विशेष

कई बीमारियां ऐसी होती हैं जो आनुवांशिक होने के कारण परिवार में पीढ़ी दर पीढ़ी चलती हैं. जैसे डायबिटीज के बारे में कहा जाता है कि ये बीमारी जेनेटिक होने के कारण परिवार के कई सदस्यों को अपनी चपेट में लेती है. ठीक इसी तरह कैंसर को लेकर भी कहा जाता है कि अगर परिवार में किसी सदस्य को कैंसर हो चुका है तो काफी चांस है कि बाकी सदस्य भी इसका शिकार हो सकते हैं. इसके चलते लोगों में एक तरह का डर बैठ जाता है और कई मरीज इलाज से पहले ही उससे लड़ने की हिम्मत खो देते हैं. चलिए आज इस मिथ की बात करते हैं और मानते हैं कि सच्चाई क्या है. Myth: क्या वाकई जेनेटिक है कैंसर जैसी बीमारी?  Facts: कैंसर को लेकर मिथ बन गया है कि ये फैमिली हिस्ट्री से जुड़ा है. यानी अगर आपके परिवार में किसी को कैंसर हो चुका है तो इसकी ज्यादा संभावना होगी कि वो परिवार के दूसरे लोगों को भी होगा. देखा जाए तो ऐसा दावा कोई रिसर्च नहीं कर पाई है कि अगर परिवार में किसी को कैंसर हो चुका है तो दूसरे सदस्यों को कैंसर जरूर होगा. एक्सपर्ट कहते हैं कि कैंसर से जुड़े सभी मामलों में केवल 10 फीसदी मामले ऐसे होते हैं जिसमें परिवार के एक सदस्य के बाद दूसरे सदस्य को कैंसर हुआ है. कैंसर फैमिली हिस्ट्री में हो सकता है लेकिन इसकी संभावना बहुत ही कम होती है. अगर किसी परिवार में एक सदस्य के बाद दूसरे सदस्य को कैंसर हुआ है तो इसका कारण कैंसर का जेनेटिक होना नहीं बल्कि परिवार के सदस्यों लाइफस्टाइल और एनवायरमेंट जीन्स एक जैसे होना हो सकता है.जैसे किसी परिवार के सदस्य ज्यादा धूप वाले इलाके में रहते आए हों. किसी परिवार के सदस्य स्मोकिंग ज्यादा करते हैं. इसलिए कैंसर को जेनेटिक मानने की बजाय परिवार के जीवन जीने के तरीके को जेनेटिक माना जा सकता है, जिससे कैंसर का जोखिम बढ़ जाता है. Myth: क्या शरीर की गांठ कैंसर होती है?  Fact: कैंसर को लेकर एक और मिथक लोगों को डराता है. कहा जाता है कि अगर शरीर में कहीं कोई गांठ दिख रही हो तो वो जरूर कैंसर होगा. इसमें कोई सच्चाई नहीं है. दरअसल शरीर की हर गांठ कैंसर नहीं होती है. कई बार ब्रेस्ट पर आई कोई गांठ औरतों को डरा देती है. एक्सपर्ट कहते हैं कि शरीर पर आई गांठों में करीब 10 20 फीसदी गांठ कैंसर हो सकती हैं. ऐसे में डरने की बजाय इसकी जांच करवानी चाहिए. जांच करवाने के साथ साथ व्यक्ति को उम्र, शारीरिक स्थिति, हार्मोनल चेंज पर भी फोकस करना चाहिए. 

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Dakhal News 27 July 2024

शनि देव का क्रोध सभी जानते हैं. भगवान शिव भी उनकी दृष्टि से नहीं बच पाए थे. कहते हैं शनि ही एक मात्र देवता हैं जिनकी नजर से कोई नहीं बच सकता है, फिर चाहें वो भगवान, इसांन या प्रेत आत्माएं ही क्यों न हों. इसीलिए शनि के गुस्से से सभी खौफ खाते हैं और बचने के उपाय करते हैं.अगस्त 2024 का महीना कुछ दिनों बाद ही आरंभ होने जा रहा है. शनि की कुछ राशियों पर विशेष दृष्टि है, ये राशियां कौन- कौन सी हैं, आइए जानते हैं मासिक राशिफल सिंह राशि  अगस्त के महीने में आपको विशेष सावधानी बरतने की जरूरत है, क्योकि शनि पाप ग्रह राहु के साथ 2-12 का संबंध बना रहे हैं.जिस कारण परिवार में कुछ दिक्कतें आ सकती हैं. जीवनसाथी से भी मतभेद और दूरी बनने के योग बन सकते हैं शनि यहां आपको मानसिक तनाव और भ्रम जैसी स्थितियों का निर्माण कर रहे हैं. जिस सही फैसले लेने में कुछ दिक्कत आ सकती है. 21 अगस्त के बाद कुछ स्थितियां बदलेंगी बुध और शुक्र से लक्ष्मीनारायण योग बन रहा है, जिससे कई तरह की परेशानियों पर विजय प्राप्त करने में सफल रहेंगे. इस दौरान आय में वृद्धि हो सकती है. बैंक लोन और मंथली ईएमआई को कम हो सकती हैं. किसी से भी अपशब्द न बोलें नहीं तो शनि देव कठोर दंड दे सकते हैं. मकर राशि शनि देव आपके छछे भाव व दशम भाव से नवम-पंचम राजयोग बना रहे हैं. लेकिन इस राजयोग का लाभ लठाने के लिए आपको कुछ बातों का ध्यान रखना होगा अगस्त के महीने में राहु का पंचम दृष्टि भी पड़ रही है, अगर आप अपने पार्टनर को धोखा देते हैं और अपमान करते हैं तो शनि दंड देने में तनिक भी देर नहीं करेंगे. वहीं शनि की सातवीं दृष्टि भी आप पर है, इसलिए जीवनसाथी और बिजनेस पार्टनर से सही तरह से पेश आना है. नहीं तो बनती बात भी बिगड़ सकती है.  कुंभ राशि शनि आपकी ही राशि में गोचर कर रहे हैं. अगस्त 2024 का महीना आपके लिए विशेष है. शनि आपके षष्ठ भाव से षडाष्टक दोष बनाकर बैठे हैं, इसलिए क्रोध करने से बचें नहीं तो बड़ी मुसीबत में फंस सकते हैं अगस्त में धन संबंधी परेशानियां खड़ी हो सकती हैं. लव पार्टनर का साथ मिलेगा और लाइफ में रोमांस की कमी नहीं रहेगी. जॉब करने वालों को अपने कामों को समय पर पूरा करने में दिक्कत आ सकती है अपने सहयोगियों का ध्यान रखें नहीं तो शनि नाराज होकर काम बिगाड़ सकते हैं. गलत लोगों की संगत को तुरंत छोड़ दें नहीं तो शनि माफ नहीं करेंगे. दूसरों का आदर और सम्मान करें. जो लोग राजनीति व प्रशासन से जुड़े हैं वे कमजोर लोगों की सहायता करें, इससे शनि महाराज प्रसन्न होंगे और अच्छे परिणाम देंगे.

