अगर सिमी आतंकी भाग जाते तो ....
raghvendr singh

राघवेंद्र सिंह 

आतंक के आरोपी हैं तो जेल तोड़ेंगे ही...भोपाल जेल से पहले खंडवा जेल तोड़कर भी भागे थे। हत्याएं भी कर चुके थे। आगे सुधरने के बजाये बम विस्फोट और हत्या करने की धमकी देते थे। एनकाउंटर में मारे गये आठों सिमी के सदस्यों के बारे में पुलिस और जेल महकमे के छोटे-बड़े अफसर सभी तफ्शील से जानते थे बावजूद इसके दीवाली की रात जेल ब्रेक हुई और महज आठ-नौ घंटे में ही भागे गये। सभी आरोपी मारे गये। अभी जो जेल में आतंक के आरोप में बंदी हैं उसमें सिमी सरगना अबू फजल समेत उसके सभी साथी बारूद की तरह विस्फोटक हैं। एनकाउंटर पर सवाल हो रहे हैं और न्यायिक जांच इसका उत्तर भी देगी। बता दें कि यह जांच शहर काजी और नायब काजी के आग्रह पर मुख्यमंत्री ने घोषित की है। मेरी 31 साल की सक्रिय पत्रकारिता के आधार पर पुलिस से माफी के साथ कह सकता हूं कि कामयाबी अंधे के हाथ बटेर लगने जैसी है। हालांकि मेरा मकसद पुलिस के नेटवर्क तत्काल कार्यवाही और निशानेबाजी पर तंज कसना नहीं है मगर मसला भोपाल का है तो एक भोपाली जुमला भी मैं जोड़ना चाहूंगा कि यह सब कुछ अल अल टप्पू हो गया है। जिस हद दर्जे की पुलिसिंग हमारे यहां है उस हिसाब से तो यह एनकाउंटर स्कॉटलैंड यार्ड पुलिस को भी मात देता है। पुलिस का शाबाशी दीजिए, ईनाम का एलान कीजिये, पदोन्नति की फाइलें चलाइये सब अपने लाभ के लिये हो सकता है करें, मगर अपराध या अातंक के नेटवर्क को ध्वस्त करने के लिये। फिर किसी अंधे के हाथ बटेर लगने जैसे मौके का इंतजार मत करिये। शायद हर बार ऐसा नहीं होगा। अब आगे का रास्ता एनकाउंटर की उपलब्धि के बाद कठिन है क्योंकि जेल से लेकर पुलिस और सरकार का समूचा सिस्टम स्लीपिंग मोड पर ज्यादा है। यहां तो वारदात के बाद सब जागते हैं। बड़ी-बड़ी बातें करते हैं और फिर अगली घटना होने के इंतजार में सो जाते हैं। इसके विपरीत आतंक से जुड़ा नेटवर्क पहले से ज्यादा सक्रिय और ताकत के साथ अटैक करने वाला होगा। ऐसा होते हम सब देखते आये हैं। पाठकों से गुजारिश है कि वह इसके गवाह बने रहें क्योंकि जेलों में वॉच टॉवर, फ्लैश लाइट, सीसीटीवी कैमरे और सुरक्षा तंत्र कमजोर है। दरअसल मैंने अपनी पत्रकारिता की शुरूआत ही दैनिक जागरण भोपाल में क्राइम रिपोर्टर के रूप में की थी। बात 1986 की है। भोपाल के ऐशबाग इलाके में एक मजदूर की नन्ही सी बच्ची की हत्या होली-रंगपंचमी के बीच रात में कर दी गई थी। हमारे संपादक रमेश शर्मा ने घटना का फॉलोअप करने को कहा। मैं और छायाकार संजीव गुप्ता मौके पर पहुंचे। मजदूर परिवार काम पर गया था सो उससे बात नहीं हो पाई लेकिन घटनास्थल से 100 मीटर के भीतर एक लावारिश सायकल मकान की दीवार से टिकी हुई मिली। पास ही एक जोड़ चप्पल भी पड़ी थी। पता चला कि इसे वारदात की रात कोई छोड़कर भाग गया है। फोटो के साथ यह छपा तो हल्ला मचा जबकि पुलिस ने घटनास्थल और आसपास की वीडियोग्राफी भी की थी। मगर सायकल उनकी पकड़ में नहीं आई। उस समय के खर्राट एएसपी मैथिलशरण गुप्त ने टीआई और सीएसपी की पुलिसिया अंदाज में क्लास ली। अगले ही दिन दोनों अफसर शाम को हमारे दफ्तर में संपादक की टेबिल के सामने बैठे मिले और जानकारी के लेने के लिये मेरे आने की प्रतीक्षा कर रहे थे। यह सब लिखने