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SC फैसले का स्वागत ,OBC को मिले अधिकार पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने ओबीसी आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद कहा की ओबीसी आरक्षण का पूरा लाभ ओबीसी वर्ग को अभी भी नहीं मिलेगा हम पहले दिन से ही कह रहे थे कि मध्यप्रदेश में बगैर ओबीसी आरक्षण के पंचायत और नगरीय निकाय के चुनाव नहीं होना चाहिएसरकार इसको लेकर सभी आवश्यक कदम उठाये कमलनाथ ने कहा सुप्रीम कोर्ट ने प्रदेश में ओबीसी आरक्षण के मामले में राहत प्रदान करने का निर्णय दिया है उसका हम स्वागत करते हैं लेकिन हमारी सरकार में 14% से बढ़ाकर 27% किये गए ओबीसी आरक्षण का पूरा लाभ ओबीसी वर्ग को अभी भी नहीं मिलेगा क्योंकि निर्णय में यह उल्लेखित है कि आरक्षण 50% से अधिक नहीं होना चाहिए हमें ओबीसी वर्ग का भला करने की कोई उम्मीद शिवराज सरकार से नहीं थी इसलिए हमने पहले से ही यह निर्णय ले लिया है कि हम निकाय चुनाव में 27% टिकट ओबीसी वर्ग को देंगे और इस वर्ग को उनका पूरा अधिकार देंगे हम अपना वादा हर हाल में निभाएंगे हमारा तो दृढ़ संकल्प है कि ओबीसी वर्ग को 27% आरक्षण का हक़ मिले उसके लिए हम हर लड़ाई लड़ेंगे
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शिवराज: ये ऐतिहासिक दिन ,सत्य की जीत हुई मिश्रा : SC का आभार ,कांग्रेस ने पापा किया था सर्वोच्च न्यायालय ने ओबीसी आरक्षण के साथ चुनाव कराने का निर्देश दिया है जिसको लेकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा आज का दिन ऐतिहासिक दिन है और मैं अभिभूत हूंअंततः सत्य की विजय हुई है और फिर यह सिद्ध हुआ की सत्य पराजित नहीं हो सकता वहीं ओबीसी आरक्षण के साथ चुनाव को लेकर गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने इस पर प्रसन्नता जाहिर की है निकाय चुनाव ओबीसी आरक्षण के साथ कराये जाने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर सीएम शिवराज सिंह ने कहा की फिर यह सिद्ध हो गया है की सत्य पराजित नहीं हो सकता सर्वोच्च न्यायालय को मैं, प्रणाम करता हूं हमने यही कहा था हम चुनाव चाहते है लेकिन ओबीसी आरक्षण के साथ कांग्रेस ने पाप किया था चुनाव तो पहले ही ओबीसी आरक्षण के साथ हो रहे थे लेकिन, कांग्रेस के लोग ही सर्वोच्च न्यायालय के पास जा रहे थे जिसके कारण यह फैसला हुआ था कि, ओबीसी आरक्षण के बिना ही चुनाव हों हमने हर संभव प्रयास किए कोई कसर नहीं छोड़ी ट्रिपल टी टेस्ट के लिए, हमने ओबीसी आयोग का गठन किया हमने निकाय वार रिपोर्ट तैयार की और वह रिपोर्ट सर्वोच्च न्यायालय में प्रस्तुत की उन्होंने कहा कांग्रेस के लोग खुशियां मनाते रहे थे कि अब ओबीसी का आरक्षण नहीं होगा वहीं गृह मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा ने उच्चतम न्यायालय का आभार जताया और सीएम शिवराज का धन्यवाद कियामिश्रा ने कहा हमारी सरकार की जीत हुई हमारी मेहनत रंग लाई मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में हमने विधि विशेषज्ञों से मिलकर अपनी बात तथ्यों के साथ माननीय न्यायालय के समक्ष रखी थी कांग्रेस ओबीसी आरक्षण को रुकवाने के लिए कोर्ट गई थी
