घोड़ाडोंगरी विधानसभा उप चुनाव 16 मई को ,बीजेपी की साख दांव पर
घोड़ाडोंगरी विधानसभा उप चुनाव 16 मई को ,बीजेपी की साख दांव पर
मतदान 16 एवं मतगणना 19 मई को भारत निर्वाचन आयोग ने आज बैतूल जिले के 132-घोड़ाडोंगरी (अनुसूचित जनजाति) विधानसभा उप चुनाव की घोषणा की। घोड़ाडोंगरी विधानसभा उप चुनाव के लिये 16 मई को मतदान और 19 मई को मतगणना होगी। उप चुनाव की घोषणा के साथ ही बैतूल जिले/निर्वाचन क्षेत्र में आदर्श आचरण संहिता लागू हो गयी है।मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने इस सीट के लिए जमावट शुरू पहले ही कर ली थी। घोड़ाडोंगरी सीट के लिये बीजेपी में टिकट के जो प्रबल दावेदार हैं उनमें एक ही परिवार के तीन सदस्य हैं।घोषित चुनाव कार्यक्रम के अनुसार 22 अप्रैल को उप चुनाव की अधिसूचना जारी होने के साथ ही नामांकन-पत्र जमा करवाने का सिलसिला शुरू हो जायेगा। नामांकन-पत्र जमा करवाने की अंतिम तिथि 29 अप्रैल निर्धारित है। नामांकन-पत्रों की जाँच का कार्य 30 अप्रैल को होगा तथा 2 मई तक नामांकन वापस लिये जा सकेंगे। निर्वाचन संबंधी सभी प्रक्रिया 21 मई तक पूरी कर ली जायेगी।घोड़ाडोंगरी विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र तत्‍कालीन विधायक सज्जन सिंह उईके के गत 19 मार्च को हुए निधन के कारण रिक्त घोषित किया गया था। भाजपा ने 2013 के चुनाव में इस सीट को लगातार तीसरी बार फतह किया था। सत्तारूढ़ दल, सीट को बरकरार रखने की कोशिश में जुट गया है। खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सक्रिय हो गए हैं। इस सीट को लेकर मुख्यमंत्री के बेहद गंभीर होने का अंदाज केवल इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि वे अपने चाचा की अंत्येष्टि के ठीक बाद पार्टी के दिवंगत विधायक सज्जन सिंह उइके को ‘कंधा’ देने (मुख्यमंत्री के चाचाजी पोहप सिंह चौहान और सज्जन सिंह उइके की अंत्येष्टि एक ही दिन 20 मार्च को हुई) सपत्नीक सज्जन सिंह के गांव भौरा पहुंचे। उन्होंने क्षेत्र को भरपूर वक्त दिया।घोड़ाडोंगरी विधानसभा सीट भाजपा का गढ़ मानी जाती है। सीट आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित है। यह सीट 1962 में अस्तित्व में आई थी। विधानसभा सीट बनने के बाद 1962 से 2013 तक कुल 12 चुनाव हुए हैं। आठ बार भाजपा (1980 के पहले बीजेपी…. जनता पार्टी और जनसंघ हुआ करती थी) जीती, जबकि चार मर्तबा कांग्रेस को मतदाताओं ने विधानसभा पहुंचाया। सज्जन सिंह उइके नहीं रहे, लेकिन दो साल के लगभग का उनका विधायक के रूप मेें दूसरा कार्यकाल बहुत सफल नहीं माना गया। उइके का उनके अपने परिवार से कोई राजनीतिक उत्तराधिकारी नहीं है। ऐसे में माना जा रहा है कि पार्टी अपने किसी पुराने विधायक अथवा नए चेहरे पर दांव खेलेगी। भाजपा से टिकट की दौड़ में आधा दर्जन के आसपास चेहरे हैं। तय है मुख्यमंत्री जिस चेहरे को पसंद करेंगे, टिकट उसे ही मिलेगा। उधर कांग्रेस में भी चेहरों की कमी नहीं है, लेकिन पार्टी में जबरदस्त बिखराव की वजह से उपचुनाव में सोनिया गांधी की पार्टी कितना दम दिखला पाएगी, यह देखने वाली बात होगी। जानकारों का कहना है, ना केवल घोड़ाडोंगरी बल्कि समूचे बैतूल जिले में ही कांग्रेस तार-तार हो चुके अस्तित्व को बचाने के संकट से जूझ रही है।