संघ ने ड्रेस बदली , स्वयं सेवक पहनेंगे फुल पेंट
संघ ने  ड्रेस बदली , स्वयं सेवक पहनेंगे फुल पेंट
दिग्विजय बोले संघ मानसिकता बदले राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ [आरएसएस ]की ड्रेस बदल गई है। रविवार को नागौर में हुई राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की नेशनल मीटिंग में सर सहकार्यवाह भैयाजी जोशी ने इस बदलाव का एलान किया। उन्होंने कहा, ''हम वक्त के साथ बदलते रहेंगे। खाकी हाफ पैंट के बदले स्वयंसेवक फुल भूरे रंग की पैंट पहनेंगे।'' लंबे वक्त के बाद ड्रेस में यह बदलाव हुआ है। इस बदलाव के बाद लखनऊ में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर तंज कसते हुए कहा कि इस संगठन ने अपना ‘ड्रेस कोड’ बदला है, लेकिन उसे अपनी विचारधारा भी बदलनी चाहिए।संघ की बैठक के बाद भौया जी जोशी ने कहा, ''जेएनयू की घटना इस देश के लिए चिंता का विषय है।''विश्वविद्यालय के परिसर में संसद पर हमला करने वाले व्यक्ति का सपोर्ट किया जा रहा है, इसे क्या मानें? ''देश के टुकड़े करने का नारा लगाने वाले समूह के नेतृत्व करने वालों को क्या कहेंगे?'' ''कानून अपना काम करेगा, सोचना ये चाहिए इस प्रकार के वातावरण को पनपने किसने दिया, पोषण किसने दिया? ये राजनीति का विषय नहीं है।''तीन बार बदल चुकी है ड्रेससंघ के राष्ट्रीय प्रचार प्रमुख डॉ. मनमोहन वैद्य ने कहा संघ में गणवेश (ड्रेस) के बदलाव को लेकर लंबे समय से चर्चा चल रही थी। 2010 में बैठक के दौरान ड्रेस में बदलाव को लेकर प्रस्ताव आया था, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला।इसी कारण इस पर पांच साल तक चर्चा करने का फैसला किया गया। मार्च, 2015 में फिर यही प्रपोजल आया।मनमोहन वैद्य ने बताया कि इससे पहले 3 बार ड्रेस में बदलाव हो चुका है। संघ के गठन के वक्त साल 1925 से लेकर 1939 तक संघ की ड्रेस पूरी तरह खाकी थी, 1940 में व्हाइट फुल स्लीव्स वाली शर्ट लागू की गई।1973 में लेदर शूज की जगह लॉन्ग बूट शामिल किए गए। हालांकि, रेक्सीन के शूज का भी ऑप्शन रखा गया था। 2010 में बदलाव हुआ। तब लेदर बेल्ट की जगह कैनवास बेल्ट लाया गया।संघ की देशभर में 50,000 शाखाएं हैं और हर शाखा में 10 स्वयंसेवक हैं। ऐसे में 5 लाख नई ड्रेस की जरूरत है। आरएसएस के ड्रेस कोड में आखिरी बार 2010 में बदलाव किए गए थे। लेदर बेल्ट की जगह कैनवास बेल्ट लाया गया था। संघ प्रचारक के मुताबिक, कैनवास बेल्ट को इम्प्लीमेंट करने में दो साल का समय लग गया था।इधर लखनऊ में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने संघ पर तंज कसते हुए कहा कि इस संगठन ने अपना ‘ड्रेस कोड’ बदला है, लेकिन उसे अपनी विचारधारा भी बदलनी चाहिए।दिग्विजय ने लखनऊ में संवाददाताओं से अनौपचारिक बातचीत में कहा कि संघ ने नागौर में अपनी बैठक में अपने कार्यकर्ताओं की पोशाक में बदलाव किया है। उसने ‘ड्रेस कोड’ बदला है, तो उसे अपनी विचारधारा भी बदलनी चाहिए।गौरतलब है कि संघ की बैठक में तय किया गया है कि अब कार्यकर्ता निकर की बजाय पैंट और शर्ट पहनेंगे। उन्होंने कहा कि संघ के लोग देश के हर विश्वविद्यालय से ‘राष्ट्रद्रोही तत्वों’ को बाहर निकालने की मांग कर रहे हैं। आखिर उन्हें राष्ट्रद्रोही का प्रमाणपत्र देने का अधिकार किसने दिया है।