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पानी के लिए इंतज़ार में खड़े लोगों बीच पहुंचे जननायक की तरह सहज भाव से सुनी समस्या अपने अलग अंदाज के लिए जाने जाते हैं शिवराज यूं ही नहीं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पाओं पाओं वाले भैया कहते हैं शिवराज ने जन नायक होने की कई बार मिसाल पेश की है ऐसा ही वाक्या एक बार फिर भोपाल में देखने को मिला जब पानी के इंतजार में लोगों को खड़ा देख शिवराज सिंह चौहान ने खुद अपना काफिला रोक लिया और लोगों के बीच पहुंच गए उन्होंने लोगों की पानी की समस्या को सुना और तत्काल निगम आयुक्त को फोन कर समस्या को सुधारने के निर्देश दिए शिवराज का यही अंदाज उन्हें दूसरे नेताओं से उनको अलग करता है शिवराज सिंह चौहान वाकय में जमीन से जुड़े नेता हैं वे लोगों की समस्या जानते हैं बड़े ही सहज तरीके से आमजन उनके पास समस्या लेकर जाते हैं जिनका वे निराकरण करते हैं मुख्यमंत्री बनने से पहले भी वे हमेशा लोगों के बीच पहुँच जाते थे और लोगों से समस्या को लेकर चर्चा करते थेअभी वे उतने ही सहज और सरल है दरअसल भोपाल के नेहरू नगर के शबरी नगर से शिवराज का काफिला गुजर रहा था की अचानक उनकी नजर पानी के इन्तजार में खड़े लोगों पर पड़ी उन्होंने तत्काल काफिले को रोकने का निर्देश दिया और खुद लोगों के बीच पहुँच गए उन्होंने लोगों की समस्या सुनी लोगों ने खुद की समस्याएं शिवराज को ऐसे बताई जैसे शिवराज से उनकी बरसों से जान पहचान हो और शिवराज ने भी उसी धैर्यता के साथ लोगों को सुना लोगों ने बताया की करीब एक हफ्ते से पानी नहीं आ रहा था और अब जो पानी आ रहा है वो मटमैला है पीने योग्य नहीं है इस पर शिवराज ने वहीं से निगम आयुक्त को फोन लगा दिया शिवराज ने जल्द से जल्द जलापूर्ति व्यवस्था सुधारने के निर्देश दिए
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फिर कोर्ट जाकर OBC के साथ विश्वासघात करेंगे गृहमंत्री डॉक्टर नरोत्तम मिश्रा ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी पर तंज कस्ते हुए कहा कीराहुल गांधी से और क्या उम्मीद की जा सकती है भारत की श्रीलंका से तुलना करना बहुत ही हास्यास्पद है उन्होंने पूर्व सीएम कमलनाथ पर निशाना साधते हुए कहा की कमलनाथ फिर अदालत जाने की बात कह रहे हैं कांग्रेस पिछड़ा वर्ग का अहित करने पर उतारू हैनरोत्तम मिश्रा ने कहा कमलनाथ जनता की अदालत से क्यों भाग रहे हैं वे दोबारा न्यायालय जाने की बात कह कर एक बार फिर से पिछड़ा वर्ग का अहित करने पर उतारू है कमलनाथ जब पहली बार कोर्ट गए थे अदालत में निर्वाचन शून्य करा दिया था मुख्यमंत्री शिवराज की दृढ़ इच्छाशक्ति और परिश्रम से ही हम पुनः आरक्षण के साथ स्थाई निकाय निर्वाचन कराने जा रहे हैं कमलनाथ का पुनः कोर्ट में जाने संबंधी बयान पिछड़ो के साथ साथ विश्वासघात है जब सरकार आरक्षण के साथ चुनाव कराने जा रही थी तब विवेक तनखा कोर्ट क्यों गए थे और जाने के बाद उन्होंने निर्वाचन शून्य क्यों करायानरोत्तम मिश्रा ने कहा मध्यप्रदेश में हमारे आराध्य के प्रति अनुचित टिप्पणी करने वालों को जेल भेजेंगेभूलकर भी कोई ऐसी गलती नहीं करें बड़ी मार करतार की , दे मन से उतार कांग्रेस को जनता अपने मन से उतार उतार चुकी है अब कांग्रेस कुछ भी कर ले कुछ नहीं होगा कमलनाथ जी की कलई खुल चुकी है