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Dakhal News 27 July 2024

राजनीति

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी दिल्ली में चल रही नीति आयोग की बैठक बीच में ही छोड़कर बाहर निकल गईं। नीति आयोग की 9वीं गवर्निंग काउंसिल की बैठक की अध्यक्षता PM मोदी कर रहे हैं। इसमें भाजपा और अन्य राज्यों के मुख्यमंत्री शामिल हुए हैं। ममता ने बैठक का वॉकआउट करने की वजह बताते हुए कहा- बैठक में विपक्ष की ओर से सिर्फ मैं शामिल हुई थी। भाजपा के मुख्यमंत्रियों को बोलने के लिए 10 से 20 मिनट का समय दिया गया, जबकि मुझे केवल 5 मिनट मिले। ममता ने बताया- जब मैं पश्चिम बंगाल के मुद्दे पर बोल रही थी, तब मेरा माइक बंद कर दिया गया। मुझे अपनी पूरी बात नहीं रखने दी गई। क्या राज्य के मुद्दों को रखना गलत है। यहां मेरा और पश्चिम बंगाल के लोगों का अपमान किया गया। बैठक में I.N.D.I.A ब्लॉक के 7 राज्यों के मुख्यमंत्री शामिल नहीं हुए। इनमें एम के स्टालिन (तमिलनाडु), सिद्धरमैया (कर्नाटक), रेवंत रेड्‌डी (तेलंगाना), सुखविंदर सिंह सुक्खू (हिमाचल प्रदेश), पी. विजयन (केरल), हेमंत सोरेन (झारखंड), भगवंत मान (पंजाब) और अरविंद केजरीवाल (नई दिल्ली) शामिल हैं। ममता ने कहा था- नीति आयोग खत्म करें, योजना आयोग वापस लाएं ममता बनर्जी ने बैठक से एक दिन पहले कहा था कि नीति आयोग खत्म करके, योजना आयोग को वापस लाओ। योजना आयोग, नेताजी सुभाष चंद्र बोस का आइडिया था। उन्होंने आगे कहा- ये सरकार आपसी लड़ाई में गिर जाएगी, इंतजार कीजिए। इस दौरे में मेरे पास ज्यादा समय नहीं है, इसीलिए किसी नेता से मेरी मुलाकात नहीं हो रही। मीटिंग की थीम- विकसित भारत @ 2047 नीति आयोग की गवर्निंग काउंसिल की मीटिंग में विकसित भारत @ 2047 को लेकर चर्चा की जाएगी। भारत को विकसित बनाने के लिए राज्यों की भूमिका पर भी चर्चा की जाएगी। नीति आयोग का कहना है कि देश 5 ट्रिलियन डॉलर की जीडीपी के साथ दुनिया की तीसरी अर्थव्यवस्था बनने की राह पर है। भारत 2047 तक 30 ट्रिलियन डॉलर इकोनॉमी के लक्ष्य को हासिल करेगा। नीति आयोग में 15 केंद्रीय मंत्रियों को पदेन सदस्य बनाया केंद्र सरकार ने 16 जुलाई को नीति आयोग की नई टीम का ऐलान किया था। इसमें चार पूर्णकालिक सदस्यों के अलावा भाजपा और NDA के सहयोगी दलों के 15 केंद्रीय मंत्रियों को पदेन सदस्य या विशेष आमंत्रित सदस्य के रूप में शामिल किया गया है। राष्ट्रपति भवन की तरफ से इससे जुड़ा नोटिफिकेशन जारी किया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आयोग के अध्यक्ष और इकोनॉमिस्ट सुमन के बेरी उपाध्यक्ष बने रहेंगे। इसके अलावा साइंटिस्ट वीके सारस्वत, एग्रीकल्चर इकोनॉमिस्ट रमेश चंद, बाल रोग विशेषज्ञ वीके पॉल और मैक्रो-इकोनॉमिस्ट अरविंद विरमानी पूर्णकालिक सदस्य बने रहेंगे। नीति आयोग में शामिल 15 केंद्रीय मंत्रियों के नाम केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, गृह मंत्री अमित शाह, कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण चार पदेन सदस्य होंगे। सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी, स्वास्थ्य मंत्री जे पी नड्डा, भारी उद्योग मंत्री एच डी कुमारस्वामी और एमएसएमई मंत्री जीतन राम मांझी नीति आयोग में विशेष आमंत्रित सदस्य बनाए गए हैं। ललन सिंह-चिराग पासवान को भी मिली जगह इनके अलावा विशेष आमंत्रित सदस्यों में पंचायती राज मंत्री लल्लन सिंह, सामाजिक न्याय मंत्री वीरेंद्र कुमार, नागरिक उड्डयन मंत्री के राममोहन नायडू, आदिवासी मामलों के मंत्री जुएल ओराम, महिला एवं बाल कल्याण मंत्री अन्नपूर्णा देवी, खाद्य प्रसंस्करण मंत्री चिराग पासवान और राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार राव इंद्रजीत सिंह शामिल हैं।केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल और अनुराग ठाकुर, जिन्हें पिछले साल आयोग में शामिल किया गया था, इस साल आयोग के सदस्य नहीं बनाए गए हैं।  

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Dakhal News 27 July 2024

लोकसभा चुनाव के बाद से ही उत्तर प्रदेश की सियासी हलचल की चर्चा हर तरफ हो रही है. सत्ता पक्ष और विपक्ष लगातार बयानबाजी कर रहे हैं. जिस वजह से राज्य का सियासी पारा पारा बढ़ा हुआ है. इसी बीच मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और दोनों डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य और बृजेश पाठक दिल्ली पहुंच चुके हैं.दिल्ली में सरकार के साथ यूपी बीजेपी का संगठन भी मौजूद है. प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी और संगठन महामंत्री धर्मपाल सिंह भी दिल्ली आ रहे हैं. दिल्ली में नीति आयोग की गवर्निंग काउंसिल की बैठक के बाद  यूपी बीजेपी के नेता केंद्रीय नेतृत्व से भी मुलाकात कर सकते हैं.  भूपेंद्र चौधरी और धर्मपाल सिंह भी ले सकते हैं हिस्सा  जानकारी के अनुसार, सीएम योगी आदित्यनाथ, डिप्टी सीएम केशव मौर्य, बृजेश पाठक संगठन महामंत्री धर्मपाल और यूपी बीजेपी के अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी भी इस बैठक का हिस्सा बन सकते हैं. इसके अलावा आरएसएस के पूर्वी यूपी के क्षेत्र प्रचारक  अनिल कुमार और पश्चिमी यूपी क्षेत्र प्रचारक महेंद्र शर्मा  भी दिल्ली में मौजूद रहेंगे.  संगठन को लेकर हो सकती है चर्चा उत्तर प्रदेश के सीएम और दोनों डिप्टी सीएम 27 और 28 को दिल्ली में ही रहेंगे. इस दौरान वो नीति आयोग की बैठक के साथ बीजेपी के 7 वरिष्ठ नेताओं से मुलाकात कर सकते हैं. सीएम योगी आदित्यनाथ PM मोदी से भी मिल सकते हैं. जानकारों का कहना है कि इस बैठक में संगठन को लेकर भी चर्चा हो सकती है.जमीनी फीडबैक, कार्यकर्ताओं की चिताओं और भविष्य के रोडमैप को लेकर बात हो सकती है उत्तर प्रदेश में 10 विधानसभा सीटों पर उप चुनाव होने वाले हैं. इस बार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने खुद ही कमान संभाल ली है. वो सभी तैयारियों का जायजा ले रहे हैं. इसके अलावा वो समीक्षा बैठक में विधायकों के मनोभाव और प्रस्तावों पर शीर्ष नेतृत्व से चर्चा कर सकते हैं.   

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Dakhal News 27 July 2024

मीडिया

संसद में पेश किए गए आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 के अनुसार, भारतीय मीडिया क्षेत्र में 2023 में 1.7 लाख फ्लेक्सी या अनुबंधित कर्मचारी कार्यरत हैं। सर्वेक्षण में भारतीय स्टाफिंग फेडरेशन के आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा गया है कि यह संख्या ई-कॉमर्स क्षेत्र में नियोजित अनुबंधित कर्मचारियों के बराबर है।यह उन पत्रकारों के लिए अनिश्चित रोजगार स्थिति को दर्शाता है, जिन्हें सरकार को जवाबदेह ठहराना चाहिए। एक मीडिया प्रमुख ने नाम न बताने की शर्त पर हमारी सहयोगी वेबसाइट एक्सचेंज4मीडिया को बताया कि अनुबंधित और स्वतंत्र कर्मचारी स्थायी नियुक्तियों से जुड़ी दीर्घकालिक प्रतिबद्धता के बिना ही बदलते मार्केट ट्रेंड्स और प्रोजेक्ट्स की जरूरत के हिसाब से काम में फुर्ती दिखाते हैं। कुछ पत्रकारों के अनुसार, न केवल पारंपरिक और विरासत मीडिया घराने, बल्कि भारत और दुनिया भर में नए युग के डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म भी कम लागत पर कंटेंट क्रिएटर्स के अपने नेटवर्क को व्यापक बनाने के लिए फ्रीलांस कर्मचारियों को प्राथमिकता देते हैं डेटा सभी प्रमुख क्षेत्रों की फ्रीलांस, स्व-नियोजित या अनौपचारिक अर्थव्यवस्था के काम पर निर्भरता को रेखांकित करता है। आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, 15 प्रमुख क्षेत्रों में 54 लाख से अधिक लोग संविदा कर्मचारियों के रूप में कार्यरत हैं। ऐसे कर्मचारी अब विधायी प्रावधानों पर निर्भर नहीं रह सकते। 476 पन्नों का आर्थिक सर्वेक्षण इस बात पर जोर देता है कि भारत की अर्थव्यवस्था ने कोविड के बाद अपनी रिकवरी को मजबूत किया है। नीति निर्माताओं ने आर्थिक और वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, वैश्विक अस्थिरता के बावजूद अर्थव्यवस्था का विस्तार जारी है।