भाजपा में एक घर से टिकट के तीन दावेदारघोड़ाडोंगरी सीट के लिये बीजेपी में टिकट के जो प्रबल दावेदार हैं उनमें एक ही परिवार के तीन सदस्य हैं। पूर्व विधायक गीता उइके का नाम संभावित उम्मीदवारों में सबसे ऊपर रखा जा रहा है। पटवा सरकार में संसदीय सचिव रहे रामजीलाल उइके ने भी दावेदारी के लिए ताल ठोक रखी है। रामजीलाल उइके, गीता उइके के पति हैं। रामजीलाल 1980 में पहली बार घोड़ाडोंगरी से चुनकर विधानसभा पहुंचे थे। 62 वर्षीय रामजीलाल ने 1990 में भी इस सीट को जीता था। कांग्रेस के प्रताप सिंह उइके ने 1993 और 1998 में उन्हें परास्त किया था। रामजीलाल 1998 के बाद से टिकट के लिए संघर्षरत हैं। गीता रामजीलाल उइके का बेटा दीपक उइके भी टिकट के दावेदारों में शुमार बताया जा रहा है। भाजपा में टिकट के अन्य गंभीर दावेदारों में शरबती वरकले, शक्ति गणपत धुर्वे और चरण धुर्वे के नाम भी चर्चाओं में हैं।सरकार वर्सेस लीडर…!उपचुनाव सरकार लड़ती है, यह कड़वी सच्चाई है। मुख्यमंत्री श्री चौहान की सक्रियता बता रही है कि भाजपा कोई कोर-कसर नहीं छोड़ेगी। घोड़ाडोंगरी उपचुनाव में कांग्रेस की ओर से कमान कौन संभालेगा…? पीसीसी चीफ के नाते पहला नाम अरूण यादव का है। हालांकि, टिकट किस धड़े के उम्मीदवार को मिलती है, सबकुछ उस पर निर्भर होगा। प्रदेश कांग्रेस कमेटी या प्रदेशाध्यक्ष श्री यादव बहुत ज्यादा उत्साह दिखाएंगे, इसकी संभावना कम है। संगठनात्मक और आर्थिक तौर पर पीसीसी की हालत खस्ता है। उम्मीदवार को जिताने के लिए पैसा कौन लगाएगा (बहाएगा)…? यह एक बड़ा सवाल होगा। कमलनाथ अपने किसी समर्थक के लिए टिकट में दिलचस्पी दिखलाते हैं तो तय है कि धन और बाहुबल के मान से मुकाबला बेहद रोचक होगा।कांग्रेस के पास खोने के लिए कुछ भी नहीं…घोड़ाडोंगरी में कांग्रेस के पास खोने के लिए कुछ नहीं है। यह सीट 2003 से भाजपा के पास है। उमा भारती की अगुवाई में 2003 के चुनाव में सीट सज्जन सिंह उइके ने भाजपा के लिए जीती थी। उनका टिकट 2008 में काट दिया गया था। गीता उइके को उम्मीदवार बनाया गया था। गीता उइके ने सीट जीत ली थी। साल 2013 के चुनाव में पार्टी ने गीता उइके की जगह टिकट फिर सज्जन को दिया था, वे कामयाब रहे थे। कुल मिलाकर साख भाजपा की दांव पर रहने वाली है।