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-प्रो.संजय द्विवेदी भारत में ऐसा क्या है जो उसे खास बनाता है? वह कौन सी बात है जिसने सदियों से उसे दुनिया की नजरों में आदर का पात्र बनाया और मूल्यों को सहेजकर रखने के लिए उसे सराहा। निश्चय ही हमारी परिवार व्यवस्था वह मूल तत्व है, जिसने भारत को भारत बनाया। हमारे सारे नायक परिवार की इसी शक्ति को पहचानते हैं। रिश्तों में हमारे प्राण बसते हैं, उनसे ही हम पूर्ण होते हैं। आज कोरोना की महामारी ने जब हमारे सामने गहरे संकट खड़े किए हैं तो हमें सामाजिक और मनोवैज्ञानिक संबल हमारे परिवार ही दे रहे हैं। व्यक्ति कितना भी बड़ा हो जाए उसका गांव, घर, गली, मोहल्ला, रिश्ते-नाते और दोस्त उसकी स्मृतियां का स्थायी संसार बनाते हैं। कहा जाता है जिस समाज स्मृति जितनी सघन होती है, जितनी लंबी होती है, वह उतना ही श्रेष्ठ समाज होता है। परिवार नाम की संस्था दुनिया के हर समाज में मौजूद हैं। किंतु परिवार जब मूल्यों की स्थापना, बीजारोपण का केंद्र बनता है, तो वह संस्कारशाला हो जाता है। खास हो जाता है। अपने मूल्यों, परंपराओं को निभाकर समूचे समाज को साझेदार मानकर ही भारतीय परिवारों ने अपनी विरासत बनाई है। पारिवारिक मूल्यों को आदर देकर ही श्री राम इस देश के सबसे लाड़ले पुत्र बन जाते हैं। उन्हें यह आदर शायद इसलिए मिल पाया, क्योंकि उन्होंने हर रिश्ते को मान दिया, धैर्य से संबंध निभाए। वे रावण की तरह प्रकांड विद्वान और विविध कलाओं के ज्ञाता होने का दावा नहीं करते, किंतु मूल्याधारित जीवन के नाते वे सबके पूज्य बन जाते हैं, एक परंपरा बनाते हैं। अगर हम अपनी परिवार परंपरा को निभा पाते तो आज के भारत में वृद्धाश्रम न बन रहे होते। पहले बच्चे अनाथ होते थे आज के दौर में माता-पिता भी अनाथ होने लगे हैं। यह बिखरती भारतीयता है, बिखरता मूल्यबोध है। जिसने हमारी आंखों से प्रेम, संवेदना, रिश्तों की महक कम कर भौतिकतावादी मूल्यों को आगे किया है। न बढ़ाएं फासले, रहिए कनेक्टः आज के भारत की चुनौतियां बहुत अलग हैं। अब भारत के संयुक्त परिवार आर्थिक, सामाजिक कारणों से एकल परिवारों में बदल रहे हैं। एकल परिवार अपने आप में कई संकट लेकर आते हैं। जैसा कि हम देख रहे हैं कि इन दिनों कई दंपती कोरोना से ग्रस्त हैं, तो उनके बच्चे एकांत भोगने के साथ गहरी असुरक्षा के शिकार हैं। इनमें माता या पिता, या दोनों की मृत्यु होने पर अलग तरह के सामाजिक संकट खड़े हो रहे हैं। संयुक्त परिवार हमें इस तरह के संकटों से सुरक्षा देता था और ऐसे संकटों को आसानी से झेल जाता था। बावजूद इसके समय के चक्र को पीछे नहीं घुमाया जा सकता। ऐसे में यह जरूरी है कि हम अपने परिजनों से निरंतर संपर्क में रहें। उनसे आभासी माध्यमों, फोन आदि से संवाद करते रहें, क्योंकि सही मायने में परिवार ही हमारा सुरक्षा कवच है। आमतौर सोशल मीडिया के आने के बाद हम और ‘अनसोशल’ हो गए हैं। संवाद के बजाए कुछ ट्वीट करके ही बधाई दे देते हैं। होना यह चाहिए कि हम फोन उठाएं और कानोंकान बात करें। उससे जो खुशी और स्पंदन होगा, उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। परिजन और मित्र इससे बहुत प्रसन्न अनुभव करेगें और सारा दिन आपको भी सकारात्मकता का अनुभव होगा। संपर्क बनाए रखना और एक-दूसरे के काम आना हमें अतिरिक्त उर्जा से भर देता है। संचार के आधुनिक साधनों ने संपर्क, संवाद बहुत आसान कर दिया है। हम पूरे परिवार की आनलाईन