संघ की बैठक में देश में सभी नागरिक आजीवन स्वस्थ व निरोग रहें इस हेतु स्वास्थ्यपूर्ण जीवनशैली का अनुसरण एवं सर्व साधारण के लिये चिकित्सा की सुलभता परम आवश्यक है। आज देश में जहां अस्वास्थ्यकर जीवन शैली से उत्पन्न होनेवाले रोग तेजी से बढ़ रहे हैं, वहीं चिकित्सा सेवाएं महंगी होने से ये सामान्य नागरिकों की पहुंच से बाहर होती जा रही हैं। परिणामस्वरूप, अनगिनत परिवार ऋणग्रस्त हो रहे हैं अथवा परिवार के कार्यशील सदस्यों का रोगोपचार नहीं हो पाने की दशा में बड़ी संख्या में परिवारों का जीवन यापन भी कठिन हो रहा है। अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा इस स्थिति पर गहरी चिंता व्यक्त करती है।उत्तम स्वास्थ्य के लिए स्वास्थ्यवर्द्धक आहार-विहार व जीवनचर्या, सात्विकता, आध्यात्मिक वृत्ति, योग, दैनिक व्यायाम व स्वच्छता को महत्व दिया जाना आवश्यक है। शिशुओं का समयोचित टीकाकरण होना चाहिए। समाज सभी प्रकार के नशे से मुक्त हो यह भी अत्यन्त महत्वपूर्ण है। अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा का मानना है कि स्वयंसेवकों सहित देश के सभी जागरूक नागरिकों को इस दिशा में जनजागरण के व्यापक प्रयास करने चाहिए।चिकित्सा सेवाओं के बड़े नगरों में केन्द्रित होने से देशभर में दूरस्थ व ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सा सुविधाओं का भारी अभाव है। सभी स्तरों पर इन सुविधाओं व चिकित्साकर्मियों की भारी कमी और भर्ती, जांच व उपचार के लिए लम्बी प्रतीक्षा सूचियों के कारण बड़ी संख्या में लोग चिकित्सा सुविधा से वंचित रह जाते हैं। चिकित्सा शिक्षा की बढ़ती लागतें भी देश में चिकित्सा सेवाओं के मंहगा होने एवं उनकी गुणवत्ता व विश्वसनीयता में गिरावट का एक प्रमुख कारण है। देश में महिलाओं व शिशुओं सहित सभी नागरिकों को अच्छी गुणवत्ता वाली सब प्रकार की चिकित्सा सेवाएं उनके द्वारा वहन करने योग्य लागत पर सुलभ होनी चाहिये। इस हेतु देशभर में विशेषकर ग्रामीण व जनजातीय क्षेत्रों तक सभी प्रणालियों की सब प्रकार की चिकित्सा सेवाओं का सुचारू विस्तार आवश्यक है। चिकित्सा में निरन्तरता व विशेषज्ञ परामर्श हेतु सूचना प्रौद्योगिकी का भी प्रभावी उपयोग किया जाना चाहिए।देश में अनेक स्थानों पर विविध सामाजिक, धार्मिक व सामुदायिक संगठनों द्वारा दानशीलता व परोपकार के भाव से संचालित चिकित्सालयों में सामान्य समाज का उपचार अत्यन्त प्रभावी व न्यायसंगत रीति से किया जा रहा है। समाज के ऐसे अनुकरणीय प्रयासों में भी शासकीय सहयोग का विस्तार आवश्यक है। प्रतिनिधि सभा ऐसे सभी प्रयासों की सराहना करते हुए देश के उद्यम समूहों, स्वैच्छिक व सामाजिक संगठनों व दानशील न्यासों आदि का आवाहन करती है कि उन्हें इस दिशा में और आगे आना चाहिए। इस दृष्टि से सार्वजनिक व सामुदायिक सहभागिता एवं सहकारी संस्थानों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा स्वयंसेवकों सहित सभी देशवासियों, स्वैच्छिक संगठनों व सरकार का आवाहन करती है कि सभी नागरिकों के जीवन को निरामय बनाने हेतु स्वास्थ्यप्रद जीवनचर्या, शिशु व जननी स्वास्थ्य रक्षा और कुपोषण व नशा विमुक्ति हेतु समाज जागरण के प्रयास करें। केन्द्र व राज्य सरकारों से आग्रह है कि सभी प्रकार की स्वास्थ्य सेवाओं की सर्वसाधारण के लिए सुलभता हेतु पर्याप्त संसाधन आवंटन करते हुए इन सेवाओं में अपेक्षित ढांचागत, नीतिगत व प्रक्रियागत सुधार करने चाहिए। इसके लिए देश में सभी प्रकार की चिकित्सा पद्धतियों के समन्वित विस्तार, नियमन, शिक्षण व अनुसन्धान को समुचित प्रोत्साहन देवें तथा नियामक व्यवस्था व वैधानिक प्रावधानों को पारदर्शिता पूर्वक लागू करें।