तीन अहम इश्यूजघोड़ाडोंगरी विधानसभा क्षेत्र में तीन मुद्दे जमकर गरमायेंगे। तीनों ही इश्यूज सत्तारूढ़ दल के लिए परेशानी पैदा करने वाले होंगे। पार्टी इनसे कैसे निपटेगी…? यह उसके कौशल पर निर्भर करेगा। विधानसभा क्षेत्र के चौपना ब्लॉक में 30 हजार के लगभग पट्टों का मसला काफी वक्त से लंबित है। विधानसभा और लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने इस मामले के निराकरण के जमकर वायदे किए थे, लेकिन चुनाव जीतने के बाद सत्तारूढ़ दल और सरकार ने ‘गौर’ नहीं फरमाया। चुनाव के पहले इस मसले को सुलझाने का प्रयास सरकार करेगी, यह तय माना जा रहा है। इसके अलावा भोपाल-बैतूल फोरलेन को लेकर भाजपा और सरकार से मतदाताओं द्वारा सवाल-जवाब किया जाना तय है। कांग्रेस इस मसले को जमकर तूल देगी। तीन साल पहले 1200 करोड़ रुपए के लगभग वाली इस परियोजना के लिए टेंडर हो गए थे। दक्षिण भारत की ट्रांसटॉय कंपनी ने ठेका लिया। तीन साल में परियोजना में काम की गति शून्य वाली बनी हुई है। ठेका निरस्त करने के प्रयास स्थानीय स्तर पर हुए, लेकिन भोपाल ने साथ नहीं दिया। विलंब और लेटलाली भरे रवैये से मतदाता खासे नाराज हैं। उपचुनाव में सत्तारूढ़ दल को वोटरों और कांग्रेस की ओर से चलने वाले तीरों को भोथरा करने की रणनीति अभी से बनाना होगी। तीसरा बड़ा मुद्दा पानी की जबरदस्त किल्लत होना है। गर्मी शुरू हो चुकी है। पानी का संकट काफी पहले से गहराया हुआ है। क्षेत्र के कई गांव ऐसे हैं, जहां लोगों को एक से तीन किलोमीटर तक का सफर हर दिन पानी के इंतजाम के लिए करना पड़ रहा है। ज्यादातर हैंडपंप बिगड़े हुए हैं। पेयजल के अन्य स्रोतों का हाल भी यही है। बिजली के भारी-भरकम बिल और किल्लत भी उपचुनाव में अहम मुद्दा होगा।असंतुष्टों की बड़ी फौज….!बैतूल जिले में भाजपा का एक बड़ा वर्ग अपने ही दल से नाखुश है। घोड़ाडोंगरी में भी पार्टी को ‘बत्ती’ देने को कई प्रभावी नेता तैयार बैठे हैं। इस नाराजगी को भुनाने के लिए कांग्रेस में कोई दमदार नेता नहीं होने की बात प्रेक्षक कर रहे हैं। प्रेक्षकों का दावा है कि कांग्रेस इस समीकरण को फोकस कर आगे बढ़े तो… सत्तारूढ़ दल का गणित गड़बड़ा सकता है।जून में संभावना इसलिए..!चुनाव आयोग के नियमों के अनुसार रिक्त होने वाली सीट पर चुनाव छह महीने में करा लिए जाने की अनिवार्यता है। घोड़ाडोंगरी के विधायक सज्जन सिंह उइके का निधन 19 मार्च 2016 को हुआ है। इस मान से 19 सितंबर तक का समय आयोग के पास है। मध्यप्रदेश में मानसून 15 जून के आसपास आता है। बारिश 15 सितंबर तक होती है। घोड़ाडोंगरी बैतूल जिले की सबसे बड़ी विधानसभा सीट है। क्षेत्र में काफी संख्या में मतदान केन्द्र ऐसे हैं जिनसे तेज बारिश में घोड़ाडोंगरी और जिला मुख्यालय से सड़क संपर्क टूट जाता है। विधानसभा के मतदान केन्द्रों तक बारिश में पहुंचना मुमकिन नहीं होगा। इस तथ्य के मद्देनजर चुनाव जून के पहले पखवाड़े में करा लिए जाने की संभावनाएं बलवती हैं।घोड़ाडोंगरी काचुनावी सफरचुनाव वर्ष विजयी उम्मीदवार दल1962 जगनू सिंह उइके जनसंघ1967 माडू जनसंघ1972 विश्राम सिंह मवासे कांग्रेस1977 जगनू सिंह उइके जनता पार्टी1980 रामजीलाल उइके भाजपा1985 मीरा धुर्वे कांग्रेस1990 रामजीलाल उइके भाजपा1993 प्रताप सिंह उइके कांग्रेस1998 प्रताप सिंह उइके कांग्रेस2003 सज्जन सिंह उइके भाजपा2008 गीता रामजीलाल उइके भाजपा2013 सज्जन सिंह उइके भाजपाचौदहवीं विधानसभा का