क्या शिव तंग हैं कैलाश से
क्या शिव तंग हैं कैलाश से
प्रवीण दुबे मध्य प्रदेश के सबसे दबंग मंत्री कैलाश विजयवर्गीय इन दिनों भोपाल/ इंदौर के अखबारों में खासे छप रहे हैं. उनके खिलाफ पूरा मीडिया टूट सा पडा है. ज़मीन घोटाले के आरोप उन पर और उनके सहयोगियों पर लगे हैं जिसकी प्याज के छिलकों की तरह परतें निकाली जा रही हैं.एक दौर था जब कैलाश आये दिन खबरे बनते थे लेकिन तब होता था, उनका सकारात्मक अंदाज़... कभी बज़र्बट्टू बने कैलाश तो कभी शिव बने कैलाश. मीडिया को एक तरह से अपने मुताबिक़ नचाने वाले कैलाश को अब मीडिया नचा रहा है. कोई अखबार उन्हें दाउद इब्राहीम की तरह " डी कम्पनी" कह रहा है तो कोई शिवराज सिंह चौहान को शिव और कैलाश को भस्मासुर कह रहा है. कैलाश विजयवर्गीय को जानने वाले जानते हैं की छोटी मोटी समस्या उन्हें विचलित नहीं करती क्योंकि वे साम, दाम, दंड, भेद के महारथी माने जाते हैं लेकिन लगता इस बार उनके हलक में उनका ही फेंका गया काँटा फंस गया है. शिवराज के खिलाफ मीडिया को छू लगाने वाले का तीर निशाने पर लगने की बजाय बड़ी तेज़ी से उनकी ही ओर आ रहा है और उन्हें छिपने की जगह तक नहीं मिल रही. दरअसल ये विवाद शायद उतना जोर नहीं पकड़ता लेकिन जब थोड़ा सा छपना शुरू हुआ और कैलाश ने उस पर तल्ख़ टिप्पणियाँ शुरू कीं तो पूरा मीडिया एक तरह से एकजुट हो गया और कैलाश बुरी तरह से घिर गए. कैलाश मीडिया के बहुत करीबी नेता थे. उन्हें मुगालता था कि वे हालात को आसानी से काबू में कर लेंगे मगर ये हो न सका. कैलाश ने मानिक वर्मा की पंक्तियों की तरह भोपाल/ इन्दोर के मीडिया को समझा....... "चूस लो चाहे जितना ये आम आदमी हैं, फिक्र मत करो इनमे गुठलियाँ नहीं होतीं." कुछ आम बेशक बिना गुठली के थे लेकिन जो गुठली वाले आम थे वो हलक में ऐसे फंसे कि निकलना मुश्किल हो गया. पहले तो कैलाश ने धमकाने वाला रवैया रखा क्योंकि बरसों के बाद किसी ने उन्हें उनकी मांद के बाहर आकर चुनौती दी थी. कैलाश ने कुछ अखबारों पर टिप्पणी कर दी कि ये अखबार " पोंछने के काम भी नहीं आते" बस फिर क्या था, अखबार न केवल पोंछने बल्कि धोने, निचोड़ने और सुखाने के लिए खूंटी पर टांगने को आमादा है. खबर ये भी है कि जनसंपर्क के एक आला अधिकारी को इसके लिए कैलाश ने जमकर फटकार भी लगाईं कि वे क्यों इस मुहीम को नहीं रुकवा रहे हैं. यूँ भी मुख्यमंत्री के साथ उनका शीतयुद्ध ज़ग ज़ाहिर है. दिल्ली पर अपनी मजबूत पकड़ के कारण वे शिवराज के न चाहते हुए भी टिकिट भी पाए और मंत्री भी बने. दिल्ली में वे सिर्फ अपनी पार्टी के नेताओं को ही साध कर नहीं रखते थे बल्कि मीडिया के बड़े पत्रकारों को भी, मालिकों को भी वे अपने आभामंडल में समेटने की कोशिश करते थे. यही कारण है कि उन्हें मुगालता हो गया कि जनाब सब खैरियत है.....