मीटिंग कर सकते हैं, जिसमें दुनिया के किसी भी हिस्से से परिजन हिस्सा ले सकते हैं। दिल में चाह हो तो राहें निकल ही आती हैं। प्राथमिकताए तय करें तो व्यस्तता के बहाने भी कम होते नजर आते हैं। जरूरी है एकजुटता और सकारात्मकताः सबसे जरूरी है कि हम सकारात्मक रहें और एकजुट रहें। एक-दूसरे के बारे में भ्रम पैदा न होने दें। गलतफहमियां पैदा होने से पहले उनका आमने-सामने बैठकर या फोन पर ही निदान कर लें। क्योंकि दूरियां धीरे-धीरे बढ़ती हैं और एक दिन सब खत्म हो जाता है। खून के रिश्तों का इस तरह बिखरना खतरनाक है क्योंकि रिश्ते टूटने के बाद जुड़ते जरूर हैं, लेकिन उनमें गांठ पड़ जाती है। सामान्य दिनों में तो सारा कुछ ठीक लगता है। आप जीवन की दौड़ में आगे बढ़ते जाते हैं, आर्थिक समृद्धि हासिल करते जाते हैं। लेकिन अपने पीछे छूटते जाते हैं। किसी दिन आप अस्पताल में होते हैं, तो आसपास देखते हैं कि कोई अपना आपकी चिंता करने वाला नहीं है। यह छोटा सा उदाहरण बताता है कि हम कितने कमजोर और अकेले हैं। देखा जाए तो यह एकांत हमने खुद रचा है और इसके जिम्मेदार हम ही हैं। संयुक्त परिवारों की परिपाटी लौटाई नहीं जा सकती, किंतु रिश्ते बचाए और बनाए रखने से हमें पीछे नहीं हटना चाहिए। इसके साथ ही सकारात्मक सोच बहुत जरूरी है। जरा-जरा सी बातों पर धीरज खोना ठीक नहीं है। हमें क्षमा करना और भूल जाना आना ही चाहिए। तुरंत प्रतिक्रिया कई बार घातक होती है। इसलिए आवश्यक है कि हम धीरज रखें। देश का सबसे बड़ा सांस्कृतिक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ऐसे ही पारिवारिक मूल्यों की जागृति के कुटुंब प्रबोधन के कार्यक्रम चलाता है। पूर्व आईएएस अधिकारी विवेक अत्रे भी लोगों को पारिवारिक मूल्यों से जुड़े रहने प्रेरित कर रहे हैं। वे साफ कहते हैं ‘भारत में परिवार ही समाज को संभालता है।’ जुड़ने के खोजिए बहानेः हमें संवाद और एकजुटता के अवसर बनाते रहने चाहिए। बात से बात निकलती है और रिश्तों में जमी बर्फ पिधल जाती है। परिवार के मायने सिर्फ परिवार ही नहीं हैं, रिश्तेदार ही नहीं हैं। वे सब हैं जो हमारी जिंदगी में शामिल हैं। उसमें हमें सुबह अखबार पहुंचाने वाले हाकर से लेकर, दूध लाकर हमें देने वाले, हमारे कपड़े प्रेस करने वाले, हमारे घरों और सोसायटी की सुरक्षा, सफाई करने वाले और हमारी जिंदगी में मदद देने वाला हर व्यक्ति शामिल है। अपने सुख-दुख में इस महापरिवार को शामिल करना जरूरी है। इससे हमारा भावनात्मक आधार मजूबूत होता है और हम कभी भी अपने आपको अकेला महसूस नहीं करते। कोरोना के संकट ने हमें सोचने के लिए आधार दिया है, एक मौका दिया है। हम सबने खुद के जीवन और परिवार में न सही, किंतु पूरे समाज में मृत्यु को निकट से देखा है। आदमी की लाचारगी और बेबसी के ऐसे दिन शायद भी कभी देखे गए हों। इससे सबक लेकर हमें न सिर्फ सकारात्मकता के साथ जीना सीखना है बल्कि लोगों की मदद के लिए हाथ बढ़ाना है। बड़ों का आदर और अपने से छोटों का सम्मान करते हुए सबको भावनात्मक रिश्तों की डोर में बांधना है। एक दूसरे को प्रोत्साहित करना, घर के कामों में हाथ बांटना, गुस्सा कम करना जरूरी आदतें हैं, जो डालनी होंगीं। एक बेहतर दुनिया रिश्तों में ताजगी, गर्माहट,दिनायतदारी और भावनात्मक संस्पर्श से ही बनती है। क्या हम और आप इसके लिए तैयार हैं?
