Dakhal News
21 December 2024आजादी से पहले भारत की करेंसी छापने का काम इकलौते नासिक प्रेस में होता था। 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों ने देश की आजादी के साथ उसे दो हिस्सों में बांट दिया। अब नए मुल्क पाकिस्तान के सामने समस्या थी कि क्या वहां भारत के नोट चलाए जाएं? कुछ पाकिस्तानी नेताओं ने नासिक प्रिंटिंग प्रेस बांटने की मांग की, लेकिन यह प्रैक्टिकली संभव नहीं था।
आखिर पाकिस्तान ने करेंसी पर क्या फैसला किया? आजादी और बंटवारे से जुड़े ऐसे कई सवाल आम लोगों के जेहन में अक्सर आते हैं। जैसे- आजादी के लिए 15 अगस्त ही क्यों चुना, अंग्रेज गए तो सरकारी खजाने में कितना पैसा छोड़ गए, जेल में बंद कैदियों का क्या हुआ; आजादी की 78वीं सालगिरह पर ऐसे ही 10 रोचक सवालों के जवाब जानेंगे...
सवाल-1: भारत की आजादी के लिए 15 अगस्त ही क्यों चुना गया?
जवाब: सेकेंड वर्ल्ड वॉर के बाद 1945 में ब्रिटेन में चुनाव हुए। लेबर पार्टी सत्ता में आई और क्लेमेंट एटली प्रधानमंत्री बने। PM एटली ने फरवरी 1947 में ऐलान किया कि 30 जून 1948 तक ब्रिटेन भारत को आजाद कर देगा। इसके लिए लॉर्ड माउंटबेटन को आखिरी वायसराय चुना गया।
भारत के पहले गवर्नर जनरल सी राजगोपालाचारी के मुताबिक अगर माउंटबेटन जून 1948 तक इंतजार करते तो ट्रांसफर करने के लिए उनके पास कोई पॉवर ही नहीं बचती। पूरे देश में हिंसा और उथल-पुथल मची थी। माउंटबेटन ने भारत की आजादी और बंटवारे के प्लान में तेजी दिखाई।
माउंटबेटन के सुझावों पर ब्रिटेन की संसद ने 4 जुलाई, 1947 को इंडियन इंडिपेंडेंस एक्ट पारित किया। इसमें 15 अगस्त 1947 को भारत से ब्रिटिश शासन खत्म करने का प्रावधान था। अब सवाल उठता है कि 15 अगस्त ही क्यों?
सवाल-2: भारत और पाकिस्तान अलग-अलग दिन आजादी क्यों मनाते हैं?
जवाब: ब्रिटिश संसद में भारत की आजादी का दिन 15 अगस्त ही तय किया गया था। इंडियन इंडिपेंडेंस एक्ट में भी साफ-साफ इसी तारीख का जिक्र है। पाकिस्तान ने जो पहला डाक टिकट जारी किया है, उसमें भी आजादी की तारीख 15 अगस्त ही है।
पाकिस्तान में दिए अपने पहले भाषण में जिन्ना ने कहा था कि 15 अगस्त स्वतंत्र और संप्रभु पाकिस्तान का जन्मदिन है। यह उस मुस्लिम राष्ट्र की नियति की पूर्ति का प्रतीक है, जिसने अपनी जमीन पाने के लिए बहुत कुर्बानियां दी हैं।
फिर पाकिस्तान में 14 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस क्यों मनाया जाने लगा, इसकी कोई स्पष्ट वजह नहीं मिलती। एक थ्योरी है…
पाकिस्तान के जाने-माने इतिहासकार के.के. अजीज अपनी किताब मर्डर ऑफ हिस्ट्री में लिखते हैं, 'वायसराय माउंटबेटन ब्रिटिश राज के इकलौते प्रतिनिधि थे। उन्हें व्यक्तिगत रूप से दोनों नए देशों को सत्ता हस्तांतरित करना था। हालांकि, माउंटबेटन एक ही समय नई दिल्ली और कराची में मौजूद नहीं हो सकते थे। ऐसा भी संभव नहीं था कि वो 15 अगस्त की सुबह भारत को सत्ता सौंपे और शाम तक कराची आ जाएं, क्योंकि उस समय तक वे भारत के गवर्नर जनरल बन चुके होते।'
के. के. अजीज लिखते हैं, 'प्रैक्टिकल विकल्प यही था कि माउंटबेटन 14 अगस्त को वायसराय के तौर पर पाकिस्तान को सत्ता हस्तांतरित करें और फिर 15 अगस्त को भारत चले जाएं। उन्होंने ऐसा ही किया और तभी से पाकिस्तान 14 अगस्त को अपनी आजादी का दिन मनाने लगा।'
लेखक लैरी कोलिन्स और डोमिनिक लैपियर की किताब ‘फ्रीडम एट मिडनाइट’ में लॉर्ड माउंटबेटन के हवाले से लिखा गया है, ‘मैंने जो तारीख चुनी, वह अचानक से मेरे दिमाग में आई। जब मुझसे पूछा गया कि क्या हमने कोई तारीख तय की है, तो उस समय मैंने ठीक से नहीं सोचा था। मुझे इतना अंदाजा था कि इसे अगस्त या सितंबर के आसपास रखना चाहिए। अचानक मेरे दिमाग में 15 अगस्त की तारीख आई, क्योंकि यह द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान के आत्मसमर्पण की दूसरी वर्षगांठ थी। इसी दिन जापान के राजा हिरोहितो ने आत्मसमर्पण का ऐलान किया था।’
सवाल-3: ये बात कितनी सच है कि 15 अगस्त 1947 को भारत को लीज पर आजादी मिली, भारत संप्रभु देश नहीं था?