आठवां उपचुनावमौजूदा विधानसभा का यह आठवां उपचुनाव होगा। इसके पहले सात उपचुनाव हुए हैं। सात में छह उपचुनाव भाजपा ने जीते हैं। एकमात्र बहोरीबंद सीट पर कांग्रेस को सफलता मिली। बहोरीबंद सीट अप्रैल 2014 में भाजपा विधायक प्रभात पांडे के निधन की वजह से रिक्त हुई थी। इस सीट पर भाजपा वापसी नहीं कर पाई थी और सीट कांग्रेस के लिये सौरभ सिंह ने जीत ली थी। अन्य छह चुनावों में दो सीटें विजय राघवगढ़ और मैहर ऐसी सीटें रहीं जिन पर हुए उपचुनाव में सफलता भाजपा को मिली। दोनों सीटें 2013 के चुनाव में कांग्रेस ने जीती थीं। विजय राघवगढ़ सीट संजय पाठक और मैहर सीट पर नारायण त्रिपाठी विजयी हुए थे। लोकसभा चुनाव के दौरान दोनों पाला बदलकर भाजपा के खेमे में आ गए थे। उपचुनाव में भाजपा ने इन्हें टिकट दिया और दोनों ने अपनी-अपनी सीटें बीजेपी के लिए जीत लीं। विदिशा, आगर, गरोठ और देवास सीटें भाजपा ने 2013 में जीतीं थीं। बाद में इन सीटों पर उपचुनाव में भी भाजपा के उम्मीदवार विजयी रहे।कमलनाथ बनाम अरुण यादवबैतूल जिले में कांग्रेस की टिकटों के वक्त कमलनाथ खासे सक्रिय होते हैं। उपचुनाव में क्या परिदृश्य बनेगा…? फिलहाल समय के गर्भ में है। कमलनाथ परंपरा के अनुसार अपने मोहरे को आगे बढ़ाते हैं तो उनके कट्टर अनुयायी पूर्व विधायक सुखदेव पांसे सीधे तौर पर मैदान में नजर आएंगे। टिकट में कमलनाथ ने दखलंदाजी नहीं की और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरूण यादव को दिल्ली ने फ्री हैंड दिया तो पूर्व विधायक एवं प्रदेश कांग्रेस के कोषाध्यक्ष विनोद डागा की पसंद के प्रत्याशी को टिकट मिलना तय माना जा रहा है। वैसे, फिर जीत की संभावना भी तुलनात्मक रूप से कम ही रहेगी, यह पार्टी के वरिष्ठ नेता भी जानते हैं। वैसे भी भाजपा से यह सीट छीन पाना आसान नहीं होगा।पूर्व मंत्री प्रतापसिंह उइके दौड़ में आगेकांग्रेस से टिकट के दावेदारों में पूर्व मंत्री प्रताप सिंह उइके दौड़ में सबसे आगे बताए जा रहे हैं। उनका टिकट कांग्रेस के बड़े नेताओं के इक्वेशन के मान से तय हो सकेगा। दिग्विजय सिंह ने खुद को मध्यप्रदेश की राजनीति से दूर कर रखा है। प्रेक्षकों का मत है कि दिग्विजय सिंह घोड़ाडोंगरी को लेकर सीधे तौर पर सक्रिय हो जाएं तो भाजपा की राह यहां बेहद कठिन हो जाएगी। वे मोर्चा संभालेंगे, इसकी संभावनाएं कतई नहीं हैं। कांग्रेस में टिकट के दावेदारों में प्रतापसिंह उइके की पत्नी सुलोचना उइके का नाम भी चर्चाओं में शुमार किया जा रहा है। प्रताप सिंह उइके का भतीजा राहुल उइके भी टिकट के दावेदारों में शुमार है। एक ही परिवार के तीन सदस्य, कांग्रेस में भी उम्मीदवारों की कतार में हैं। इनके अलावा ओमप्रकाश उइके भी गंभीर दावेदारों में शुमार हैं। कुल मिलाकर सबकुछ कमलनाथ के रुख पर निर्भर होगा। तमाम समीकरणों के बावजूद कांग्रेस के लिए राह बेहद कठिन और कांटों भरी होगी, यह तय है।
Dakhal News 22 April 2016

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