वीकेंड पर बैठ गई आलिया भट्ट की 'जिगरा' , धुआंधार कमाई से रह गई कोसों पीछे
आलिया भट्ट, जिगरा

जेलब्रेक पर आधारित फिल्में हॉलीवुड में काफी प्रचलित रही हैं। 'एस्केप प्लान', 'लॉक आउट', 'लॉ एबाइडिंग सिटीजन', 'प्रिजन ब्रेक', 'द शॉशैंक रिडम्पशन' जैसी कई फिल्में हैं, जिन्होंने दर्शकों के दिलों पर राज किया है। बॉलीवुड में भी 'शोले', 'शंहशाह', 'कर्ज', 'लॉकअप' और 'कहानी' जैसी फिल्मों में जेल तोड़ने वाले सीक्वेंसेज को दिलचस्प ढंग से दिखाया गया है, मगर पूर्ण रूप से जेल ब्रेक वाली फिल्मों में श्रीदेवी की 'गुमराह' और पिछले दिनों आई दिव्या खोसला की 'सावी' ही रही हैं। अब निर्देशक वासन बाला इस सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए आलिया भट्ट की पावरपैक्ड परफॉर्मेंस के साथ 'जिगरा' लाए हैं, जिसमें वो एक्शन और इमोशन में तो अव्वल रहे, मगर कहानी के स्‍तर पर चूक गए हैं।

 

'जिगरा' की कहानी

इस बार कहानी किसी प्रेमी-प्रेमिका की नहीं है। कहानी है बहन सत्या (आलिया भट्ट) और उसके भाई अंकुर (वेदांग रैना) की। इनकी मां बहुत बचपन में गुजर गई थी और पिता ने इन्हीं मासूमों के सामने खुदकुशी कर ली थी। बस उसी हादसे के बाद अपने भाई को अति प्रेम करने वाली सत्या, अंकुर के लिए एक ऐसा कवच बन जाती है, जिसे भेद पाना असंभव-सा मालूम होता है।

 

पिता के गुजर जाने के बाद ये दोनों अपने बड़े पापा (आकाश दीप) और बड़ी मम्मी (शीबा) के रहमो-करम पर बड़े होते हैं। बड़े पापा अंकुर को अपने बेटे कबीर के साथ बिजनस में साथ देने के लिए हंसी दाओ भेजते हैं। वहां कबीर को पुलिस ड्रग्स रखने के जुर्म में पकड़ लेती है। मगर अंकुर को बड़े पापा के एहसानों का बदला चुकाने के लिए कबीर का जुर्म अपने सिर लेने के लिए मजबूर किया जाता है। कबीर के किए की सजा अंकुर को वहां के कानून के हिसाब से सजा-ए-मौत के रूप में मिलती है।

 

अपने भाई को दिल-ओ-जान से प्रेम करने वाली सत्या अब अंकुर को बचाने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है। विदेश जाकर पहले वह वकीलों और मानवाधिकार वाली संस्थाओं का सहारा लेती है, मगर जब बात नहीं बनती, तब वह जेल तोड़कर भाई को भगाने का प्लान बनाती है। इस जेल ब्रेक योजना में वो कितनी कामयाब होती है, इसका पता आपको फिल्म देखने के बाद ही चलेगा।

 

'जिगरा' मूवी रिव्यू

निर्देशक वासन बाला ने अपनी फिल्म में 6 हजार खूंखार कैदियों और आधुनिक-कड़ी सुरक्षा वाली जेल को तोड़ने के लिए नायक नहीं, बल्कि नायिका का चुनाव किया। इसी के साथ फिल्म में एक डायलॉग है, जहां बहन कहती है- मैंने तुझे राखी पहनाई है, मैं तेरी रक्षा करूंगी।

 

कहानी में ये रोल रिवर्स बहुत यूनिक मालूम पड़ते हैं। फर्स्ट हाफ में वासन बाला कहानी के इमोशन के साथ-साथ पकड़ को भी बनाए रखते हैं, मगर सेकंड हाफ में कहानी पटरी से उतरती चली जाती है। वासन पर बिग बी का हैंगओवर भी साफ नजर आता है, जब वे कहानी के डायलॉग्स और बैकग्राउंड में बजने वाले गानों में बिग बी की फिल्मों को लाते हैं। उनकी इस फिल्म के बेहतरीन बनने की प्रबल संभावना थी, मगर स्क्रीनप्ले में जेल ब्रेक के दो प्लान ने कहानी की जटिलता को और बढ़ा दिया।

 

हालांकि फिल्म की तकनीकी पकड़ मजबूत है। अंचित ठक्कर का बैकग्राउंड स्कोर, विक्रम दाहिया का एक्शन और स्वप्निल एल सोनवणे की सिनेमैटोग्राफी दमदार है, मगर एक्स गैंगस्टर भाटिया (मनोज पाहवा) और मुथु (राहुल रवींद्रन) की मदद से सत्‍या हाई सिक्‍योरिटी जेल को जिस आसानी से हीरोइक अंदाज में भेदती है, वह कन्विंसिंग नहीं लगता। संगीत के मामले में बैकग्राउंड में बजने वाला गाना, 'तनु संग रखना' फिल्म के फील को बनाए रखता है।

 

परफॉर्मेंस की बात की जाए, तो एक एक्शन स्टार और इमोशन से भरी एंग्री यंग वुमन के रोल में आलिया शानदार हैं। उन्होंने बेबसी, लाचारी, प्रेम और दृढ़ संकल्प बहन को पर्दे पर जीवंत कर दिया है। भाई अंकुर के रूप में वेदांग रैना का काम भी सराहनीय है। अपने बेटे को जेल से भगाने वाले बाप के रूप में भाटिया उर्फ मनोज पाहवा का अभिनय यादगार है। छोटी-छोटी भूमिकाओं में आकाशदीप और शीबा भी अच्छे रहे हैं। सपोर्टिंग कास्ट भी अच्छी रही है।

Dakhal News 15 October 2024

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