अब भी समय है बिजली पर सम्हाल जाने का
पंकज चतुर्वेदी देश इस समय बिजली के जैसे झटके खा रहा है ऐसा संभवता कभी नहीं हुआ| बिजली गुल होने से आधे से अधिक देश अंधरे में डूब गया | एक सप्ताह में दो –दो बार देश की पावर ग्रिड ने जैसे चकमा दिया है वह चिंता और चिंतन का विषय है | पावर ग्रिड मूलत देश के अलग -अलग भागों से में उत्पादित की गयी विधुत उर्जा का संग्रहण है| इसकी तुलना आप एक विद्युत उर्जा बैंक से कर सकते है | इस बिजली बैंक से उच्च क्षमता के तारों के माध्यम से देश के अलग -अलग भागों में बिजली की सप्लाई करने की व्यवस्था है | इस बैंक से बिजली निकलने की सीमा भी निर्धारित है, किन्तु सीमा से अधिक लेने की प्रक्रिया भी बहुत आसान है ,सीमा से अधिक बिजली लीजिये और अर्थ दंड देकर बच जाइये | यह बात और है कि कुछ राज्य तो चोरी के साथ सीना जोरी भी करते है ,अधिक बिजली लेने के बाद भी अतिरिक्त पैसा देने में आनाकानी करते है एवं व्यवस्था जनित विसंगतियों के कारण ग्रिड व्यवस्थापक उनका कुछ भी नहीं कर सकते है | ग्रिड में बिजली आने और जाने का हिसाब पूर्णत कम्प्यूटर कृत है | ग्रिड जितनी विशाल होगी उसकी फेल होने की संभावना उतनी ही कम होती है | लेकिन यदि फेल हो जाये तो असर भी उतना ही व्यापक होता है जैसा इस बार हुआ| बिजली लेने की यह प्रक्रिया विसंगतियों से परिपूर्ण है जिसके चलते अपने कोटे से अतिरिक बिजली लेने पर झटका दूसरे राज्यों को लगता है | इस बार फेलियर का कारण कथित रूप से उत्तर प्रदेश एवं हरियाणा जैसे कुछ राज्यों द्वारा अपनी सीमा से अधिक बिजली लिया जाना है|देश की तीन ग्रिड नार्दन ,नार्थ इस्टर्न और इस्टर्न ग्रिड के एक साथ बैठ जाने से भारत के बीस से भी अधिक राज्यों के लगभग साठ करोड़ लोग अंधरे में रहने को मजबूर हो गए थे |देश भर में चार सौ से अधिक रेल गाडियाँ अपने गंतव्य से पूर्व ही बीच रास्ते में अटक गयी थी | सन २००२ में उत्तर भारत का एक ग्रिड फेल हुआ था ,जिसके बाद यह तय किया गया था कि कोई ऐसी व्यवस्था बने कि देश की राजधानी दिल्ली एवं आर्थिक राजधानी मुंबई में ग्रिड फेल होने की दशा में वैकल्पिक व्यब्स्थाओ से काम चलाया जा सके |परन्तु ऐसा लगता है कि इस दिशा में कुछ भी नहीं हुआ है ,अन्यथा दिल्ली में मेट्रो जैसी महत्वपूर्ण सेवा ऊर्जा अभाव के चलते बीच में ही क्यों रोकनी पड़ती | देश में इस समय दो लाख मेगवाट से अधिक बिजली उत्पादन की क्षमता है ,किन्तु कोयले के अभाव में हम क्षमता होने के बाद भी इस बिंदु तक नहीं पहुँच पाते है | देश का कुल विद्युत उत्पादन लगभग पौने दो लाख मेगवाट है और इस उत्पादन का साठ से पैंसठ फीसदी हिस्सा कोयले और लिग्नाइट जिसे भूरा कोयला कहा जाता है से उत्पन्न होता है | यह बात अवश्य है कि आज हम १९४७ की तुलना में हजार गुना अधिक विद्युत उत्पादित