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Dakhal News 27 July 2024

सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स पर एक मिनट से ज्यादा की अवधि का एक वीडियो वायरल है। बे-आवाज इस वीडियो में बीजेपी प्रवक्ता शाजिया इल्मी दिखाई पड़ रही हैं। शाजिया कान से ईयरफोन निकालती हैं, थोड़ी ही देर बाद वह किसी पर झपट्टा सा मारती दिखाई दे रही हैं। इस वीडियो को यूथ कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीनिवास बीवी ने शेयर कर लिखा है, “इंडिया टुडे के एक वीडियो जर्नलिस्ट के साथ भाजपा की संस्कारी प्रवक्ता शाजिया इल्मी द्वारा ये बर्ताव देखिये, माइक फेंका गया, गालियां दी गयी, घर के बाहर धक्के मारकर निकाला गया। क्यों? क्योंकि वो अपना काम कर रहा था? क्या BJP कार्यवाही करेगी? क्या चैनल भाजपा का बहिष्कार करेगा।”इससे पहले बीजेपी नेता शाजिया इल्मी ने एक्स पर राजदीप सरदेसाई, इंडिया टुडे और आजतक को टैग कर लिखा है, “क्या तुम फिर कभी मेरे साउंड फेडर को नीचे गिराओगे। याद रखें कि मैं दोनों पक्षों में रही हूं और जानती हूं कि आप जैसे बदमाशों को कैसे संभालना है। वैसे, पत्रकारों के भेष में उपदेश देने वाले राजनीतिक प्रचारकों को यह शोभा नहीं देता। और केवल शरारत पैदा करने के लिए एक पूर्व सेना प्रमुख को अन्य सभी रक्षा प्रमुखों के खिलाफ खड़ा करने से पहले अपने तथ्य जान लें। शाजिया ने आगे लिखा है, सेना प्रमुख का कहना है कि अचानक नहीं, अग्निपथ योजना ‘उचित परामर्श’ के बाद आई थी।” वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने शाजिया के ट्वीट को कोट कर जवाब दिया है कि, “महोदया, शाजिया इल्मी मैं हमेशा अपने सभी मेहमानों का सम्मान करता हूं। यदि कुछ भी हो, तो मैं बहुत अधिक कृपालु हूं: शो में क्रॉस टॉक और शोर से बचने के लिए ही साउंड फ़ेडर को नीचे किया गया है। यदि शो में आपकी मुझसे या सेना के किसी जनरल से शिकायत है, तो निःसंदेह यह आपका विशेषाधिकार है। और मैं उसका भी सम्मान करता हूं. लेकिन आपके लिए माइक को चकमा देना और हमारे वीडियो पत्रकार को गाली देना और उसे अपने घर से बाहर फेंकना अभी पूरा नहीं हुआ है। वह सिर्फ अपना काम कर रहे थे. बुरे व्यवहार के लिए कोई बहाना नहीं. बाकी मैं आप पर छोड़ता हूं. आपका सप्ताहांत मंगलमय हो.”

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Dakhal News 27 July 2024

समाज

भोपाल की लाइफ लाइन बड़ा तालाब में 24 घंटे में 1.20 फीट बढ़ गया। इसमें से 0.60 पानी रात में ही बढ़ गया। कोलांस नदी के लेवल से 3 फीट ऊपर बहने से बड़ा तालाब में पानी का लेवल लगातार बढ़ रहा है। अब यह ढाई फीट से भी कम खाली है। इसमें शनिवार सुबह तक 1664.40 फीट पानी है। फुल टैंक लेवल 1666.80 फीट है। भोपाल में आज सुबह से ही तेज बारिश का दौर है। लगातार बारिश होने से शहर की सड़कें भी उखड़ गई है। भोपाल में दो दिन में तेज बारिश हो रही है। 24 घंटे में डेढ़ इंच से ज्यादा पानी गिर चुका है। इससे कई जगहों पर जलभराव की स्थिति भी बन गई है। लगातार बारिश होने की वजह से दिन-रात के टेम्प्रेचर में भी गिरावट हुई है। शुक्रवार को अधिकतम तापमान 25.9 डिग्री रहा। वहीं, रात में पारा 24.4 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया। बड़ा तालाब भरा तो भदभदा डैम के खुलेंगे गेट बड़ा तालाब के फुल होने भदभदा डैम के गेट भी खुल जाएंगे। चूंकि, अभी तालाब में तेजी से पानी भर रहा है। इसलिए निगम अफसर पानी के लेवल पर पल-पल की नजर रख रहे हैं। एक-दूसरे से जुड़े तालाब-डैम कोलांस नदी का पानी बड़ा तालाब में पहुंचता है। जब तालाब फुल भर जाता है तो भदभदा डैम के गेट खोले जाते हैं। भदभदा डैम में ढाई फीट पानी और आते ही गेट खुल जाएंगे। इसके बाद कलियासोत डैम के गेट भी खुलेंगे। बता दें कि कोलांस, बड़ा तालाब, भदभदा और कलियासोत डैम एक-दूसरे से जुड़े हैं। एक महीने में ही हो गई बारिश इस बार भोपाल मानसून की एंट्री 23 जून को हुई थी। तभी से बारिश का दौर जारी है। इस वजह से एक महीने में ही आधी से ज्यादा बारिश हो चुकी है। भोपाल में कुल सामान्य बारिश 37.6 इंच है। इसके मुकाबले अब तक 22 इंच से ज्यादा पानी गिर चुका है। यह सीजन की करीब 55 प्रतिशत है। एक सप्ताह से तेज बारिश का दौर पिछले 10 साल के आंकड़ों पर नजर दौड़ाए तो 10 साल में यह सबसे कम बारिश है। साल 2015 और 2022 में सबसे ज्यादा 33.6 इंच पानी गिरा था, जबकि 2020 में 6.1 इंच बारिश हुई थी। मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि जुलाई के दूसरे पखवाड़े में तेज बारिश का ट्रेंड है। इस बार भी ऐसा ही मौसम बना हुआ है। 15 जुलाई के बाद से लगातार बारिश हो रही है। तेज बारिश का दौर जारी रहेगा। एक सप्ताह से तेज बारिश हो रही है। आखिरी दिनों में भी बारिश का अलर्ट है।

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Dakhal News 27 July 2024

पवित्र सावन के माह में पूरे देश के शिवालयों में पूजा अर्चना जारी है. श्रवण माह को यानी सावन को भगवान शिव को समर्पित महीना माना जाता है. सावन माह में राजगढ़ से एक अद्भुत वीडिया सामने आया है. यहां जिले के सुठालिया में स्थित शिव मंदिर में गुरुवार (25 जुलाई) की शाम को एक सांप शिवलिंग पर फन फैलाकर बैठ गया.इसकी खबर फैलते ही मंदिर में भक्तों की भीड़ लग गई. इस अनोखे दृश्य को मंदिर में मौजूद श्रद्धालुओं ने अपने मोबाइल पर कैद कर लिया. अब यह वीडियो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रही है. दरअसल, राजगढ़ जिले के ब्यावरा से करीब 20 किलो दूर स्थित सुठालिया तहसील है. यहां से कुछ ही किलोमीटर पर मां सुन्दरमयी वैष्णो देवी धाम मंदिर है. यहां के परिसर में ही एक शिव मंदिर बना है.जहां गुरुवार की शाम को शिवलिंग के पास अचानक कहीं से नाग राज पहुंच गए. मंदिर समिति के डॉयरेक्टर महेश अग्रवाल (बंटी ) ने बताया कि जब मंदिर के पुजारी मनोज उपाध्याय भगवान शिव की आरती की तैयारी करने के बाद, यहां शाम के समय अंदर आए तो शिवलिंग पर फन फैलाकर बैठे नाग राज के दृश्य को देखकर हैरान रह गए. यह बात जब लोगों को पता चली तो वहां दर्शन करने के लिए भक्तों की भीड़ लग गई. इस अनोखे दृश्य को लोगों ने अपने मोबाइल कैमरे में कैद कर लिया. महेश अग्रवाल (बंटी) ने बताया कि हमने नागराज की आरती भी की, मंदिर के अंदर नागराज करीब डेढ़ घंटे रुके रहे. इस पूरे घटनाक्रम का जिक्र करते हुए महेश अग्रवाल (बंटी) ने बताया कि इस मौके पर नागराज शिवलिंग और नंदी जी के ऊपर जाकर फन फैलाकर बैठ गए और बाद में मंदिर परिसर का चक्कर लगाया.उन्होंने बताया कि इस दौरान उनके लिए दूध भी रखा गया, लेकिन वह फिर शिवलिंग पर आकर बैठ गए. मंदिर में आने वाले इस सांप की लंबाई करीब 5 फीट से अधिक थी. मंदिर समिति डॉयरेक्टर ने बताया कि इस घटना के बाद लोग मंदिर में जाने से डरने लगे, जिसके बाद गांव के ही एक संपेरे को बुलवाया गया और उसने शिवलिंग पर बैठे सांप को पकड़ा और सुरक्षित जंगल में ले जाकर छोड़ दिया.