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(प्रवीण कक्कड़) एक जमाने में कहा जाता था कि भारतीय समाज में 3 सी सबसे ज्यादा प्रचलित हैं। सिनेमा, क्रिकेट और क्राइम। लेकिन आज के सार्वजनिक संवाद को देखें तो इन तीनों से ज्यादा लोकप्रिय अगर कोई चीज है तो वह है पत्रकारिता। प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल अपने इन तीनों स्वरूपों में पत्रकारिता 24 घंटे सूचनाओं की बाढ़ समाज तक पहुंचाती है और लोगों की राय बनाने में खासी मदद करती है। जैसे-जैसे समाज जटिल होता जाता है, वैसे वैसे लोगों के बीच सीधा संवाद कम होता जाता है और वे सार्वजनिक या उपयोगी सूचनाओं के लिए मीडिया पर निर्भर होते जाते हैं। उनके पास जो सूचनाएं ज्यादा संख्या में पहुंचती हैं, लोगों को लगता है कि वही घटनाएं देश और समाज में बड़ी संख्या में हो रही हैं। जो सूचनाएं मीडिया से छूट जाती हैं उन पर समाज का ध्यान भी कम जाता है। आजकल महत्व इस बात का नहीं है कि घटना कितनी महत्वपूर्ण है, महत्व इस बात का हो गया है कि उस घटना को मीडिया ने महत्वपूर्ण समझा या नहीं। जब मीडिया पर इतना ज्यादा एतबार है तो मीडिया की जिम्मेदारी भी पहले से कहीं अधिक है। आप सब को अलग से यह बताने की जरूरत नहीं है कि कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के अलावा मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है। मजे की बात यह है कि बाकी तीनों स्तंभ की चर्चा हमारे संविधान में अलग से की गई है और उनके लिए लंबे चौड़े प्रोटोकॉल तय हैं। लेकिन मीडिया को अलग से कोई अधिकार नहीं दिए गए हैं। संविधान में अभिव्यक्ति की आजादी का जो अधिकार प्रत्येक नागरिक को हासिल है, उतना ही अधिकार पत्रकार को भी हासिल है। बाकी तीन स्तंभ जहां संविधान और कानून से शक्ति प्राप्त करते हैं, वही मीडिया की शक्ति का स्रोत सत्य, मानवता और सामाजिक स्वीकार्यता है। अगर मीडिया के पास नैतिक बल ना हो तो उसकी बात का कोई मोल नहीं है। इसी नैतिक बल से हीन मीडिया के लिए येलो जर्नलिज्म या पीत पत्रकारिता शब्द रखा गया है। और जो पत्रकारिता नैतिक बल पर खड़ी है, वह तमाम विरोध सहकर भी सत्य को उजागर करती है। संयोग से हमारे पास नैतिक बल वाले पत्रकारों की कोई कमी नहीं है। मीडिया को लेकर आजकल बहुत तरह की बातें कही जाती हैं। इनमें से सारी बातें अच्छी हो जरूरी नहीं है। पत्रकारिता बहुत से मोर्चों पर दृढ़ता से खड़ी है, तो कई मोर्चों पर चूक भी जाती है। आप सबको पता ही है की बर्नार्ड शॉ जैसे महान लेखक मूल रूप से पत्रकार ही थे। और बट्रेंड रसैल जैसे महान दार्शनिक ने कहा है कि जब बात निष्पक्षता की आती है तो असल में सार्वजनिक जीवन में उसका मतलब होता है कमजोर की तरफ थोड़ा सा झुके रहना। यानी कमजोर के साथ खड़ा होना पत्रकारिता की निष्पक्षता का एक पैमाना ही है। पत्रकारिता की चुनौतियों को लेकर हम आज जो बातें सोचते हैं, उन पर कम से कम दो शताब्दियों से विचार हो रहा है। भारत में तो हिंदी के पहला अखबार उदंत मार्तंड के उदय को भी एक सदी बीत चुकी है। टाइम्स ऑफ इंडिया और हिंदू जैसे अखबार एक सदी की उम्र पार कर चुके हैं। दुनिया के जाने माने लेखक जॉर्ज ऑरवेल ने आधी सदी पहले एक किताब लिखी थी एनिमल फार्म। किताब तो सोवियत संघ में उस जमाने में स्टालिन की तानाशाही के बारे में थी लेकिन उसकी भूमिका में उन्होंने पत्रकारिता की चुनौतियां और उस पर पड़ने वाले दबाव का विस्तार से जिक्र किया है। जॉर्ज ऑरवेल ने लिखा की पत्रकारिता