जवाब: भारत को आजादी लीज यानी पट्टे पर नहीं मिली है। ये कोरी अफवाह है। जब भारत आजाद हुआ तब भी संप्रभु था और आज भी है। ये बात सच है कि भारत को आजादी ब्रिटेन की संसद में पेश इंडियन इंडिपेंडेंस एक्ट 1947 के तहत ही मिली थी।
इसके बाद भारत का संविधान बना। 26 जनवरी 1950 को इंडियन इंडिपेंडेंस एक्ट 1947 को निरस्त करके ही भारत में संविधान लागू किया गया था। संविधान लागू करते समय भारत को पूरी तरह से स्वतंत्र एवं संप्रभु देश घोषित किया गया था।
UK की संसद की वेबसाइट पर जाएंगे तो वहां साफ-साफ भारत की आजादी से जुड़े कानून का जिक्र और दस्तावेज उपलब्ध हैं। उसमें लिखा है कि ब्रिटेन ने इस एक्ट के तहत दो नए स्वतंत्र प्रभुत्व राष्ट्र भारत और पाकिस्तान बनाए हैं। इस एक्ट के तहत ब्रिटिश राजशाही को 'भारत के सम्राट' के पद से भी हटा दिया गया है।
ब्रिटिश राजघराने ने रियासतों के साथ सभी मौजूदा संधियों को समाप्त कर दिया है। लॉर्ड माउंटबेटन गवर्नर-जनरल के रूप में काम करते रहेंगे। जवाहरलाल नेहरू को भारत का पहला प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया है। मोहम्मद अली जिन्ना पाकिस्तान के गवर्नर जनरल और लियाकत अली खान इसके प्रधानमंत्री बने हैं।
सवाल-4: जब पाकिस्तान बना तो वहां कौन सी करेंसी चलाई गई, क्योंकि तब तक पाकिस्तान अपने नोट तो छापता नहीं था?
जवाब: विभाजन से पहले करेंसी नोट नासिक प्रेस में छपते थे। जब बंटवारा हुआ तो पाक बनाने की मांग करने वाले कुछ नेताओं ने कहा कि नासिक प्रिंटिंग प्रेस का भी विभाजन होना चाहिए, लेकिन यह प्रैक्टिकली पॉसिबल नहीं था। बंटवारे में 70 दिन बाकी थे।
पाकिस्तान को करेंसी नोटों की जरूरत थी। जब भारत-पाक के नेताओं ने चर्चा की तो पाकिस्तान के सामने तीन विकल्प रखे गए…
1. नासिक प्रेस से ही प्रिंटिंग जारी रखी जाए।
2. बंटवारे के बाद 15 अगस्त से पाक सरकार अपनी व्यवस्था खुद कर ले।
3. पाक सरकार किसी प्राइवेट प्रिंटिंग प्रेस से अपनी करेंसी छपवा ले।
पाकिस्तान पक्ष की एक कमेटी ने नासिक प्रेस का निरीक्षण किया और उसकी क्षमता का आकलन किया। उन्होंने तय किया कि नोट यहीं नासिक में छपना चाहिए। इसके लिए पाक का एक प्रतिनिधि यहां तैनात होगा, जो प्रोसेस पर नजर रखेगा।
समस्या ये थी कि बंटवारे के बाद दूसरे देश का आदमी नोट प्रेस जैसी गोपनीय जगह पर कैसे रह सकता है। इसके लिए बंटवारा कमेटी ने 19 जुलाई 1947 को वित्त विभाग के सामने रिपोर्ट पेश कर अनुमति मांगी तब जाकर उसे यहां रहने की सहमति मिली।
समस्या नोट छापने की नहीं थी, बल्कि डिजाइन की थी। नासिक प्रेस में पाकिस्तान या भारत के लिए नए नोटों का डिजाइन तैयार किया जाता तो इसमें कम से कम डेढ़ साल का समय लगता। इसके बाद ये नोट मार्केट में उतारने में भी समय लगता।
ऐसे में तय किया गया कि भारतीय रिजर्व बैंक भारत और पाकिस्तान दोनों के लिए नोट छापेगा।
हिंदुस्तानी हुकूमत को आजादी के बाद भी समझौता करना पड़ा। उनके करेंसी नोटों पर इंग्लैंड के राजा की तस्वीर को उन्हें स्वीकार करना पड़ा, जिस पर RBI के तत्कालीन गवर्नर सीडी देशमुख के हस्ताक्षर थे। पाकिस्तान को तो और भी समझौता करना पड़ा। उसे 'रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया' के जारी किए गए करेंसी नोटों को स्वीकार करना पड़ा।
नासिक प्रेस ने पाकिस्तान के नोटों के सफेद हिस्से पर ऊपर अंग्रेजी में 'गवर्नमेंट ऑफ पाकिस्तान' और नीचे उर्दू में 'हुकुमते पाकिस्तान' उकेर दिया था। इससे पता चलता था कि ये करेंसी पाक की है। पाकिस्तान के लिए करेंसी नोटों की पहली खेप RBI ने 1 अप्रैल, 1948 को जारी की थी। इस कारण माना जाता है कि तब तक पाकिस्तान में पुरानी 'भारतीय' करेंसी चलती थी। 1949 में पाकिस्तान ने अपनी करेंसी अपने देश में छापनी शुरू की थी।
सवाल-5: क्या 15 अगस्त की रात को ही सभी गोरे सिपाही चले गए थे?