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Dakhal News 27 July 2024

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परिणीति चोपड़ा ने इंस्टाग्राम पर एक क्रिप्टिक पोस्ट शेयर की है। उन्होंने इंस्टाग्राम स्टोरीज में एक वीडियो पोस्ट कर फैंस को टॉक्सिक लोगों से दूर रहने की सलाह दी है। इस वीडियो में परिणीति बोट पर बैठी हुई कुछ सोच रही हैं। इसके साथ ही परिणीति ने इंस्टाग्राम स्टोरी पर एक किताब के पन्ने पर लिखी लाइन की फोटो शेयर की है जिसमें लिखा है- 'एक ही साल को 75 बार जीकर इसे जिंदगी कहना बंद करो'। परिणीति बोलीं-एक भी सेकंड बर्बाद मत करो वीडियो शेयर करते हुए परिणीति ने कैप्शन में लिखा, 'इस महीने, मैंने कुछ समय रुककर जिंदगी पर विचार किया और इससे मुझे समझ आया कि माइंडसेट ही सब कुछ है। महत्वहीन चीजों (या लोगों) को महत्व न दें। एक भी सेकंड बर्बाद मत करो। जिंदगी एक टिक-टिक करती घड़ी है। हर पल आपकी पसंद का होना चाहिए।। दूसरों को खुश करने के लिए जीना बंद करें! जब आप दूसरों की राय से डरते हैं, तो आप अपनी जिंदगी जीना बंद कर देते हैं और आपके आखिरी दिन पर इससे बड़ा कोई पछतावा नहीं होगा।' परिणीति की फैंस को नसीहत परिणीति ने आगे लिखा- 'अपने लोगों को खोजें। टॉक्सिक लोगों को अपने जीवन से बाहर निकालने से न डरें। दुनिया क्या सोचेगी इसकी परवाह करना बंद करें। खुद को और अपने लोगों को खुश रखें। चीजों के प्रति अपनी प्रतिक्रियाएं बदलें। यही खुशी की चाबी है। जीवन सीमित है। इसे वैसे जियो जैसे तुम इसे जीना चाहते हो।' परिणीति ने 2011 में किया था डेब्यू परिणीति ने साल 2011 में रिलीज हुई फिल्म 'लेडीज वर्सेस रिक्की बहल' से बॉलीवुड डेब्यू किया था, जिसमें अनुष्का शर्मा और रणवीर सिंह लीड रोल में थे। फिल्म हिट रही जिसके बाद परिणीति को बतौर लीड 2012 की फिल्म 'इश्कजादे' में काम मिला। इस फिल्म के लिए परिणीति ने स्पेशल मेंशन का नेशनल अवॉर्ड जीता। तब से लेकर अब तक परिणीति कुल 17 फिल्मों का हिस्सा रही हैं। उनकी पिछली फिल्म चमकीला थी जो कि नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई थी।

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Dakhal News 27 July 2024

बॉलीवुड की खूबसूरत और शानदार एक्ट्रेस कृति सेनन के लिए 27 जुलाई का दिन बेहद खास होता है. 27 जुलाई 1990 को एक्ट्रेस का जन्म नई दिल्ली में हुआ था. आज कृति अपना 34वां जन्मदिन मना रही हैं. बॉलीवुड में वे करीब एक दशक से एक्टिव हैं कृति सेनन की गिनती बॉलीवुड की टॉप एक्ट्रेसेस में होती हैं. उन्होंने अपने 10 साल के करियर में कई शानदार फिल्मों में काम किया है. हालांकि कभी एक्ट्रेस का लोग मजाक उड़ाते थे. वे फिल्म इंडस्ट्री में शुरुआती दिनों में बॉडी शेमिंग का शिकार हो चुकी हैं. वहीं एक कोरियोग्राफर ने तो एक्ट्रेस को जमकर डांट लगा दी थी तब कृति खूब रोई थीं. आइए आज आपको कृति के 34वें जन्मदिन के मौके पर उनसे जुड़ी कुछ खास बातें बताते हैं.  कृति सेनन ने फिल्मी दुनिया में रिजेक्शन भी झेले हैं. उन्हें तब काफी बड़ा झटका लगा था तब उन्हें एक बड़े प्रोडक्शन हाउस की फिल्म से बाहर कर दिया गया था. उनकी जगह पर बाद में एक स्टार किड को ले लिया गया था कृति ने बॉलीवुड बबल को दिए एक इंटरव्यू में बताया था कि, 'जब मैं स्ट्रगल कर रही थी, तब मुझे फिल्म मिल रही थी, जिसके बारे में मैंने पहले भी बात की थी, लेकिन मैं नाम नहीं लूंगी, वो बहुत बड़े प्रोडक्शन की फिल्म थी लेकिन उसमें अच्छा रोल नहीं था. मेरे पास करने के लिए बहुत कुछ खास नहीं था, और ये एक बड़ी कास्टिंग डायरेक्टर थी और उसने मुझसे कहा कि क्या आप इंतजार करना चाहते हैं या क्या आप इसे करना चाहते हैं, और मेरे मैनेजर ने तब कहा था कि उन्हें नहीं लगता है कि इससे कुछ बेहतर कुछ मिल सकता है और मुझे कर लेना चाहिए'. तेलुगु सिनेमा से किया एक्टिंग डेब्यू कृति सेनन ने साल 2014 में अपने फिल्मी करियर की शुरुआत की थी. हालांकि उनका एक्टिंग डेब्यू बॉलीवुड नहीं बल्कि तेलुगु सिनेमा से हुआ था. उनकी पहली फिल्म थी. इसमें उन्होंने साउथ सुपरस्टार महेश बाबू संग काम किया था. बॉलीवुड में हीरोपंती से हुआ डेब्यू तेलुगु सिनेमा से एक्टिंग करियर की शुरुआत करने के बाद कृति ने साल 2014 में ही बॉलीवुड में डेब्यू किया था. बॉलीवुड में उनकी डेब्यू फिल्म 'हीरोपंती' थी. इसमें उन्होंने टाइगर श्रॉफ के साथ काम किया था. बता दें कि ये फिल्म टाइगर की भी डेब्यू फिल्म थी. हालांकि दोनों की डेब्यू फिल्म को ज्यादा खास रिस्पॉन्स नहीं मिला था. जब कोरियोग्राफर्स ने डांटा तो खूब रोई थीं कृति  कृति को एक बार एक कोरियोग्राफर ने डांट लगा दी थी तो एक्ट्रेस खूब रोई थीं. एक्ट्रेस ने 'कर्ली टेल्स' को दिए इंटरव्यू में कहा था कि, 'मेरा पहला रैंप शो था और उसकी कोरियोग्राफर के साथ मैंने आज तक दोबारा काम नहीं किया. वह मेरे प्रति बहुत रूड थी क्योंकि मैंने कोरियोग्राफी खराब कर दी थी. वह रैंप शो किसी फार्महाउस में हुआ था, और मेरी जो हील्स थीं, वो घास में फंस रही थीं. और वह मेरा फर्स्ट टाइम था. बहुत बुरा रहा था. मैं रोने लगी क्योंकि वह मुझे 50 मॉडल्स के सामने डांट रही थी. बहुत बुरी तरह डांट रही थी. यह घटना मेरे दिल-दिमाग में लंबे समय तक ताजा रही. लेकिन मुझे कोई भी डांटता है तो मैं तुरंत रोना शुरू कर देती हूं'. 60 करोड़ के घर में रहती हैं कृति कृति ने फिल्मी दुनिया में अच्छा नाम कमाने के साथ ही अच्छी खासी दौलत भी कमाई है. एक्ट्रेस आज मुंबई के जुहू में 60 करोड़ रुपये कीमत के घर में अपनी फैमिली संग रहती हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक कृति करीब 82 करोड़ रुपये की नेटवर्थ की मालकिन हैं. 

