जमीन की जटिलता और जद्दोजहद
जमीन की जटिलता और जद्दोजहद
मनोज सिंह मीक रियल एस्टेट बड़ा व्यापक शब्द है, इसमें खालिस जमीन से लेकर प्रॉपर्टी मैनेजमेंट तक के सैकड़ों तरह के नाम, विधाएं, व्यापार, व्यवसाय, शिक्षा, सूचनाएं आदि शामिल हैं, तकनीकी एवं परंपरागत शब्दों का अनूठा भंडार है । इस क्षेत्र में जमीन का विचार आते ही गांव, हल्का, एकड़, बीघा, दलाल, एजेंट, निकायों एवं अन्य निर्धारित सीमाओं के समीकरण बनने लगते हैं । खसरा खतौनी, अक्स, बही, लैंड यूज की कसौटी पर जमीन को परखा जाने लगता है। लोकेशन पर परियोजना की सफलता का आंकलन आरंभ होता है । टोडरमल के जमाने के भू-सुधारों व पद्धतियों को सराहा जाता है । चांदा, मेड़ा, तिमेड़ा, गोहा आदि स्थायी भू-चिन्हों से मापने की विरासतीय प्रणाली अपनाकर चेन, कड़ी खींची जामी है । कंघी, प्रकार, पटवारी स्केल अक्स पर चहल-कदमी करने लगते हैं । आज भी भू-मापन से लेकर भवन निर्माण तक हम उस काल की अनेक तकनीकें इस्तेमाल करते हैं, जो राज मिस्त्रियों को विरासत में मिली हैं । खैर इस प्रणाली से मापी गई भूमि के आंकड़े नक्शों का आधुनिकतम सैटेलाइट मैप टोटल सर्वे स्टेशन तथा ऑटोकैड जैसे बारीक विश्लेषण कर पाने वाली तकनीकी से मिलान किया जाता है और अंततः शासकीय रिकॉर्ड अनुसार पंचों व पड़ोसी भू-स्वामियों की सहमति से भूमि की सीमाओं का ज्ञान करवाया जाता है । प्रॉपर्टी डीलर जमीन, लोकेशन, माप सेलेब्रिलिटी, कीमत, समय आदि को वाजिब साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहता और उचित लाभ के आंकलन तथा कीमत की तसल्ली होने पर दोनों पक्ष कानूनी अनुबंधों की ओर आगे बढ़ते हैं । मौके पर बयाना-बट्टा किया जाता है । यह सौदे की सहमति का मौखिक अनुबंध है, फिर विक्रय दस्तावेजों का जटिल व पेंचीदगी भरा सिलसिला प्रारंभ होता है । डील पूरी होने तक भरोसे का संकट बरकरार रहता है, जाहिर सूचनाएं निकाली जाती हैं, अनुबंधों में दोनों पक्ष सतर्कता बरतते नजर आते हैं । वास्तुविद, लैंड सर्वे टीम तथा टाउन प्लानर कल की इमारतों की लकीरें उकेरते हैं । एमिनिटीज ग्रीन कवर, लैंड स्केपिंग और लेआउट से उभरते सिटी स्केप की कल्पनाओं की उड़ान कुलाछें मारने लगती हैं । शहर की जनसंख्या तथा मांग-आपूर्ति के आधार पर रिहायसी, कामर्शियल या औद्योगिक इकाइयों का निर्धारण किया जाता है । महीनों की कवायद के बाद अनुमति प्राप्त प्रोजेक्ट के दस्तावेजों की मोटी फाइल तैयार होती है, मार्केटिंग प्लान तैयार किए जाते हैं, एक-एक इकाई की लागत लाभ व कीमत एक्सेल सीट के समीकरणों में मशक्कत करती हुई बाजार व माहौल के मिजाज से मेल करती हुई उपभोक्ता के सामने आने को तैयार होती है । ग्राफिक डिजाइनर कल के भवनों को आज के ब्रोसर में उतारते हैं, वहीं दूसरी ओर प्रोजेक्ट साइट पर विकास व निर्माण की योजना बनाता अभियंताओं का समूह परियोजना को मूर्तरूप देने की नींव रखता है और प्रोजेक्ट बाजार में उपभोक्ताओं के लिए खोल दिया जाता है । मांग की अधिकता एवं आपूर्ति की कमी के चलते सैकड़ों सपने आशियाना पाने की चाह में अपनी आमद दर्ज कराते हैं । खुले बाजार में निवेशक के पास बेहतर चुन पाने के भरपूर अवसर उपलब्ध होते हैं । (दखल)(लेखक मनोज सिंह मीक, शुभालय ग्रुप के चेयरमेन हैं)
Dakhal News 22 April 2016

Comments

Be First To Comment....
Advertisement
Advertisement

x
This website is using cookies. More info. Accept
All Rights Reserved © 2024 Dakhal News.