पते के साथ जुड़ता है त्वव्यक्ति
मनोज सिंह मीकछोटे शहर या कस्बे की जनता, बड़े शहरों या महानगरों में रहने वाले जनमानस का कद अपने से ऊंचा माना करती है । मालवा, महाकौशल, विंध्य आदि अनेक क्षेत्रों को एक-दूजे के अलहदा दर्जा दिया जाता है । हर गली, मोहल्ले, कॉलोनी या कैम्पस का अपना चरित्र धीरे-धीरे प्रचलन में आता है और फिर पर्याय बन जाता है । आप जिस देश-प्रदेश , शहर, क्षेत्र, मोहल्ले, कॉलोनी या कैम्पस में रहते हैं, उसका नाम व छवि आपके व्यक्तित्व के साथ जुड़ती जाती है । एक जमाने में हम भारतवासी तीसरी दुनिया के गरीब अविकसित या विकासशील देश की निरीह जनता माने जाते थे । उन्नत प्रदेशों में रहने वाले लोग पिछड़े प्रदेशों के लोगों को हीन दृष्टि से देखते थे । छोटे शहर या कस्बे की जनता, बड़े शहरों या महानगरों में रहने वाले जनमानस का कद अपने से ऊंचा माना करती है । मालवा, महाकौशल, विंध्य आदि अनेक क्षेत्रों को एक-दूजे के अलहदा दर्जा दिया जाता है। हर गली, मोहल्ले, कॉलोनी या कैम्पस का अपना चरित्र धीरे-धीरे प्रचलन में आता है और फिर पर्याय बन जाता है । आप जहाँ रहते हैं वहाँ का वातावरण, चरित्र और ऊर्जा, सुविधाएं, ये सब आप पर लगातार प्रभाव डालते रहते हैं । इसके चलते अब प्रस्टीजियस एड्रेस या सिगनेचर रियल एस्टेट प्रोजेक्ट चलन में आने लगे हैं यानि बेहतरीन देश के उन्नत प्रदेश के महानगरों की उम्दा लोकेशन पर उच्चतम सुविधाओं से युक्त कॉलोनी, जिसमें अपना बसेरा बनाकर आप गर्व महसूस कर सकें । न्यूयार्क के मैनहट्टन, दिल्ली के चाणक्यपुरी और मुंबई के जुहू या भोपाल के अरेरा कॉलोनी में रहना प्रतिष्ठा को बढ़ने का सबब माना जाता है । इस शानदार भावना की अंतिम कड़ी है आपका अपना आशियाना, जो उच्च गुणवत्ता का डिजायनर हाउसिंग यूनिट है, जिसकी आंतरिक साज-सज्जा अनूठी है । समान प्रकार के भवनों का एक खूबसूरत-सा नाम है, जो आपके हाउस नंबर के साथ जुड़कर विशेष पहचान बन गया है । गली को लेन या स्ट्रीट कहा जाने लगा है और मोहल्ले को कॉलोनी, कैम्पस, एवेन्यू, पार्क सिटी, गार्डन सिटी और न जाने क्या-क्या नाम दिए जाने लगे हैं । आपको विशेष महसूस कराने के लिए इन नामों को भी नए रूप में प्रस्तुत किया जाने लगा है । ब्रांडेड आवासीय परिसर में रहने का सुख महसूस करना अब डेवलपर्स का नया शगल है । जिस प्रकार हमारा रूझान ब्रांडेड कपड़ों, बड़ी ब्रांडेड गाड़ियों की तरफ गया, उसी प्रकार हम तेजी से बड़े ब्रांड वाली कॉलोनियों की तरफ कदम बढ़ाने लगे हैं, ताकि समाज में हमारा रूतबे का स्तर बढ़ता रहे और हम मान-सम्मान के इस आत्मिक सुख का पान कर आत्मगर्वित होते रहें । एक अदना सा मकान बना लेना सपना हुआ करता था । आंतरिक साज-सज्जा के नाम पर चंद परदे या चटाई, बुनी हुई कुछ कुर्सियां, स्टूल, खटिया और लकड़ी की एकाध अलमारी और आज देखिए इंटीरियर का खर्च निर्माण के खर्च से कई गुना हुआ करता है । होम अप्लायंसेस से लेकर तकिये के लिहाफ तक बारीक विशेषज्ञता एवं ब्रांड-वेल्यू की झलक देखी जा सकती है । अरमानी क केमल-वूल का सूट, राडो की हारो जड़ित वाच, एल्डो के जूते, प्राडा की एसेसरीज, लक्जीरियस बीएम, मर्क, आडी कारें, गोल्फ कोर्स, रिवर या सी फेसिंग प्रोजेक्ट में अपना घरोंदा, ये सब भौतिक समाज में आपको मान-सम्मान दिलाकर महिमा मंडित करते हैं । इस बढ़ती अर्थव्यवस्था के दौर में भौतिकवाद का भीषण बोलबाला है । चेतना की सतह पर उथले में तैरता मानस, इन सबके पार जाकर ही सभी प्रकार के सुखों को भोगकर ही गहरे उतर सकता है, जहां पते की बात की पड़ताल खत्म होती है । (दखल)(लेखक मनोज सिंह मीक, शुभालय ग्रुप के चेयरमेन हैं)