नया दशक, नई इबादत,
नया दशक, नई इबादत,
नया चांद अब के बाद ...............० मनोज सिंह मीक नई सदी का पहला दशक, मध्यप्रदेश में रीयल एस्टेट के लिए सर्वाधिक फलदाई रहा है । एक जमाना था जब प्रदेश के महानगरों में केवल सरकारी मंडल प्राधिकरण व निकाय आवास मुहैया करने का काम करते थे । जनता के पास दूसरे विकल्प के रूप में सहकारी संस्थाओं से भूखण्ड प्राप्त कर मकान बनाना एक साधन था । आर्थिक सुधारों ने चौतरफा असर दिखाया और देखते ही देखते हर क्षेत्र में नीति-नियमों को लचीला किया जाने लगा । रीयल एस्टेट के क्षेत्र में पहला मील का पत्थर साबित हुआ सन्‌ १९९८ में बनाया गया कालोनाइजर एक्ट । निजी डेवलपर्स के लिए अब सुहाने सफर का खुशहाल रास्ता पथरीला ही सही खुल गया । सन्‌ २००० में अर्बन-सीलिंग एक्ट का समापन तलवे में धसे कांटे के निकल जाने जैसा था । अब राह और सुगम थी । आमजन गैर सरकारी हाथों से बने आशियाने में बेहतर महसूस करने लगे । आवासों की मांग दिन दूनी रात चौगुनी की रफ्तार से बढ़ने लगी । अर्थव्यवस्था के तेज प्रवाह ने शहरों की ओर पलायन को बढ़ाया, राष्ट्र और राज्य सरकारों को शहरी विकास जैसे विभाग बनाने पड़े और नई आवास नीति लागू की गई । पूरे देश में निजी डेवलपर्स बिल्डर्स ने उच्च गुणवत्ता एवं बेहतरीन डिजाइन की इमारतों से शहरों के सिटीस्केप बदल दिए । इस दशक में जहाँ एम्बी वैली जैसी एतिहासिक अल्ट्रा लग्जीरियस हॉलीडे होम्स बने, वहीं निम्न कमजोर आय वर्ग के बड़े बाजार की नब्ज को डेवलपर्स ने समझा । सरकार ने जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय रिन्युअल मिशन के जरिए शहरी विकास को नए आयाम दिए । मेगा सिटीज, मिलियन प्लस और नॉन मिलयन पॉपुलेशन वाले ६३ शहरों के स्थानीय निकायों के लिए १,२९,५३६ करोड़ रूपए का प्रावधान किया, ताकि प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के सपनों के आधुनिक शहर बन सकें, जो पूरे देश के सामने शहरी विकास का आदर्श हो, शहरों में व्यवस्थित ढंग से कामकाज चले और प्रशासनिक, रिहायशी तथा व्यावसायिक इलाकों का ध्यानपूर्वक प्रावधान किया जाए । १९५२ में श्री नेहरू ने चंडीगढ़ की विकास योजना का निरीक्षण करते हुए कहा था कि नए शहर भारत की स्वतंत्रता के प्रतीत हों, बीते युग की परंपराओं से मुक्त हों और भविष्य के बारे में राष्ट्र की आस्था हो । निश्चित ही हमारे देश ने कर्णधारों ने दूरदृष्टि से परिपूर्ण योजनाएँ बनाई । हालांकि इतने तेज आर्थिक विकास की कल्पना न कर पाने के कारण परियोजनाएँ, नीति नियमों पर प्रतिकूल असर पड़ा है । गुलाब हिन्दुस्तान के समय फिरंगी वास्तुकारों ने जिन शहरों की अधोसंरचना का खाका खींचा था, वह आज भी काबिलेतारीफ है । अंग्रेजों के दौर की दिल्ली को देखकर इसका अंदाजा लगाना सहज है । यातायात एवं आगादी के दबाव ने शहरी विकास की कल्पना को और बड़े फलक पर देखने के लिए बाध्य किया है क्योंकि आज शहरीकरण अंतर्राष्ट्रीय औसत ५० प्रतिशत की जगह भारत में मात्र ३० प्रतिशत है । मांग और आपूर्ति में काफी फासला है । अब नए दशक में भारतीय अर्थव्यवस्था तीन गुनी हो जाएगी तथा शहरीकरण दोगुना हो जाएगा, आर्थिक महाशक्ति बनने के लिए हम प्रत्येक देशवासी को देशहित को प्राथमिकता में रखना होगा । छोटे व निजी स्वार्थो से निकल देश व सर्वहारा वर्ग के कल्याण के लिए भावनाएं आंदोलन हो, अपनी चंद पंक्तियों में यह कामना करता हूँ । सिमटता सा समय, नई सदी का .... गुजरता दशक दसियों, सैकड़ों, अनगिनत सपने, सदमे और सबक । फूलों का कालीन और पड़ाव का परचम । पुराणों के पुण्य और संस्कारों के सत मलहम । मन मिला, तन लगा .... और छू ले मंजिल ए मुराद, नया दशक, नई इबादत, नया चांद अब के बाद । देवभूमि, सोन चिरैया और धरती का सरताज, एक अर्थ, एक शर्त सुनहरा कल सहेजना आज । सिमटता सा समय, नई सदी का गुजरता दशक, दसियों, सैकड़ों ..... अनगिनत सपने, सदमे और सबक । नए दशक की समृद्ध शुभकामनाएं । (दखल)(लेखक शुभालय ग्रेप के चेयरमेन हैं)
Dakhal News 22 April 2016

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