कर रहें है ,किन्तु अभी और बिजली की आवश्कता है क्योकि उस अनुपात में जनसंख्या और बिजली की आवश्कता दोनों भी बढ़ी है | देश के कई राज्यों में आज भी नियमित बिजली कटौती जारी है | कई ग्रामीण क्षेत्रों में तो बिजली के जाने का समय निर्धारित है, किन्तु आएगी कब यह कोई नहीं बता सकता | यह भी तब है जब कि भारतीयों की औसत बिजली खपत अमेरिका ,चीन और कनाडा सहित अन्य देशो की तुलना में काफी कम है | कम खपत के बाद भी हर साल लगभग सात से आठ फीसदी की दर से देश में बिजली की मांग बढ़ जाती है |देश में उद्योग और व्यापार जगत अब पूर्व की तुलना में बिजली की खपत कम करता है ,उत्पादित बिजली का अधिकांश भाग घरेलू उपयोग और कृषि उत्पादन में लग जाता है | इस अभाव और परेशानी के पीछे बिजली के उत्पादन और वितरण की व्यवस्था का दोष है ,इन दोनों ही विसंगतियों के चलते बिजली का बुरा हाल है | आजादी के छह दशक से भी अधिक का समय निकल जाने के बाद भी देश कुल तीस राज्यों में से सरकारी तौर पर महज नौ राज्य ही पूर्णतयाः विधुतिकृत हो पाए है | जिसमे से दक्षिण के चार बड़े राज्य है ,तो उत्त्तर में तीन और पश्चिम के दो राज्य है | पूर्वी क्षेत्र और अन्य राज्यों का हाल बुरा है |अधिकांश राज्यों के बिजली बोर्ड पूरी तरह कंगाल है | कोयले की बढती कीमतों और कमी के चलते नुकसान बढ़ता जा रहा है | बाकि बची कसर सब्सिडी नाम की बीमारी पूरी कर देती है | देश का योजना आयोग भी इंगित कर चुका है कि उत्पदन से ज्यादा तकलीफ वितरण करने में है | राज नेता कुर्सी की खातिर बिजली को दांव पर लगा देते है | मुफ्त एक बत्ती कनेक्शन ,सिंचाई के लिए निशुल्क बिजली जैसे नारों से ये सत्ता तो पा लेते है किन्तु बिजली का पत्ता कट जाता है | आज तक यह समझ नहीं आया कि हर आय वर्ग के लिए बिजली ,गैस ,डीजल और पेट्रोल का भाव एक क्यों ?जो हजार कमाए उसको तो सब्सिडी का हक है पर जो लाखो कमा रहा है वह भी ऊर्जा के इन साधनों पर राज सहयता प्राप्त कर रियायती मूल्य अदा कर रहा है | और इसमें से अधिकांश का तो हम आयत करते है चाहे वह बिजली निर्माण के लिए कोयल हो या अन्य जीवाश्म ईंधन | इस सबके बाद भी सरकार तंत्र नहीं जागा है | राज्यों की सरकारें हो या केंद्र की ,आज भी भारत के बिजली उत्पादन का अस्सी प्रतिशत से अधिक सरकार के हाथ में है और शेष में निजीक्षेत्र की भागीदारी है | जबकि भारत में बिजली का उत्पादन पहली बार कलकत्ता की निजी कम्पनी ने सन १८९९ में किया था | सरकार को चाहिए कि वह उत्पादन में निजी क्षेत्र को प्रोत्सहन दे ,साथ ही सब्सिडी का पात्र कौन है यह भी पुन निर्धारित हो और बिजली के दाम चोरी को रोक कर वसूले जाये |नहीं तो कहीं यह ऊर्जा का क्षेत्र स्वयं ही ऊर्जा विहीन ना हो जाये|(दखल) लेखक –एन.डी.सेन्टर फोर सोशल डेवलपमेंट एंड रिसर्च के अध्यक्ष है