का मतलब बस पुलिस की वर्किंग बताना भर था। पुलिस ने अच्छे काम भी किये हैं जिनका हम फिर कभी जिक्र करेंगे। इसमें पंजाब के खूंखार ईनामी अातंकी बलकार सिंह की गर्मियों में बैरसिया के जंगल से गिरफ्तारी करना भी अहम है। बलकार भोपाल के पिपलानी क्षेत्र से डकैती के बाद भागा था। तब पुलिस की वर्किंग आज की तुलना में ज्यादा स्ट्रांग थी। खूफिया पुलिस के भले ही तब सब जानते हों पर उसकी पुराने भोपाल और बदमाशों के बीच पैठ हुआ करती थी। समय के साथ खुफिया तंत्र मजबूत होने के साथ कमजोर होता चला गया। अब हालात शोले फिल्म के उस डायलाग की तरह हो गये हैं जेल में सुरंग बनने पर जेलर असरानी यह कहता है कि हम अंग्रेजों के जमाने के जेलर हैं यहां परिंदा भी पर नहीं मार सकता, तभी एक पक्षी असरानी को पंख मारता हुआ उड़ जाता है। मध्यप्रदेश की जेलों की हालत बदतर है। मारे गये सिमी के सदस्य 2013 में खंडवा जेल तोड़कर फरार हुए थे। बड़ी मुश्किल से वे देश के अलग-अलग हिस्सों से पकड़े जाते हैं और बाद में आईएसओ अवार्ड प्राप्त भोपाल जेल में रखे जाते हैं। आदतन जेल तोड़ने और हत्या करने वाले इन आरोपियों का इस जेल में इस कदर आतंक था कि इनकी बैरकों के सामने से गुजरने से बचते थे। गाली-गलौच करने वाले इन आरोपियों की निगरानी करने कोई बड़ा अफसर कम ही आता था। डीजी जेल, आईजी, डीआईजी, अधीक्षक, जेलर सब पता नहीं क्यों बेफिक्र थे? कलेक्टर भोपाल निशांत वरवड़े साढ़े तीन साल से यहां हैं मगर एक बार भी वे इन बैरकों का निरीक्षण करने नहीं गये जबकि कायदे से हर तीन महीने में निरीक्षण करना चाहिये। भोपाल समेत सूबे की जेलों में सुरक्षा के नाम पर मजाक चल रहा है। यहां तो आतंक के आरोपी भागे और मारे गये इसलिये लापरवाही, कमजोर सुरक्षा और ध्वस्त व्यवस्था की ओर किसी का ध्यान नहीं है। अधिकारी इस बात से खुश हैं कि एनकाउंटर में उनकी अक्ष्मय अनदेखी पर पर्दा डाल दिया है। जेल तोड़ने वालों से ज्यादा संगीन अपराध जेल महकमे का है। इस घटना के बाद तो भोपाल समेत प्रदेश की सभी जेलों की व्यवस्था 24 घंटे में न सही हफ्तेभर में तो बदल देनी चाहिये थी। पहली नजर में दोषी अफसरों के निलंबन के साथ बर्खास्तगी की प्रक्रिया शुरू होना चाहिये। कल्पना कीजिये ये आठों आरोपी भागने में कामयाब हो जाते तो क्या होता? कितनी तबाही करते वे और कितनों की जान लेते? पूछताछ के सिलसिले में खंडवा में मारे गये एक आरोपी ने कहा था कि वह जेल से फरार होकर बम ब्लास्ट करेगा। दीवाली की रात जेल तोड़कर भागने की घटना से यह साबित भी हो गया है। कुल मिलाकर सरकार, प्रशासन और पुलिस को ज्यादा खुश होने की जरूरत नहीं है क्योंकि एनकाउंटर के बाद भोपाल में सिमी के समर्थक सक्रिय हैं और तनाव का माहौल पैदा कर रहे हैं। सरकार को अपने सिस्टम की काबिलियत भी पता है, एनकाउंटर ने सारी कमजोरियों और पाप पर पर्दा डाल दिया है लेकिन सिमी के लोकल से लेकर नेशनल-इंटरनेशनल सिलीपिंग सेल सक्रिय हो गये। भोपाल और राज्य में इनके संपर्क में कौन-कौन है और वे क्या करेंगे, इसे रोकने और नेटवर्क तोड़ने की मजबूत योजना बनानी पड़ेगी। महज शाबाशी से काम नहीं चलेगा। (लेखक IND24 के समूह प्रबंध संपादक हैं)

 

Dakhal News 7 November 2016

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