही हैं। भारत सबसे ज्यादा रूस, अमेरिका और इसराइल से हथियार खरीदता है। वहीं भारत का पड़ोसी और प्रतिद्वंद्वी चीन हथियारों के मामले में आत्मनिर्भर होता जा रहा है। हथियारों की खरीदारी के मामले में चीन की हिस्सेदारी पिछले 5 सालों में घटी है।
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