बहती गंगा है भारत जो चाहे हाथ धो ले
बहती गंगा है भारत जो चाहे हाथ धो ले
सुरेश शर्मा सुप्रचलित मुहावरा है बहती गंगा में हाथ धोना। जब अरविंद केजरीवाल ने रॉबर्ट वाड्रा की संपत्ति बढऩे तथा सस्ते दरों पर डीएलएफ द्वारा उन्हें जमीन, फ्लैट तथा अन्य संसाधन उपलब्ध कराये जाने की जानकारी देश को दी है तब से यही विचार सामने आ रहा है कि भारत तो बहती गंगा है जो चाहे वह हाथ धो ले। कांग्रेस कह रही है कि बाड्रा जी व्यवसायी हैं तो उनकी जायदाद बढ़ सकती है। वह 300 करोड़ क्या उससे भी अधिक हो सकती है। कांग्रेस यह भी कहती है कि वे सोनिया गांधी जी के दामाद हैं यह बात और है लेकिन राजनीति से उनका क्या लेना देना। सही भी है आल दट ग्लीडर्स इज नॉट गोल्ड याने हर चमकने वाली वस्तु सोना तो नहीं होती। लेकिन वाड्रा साहब का जवाब आया तो होश पाख्ता हो गए। उन्होंने कहा कि अरविंद केजरीवाल राजनीतिक पार्टी जमाना चाहते हैं इस कारण ऐसा मामला उठा रहे हैं। साफ है वाड्रा साहब सीमेंट हैं जिनके साथ जोड़ लेने से राजनीतिक पार्टी की दीवारें पक्की और पुख्ता हो जाएंगी। यूपीए2 घोटालों की सरकार है और नये नये नामों से घोटाले सामने आते रहने वाले हैं। महंगाई की सरकार है तो हर रास्ते महंगाई की तरफ ही जाने वाले हैं। बंटवारे की सरकार है तो वह रसोई गैस ेनाम पर ही सही चुल्हें बंटवाने का काम तो कर ही देगी। राजनीतिक नहीं धार्मिक द्वंद्व की सरकार है तो हर कोई इसी धारा में बह रहा है कि हमें भ्रष्टाचार स्वीकार है लेकिन साम्प्रदायिक शक्तियां स्वीकार नहीं हैं। ऐसे में रॉबर्ड वाड्रा की घटना कितना महत्व पाएगी कहा नहीं जा सकता है। रॉबर्ट वाड्रा के नाम सीधा भ्रष्टाचार नहीं लिखा जा सकता है। क्योंकि उन्हें तो डीएलएफ ने कौडिय़ों के दाम जमीन, फ्लैट आदि दिए हैं। आरोपों में यह जरूर दिख रहा है कि उनकी संपत्ति बिना किसी कारण के 300 करोड़ से पार हो गई। यह भी जानकारी आ रही है कि उन्होंने उसे सरकार की जानकारी में ला दिया था। सरकार कौन तो यह अरविंद केजरीवाल ने कह दिया है कि देश की कौन सी जांच एजेंसी है जिसमें इतना दम हो कि इस परिवार और उनके रिश्तेदारों की वह जांच कर लें जब तक यह परिवार खुद उसमें रूचि न ले। कौन सी वह राजनीतिक पार्टी है जो इस परिवार के खिलाफ जांच के लिए संसद को ठप करे। न मीडिया में इतनी ताकत है कि वह इस परिवार से सीधे सवाल पूछ सके कि बताईये यह सब क्या है, वैगेरह वैगेरह? हां एक बात जो साफ हो रही है वह यह कि डीएलएफ को जिन राज्यों ने कौडिय़ों के भाव जमीन दी और वे सभी राज्य कांग्रेस शासित है इन्हीं राज्यों में वाड्रा साहब को जायदाद खरीदने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। यह संयोग है या षडयंत्र यही जांच का विषय है। हालांकि जांच की मांग भाजपा वालो ने की है इस विषय को प्रकाश में लाने वालों ने नहीं की है। भाजपा नेत्री व टीवी कलाकार स्मृति ईरानी ने कहा है कि कांग्रेस के राज में कई समान भाव वाले घोटाले हुए मसलन, 2जी, सीडब्लूजी और अब जीजाजी घोटाला। गंभीर विषय का हास्य संस्करण लेकिन लोगों के जहन में उतर जाने वाला वाक्य। यह राजनीति में सही है लेकिन व्यवहार में सही नहीं है। यह विषय इसलिए भी तूल पकड़ेगा क्योंकि इससे टीआरपी की संभावना है और युवाओं में बिकने वाले दो चेहरे भी शामिल हैं। लेकिन क्या इस घोटाले को दबाने के लिए और घोटाले की उम्मीद करना चाहिए। या सुधार के नाम पर एक और दमन की प्रतीक्षा देश को करनी चाहिए। घोटालों के इस देश में बहती गंगा में तो हर कोई हाथ धोने में लगा है लेकिन किसी में भी यह दम नहीं है कि वह देश की गरीब आबादी के बारे में विचार कर पाए। गरीब के घर की बिजली कट जाती है लेकिन कोई बोलने वाला नहीं है लेकिन लाखो बकाया होने पर भी सरकारी दफ्तरों व कल कारखानों की बिजली काटने वाले की हिम्मत यदि कोई कर भी ले तो उसके पास सिफारिश करने वालों की कतार लग जाएगी। लेकिन गरीब की लाइन