के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह नहीं है कि कोई तानाशाह उसे बंदूक की नोक पर दबा लेगा या फिर कोई धन्ना सेठ पैसे के बल पर पत्रकारिता को खरीद लेगा लेकिन इनसे बढ़कर जो चुनौती है वह है भेड़ चाल। यानी एक अखबार या एक मीडिया चैनल जो बात दिखा रहा है सभी उसी को दिखा रहे हैं। अगर किसी सरकार ने एक विषय को जानबूझकर मीडिया के सामने उछाल दिया और सारे मीडिया संस्थान उसी को कवर करते चले जा रहे हैं, यह सोचे बिना कि वास्तव में उसका सामाजिक उपयोग कितना है या कितना नहीं। बड़े संकोच के साथ कहना पड़ता है कि कई बार भारतीय मीडिया भी इस नागपाश में फंस जाता है। सारे अखबारों की हैडलाइन और सारे टीवी चैनल पर एक से प्राइमटाइम दिखाई देने लगते हैं। भारत विविधता का देश है, अलग-अलग आयु वर्ग के लोग यहां रहते हैं। उनकी महत्वाकांक्षा अलग है और उनके भविष्य के सपने भी जुदा हैं। ऐसे में पत्रकार की जिम्मेदारी है कि हमारी इन महत्वाकांक्षाओं को उचित स्थान अपनी पत्रकारिता में दें। वे संविधान और लोकतंत्र के मूल्यों को मजबूत करें। कमजोर का पक्ष ले। देश की आबादी का 85% हिस्सा मजदूर और किसान से मिलकर बनता है। ऐसे में इस 85% आबादी को भी पत्रकारिता में पूरा स्थान मिले। मैंने तो बचपन से यही सुना है कि पुरस्कार मिलने से पत्रकारों का सम्मान नहीं होता, उनके लिए तो लीगल नोटिस और सत्ता की ओर से मिलने वाली धमकियां असली सम्मान होती हैं। राजनीतिक दल तो लोकतंत्र का अस्थाई विपक्ष होते हैं, क्योंकि चुनाव के बाद जीत हासिल करके विपक्षी दल सत्ताधारी दल बन जाता है और जो कल तक कुर्सी पर बैठा था, वह आज विपक्ष में होता है। लेकिन पत्रकारिता तो स्थाई विपक्ष होती है। जो सत्ता की नाकामियों और उसके काम में छूट गई गलतियों को सार्वजनिक करती है ताकि भूल को सुधारा जा सके और संविधान और लोकतंत्र के मूल्यों के मुताबिक राष्ट्र का निर्माण किया जा सके। मध्यप्रदेश इस मामले में हमेशा से ही बहुत आगे रहा है प्रभाष जोशी और राजेंद्र माथुर जैसे प्रसिद्ध संपादक मध्य प्रदेश की पवित्र भूमि की ही देन हैं। आज भी राष्ट्रीय पत्रकारिता के क्षेत्र पर मध्य प्रदेश के पत्रकार अपनी निष्पक्षता की छाप छोड़ रहे हैं। आशा करता हूं 21वीं सदी के तीसरे दशक में भारतीय पत्रकारिता उन बुनियादी मूल्यों का और दृढ़ता से पालन करेगी जिन्हें हम शास्वत मानवीय मूल्य कहते हैं।
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जामा मस्जिद के पुरातात्विक सर्वेक्षण की मांग संस्कृति बचाओ मंच ने गृह मंत्री डॉक्टर नरोत्तम मिश्रा को ज्ञापन दिया है और मुख्यमंत्री से की मांग की भोपाल की जामा मस्जिद में शिव मंदिर पुरातत्व सर्वेक्षण करवाया जाय संस्कृति बचाओ मंच शीघ्र कोर्ट में इसके लिए याचिका दायर करेगा ज्ञानवापी मस्जिद के बाद अब भोपाल में भी जामा मस्जिद को लेकर सर्वे की बात उठने लगी है जामा मस्जिद भोपाल के चौक क्षेत्र में स्थित है यह सुन्दर मस्जिद लाल रंग के पत्थरों से निर्मित है इसका निर्माण भोपाल राज्य की 8वीं शासिका नवाब कुदसिया बेगम ने 1832 ई. में शुरू करवाया थाजामा मस्जिद का कार्य 1857 ई. में बनकर पूरा हुआ था सुल्तान जहां बेगम ने 'हयाते कुदसी' में इस बात का ज़िक्र किया है कि जामा मस्जिद का निर्माण उस स्थान पर हुआ जहां हिन्दुओं का एक पुराना मंदिर था जो सभा मण्डल के नाम से जाना जाता था मस्जिद को लेकर संस्कृति बचाओ मंच के अध्यक्ष चंद्रशेखर तिवारी ने मस्जिद के सर्वेक्षण की मांग सीएम से की है