अब जब उन्हें लगने लगा कि ज्यादा घिरने से हो सकता है कि सरकार नैतिकता के आधार पर इस्तीफा मांग कर नख दन्त विहीन कर दे तो अचानक उन्होंने पत्रकारों को पुचकारने की कोशिश शुरू की है. सूत्रों की माने तो वो खुद तो सामने नहीं आ रहे लेकिन एक पी आर एजेंसी उनके समर्थन में सक्रिय हुई है जो भोपाल के आलिशान होटल के वातानुकूलित कमरे से कैलाश जी का पी आर बिल्डअप करने और डेमेज कंट्रोल करने में लगी है. हैसियत और रसूख के आधार पर संपादकों और पत्रकारों को बुलाया जा रहा है और उन्हें इत्मीनान करवाया जा रहा है कि इस घोटालें में कैलाश जी की कोई भूमिका नहीं है. ज़ाहिर है कि इस इत्मीनान को पुष्ट करने के जितने भी " कलयुगी तरीके" हो सकते हैं वे अपनाए जा रहे हैं. कुछ कागजात और सी डी भी देकर सामने वाली पार्टी को गुनाहगार बताने की कवायद चल रही है. यानी हर देवता को प्रसन्न करने की अलग अलग तरह की पूजा की विधि अपनाई जा रही है. कुछ संतुष्ट होकर लौट भी रहे हैं तो कुछ वहां खुद को संतुष्ट दिखाते हैं लेकिन आकर फिर अपना रंग दिखाना शुरू कर देते हैं. इस पूरे मसले में गदगद हैं मुख्यमंत्री..... क्योंकि उन्हें तो एक तरह से दोहरी खुशी मिली है. एक तरफ डम्फर घोटाले से उन्हें कोर्ट ने राहत दे दी, दूसरी तरफ बिलकुल मुक़ाबिल खड़े कैलाश विजयवर्गीय बुरी तरह से उलझ गए. कैलाश विजयवर्गीय पर पहले भी पेंशन घोटाले और उमा भारती के समय कुम्भ में सड़क निर्माण में घोटाले के आरोप लगते रहे हैं लेकिन वे मंझे हुए नेता की तरह इन मीडिया की चिंगारियों को वहीं दबा देते थे. इस बार उन्होंने अपने रसूख के बूते मीडिया को दबाना चाहा और बहुत दोयम दर्जे की टिप्पणी कर दी जिसका खामियाजा वे भुगत रहे हैं. इस मामले में यदि देखा जाए तो मुख्यमंत्री तत्काल तो कोई ज़ल्दबाज़ी नहीं करेंगे क्योंकि वे राजनीति के अब कम से कम छोटे खिलाड़ी तो नहीं हैं. उन्हें पता है कि यदि वे तुरंत कैलाश को अपने मंत्रिमंडल से हटाते हैं तो ऐसा लगेगा जैसे ये सी एम् प्रायोजित हंगामा था. शिवराज इस बहाने कैलाश की पूरी नकेल अपने हाथ में ले लेंगे और अजगर की तरह अपनी गिरफ्त को धीरे धीरे मजबूत करेंगे. ज़ाहिर है कि ज़ल्दबाज़ी उन्हें भी नहीं हैं. वे इतना बेशक कर सकते हैं कि इस मामले को ठंडा न पड़ने दें. उनके कुछ करीबी अब मीडिया में इतना सार्वजानिक भी करने लगे हैं कि इससे सरकार की छवि पर विपरीत असर पड़ रहा है. कैलाश भी ये जानते हैं कि "छवि पर विपरीत असर" राजनीति का ऐसा शब्द है जो आगे जाकर किसी की भी बलि ले सकता है. ऐसे में उनकी पूरी ताकत इसी बात को लेकर लगी है कि कैसे भी ये मामला शांत हो. कुल मिलाकर सूबे की सियासत इन दिनों बेहद गर्म है और इसकी गर्मी किसी के हाथ ज़ला रही है तो कोई पूरे आराम के साथ इसमें हाथ सेंक रहा है. ये विवाद अभी कई दिनों तक थमने का नाम नहीं लेगा इस बात की गुंजाइश ज्यादा दिख रही है.......(दखल)(लेखक प्रवीण दुबे अपनी बेबाक टिप्पणियों के लिए जाने जाते हैं, उन्हें न्यूज़ 24 पर लाइव भी देखा जा सकता हैं |)
Dakhal News 22 April 2016

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