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Dakhal News 27 July 2024

दखल क्यों

देवदत्त पट्टनायक हम गुरु-शिष्य परंपरा को जानेंगे और समझेंगे कि विश्व की अन्य शिक्षण प्रणालियों से हमारी यह परंपरा कैसे अलग है। बौद्ध धर्म के उभरने के पश्चात प्रवचन व्यापक होने लगे। इनमें ऋषि बहुधा उद्यान में पेड़ के नीचे बैठकर हज़ारों छात्रों को अपना ज्ञान बांटते थे। उससे पहले, उपनिषदों के अनुसार ऋषि और राजा, पति-पत्नी तथा देवता और मनुष्य आपस में वार्तालाप करते थे। और उससे भी पहले ‘ब्राह्मण’ और ‘आरण्यक’ वैदिक ग्रंथों के अनुसार लोग क्रमशः अनुष्ठान करने में व्यस्त रहते थे या वन में एकांत में समय बिताते थे। यह करते हुए वे इन अनुष्ठानों में किए गए उच्चार और अर्पण पर चिंतन करते थे।इस बीच, रामायण और महाभारत के अनुसार छात्र गुरुकुलों में शिक्षा प्राप्त करने लगे। गुरुकुल की आधुनिक समझ यह है कि गुरु पेड़ के नीचे बैठकर अपने चारों ओर बैठे छात्रों को प्रवचन देते थे, मानो आज के क्लासरूम जैसे। और यही कारण है जो हम गुरु-शिष्य परंपरा को समझने में भूल कर देते हैं।आधुनिक शिक्षा प्रणाली और प्राचीन गुरु-शिष्य परंपरा में मुख्य अंतर ज्ञान के उद्देश्य को लेकर है। हालांकि सभी को जानकारी एक जैसी मिलती है, लेकिन हर कोई उसे अलग तरह से समझकर ज्ञान भी अलग प्राप्त करता है। समझने के लिए आवश्यक है कि हम दूसरों से मिली जानकारी का विश्लेषण कर उसे पहले से प्राप्त ज्ञान के संदर्भ में समझें। सीखना और ज्ञान प्राप्त करना अत्यधिक जटिल प्रक्रियाएं हैं। प्राचीन भारतीय इसके बारे में अवगत थे।यूरोपीय शिक्षण प्रणालियों की जड़ें तर्क-वितर्क की धारणाओं में थीं। ये धारणाएं यूनान और रोम से आईं। प्राचीन काल के दार्शनिक आपस में तर्क करते थे। फिर या तो एक दार्शनिक की जीत से या सर्वसम्मति से सच स्थापित होता था। यह सच छात्र कक्षाओं में बहुधा रटकर सीखते थे। हालाँकि वे सच को चुनौती दे सकते थे, लेकिन अंतत: उन्हें उसे स्वीकारना ही पड़ता था। आधुनिक शिक्षण प्रणाली भी कुछ इसी तरह की है। छात्रों की परीक्षा लेकर उनकी समझ और उनका विकास परखा जाता है।यूरोपीय शिक्षण का मॉडन मिशनरी स्कूलों तथा उपनिवेशवाद के कारण और पूर्वी-एशियाई शिक्षण का मॉडल ब्रूस ली और जैकी चैन की तथा अन्य चीनी फ़िल्मों के कारण प्रसिद्ध हुआ। इसलिए हम गुरु-शिष्य परंपरा का शिक्षण के यूरोपीय मॉडलों के साथ आंकने का और उसे कुछ हद तक पूर्वी-एशियाई शिक्षण प्रणालियों से भी जोड़ने का प्रयास करते हैं। और यही कारण है कि हम उसे अच्छे से समझ नहीं पाते हैं।भारतभर में मैकेनिक की दुकानों और ढाबों के मालिक युवकों को अपनी निगरानी के नीचे काम पर लगाते हैं। इस उस्ताद-चेला मॉडल को समझकर हम गुरु-शिष्य परंपरा को अच्छे से समझ सकते हैं। उस्ताद सिखाने का कोई सीधा प्रयास नहीं करता है। अपना काम करते-करते वह बातें करता है, टिप्पणी देता है और चेला उसे देख-सुनकर सीखता है।यहां चेले में सीखने की भूख होनी आवश्यक है। जब वह पर्याप्त रूप से सीख लेता है, तो वह बहुधा स्वयं का उद्यम शुरू करता है। उस्ताद-चेले का यह मॉडल अनौपचारिक और असंगठित रूप से चलता है। उसके उद्देश्य भी बहुधा अस्पष्ट होते हैं: क्या चेले को रोज़गार दिया जा रहा है? क्या वह कुछ सीख रहा है? या उसका शोषण हो रहा है? संभवतः कुछ लोगों को इस बात से विस्मय हो सकता है कि उन्नत गुरु-शिष्य परंपरा को सड़क के उस्ताद-चेला नातों से जोड़ा जा रहा है। लेकिन हमें ध्यान में रखना आवश्यक है कि अतीत कई गुरुओं का व्यवहार दमनकारी कहा जा सकता है। कहानियों में कुछ उदाहरण भी हैं। जैसे, ऋषि धौम्य के तीन छात्र थे। पहले छात्र आरुणि ने अपने गुरु के खेत की टूटी मेड़ से बहते पानी को रोकने के लिए अपने शरीर की ही ओट लगा दी थी। दूसरा शिष्य उपमन्यु था। वह अपने गुरु की गायें चराता था, लेकिन उसे उन गायों का दूध पीना मना था। इसलिए उसे विषैले पत्ते खाने पड़े और कुछ समय के लिए उसकी दृष्टि भी चली गई। गुरु ने अपने तीसरे शिष्य वेद से उसके बुढ़ापे तक अपनी सेवा करवाई।  

