हम ही हैरान हैं ...... मकानों के जंगल में
मनोज सिंह मीक हम आज विश्व में सर्वाधिक युवक युवतियां और उनसे संचित ऊर्जा हमारे ही देश में उपलब्ध हैं, निश्चित ही इस महत्वपूर्ण मोड़ पर जब हम आर्थिक महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर हैं, हमें अपने युवाजनों की शक्ति और ऊर्जा को सकारात्मक दिशा प्रदान करनी होगी और इसके लिए आवश्यक है उन्हें उत्तम परिवेश में रहने का स्थान उपलब्ध हो । हालांकि मकान खरीदने का फैसला काफी कठिन होता है क्योंकि घर की कीमतें हमेशा ही बढ़ती चली जाती हैं । कई युवा और मध्य आयु के लोग खास तौर पर निश्चित वेतन पाने वाले मध्यम वर्ग के लोग मकान की लोकेशन और उसके साइज के बारे में लंबे समय तक चर्चा ही करते रह जाते हैं । कई लोगों को तो फैसला लेने में काफी वक्त लग जाता है । जब वे किसी नतीजे पर पहुँचते हैं तब उन्हें अहसास होता है कि मकान लेने का उनका सपना दिन-ब-दिन महंगा होता जा रहा है । इसलिए वक्त की कद्र कीजिये प्रसिद्ध गीतकार गुलज+ार ने ठीक ही कहा है कि : इक बार वक्त से लम्हा गिरा कहीं ..... वहाँ दास्तान मिली लम्हा कहीं नहीं । बचत, लोन और भुगतान करने की क्षमता को ध्यान में रखा जाए तो भी मकान खरीदने का फैसला कठिन होता है । अगर आज कोई मकान आपकी क्षमता से बाहर है तो आने वाले समय में भी वह आपकी क्षमता बाहर ही रहेगा । दूसरी ओर, यदि आपने घर खरीद लिया है तो कुछ सालों बाद ऐसा लग सकता है कि आपको और बड़ा मकान खरीदना चाहिए था, भले ही खरीदा गया मकान तब आपकी क्षमता से बाहर रहा हो । आम तौर पर आमदनी बढ़ने के साथ जरूरतें भी बढ़ती जाती हैं । जगह की कमी का दर्द बशीर बद्र साहब के हासिले-गजल शेर में बखूबी बयां होता है कि : जि+न्दगी तूने मुझे कब्र से कम दी है ज+मीं ..... पांव फैलाऊं तो दीवार में सर लगता है वर्ष २०१०-११ की क्यू ३ की हाल ही में जाकी एक अंतर्राष्ट्रीय रिपोर्ट के मुताबिक वैश्विक बाजार के परिदृश्य में कहा गया है कि अगले १२ महीनों में अचल संपत्ति गतिविधियों और प्रदर्शन में एक बहुत बड़ा अंतर दिखने की उम्मीद है । अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कामर्शियल रियल एस्टेट के निवेश में २५ से ३५ प्रतिशत की वृद्धि देखी जा सकती है । एशिया-प्रशांत क्षेत्र में आर्थिक स्थिति और मजबूत होगी । व्यापार और विश्वास का ग्राफ बेहतर होगा । २०११ में कामर्शियल रियल एस्टेट की मांग रिकार्ड ४५,००,००० वर्ग मीटर तक पहुंचने का अनुमान है जो कि पिछले शिखर से लगभग दोगुना है । भारत में घरेलू कार्पोरेट एवं अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों के विस्तार के कारण उच्चतम मांग बनी रहेगी, निश्चित ही ये विस्तार रिहायसी रियल एस्टेट की मांग में भी तेजी लाएगा । मांग और आपूर्ति की बढ़ती खाई तथा परियोजना के क्रियान्वयन में नित नई चुनौतियों के चलते रियल एस्टेट की कीमतों पर लगाम लगाना मुश्किल होगा । इस साल की शुरूआत से अभी तक देखा जाए तो प्रॉपर्टी बाजार में कीमतें करीबन २५ से ३० फीसदी बढ़ चुकी हैं । वैसे भी अब सेवा कर, वैट, रजिस्ट्रेशन फीस और स्टांप ड्यूटी को मिलाकर करीबन १५ फीसदी ज्यादा रकम चुकानी पड़ेगी । जबकि परिवहन खर्च बढ़ने और दूसरी चीजों की कीमतें बढ़ने की वजह से फ्लै के दाम करीबन १२-१५ फीसदी बढ़ाने होंगे । ऐसे में जो फ्लैट अभी २५ लाख रूपए का पड़ रहा था वह अब करीबन ३० लाख रूपए का पड़ेगा । सरकार मेगा इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं के आस पास आवासीय और वाणिज्यिक कॉम्पलेक्सों पर बेहतरी शुल्क और सेवा कर लगाने पर विचार कर रही है । साथ ही राज्य सरकार अतिरिक्त फ्लोर स्पेस बेचने पर बिल्डरों और डेवलपरों से प्रीमियम वसूलने की योजना भी बना रही है । इस तरह से वसूली गई रकम विकास कोष में जमा की जाएगी । इस कोष का इस्तेमाल विभिन्न आधारभूत परियोजनाओं के विकास के लिए किया जाएगा । राज्य में हजारों करोड़ रूपए से अधिक की बुनियादी ढांचा परियोजनाओं पर काम चल रहा है । वक्त के साथ रहन-सहन, वास्तुकला, कीमत आदि में बदलाव आया है परन्तु मकानों, ठिकानों या आशियाने की तलाश सदियों से अनवरत् जारी है, रोटी कपड़ा और मकान जैसी जीवन की प्रमुखतम आवश्यकताओं को हमारे रचनाकारों, साहित्यकारों और शायरों ने बड़ी सहजता से समय-समय पर कागज+ पर उकेरा है..... । शाम होने को हैलाल सूरज समन्दर में खोने को हैऔर उसके परे कुछ परिन्दे कतारें बनाएउन्हीं जंगलों को चले,निके पेड़ों की शाखों पे हैं घोसलेये परिन्दे वहीं लौट कर जाएँगे, और सो जाएंगेहम ही हैरान हैं, इस मकानों के जंगल मेंअपना कोई भी ठिकाना नहींशाम होने को हैहम कहाँ जाएंगे । ( दखल )(लेखक मनोज सिंह शुभालय ग्रुप के चेयरमैन हैं)