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प्रखर श्रीवास्तव
NDTV इंडिया पर बैन के खिलाफ कई पत्रकार अपनी आवाज़ उठा रहे हैं... लेकिन जो NDTV को करीब से जानता है और जो यहां काम कर चुका है वो मुश्किल से ही सरकार के फैसले के विरोध में खड़ा होगा... और मैं भी इन्ही में से एक हूं... मैंने भी NDTV में करीब 15 महीने काम किया है... और इसी दौरान मुंबई में 26/11 का हमला हुआ था और उसी हमले से जुड़ी एक ख़बर का किस्सा मैं यहां बताना चाहता हूं जिसे पढ़कर शायद बैन का विरोध करने वाले एक बार सोचने के लिए ज़रूर मजबूर हो जाएंगे... बात 27-28 नवंबर 2008 की दरमियानी रात की है... मैं नाइट ड्यूटी में था... ताज होटल में भयंकर गोलीबारी हो रही थी... तभी रात के 3 बजे NDTV इंडिया के सबसे वरिष्ठ रिपोर्टर का मुंबई से फोन आया, वो ताज होटल के बाहर हमला कवर कर रहे थे... रात में अक्सर उनकी आवाज़ लड़खड़ाती है और उस रात भी लड़खड़ाती आवाज़ में उस रिपोर्टर ने फोन पर कहा - "एक आतंकी को सुरक्षा बलों ने सेफ पैसेज (सुरक्षित बाहर जाने का रास्ता) दे दिया है, मैंने खुद उसे बाहर जाते देखा है, इस ख़बर को अभी इसी वक्त चलाओ"... मुझे लगा ये ख़बर चलाना ठीक नहीं है... मैंने अपने मैनेजिंग एडिटर से बात करना ज़रूरी समझा... जो उस वक्त हमले की वजह से रात में रुके हुए थे और अपने कैबिन में थोड़ी देर के लिए सो रहे थे... हमने उन्हे जगाया और मैंने उन्हे कहा कि "सीनियर रिपोर्टर आतंकवादी को सेफ पैसेज देने की ख़बर दे रहा है, और मुझे ये ख़बर सही भी नहीं लगती, हमें इसे नहीं चलाना चाहिए"... लेकिन संपादक ने कहा - इस ख़बर को तत्काल चलाओ... मैंने दो बार और मना किया और कहा कि ये ख़बर अगर गलत निकली तो दिक्कत हो सकती है... लेकिन जवाब फिर वही आया - ख़बर को तत्काल चलाओ... और आखिरकार मैंने वो ख़बर चला दी - ब्रेकिंग न्यूज़... "ताज़ होटल के अंदर मौजूद एक आतंकी को सेफ पैसेज दिया गया"... रिपोर्टर ने बकायदा फोनो दिया और कहा कि मैंने अपनी आंखों से एक आतंकी को बाहर निकलते देखा है... ख़बर काफी देर तक चलती रही... मैं मन मसोस कर बैठा रहा, मुझे तब भी यही लग रहा था और आज भी लगता है कि मुझे वो ख़बर नहीं चलानी चाहिए थी... क्योंकि ना केवल वो ख़बर झूठी थी बल्कि सुरक्षा बलों का मनोबल तोड़ने वाली भी थी और उससे कहीं ज्यादा वो ख़बर देश को शर्मिंदा करने वाली थी... इस घटना से मेरा मन काफी दिनों तक खराब रहा और मैंने 2 महीने और NDTV में काम किया और फिर इस्तीफा देकर दूसरे चैनल में चला गया, वैसे नौकरी छोड़ने की और भी कई वजह थीं... खैर... मैं इस घटना को कभी किसी को नहीं बताता लेकिन जिस तरह से NDTV में काम करने वाले साथी पत्रकार खुद को पीड़ित बता रहे हैं, बार-बार दुहाई दे रहे हैं कि हम सच्ची पत्रकारिता करते है और इसीलिए हमारे चैनल को ये सज़ा मिली... तब ऐसे में ये बताना ज़रूरी हो जाता है कि ये सच नहीं है... मैं ये भी कहना चाहता हूं कि कई चैनलों ने कई बार ऐसे मौकों पर गलतियां की हैं... हम सब जो इस पेशे से जुड़े हैं वो जानते हैं कि तेज़ी से ख़बर देने के दवाब में कई बार गलतियां हो जाती हैं... मैंने भी कई बार गलतियां की हैं... और ये भी जानता हूं कि मैं आगे भी गलतियां करुंगा... क्योंकि गलतियां टीवी पत्रकारिता का अमिट हिस्सा हैं... तेज़ी हमारी ताकत है तो तेज़ी ही हमारी दुश्मन भी है... क्योकि यही तेज़ी हमसे गलती करवाती है... लेकिन अनजाने में गलती होना और सोचते समझते हुए गलती करने में अंतर होता है। [प्रखर श्रीवास्तव देश के युवा और चर्चित पत्रकार हैं ]
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