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Dakhal News 27 July 2024

लेखक: अनुराग आनंद तारीख- 17 मई 1999। जगह- रावलपिंडी में ISI के ओझिरी कैंप का एक सीक्रेट मीटिंग रूम। बैठक में पाकिस्तान के उस वक्त के PM नवाज शरीफ, सेना प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ समेत डिफेंस के टॉप ऑफिसर्स और विदेश मंत्री मौजूद थे।जनरल तौकीर जिया ने PM के सामने प्रेजेंटेशन देना शुरू किया। नक्शे में कुछ पॉइंट दिखाए गए और बताया कि पाकिस्तानी सेना ने भारत की इन चौकियों पर कब्जा कर लिया है। अब निशाने पर भारत का नेशनल हाईवे-1 है। ये प्रेजेंटेशन ऑपरेशन कोह-ए-पैमा का था, जिसे पाकिस्तानी सेना ने कारगिल घुसपैठ और कश्मीर को हथियाने के लिए बनाया था।जनरल मुशर्रफ ने PM को बताया कि ये ऑपरेशन 5 फेज का है। पहले फेज को पूरा कर लिया गया है और सेना कामयाबी के बेहद करीब है। अब वापसी संभव नहीं है। PM नवाज कुछ पूछते, इससे पहले ही चीफ ऑफ स्टाफ जनरल अजीज ने कहा- 'सर, अब कुछ मत सोचिए। बस आप इसकी इजाजत दीजिए। पाकिस्तान के इतिहास में आपका नाम सुनहरे अक्षरों में लिखा जाएगा। आप 'कश्मीर के मुक्तिदाता' कहलाएंगे।'विदेश मंत्री सरताज अजीज ने आगाह करते हुए कहा कि यह भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी से किए वादे के खिलाफ होगा। नवाज बोले- हम कब तक कागजी कार्रवाई के जरिए कश्मीर को आजाद कराने की कोशिश करेंगे। अब मौका मिला है तो क्यों ना इसका फायदा उठाया जाए।इसके बाद PM नवाज ने ऑपरेशन कोह-ए-पैमा को हरी झंडी दे दी। पाकिस्तानी पत्रकार नसीम जेहरा अपनी किताब 'फ्राम कारगिल टु द कू' में इस पूरी घटना का जिक्र किया है। कारगिल विजय के 25 साल पूरे होने पर जानेंगे जंग का पाकिस्तानी साइड। पाक सेना के गैंग ऑफ फोर ने कैसे बनाया था कारगिल घुसपैठ का प्लान और ऑपरेशन विजय ने उसे कैसे नाकाम किया…1987 में लिखी गई स्क्रिप्ट: जब सियाचिन की चोटी पर चढ़ बैठी भारतीय सेना 13 अप्रैल 1984 को भारतीय सेना के लेफ्टिनेंट जनरल प्रेम नाथ हूण के नेतृत्व में कुमाऊं रेजिमेंट की एक पूरी बटालियन सियाचिन की चोटी पर चढ़ बैठी। इसे ऑपरेशन मेघदूत नाम दिया गया। पाकिस्तान में इस वक्त जनरल जियाउल हक की तानाशाही थी। सियाचिन पर भारतीय सेना की जीत से झल्लाए जनरल जियाउल हक ने पाकिस्तानी सेना को सियाचिन पर हमले के आदेश दिए।1986 में पाकिस्तानी सेना के स्पेशल सर्विस ग्रुप ने सियाचिन के पश्चिम में एक चोटी पर कब्जा कर लिया। पाकिस्तानी सेना ने कायद-ए-आजम मोहम्मद अली जिन्ना के नाम पर इस पोस्ट का नाम रखा कायद। अगले ही साल भारतीय सेना ने कैप्टन बाना सिंह के नेतृत्व में इस पोस्ट पर कब्जा कर लिया और इसका नाम दिया बाना पोस्ट। सियाचिन और बाना टॉप पर हुई जंग के बाद भारत और पाकिस्तान में सियासी समझौते होते रहे, लेकिन पाकिस्तान के ब्रिगेडियर परवेज मुशर्रफ इस हार को पचा नहीं पाए।1987 में जियाउल हक ने परवेज को स्पेशल सर्विस ग्रुप का कमांडर बनाकर सियाचिन भेजा। वहां से लौटकर परवेज मुशर्रफ ने कारगिल और सियाचिन पर कब्जे के लिए जियाउल हक को एक डिटेल प्लान दिया। हालांकि, जियाउल हक तब इसके लिए तैयार नहीं हुए। 1998 में सेना प्रमुख बने जनरल मुशर्रफ: ISI ने कारगिल पर कब्जे के प्लान को स्ट्रैटिजिकली फेल बताया 1998 में पाकिस्तान के PM नवाज शरीफ ने दो सीनियर आर्मी जनरल को पीछे छोड़ जनरल परवेज मुशर्रफ को आर्मी चीफ बनाने का फैसला किया। मुशर्रफ सियाचिन में मिली हार को भूले नहीं थे। मौका मिलते ही उन्होंने दोबारा सियाचिन पर कब्जे के पुराने प्लान पर काम करना शुरू कर दिया। नसीम जेहरा अपनी किताब ‘फ्रॉम कारगिल टु द कू: इवेंट्स दैट शूक पाकिस्तान’ के पेज 45 पर लिखती हैं कि मुशर्रफ के सेना प्रमुख बनने से पहले ही पाकिस्तानी सेना ने कारगिल पर कब्जे के इस प्लान को प्लानिंग डायरेक्टरेट के पास भेजा था। इसके बाद ये प्लान रिव्यू के लिए डायरेक्टर जनरल मिलिट्री ऑपरेशन और फिर ISI के पास भेजा गया। ISI ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि टैक्टिकली ये अच्छा प्लान है। इसके जरिए हम कारगिल पर कब्जा तो कर लेंगे, लेकिन स्ट्रैटिजिकली ये नाकाम प्लान है, क्योंकि इस कब्जे को लंबे समय तक बरकरार रखना मुमकिन नहीं होगा। ISI की यह रिपोर्ट उन्हीं के एक बड़े अधिकारी जनरल अजीज खान को पसंद नहीं आई। दरअसल, 1998 की शुरुआत में जनरल अजीज ने भारतीय सीमा में घुसकर 28 चोटियों पर कब्जा किया था। इसलिए उन्हें लगता था कि ठंड के मौसम में इस प्लान को आसानी से अंजाम तक पहुंचाया जा सकता है। 1998 में अमेरिका में मिले भारत-पाकिस्तान के PM: पाकिस्तानी सेना कर रही थी घुसपैठ की तैयारी 11 सितंबर 1998 को अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक हो रही थी। भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और पाकिस्तान के PM नवाज शरीफ भी इस बैठक में हिस्सा लेने के लिए यहां पहुंचे थे। यह पहला मौका था, जब भारत और पाकिस्तान के दो बड़े नेता एक टेबल पर खाना खा रहे थे। इस वक्त बातचीत में नवाज शरीफ ने बताया कि जब 1982 में भारत में एशियन गेम्स हुए थे, तो वे लाहौर से दिल्ली कार से गए थे। कार भी उन्होंने खुद चलाई थी। पूर्व विदेश मंत्री जसवंत सिंह ने अपनी किताब \"इंडिया एट रिस्क' में लिखा है कि जब अटल जी और शरीफ के बीच बातचीत हो रही थी तो वह वहीं मौजूद थे। उस समय विदेश मंत्रालय में पाकिस्तान मामलों के अधिकारी विवेक काटजू मेरे कान में फुसफुसाए कि अमृतसर से लाहौर बस यात्रा शुरू करने वाली बात करने का यह सबसे बेहतर समय है। इसके बाद ये सुझाव नवाज और अटल के सामने रखा गया। दोनों नेताओं ने इस सुझाव को खूब पसंद किया पाकिस्तान की पत्रकार नसीम जेहरा के मुताबिक अमेरिका में नवाज और अटल की मुलाकात के एक महीने बाद अक्टूबर में पाकिस्तानी सेना ने भारत पर हमले की तैयारी शुरू कर दी। अक्टूबर 1998 में ही जुबानी तौर पर परवेज मुशर्रफ ने कारगिल में घुसपैठ करने के लिए ऑपरेशन कोह-ए-पैमा को मंजूरी भी दे दी। भारतीय सेना के पूर्व लेफ्टिनेंट कर्नल जेएस सोढी के मुताबिक कारगिल पर चढ़ाई के लिए ऑपरेशन कोह-ए-पैमा का नाम पाकिस्तानी सेना के मुख्यालय ने दिया था। यह एक फारसी शब्द है, जिसका मतलब पहाड़ों की चोटी तक पहुंचने वाला है। जिस बैठक में ये नाम तय किया गया था, उसमें पाकिस्तानी सेना के प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ, चीफ ऑफ जनरल स्टाफ लेफ्टिनेंट जनरल अजीज खान, ऑफिसर कमांडिंग (GOC) 10 कोर जनरल महमूद और कमांडर FCNA ब्रिगेडियर जावेद हसन शामिल थे। इस ऑपरेशन को लीड जनरल अजीज खान कर रहे थे, जबकि फ्रंट पर जनरल जावेद हसन मोर्चा संभाल रहे थे। 