गुणवत्तापूर्ण एवं सस्ती शिक्षा सबको सुलभ होबैठक में प्रस्ताव पास कर कहा गया कि किसी भी राष्ट्र व समाज के सर्वांगीण विकास में शिक्षा एक अनिवार्य साधन है, जिसके संपोषण, संवर्द्धन व संरक्षण का दायित्व समाज व सरकार दोनों का है। शिक्षा छात्र के अन्दर बीज रूप में स्थित गुणों व संभावनाओं को उभारते हुए उसके व्यक्तित्व के समग्र विकास का साधन है। एक लोक कल्याणकारी राज्य में शासन का यह मूलभूत दायित्व है कि वह प्रत्येक नागरिक को रोटी, कपड़ा, मकान और रोजगार के साथ-साथ शिक्षा व चिकित्सा की उपलब्धता सुनिश्चित करे।भारत सर्वाधिक युवाओं का देश है। इस युवा की अभिरूचि, योग्यता व क्षमता के अनुसार उसे उचित शिक्षा के निर्बाध अवसर उपलब्ध कराकर देश के वैज्ञानिक, तकनीकी, आर्थिक व सामाजिक विकास में सहभागी बनाना समाज एवं सरकार का दायित्व है। आज सभी अभिभावक अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाना चाहते हैं। जहां शिक्षा प्राप्त करनेवाले छात्रों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है वहां उन सबके लिए सस्ती व गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पाना दुर्लभ हो गया है। विगत वर्षों में सरकार द्वारा शिक्षा में अपर्याप्त आवंटन और नीतियों में शिक्षा को प्राथमिकता के अभाव के कारण लाभ के उद्देश्य से काम करनेवाली संस्थाओं को खुला क्षेत्र मिल गया है। आज गरीब छात्र समुचित व गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा से वंचित हो रहे हैं। परिणामस्वरूप समाज में बढ़ती आर्थिक विषमता समूचे राष्ट्र के लिए चिंता का विषय है।वर्तमान शैक्षिक परिदृश्य में सरकार को पर्याप्त संसाधनों की उपलब्धता तथा उचित नीतियों के निर्धारण के अपने दायित्व के लिए आगे आना चाहिए। शिक्षा के बढ़ते व्यापारीकरण पर रोक लगनी चाहिए ताकि छात्रों को महंगी शिक्षा प्राप्त करने को बाध्य न होना पड़े।सरकार द्वारा शिक्षा संस्थानों के स्तर, ढांचागत संरचना, सेवाशर्ते, शुल्क व मानदण्ड़ आदि निर्धारण करने की स्वायत्त एवं स्व-नियमनकारी व्यवस्था को सुदृढ़ किया जाए ताकि नीतियों का पारदर्शितापूर्वक क्रियान्वयन हो सके।अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा का यह मानना है कि प्रत्येक बालक-बालिका को मूल्यपरक, राष्ट्र भाव से युक्त, रोजगारोन्मुख तथा कौशल आधारित शिक्षा समान अवसर के परिवेश में प्राप्त होनी चाहिए। राजकीय व निजी विद्यालयों के शिक्षकों का स्तर सुधारने हेतु शिक्षकों को यथोचित प्रशिक्षण, समुचित वेतन तथा उनकी कर्त्तव्य परायणता दृढ़ करना भी अतिआवश्यक है।परम्परा से अपने देश में सामान्य व्यक्ति को सस्ती व गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराने में समाज ने महती भूमिका निभाई है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में भी सभी धार्मिक-सामाजिक संगठनों, उद्योग समूहों, शिक्षाविदों व प्रमुख व्यक्तियों को अपना दायित्व समझकर इस दिशा में आगे आना चाहिए।
Dakhal News 22 April 2016

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