जोडऩे वाले पर किस प्रकार की धाराए लगेंगी इस बारे में कानून की किताब खंखाली जा रही हैं। कामन मैन की बात को सामने रखकर सोचने की प्ररेणा मिल रही है और लगता है कि अब बदलाव आएगा भी। लेकिन क्या हम इस बात पर भी साथ में विचार करेंगे कि जब हम धर्मनिरपेक्ष सत्ता हैं तो फिर धर्म के नाम पर भेदभाव व बंटवारे की बात क्यों कर रहे हैं। देश ने ताजा रूप में कई घोटालों को देख जिससे ममता बनर्जी जैसी नेता का जमीर जागा भी और उन्होंने सरकार से समर्थन वापस भी ले लिया लेकिन बाकी दलों का क्या हुआ? उन्होंने पुराना नारा दिया कि हम साम्प्रदायिक शक्तियों को सरकार में नहीं आने देना चाहते हैं इस कारण इस घोटाले करने वाली सरकार को बर्दास्त कर सकते हैं। तो क्या देश राजनीतिक मूल्यों के आधार पर चल रहा है या फिर साम्प्रदायिक आधार पर? यदि जिस आधार पर हम केन्द्र सरकार को समर्थन दे रहे हैं उससे तो हमारी संविधान की भावना पंथ निरपेक्ष वाली आहत हो रही है? पिछले दिनों से एक घबराहट पैदा कर देने वाली घटना ने देश को बेचैन कर रखा है। इस बारे में जल्दी निर्णय लेना होगा। संयुक्त परिवारों को जब एक गैस कनेक्शन मिलेगा और यदि एक ही घर में अलग-अलग रसोईयां दिखा दी जाएंगी तो हर पुत्र को भी गैस कनेक्शन मिल जाएगा। हम सीधे-सीधे बंटवारे के लिए प्रेरित नहीं कर रहे हैं? देश गंभीर संकट से गुजर रहा है लेकिन जिनसे अपेक्षा है वे संघ प्रमुख इस भ्रम में जी रहे हैं कि उनके स्वयंसेवक कांग्रेस में भी हैं। क्या होने वाला है इससे जो कांग्रेस के ताकतवर नेताओं के धर्म परिवर्तन वालों के समर्थन में कानून बनाने पर मौन रहते हैं तो उन स्वयंसेवकों की जरूरत क्यों है? जो गैस के नाम पर रसोईयों को बांटने का विरोध नहीं कर सके ऐसे स्वयंसेवकों का उल्लेख करने का अर्थ क्या है? हमें अपने आदर्शों की बात पर डटे रहना चाहिए या फिर उनमें कोई कमी आ गई है तो उनकी समीक्षा की जाना चाहिए। बीच का कोई रास्ता होता कहां हैं जिससे बचकर निकलने का प्रयास किया जाए। यह प्रयास हमें सभी राजनीतिक दलों से दूर करने में सहायक हो रहा है। यह प्रयास देश के लिए भी इस मायने में घातक हो रहा है क्योंकि देश लगातार ऐसे लोगों या तत्वों के हाथों में आ गया जिन्हें देश की परासंपत्तियों को लूटने के अलावा कोई और सूझ ही नहीं रहा है। देश की स्मृति पटल से सब मिटाने के लिए अलग नक्शा बनाने का प्रयास किया जाता है जो पहले वाले से अधिक विकृत्त होता है। 70 हजार करोड़ का सीडब्लूसी था लेकिन 2जी 1.76 लाख करोड़ का था। कोलगेट इससे भी बड़ा हो गया। ऐसे में अकेले केजरीवाल देश की इस बुराई को समाप्त करने की स्थिति में नहीं हैं। संघ अन्ना हजारे का साथ दे रहा था तो उसे अपनी राजनीतिक पार्टी में ऐसा माद्दा पैदा करना चाहिए कि वह देश को सही विकल्प दे सके। आडवानी जी कहते हैं देश भाजपा को कांग्रेस का विकल्प मानने को तैयार नहीं है तो इसमें देश की समझदारी ही है यह, क्योंकि देश एक कांग्रेस से सरकार लेकर डमी कांग्रेस को देने को क्यों तैयार हो जाए? भाजपा पहले पार्टी विथ डिफरेंस था अब पार्टी में डिफरेंस दिखाई देते हैं तो जनता उसे विकल्प क्यों माने? इसलिए समय मांग कर रहा है कि बहती हुई गंगा में हाथ धोने से जो गंगा मैली हो गई है उसका शुद्धिकरण करने का प्रयास करना चाहिए। गंगा की शुद्धि के लिए उमा भारती निकली हैं तो देश की गंगा को शुद्ध रखने के लिए देश में हजारों हजार उमा भारती पैदा करनी होगी। आज जरूरत पहले इसकी अधिक है। वरना तय मानिए देश में राजनीतिक पार्टियों का एक ऐसा गिरोह हो गया है जो हर हाल में देश की संपदाओं को अपने नाम कर लेगा चाहे वह कोयला हो, जमीन हो, खनिज हो या फिर कारखाने हो। गंगा को मुक्तिदायनी ही रहने दें उसमें हाथ धोने की मनोवृत्ति को समाप्त करने के लिए जागने और देश को जगाने की जरूरत है।(dakhal)
Dakhal News 22 April 2016

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