17 हजार फीट की ऊंचाई पर -20 डिग्री सेल्सियस तापमान में ऑपरेशन कोह-ए-पैमा को अंजाम देने की जिम्मेदारी नॉर्दर्न लाइट इन्फेंट्री रेजिमेंट यानी NLI को दी गई। जनरल जावेद हसन को NLI का प्रमुख बनाया गया। NLI पाकिस्तानी सेना, नहीं बल्कि पैरामिलिट्री फोर्स थी। इस रेजिमेंट में ज्यादातर जवानों की बहाली गिलगित और बाल्टिस्तान क्षेत्र से हुई थी। इन जवानों को बर्फ में जंग करने की ट्रेनिंग दी गई थी। साथ ही इन्हें पैदल चलकर हमला करने, पहाड़ों की लड़ाई करने के लिए ट्रेंड किया गया था। नवंबर 1998 में पाकिस्तान के स्कार्दू और गिलगित में तैनात फ्रंटियर डिवीजन के जवानों की छुट्टियां भी रद्द कर दी गईं। 1999 में जंग से 3 महीने पहले: नवाज ने फोन कर अटल को पाकिस्तान बुलाया जनवरी 1999 में भारत की तरफ से तय हो गया था कि वाजपेयी अमृतसर से बस को हरी झंडी दिखाएंगे। जनवरी में ही एक दिन नवाज ने वाजपेयी को फोन किया और पूछा- सुना है आप ग्रीन सिग्नल देने अमृतसर आ रहे हैं। वाजपेयी के हां कहते ही तपाक से नवाज बोले- करीब आकर भी मेरे दरवाजे आए बिना आप कैसे लौट सकते हो।इसके बाद 20 फरवरी 1999 को अटल बिहारी वाजपेयी बस से लाहौर पहुंचे। लाहौर में पाकिस्तान के PM नवाज शरीफ ने अटल बिहारी वाजपेयी को गले लगाया। उनके स्वागत समारोह में 21 तोपों की सलामी दी गई। लाहौर के गवर्नर हाउस में अटल बिहारी वाजपेयी और शरीफ ने 'लाहौर घोषणा' पर हस्ताक्षर किए। इस दौरान अपने भावुक भाषण में वाजपेयी ने कहा था कि पांच दशकों की शत्रुता को समाप्त करना और शांति कायम करना दोनों देशों की नियति है दोस्ती का हाथ बढ़ाकर पीठ में खंजर घोंपा: पाकिस्तानी सेना ने किया भारतीय चौकियों पर कब्जा जोजिला से लेह तक भारत और पाकिस्तान के बीच करीब 300 किलोमीटर सीमा लगती है। 1999 तक यहां इंडियन आर्मी की सिर्फ एक ब्रिगेड तैनात होती थी। 2500 सैनिकों के लिए 300 किलोमीटर लंबी सीमा की सुरक्षा करना बेहद मुश्किल काम था। 14 हजार से 18 हजार फीट की ऊंचाई पर अक्टूबर से मई तक दोनों देशों की सेनाएं चोटियां खाली कर देती थीं। पाकिस्तान ने इसी समय का फायदा उठाया। मई में दोबारा भारतीय सेना पहाड़ों पर तैनात होती, इससे पहले ही जनवरी 1999 में मुश्कोह, द्रास, कारगिल और तुर्तुक सेक्टर में पाकिस्तानी सेना ने घुसपैठ कर दी। पाकिस्तानी सेना LoC सीमा से 10 किलोमीटर तक अंदर भारतीय सीमा में घुस गई। अपनी किताब ‘लाइन ऑफ फायर’ में परवेश मुशर्रफ ने लिखा था कि 1998 की सर्दियों में कारगिल में बॉर्डर के इस पार पाकिस्तानी आर्मी ने करीब 100 पोस्ट बनाकर इन सभी पर 20 से 25 जवानों की तैनाती की थी। LoC के पार करीब 100 वर्ग किलोमीटर तक भारतीय सीमा में हजारों मुजाहिदीन घुस गए थे। जंग के बाद पाकिस्तानी सेना के जनरल अजीज ने कहा था कि भारतीय सीमा में सिर्फ मुजाहिदीन नहीं, बल्कि हमारी फौज भी घुसी हुई थी। LoC के बॉर्डर पर तैनात दोनों देशों के सैनिकों के लिए ये नियम है कि वो बॉर्डर पार करने से पहले अपनी सरकार से इजाजत लेंगे। हालांकि, पाकिस्तानी सेना ने नवाज सरकार से इसकी इजाजत नहीं ली थी। जनवरी 1999 तक बॉर्डर के इस पार की जाने वाली किसी कार्रवाई की जानकारी सरकार को देने की जरूरत नहीं थी। जब इसकी जरूरत हुई तो मई 1999 में सरकार को जानकारी दी गई थी।कोह-ए-पैमा ऑपरेशन को शुरू करने से पहले पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI ने कारगिल वाले इलाके में भारतीय सेना की अस्थायी मूवमेंट होने की जानकारी दी। इसके बाद पाकिस्तानी सेना ने ब्रिगेडियर मसूद असलम को एक टुकड़ी के साथ कारगिल में ये जानने के लिए भेजा कि भारतीय सीमा में क्या चल रहा है।उन्होंने देखा कि भारतीय चौकियों पर बर्फ जमी है। वो थोड़ा और आगे गए, लेकिन किसी भारतीय जवान से मुठभेड़ नहीं हुई। इसकी जानकारी मिलते ही परवेज मुशर्रफ ने 16 जनवरी 1999 को पाकिस्तानी सेना मुख्यालय को ऑपरेशन के लिए हरी झंडी दे दी। मई 1999 में रूसी हेलिकॉप्टर की मदद से पहाड़ों पर बम-गोले जमा करने लगे पाकिस्तानी सैनिक भारतीय सेना के पूर्व अधिकारी जनरल जेएस सोढ़ी के मुताबिक पाकिस्तान कारगिल की चोटियों पर अपनी सेना तैनात करके श्रीनगर और लेह को जोड़ने वाले नेशनल हाईवे 1 पर कब्जा करना चाहता था। अगर ऐसा करने में पाकिस्तानी सेना कामयाब हो जाती तो सियाचिन और लद्दाख की सप्लाई पूरी तरह से बंद हो जाती। हालांकि, इसके लिए पाकिस्तानी सेना के जवानों को मोर्चे पर भेजा जाने लगा था। सबसे मुश्किल काम पहाड़ की चोटियों तक असलहे और गोला-बारूद को भेजना था। पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी के पब्लिक रिलेशन विभाग ISPR के डिप्टी डायरेक्टर रहे कर्नल अशफाक हुसैन ने अपनी किताब 'विटनेस टु ब्लंडर' में लिखा कि रूस से मंगवाए गए MI17 हेलिकॉप्टर के जरिए साजो-सामान पहाड़ों पर पहुंचाए गए थे। इसके जरिए सैनिकों के खाने का सामान और छोटे हथियार तो 17 हजार फीट की ऊंचाई तक पहुंचाए जा सकते थे, लेकिन भारी तोप नहीं। पाकिस्तानी सेना के इंजीनियर ने तोपों के पुर्जे खोलकर उसे 8 हिस्सों में बांटकर पहाड़ों पर पहुंचाया।   पाकिस्तानी सेना पहाड़ों पर लंबी दूरी तक भारतीय सैनिकों की तैनाती नहीं देखकर आगे बढ़ती चली गई। ऑपरेशन की शुरुआत में 10 से 12 पोस्ट बनाने का फैसला पाकिस्तानी सेना ने किया था, जो अब बढ़कर 130 के करीब हो गई थी। यहां से असली समस्या शुरू हुई। प्लानिंग से आगे बढ़ने की वजह से सप्लाई लाइन कमजोर पड़ गई। NLI की यूनिट 5 LoC से 26 किलोमीटर अंदर भारतीय सीमा में तैनात थी। जिसे कई दिनों तक भूखे पेट लड़ाई लड़नी पड़ी। NLI यूनिट 8 के लेफ्टिनेंट मोहम्मद माजूल्ला खान ने अपनी डायरी में लिखा था- 'मौसम खराब है। बर्फबारी हो रही है। 'मैं दिल से' और 'कुछ कुछ होता है' के गाने सुन रहा हूं। कई दिनों बाद पिछली रात पार्टी राशन लेकर आई। हमें सिगरेट, सूखे मेवे, मिल्क पाउडर मिले। अब सब ठीक है।' इससे समझ सकते हैं कि पाकिस्तानी सेना की हालत कितनी खराब हो गई थी। भारत की तरफ क्या चल रहा थाः चरवाहे या किसी और तरह से भारतीय सेना को पता चला नसीम जेहरा अपनी किताब फ्राम कारगिल टु द कूप में लिखती हैं कि जनवरी 1999 में पहली बार भारतीय सेना के कर्नल पुष्पिंदर ओबराय ने एक पत्र लिखकर अपनी 3 इन्फेंट्री के कमांडर बुधवर को कहा था कि टाइगर हिल एरिया में 6 किलोमीटर तक पाकिस्तानी घुसपैठ की संभावना है। इस क्षेत्र में हमारी तैयारी कमजोर है। हालांकि, ओबराय की ये बात मानने से कमांडर ने इनकार कर दिया। 3 मई 1999 को ताशी नामग्याल नाम के चरवाहे और उसके कुछ साथियों ने सबसे पहले पहाड़ी कपड़े पहने कुछ लोगों को बंकर बनाते देखा था। इसकी जानकारी मिलते ही 15 मई 1999 को लेफ्टिनेंट सौरभ कालिया और पांच सैनिक काकसर सेक्टर की बजरंग पोस्ट में पेट्रोलिंग करने पहुंचे। पहले से तैयार बैठी पाकिस्तानी सेना ने सौरभ कालिया और उनके साथियों पर जोरदार हमला बोल दिया। घायल कालिया को पाकिस्तानी सेना ने बंदी बना लिया। इस घटना के बाद भारतीय सेना को पाकिस्तानी सेना की इतनी बड़ी घुसपैठ और तैयारियों का अंदाजा लगा। 