रूठे नेता को मनाने में लगी थी c रूठे नेता को मनाने में लगी थी बीजेपी, उधर कमलनाथ ने चली चाल, बुधनी में 18 साल पहले क्या हुआ था ?, उधर कमलनाथ ने चली चाल, बुधनी में 18 साल पहले क्या हुआ था ?
 रूठे नेता को मनाने में लगी थी बीजेपी, उधर कमलनाथ ने चली चाल, बुधनी में 18 साल पहले क्या हुआ था ?

मध्य प्रदेश की एक महत्वपूर्ण विधानसभा सीट, बुधनी, इस समय राजनीति का एक केंद्र बन गई है। यहाँ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने रमाकांत भार्गव को अपना उम्मीदवार घोषित किया है, और उनका नामांकन भी दाखिल हो चुका है। हालाँकि, भाजपा में इस सीट को लेकर काफी उठापटक हो रही है, क्योंकि टिकट के लिए प्रमुख दावेदार राजेंद्र सिंह राजपूत को पार्टी ने नजरअंदाज कर दिया है। इससे नाराज उनके समर्थक और स्थानीय कार्यकर्ता विरोध प्रदर्शित कर रहे हैं।

यह स्थिति पिछले कुछ वर्षों में भाजपा की आंतरिक राजनीति की जटिलताओं को उजागर करती है। राजेंद्र सिंह राजपूत, जो पार्टी के पुराने और महत्वपूर्ण नेताओं में से एक माने जाते हैं, ने इस सीट पर अपनी पकड़ मजबूत रखी है। हालांकि, उनकी अनुपस्थिति ने स्थानीय स्तर पर असंतोष पैदा कर दिया है। कार्यकर्ताओं का मानना है कि राजपूत का अनुभव और स्थानीय जनसंघर्ष उन्हें इस चुनाव में सफलता दिला सकते थे।

बीजेपी के लिए यह स्थिति नई नहीं है। 2006 में भी, राजेंद्र सिंह राजपूत ने भाजपा के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी जब शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री बनाने के लिए उन्हें अपनी सीट खाली करने को कहा गया था। उस समय राजपूत के लिए यह एक मुश्किल फैसला था, लेकिन उन्होंने पार्टी के हित में कदम उठाया। अब, 18 साल बाद, एक बार फिर वही स्थिति बन गई है, जिसमें स्थानीय कार्यकर्ता उनके लिए टिकट की मांग कर रहे हैं।

हाल ही में नसरुल्लागंज में आयोजित एक कार्यकर्ता बैठक में रमाकांत भार्गव को टिकट दिए जाने के खिलाफ नाराजगी जताई गई। कई कार्यकर्ताओं ने स्पष्ट रूप से राजेंद्र राजपूत का समर्थन किया और उन्हें टिकट देने की मांग की। बैठक में राजपूत ने कार्यकर्ताओं को समझाने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि संगठन का यह निर्णय उन्हें दुखी करता है। 

भाजपा के लिए यह स्थिति एक चुनौती के रूप में उभर रही है। कार्यकर्ताओं का असंतोष न केवल पार्टी के स्थानीय स्तर पर प्रभाव को कमजोर कर सकता है, बल्कि यह आगामी चुनावों में भी उनकी संभावनाओं पर असर डाल सकता है। ऐसे में पार्टी को अपनी रणनीतियों पर पुनर्विचार करना पड़ सकता है। 

साथ ही, यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या भाजपा अपनी जड़ों को मजबूत करने के लिए राजेंद्र सिंह राजपूत को किसी और भूमिका में लाएगी, या फिर रमाकांत भार्गव के प्रति अपनी आस्था पर कायम रहेगी। राजनीति में व्यक्ति और पार्टी के बीच संतुलन साधना हमेशा एक चुनौती होती है, और यह स्थिति इसी का एक उदाहरण है।

इस प्रकार, बुधनी विधानसभा सीट पर हो रहे घटनाक्रम ने न केवल भाजपा की आंतरिक राजनीति को उजागर किया है, बल्कि यह भी दर्शाया है कि कैसे एक क्षेत्रीय नेता का असामर्थ्य और कार्यकर्ताओं का असंतोष चुनावी परिणामों को प्रभावित कर सकता है। आगे क्या होगा, यह तो समय ही बताएगा, लेकिन वर्तमान में स्थिति निश्चित रूप से भाजपा के लिए चुनौतीपूर्ण है।

Dakhal News 26 October 2024

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