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1700 करोड़ किसानो के खाते में हुए ट्रांसफर मंदसौर में मुख्यमंत्री किसान कल्याण योजना अंतर्गत लगभग 82 लाख कृषक परिवारों को 1700 करोड़ रुपये से अधिक का भुगतान किया गया मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने रीवा जिले से सिंगल क्लिक के माध्यम से कृषको के खाते में ये राशि स्थानांतरित की इसके साथ ही शिवराज सिंह ने और कई बड़ी घोषणाएं की मुख्यमंत्री किसान कल्याण योजना का लाभ किसानों को मिला सीएम शिवराज सिंह चौहान ने 82 लाख कृषक परिवारों के खाते में सिंगल क्लिक से पैसे डाले करीब 1700 करोड़ रूपये किसानो डाले गए इस अवसर पर मंदसौर मंडी में लाइव कार्यक्रम में किसान मोर्चा जिला महामंत्री योगेन्द्र सिंह चुण्डावत किसान मोर्चा जिला मंत्री शिवनारायण गुर्जर, किसान मोर्चा उत्तर मंडल अध्यक्ष जुझारलाल धनगर सहित हितग्राही किसान मौजूद रहे शिवराज ने गांय पालने वाले कृषकों को 900 रुपये प्रति माह देने की घोषणा की है इसके साथ ही मुख्यमंत्री भुआवासीय योजना पंचायत चुनाव के बाद शुरू करने की बात कही मंदसौर मंडी में किसान सम्मान निधी के कार्यक्रम में किसान लाइव के माध्यम से जुड़े
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बॉलीवुड की 'धक-धक' गर्ल माधुरी दीक्षित आज अपना 55 वां जन्मदिन मना रही हैं। इस खास मौके पर उनके पति डॉ. श्रीराम नेने ने उन्हें सोशल मीडिया पर खास अंदाज में जन्मदिन की बधाई दी है। डॉ. श्रीराम नेने ने अपनी और माधुरी की प्यारी तस्वीर शेयर की है और इसके साथ ही प्यारा नोट लिखा है। श्रीराम नेने ने लिखा है-'दुनिया की सबसे खूबसूरत महिला को जन्मदिन की बधाई, मेरी पत्नी, मेरी आत्मा, मेरी सबसे अच्छी दोस्त। मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूं और तुम्हें जिंदगी में सर्वश्रेष्ठ मिले। आपको शानदार जन्मदिन और आने वाले कई अद्भुत वर्षों की शुभकामनाएं।' डॉ. नेने की इस पोस्ट को फैंस पसंद कर रहे हैं और इसपर प्रतिक्रिया देते हुए माधुरी दीक्षित को जन्मदिन की बधाई भी दे रहे हैं। गौरतलब है कि नब्बे के दशक में अपने शानदार अभिनय से बड़े पर्दे पर राज करने वाली मशहूर अभिनेत्री माधुरी दीक्षित ने 17 अक्टूबर, 1999 को अमेरिकी मूल के डॉ. श्रीराम नेने से शादी की थी। माधुरी और श्रीराम नेने के दो बेटे रयान और अरिन हैं। अमेरिका में 12 साल बिताने के बाद माधुरी अपने पूरे परिवार के साथ साल 2011 में वापस मुंबई आ गईं। लाखों दिलों पर राज करने वाली माधुरी दीक्षित ने बॉलीवुड की कई फिल्मों में शानदार अभिनय किया। हाल ही में माधुरी दीक्षित नेटफ्लिक्स की वेब सीरीज द फेम गेम में नजर आईं। उनके अभिनय को काफी पसंद किया गया ।
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फिल्म अभिनेता अक्षय कुमार एक बार फिर से कोरोना संक्रमित हो गए हैं और इसकी वजह से वह इस साल 17 मई से शुरू होने वाले कान फिल्म फेस्टिवल में भी शिरकत नहीं कर पाएंगे। इसकी जानकारी खुद अक्षय कुमार ने ट्वीट कर दी है। अक्षय कुमार ने कान फिल्म फेस्टिवल में शिरकत न करने की वजह बताते हुए इसपर अफसोस जताया है और अपने कोरोना संक्रमित होने की जानकारी दी है। अक्षय कुमार ने ट्वीट कर लिखा-'वास्तव में कान्स 2022 में इंडिया पवेलियन में हमारे सिनेमा के लिए मैं उत्सुक था, लेकिन दुख की बात है कि मैंने कोविड का परीक्षण कराया जो पॉजिटिव आया है। आराम करेंगे। आप और आपकी पूरी टीम को ढेर सारी