10 मई को पाकिस्तानी सेना से अपनी जमीन खाली कराने के लिए भारतीय सेना ने ऑपरेशन विजय की शुरुआत की। 20 मई 1999 को नेशनल हाईवे-1 के सबसे करीब तोलोलिंग चोटी पर कब्जे के लिए भारतीय सेना ने 18 ग्रेनेडियर्स यूनिट को इस चोटी पर कब्जे का टास्क दिया। सेना को वहां सिर्फ 4 से 5 मिलिटेंट होने की जानकारी थी, लेकिन आगे बढ़ते ही दोनों तरफ से भीषण गोलीबारी शुरू हो गई। करीब 23 दिनों तक चली इस लड़ाई के बाद 13 जून 1999 को भारतीय सेना तोलोलिंग पर कब्जा करने में कामयाब रही। इस लड़ाई में 18 ग्रेनेडियर यूनिट के 25 सैनिक शहीद हो गए। टाइगर हिल पर कब्जा: बोफोर्स और मिराज 2000 से सबसे ऊंची चोटी पर मिली फतह तोलोलिंग चोटी के बाद भारतीय सेना के लिए 17 हजार फीट की ऊंचाई पर टाइगर हिल और सेना चौकी पॉइंट 5287 और पॉइंट 4812 को वापस लेना जरूरी था। जून के पहले हफ्ते में भारतीय सेना ने कारगिल हिल पर कब्जा किए बैठे पाकिस्तानी सेना पर जबरदस्त पलटवार किया। इस हमले ने पाकिस्तानी सेना को पूरी तरह से हैरान कर दिया।30,000 से ज्यादा भारतीय सैनिकों की दो टुकड़ियों को पहाड़ियों पर कब्जा करने के लिए भेजा गया। भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमानों ने पहाड़ी चोटियों पर लेजर-गाइडेड बम गिराने शुरू कर दिए। इससे 'मुजाहिदीन' द्वारा बनाए गए पत्थर के बंकर टूट गए और पैदल सेना की टुकड़ियां खड़ी चट्टानों पर चढ़ गईं और खूनी हाथापाई में शामिल हो गईं। 3 जुलाई 1999 को इस चोटी पर कब्जा करने की जिम्मेदारी 18 ग्रेनेडियर्स को मिली। उनकी मदद के लिए 8 सिख रेजिमेंट को साथ भेजा गया। दोनों ओर से हो रही गोलीबारी के बीच इंडियन आर्मी जैसे ही ऊपर चढ़ने की कोशिश करती थी तो दुश्मन आसानी से निशाना लगा लेते थे।22 ग्रेनेडियर्स के मेजर अजीत और उनकी यूनिट को दोनों चोटियों के बीच फुटहोल्ड बनाने का टास्क मिला। राशन, गोला-बारूद की कमी के बावजूद भारतीय सैनिक पहाड़ों पर लगातार चार दिनों तक लड़ते रहे। एक वक्त ऐसा भी आया, जब भारतीय सैनिकों के लिए पहाड़ों से हो रही गोलीबारी का सामना करना मुश्किल हो गया। इस वक्त भारत ने फ्रांस से खरीदे मिराज 2000 एयरक्राफ्ट का इस्तेमाल करने का फैसला किया। इस एयरक्राफ्ट के एक बम की कीमत 2 करोड़ रुपए थी, जिसे भारत टाइगर हिल पर खर्च नहीं करना चाहता था। इस एयरक्राफ्ट के साथ ही फ्रांस ने 60 लेजर गाइडेड पॉड्स भारत को दिए थे। इन गोलों को भारत पड़ोसी देश के अहम ठिकानों पर इस्तेमाल करना चाहता था।भारत ने इजराइल से 1997 में इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल टार्गेटिंग पॉड्स खरीदने की डील की थी। जंग शुरू होते ही इजराइल इसकी सप्लाई करने लगा। इन पॉड्स में इस्तेमाल होने वाला Paveway-2 LGB बम अमेरिका से आना था। अमेरिका और UK दोनों ने भारत को इस अहम मौके पर ये बम देने से इनकार कर दिया। इस मुसीबत की घड़ी में भारतीय सेना ने 1000 पाउंड के देसी बम बनाकर इस्तेमाल करने का फैसला किया। 24 जून की सुबह मिराज-2000 फाइटर जेट जुगाड़ बम के साथ टाइगर हिल की तरफ बढ़े। अटैक करते ही जुगाड़ बम बिल्कुल सटीक निशाने पर और पाकिस्तानी बेस पर जा गिरा। इस मिशन को अंजाम तक पहुंचाने में एयर मार्शल रघुनाथ नांबियार और एयर चीफ मार्शल ए वाई टिपनिस का सबसे बड़ा योगदान था।पाकिस्तानी सेना ने अपने जवानों के शव लेने से इनकार कियाकरीब 2 महीने तक चली जंग के बाद 8 जुलाई 1999 को स्थिति सामान्य हुई। भारतीय सैनिकों के टाइगर हिल पर कब्जा करने के बाद उस पर तिरंगा लहराने लगा। जंग खत्म होने के बाद सेना के बंकरों और खाइयों में 200 से ज्यादा पाकिस्तानी सैनिकों के शव मिले। इनकी जेब और बैग में मौजूद दस्तावेजों से उनकी शिनाख्त हुई। पाकिस्तानी जवानों के पास से उनकी पे बुक, मेस की पर्ची, मूवमेंट ऑर्डर और सिग्नल कोड मिले। इतना ही नहीं, पाकिस्तानी सेना के 5 नॉर्दर्न लाइट इन्फेंट्री के माज उल्लाह खान सुंबल की डायरी से कुछ अहम सुराग हाथ लगे थे। 31 जनवरी 1999 को पाकिस्तानी सेना के इस अधिकारी को अपने प्लाटून के साथ कारगिल में तैनाती का ऑर्डर मिला था। डायरी में सेना के MI-17 हेलिकॉप्टर का भी जिक्र किया गया था। माज उल्लाह खान ने लिखा था कि भारतीय गोलीबारी में उनके बाएं हाथ की हड्डी टूट गई थी। जंग के बाद भारतीय सेना ने दावा किया कि पाकिस्तान ने अपने सैनिकों के शव लेने से इनकार कर दिया। पाकिस्तान ने सिर्फ 5 शवों को स्वीकारा, जिसमें 12 नॉर्दर्न लाइट इन्फेंट्री के कैप्टन कर्नल शेर खान भी थे। शेर खान के शव की जेब में भारतीय सेना ने एक पर्चा लिख कर रख दिया था, जिसमें लिखा था कि ये बहुत बहादुरी से लड़े। उन्हें मरणोपरांत पाकिस्तान का सर्वोच्च सैन्य पुरस्कार निशान-ए-हैदर दिया गया। इसके अलावा पाकिस्तान ने अपने जवानों के शवों को सड़ी-गली अवस्था में होने की वजह से स्वीकार करने से इनकार कर दिया। भारत को लेकर गलत कैलकुलेशन का नतीजा थी कारगिल जंग पूर्व सेना अधिकारी जेएस सोढी कारगिल जंग को भारत को लेकर किए गए पाकिस्तान के गलत कैलकुलेशन का नतीजा बताते हैं। सोढी के मुताबिक पाकिस्तानी सेना के जनरल जब सरकार को इस ऑपरेशन की जानकारी दे रहे थे तो उन्होंने भारत पर जीत हासिल करने की 4 वजहें बताई थीं... 1. ऊंची चोटियों पर कब्जा: पाकिस्तानी सेना भारतीय सीमा के अंदर उन सभी ऊंची चोटियों पर कब्जा कर लेगी जो रणनीतिक तौर पर अहम हैं। लेह-श्रीनगर हाईवे इन चौकियों की रेंज में होगा। भारतीय सेना के किसी एक्शन पर मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा। उनके लिए दोबारा इन चोटियों को वापस ले पाना मुश्किल होगा। 2. पहाड़ों की लड़ाई से बचना: पाकिस्तानी सेना के जनरलों को लग रहा था कि भारतीय सेना में जमीन से इतनी ऊंचाई पर हमला करने की इच्छाशक्ति नहीं है। हालांकि, हुआ इसके ठीक उलट। 3. अंतरराष्ट्रीय दबाव नहीं होगा: पाकिस्तानी सेना ने PM नवाज को समझाया कि अभी जंग शुरू होने पर कोई अंतरराष्ट्रीय संगठन या दूसरे देश जंग खत्म कराने को लेकर दबाव नहीं बना पाएंगे। 4. सरकार से पाकिस्तानी सेना अतिरिक्त बजट नहीं मांगेगी: सेना प्रमुख ने कहा कि देश के आर्थिक संकट को देखते हुए पाकिस्तानी सेना सरकार से कोई अतिरिक्त पैसा नहीं मांगेगी। हालांकि, पाकिस्तानी सेना के ये चारों ही अनुमान गलत साबित हुए। भारतीय सेना ने जब पलटवार किया तो पाकिस्तान के लिए उसे रोक पाना मुश्किल हो गया।

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Dakhal News 26 July 2024

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