आपकी राय से बदलते हैं अर्थव्यवस्था के अर्थ
मनोज सिंह मीकसभी वित्तीय या गैर वित्तीय प्रावधानों, नीति नियमों के प्रारूप प्रथमतः आम जनमानस की राय व आपत्तियों हेतु निश्चित अवधि के लिए सार्वजनिक किए जाते हैं । जरूरत इस बात की है कि हम अवलोकन करें तथा आवश्यक सुझाव या आपत्ति सक्षम कार्यालय में प्रस्तुत करें । अंतिम तौर पर लागू होने के बाद मीन मेख निकालने का कोई औचित्य नहीं है । स्थानीय निकायों द्वारा लागू किए गए संपत्ति कर का शुल्क एवं विभिन्न आवासीय परिसरों के रखरखाव में लागू होने वाले बाह्य विकास शुल्क पर आपत्तियाँ, विसंगतियाँ व सुझाव बजट से पूर्व देकर हम नीति निर्धारकों की मदद कर सकते हैं । प्रादेशिक स्तर पर लागू कर जैसे स्टाम्प ड्यूटी एवं वैट में कटौती या करों को तर्कसंगत करने का सुझाव बजट से पहले दिए जाने चाहिए । इसी प्रकार राष्ट्रीय बजट के पूर्व सर्विस टैक्स के दायरे में आ चुके रियल एस्टेट एवं राष्ट्रीय नियामक आयोग द्वारा लागू किए जाने वाले प्रावधानों पर समय समय पर सरकार सुझाव मांगती रही है । सुझाव पहुँचाने की जिम्मेदारी :- अमुमन देखने में आता है कि इस तरह की राय, सुझाव, आपत्तियाँ व्यापक तौर पर नीति निर्धारकों को प्राप्त नहीं हाती । इससे रियल एस्टेट मार्केट के प्रभावित होने की आशंका है । कुल मिलाकर आपकी राय से बदल सकते हैं अर्थ व्यवस्था के अर्थ बस जरूरत है आपके सामने आने की और अपनी बात नीति निर्धारकों तक मजबूती से पहुँचाने की । वित्तीय वर्ष की अंतिम तिमाही यानि क्यू-४ करदाताओं के लिए गर्व का समय होता है क्योंकि व देश, प्रदेश व स्थानीय निकायों की जनउपयोगी योजनाओं के लिए कर के रूप में अपने धन का योगदान दे रहे होते हैं । वहीं दूसरी ओर अगले वित्तीय वर्ष का लेखा-जोखा लक्ष्य व भविष्य के सपने बुन रहे होते हैं । इसी दौरान राष्ट्रीय, राज्यों व लोकल बॉडीज के बजट संबंधित सरकारें जनता के समक्ष पेश करती हैं । कोई कीतों, शुल्क व करों में राहत की बाट जोह रहा होता है तो कोई बेहतर आमदनी के जरिए तलाश रहा होता है । तीन तरह की मानसिकता :- समाज में तीन तरह की मानसिकता काम करती है, एक वर्ग बचत, कटौती, राहत की उम्मीद लगाए रखता है, दूसरा महंगाई, करों आदि की भरपाई के लिए लक्ष्य निर्धारित कर बेहतर प्रदर्शन के साथ अधिक धनार्जन पर ध्यान केन्द्रित करता है और तीसरा वर्ग सदा की तरह निष्क्रिय, परिवर्तन और परिपक्वता से दूर भगवान भरोसे पसरा रहता है । देश की समृद्धि में इस दूसरे वर्ग का सर्वाधिक योगदान है जो सकारात्मक विचारधारा के साथ कंधे से कंधा मिलाकर अपनी, समाज, देश तथा नगर की आमदनी बढ़ाता है तथा शेष दोनों वर्गो के हिस्से की नकारात्मकता को ढाकता है । इस तिमाही में जनमानस को सर्वाधिक जागरूक रहने की आवश्यकता है । वित्तीय प्रावधानों नीति नियमों में वांछित बदलाव संबंधित सुझावों से शासन-प्रशासन को अवगत कराना हमारा दायित्व है । ध्यान रहे सभी सुझाव परिवर्तन से होने वाले लाभ तथा वर्तमान प्रावधानों से होने वाली हानि का स्पष्ट चित्रण करते हो तथा जन-कल्याणकारी हो । आपके सुझाव नीति निर्धारकों को व्यवहारिक परेशानियों से अवगत कराते हैं तथा बेहतर परिवर्तन के अंतिम निर्णय पर पहुँचने में मदद करते हैं । सरकारों ने प्रत्येक स्तर पर सुझाव पेटियाँ तथा संबंधित विभागों की वेबसाइट्स पर यह सुविधा उपलब्ध कराई है । आज की प्रगतिशील सरकारें आमराय कायम करने और बेहतर प्रदर्शन के लिए तत्पर प्रतीत होती है । लगभग सभी वित्तीय या गैर वित्तीय प्रावधानों, नीति नियमों के प्रारूप प्रथमतः आम जनमानस की राय व आपत्तियों हेतु निश्चित अवधि के लिए सार्वजनिक किए जाते हैं । जरूरत इस बात की है कि हम अवलोकन करें तथा आवश्यक सुझाव या आपत्ति सक्षम कार्यालय में प्रस्तुत करें । अंतिम तौर पर लागू होने के बाद मीन मेख निकालने का कोई औचित्य नहीं है । बेहतर प्रशासन के लिए बहुदा ऐसे प्रावधान किए जाते हैं जो कभी-कभी व्यक्ति विशेष या वर्ग विशेष को किसी निजी स्वार्थवश रास नहीं आते इसका यह कतई मतलब नहीं है कि किसी राजा की मंशा अपनी प्रजा को प्रताड़ित करने की है । नीति निर्धारक भी हमारे बीच, हमारे समाज से ही निकले सामान्य जन हैं । सार्वजनिक पदों पर हम ही उन्हें चुनकर भेजते हैं । व्यवस्थाओं की कमी या विसंगतियों के चलते अथवा व्यवहारिक क्रियान्वयन की कठिनाईयों के कारण बहुदा आपने इनमें संशोधन होते देखा है। गलतियों को समय पर सुधार लेना सकारात्मक प्रक्रिया का अभिन्न अंग है । अर्थ की व्यवस्था में अनर्थ शेष व्यवस्थाओं को व्यर्थ कर देता है । (दखल)(लेखक श्री मनोज सिंह मीक शुभालय ग्रुप के चेयरमेन हैं)