शुभकामनाएं।' इसके साथ ही अक्षय कुमार ने अपने ट्वीट में केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर को भी टैग किया है। दरअसल अक्षय कुमार इस साल कान फिल्म फेस्टिवल में भारत को कंट्री ऑफ ऑनर के रूप में आमंत्रित किया गया है, इसके लिए अभिनेता, केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर संग भारतीय प्रतिनिधिमंडल के रूप में कान फेस्टिवल में हिस्सा लेने वाले थे। वहीं, अब उनके कोरोना संक्रमित होने की खबर सामने आने के बाद से उनके तमाम चाहने वाले उनके जल्द से जल्द स्वस्थ होने की प्रार्थना कर रहे हैं। गौरतलब है, इससे पहले साल 2021 में भी अक्षय कुमार कोरोना संक्रमित हो गए थे, लेकिन उन्होंने इसे जल्द ही मात देकर जबरदस्त वापसी की थी। वर्कफ्रंट की बात करें तो अक्षय कुमार की फिल्म पृथ्वीराज इसी साल 3 जून को रिलीज के लिए तैयार है। इस फिल्म के अलावा अक्षय कुमार रामसेतु, रक्षाबंधन, ओह माय गॉड 2 जैसी कई फिल्मों में नजर आने वाले हैं।
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एक युवक गंभीर रूप से हुआ घायल रीवा में बदमाशों के हौसले बुलंद हैं टोल प्लाज़ा पर तीन युवकों पर बदमाशों ने हमला कर दिया बदमाशों ने पिस्टल से एक युवक को गोली मार दी वहीं दूसरे युवक के साथ मारपीट की गई पूरा मामला अवैध शराब से जुड़ा बताया जा रहा हैघटना रीवा के रायपुर कर्चुलियान थाना क्षेत्र के जोगनहाई टोल प्लाजा के पास की है जहां तीन युवकों के ऊपर कार सवार आधा दर्जन सेज्यादा बदमाशों ने हमला कर दिया बदमाशों ने राहुल सेन की पीठ में गोली मारी जबकि शुभम तिवारी के सिर पर कट्टे की बट से हमला किया वहीं तीसरा युवक अखंड दिवेदी मौके से भाग निकला घटना की जानकारी मिलने के बाद मौके पर पहुंची पुलिस ने घायलों को इलाज के लिए अस्पताल भेजा जानकारी अनुसार राहुल सेन शराब की दुकान में काम करता है जबकि हमलावर शराब पैकार है राहुल सेन ने कुछ माह पूर्व इन्हें शराब की पैकारी करते हुए पुलिस से पकड़ाया था जिससे आरोपियों को जेल हो गई थी जेल से छूटने के बाद अपराधियों ने बदला लेने के लिए इन पर जानलेवा हमला किया फिलहाल पुलिस मामले की जांच में जुटी है
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सड़क दुर्घटना में पंचायत सचिव की मौत छतरपुर में अज्ञात वाहन ने पंचायत सचिव और रोजगार सहायक को टक्कर मार दी जिससे सचिव की मौत हो गई और रोजगार सहायक गंभीर रूप से घायल हो गया बताया जा रहा है की दोनों मोटरसाइकिल से मीटिंग के लिए जा रहे थे तभी यह हादसा हुआ है मामला लवकुशनगर थाना क्षेत्र का है जहां पंचायत सचिव और रोजगार सहायक मीटिंग के लिए छतरपुर जा रहे थे तभी एक अज्ञात वाहन ने उन्हें टक्कर मार दी जिसमे पड़वार पंचायत सचिव दिनेश शिवहरे की मौत हो गई तो वही गहावरा पंचायत के रोजगार सहायक राम राजा शुक्ला गम्भीर रूप से घायल हो गये जिन्हे इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया है घटना की सूचना मिलते ही पुलिस मौके पर पहुंची लेकिन तब तक वहां मौजूद लोगों ने घायलों को अस्पताल ले जाने की जहमत नहीं कीलोग तमाशा देखते रहे वहीं 108 वाहन ने भी अस्पताल ले जाने में कानूनी अड़चन बताईटीआई की सख्ती के बाद एम्बुलेंस से उसे अस्पताल लाया गया बताया जा रहा है की अवकाश होने के बावजूद मीटिंग रखी गई थी जिसमे शामिल होने दोनों छतरपुर जिला पंचायत कार्यालय जा रहे थे पुलिस ने मामले की जांच शुरू कर दी है |
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