जवाब: भारत और पाकिस्तान की सैन्य व्यवस्था संभालने के लिए कई ब्रिटिश अफसर और सैनिक अगले एक साल तक भारत में ही रुके थे। जब वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने भारत की आजादी की तारीख 15 अगस्त 1947 का ऐलान किया तो तुरंत ब्रिटिश सैनिकों को उनकी बैरकों में बुला लिया गया।
कई ब्रिटिश अधिकारी बंटवारे में सहायता के लिए भारत में रुक गए, जिनमें भारत के प्रथम सेनाध्यक्ष जनरल सर रॉबर्ट लॉकहार्ट और पाकिस्तान के प्रथम सेनाध्यक्ष जनरल सर फ्रैंक मेसेर्वी शामिल थे।
भारत छोड़ने वाली आखिरी यूनिट फर्स्ट बटालियन, समरसेट लाइट इन्फैंट्री (प्रिंस अल्बर्ट) थी, जो 28 फरवरी 1948 को बम्बई (अब मुंबई) से इंग्लैंड के लिए रवाना हुई थी। 15 अगस्त से कुछ सप्ताह पहले कानून और व्यवस्था की जिम्मेदारी भारतीय सेना को सौंपी गई थी, क्योंकि आगे भी उसे यही करना था।
सवाल-6: भारत-पाक बंटवारे में जेल में बंद कैदियों का क्या हुआ?
जवाब: कैदियों की पुख्ता संख्या के बारे में तो कोई जानकारी नहीं है, लेकिन राजनीतिक कैदियों को आजादी का ऐलान होते ही तुरंत रिहा कर दिया गया था।
आम कैदियों के मामले में अलग-अलग प्रक्रिया अपनाई गई थी। जब दंगे बढ़ने लगे तो कई जेलों से आम कैदियों को कानून और व्यवस्था भंग होने के कारण रिहा कर दिया गया था। कुछ जगह पर जहां संभव था, कैदियों को रखा गया और उन्होंने अपनी सजा पूरी की। इसके बाद उन्हें रिहा कर दिया गया।
सवाल-7: बैंकों का बंटवारा कैसे हुआ?
जवाब: पाकिस्तान की जनसंख्या कुल जनसंख्या का लगभग 20% थी। भारत और पाक दोनों में गैर सरकारी बैंकों की संख्या ज्यादा थी। ज्यादातर बैंकों के हेड ऑफिस भारत में थे। वहीं ब्रांच ऑफिसेस पाकिस्तान में ज्यादा थे। उस समय इनकी पूंजी और रिजर्व डेढ़ लाख करोड़ रुपए से अधिक थे। इनमें से लगभग 25% बैंक पाकिस्तान में थे।
वेस्ट पाकिस्तान यानी आज के बांग्लादेश में बैंकिंग सुविधाएं ईस्ट पाकिस्तान की तुलना में बेहतर थीं। 13 में से 10 सरकारी बैंक वहीं थे। वहीं 157 गैर सरकारी बैंकों में से 123 वेस्ट पाकिस्तान में थे। इसका कारण ये था कि अंग्रेजों की राजधानी कलकत्ता (कोलकाता) व्यापार और बैंकिंग लेन-देन का हब थी।
जब बंटवारा हुआ तो कुल 3146 सरकारी बैंक और उनकी ब्रांच थीं। इनमें से पाकिस्तान को 633 और 2513 भारत के हिस्से में आई थीं। वहीं गैर सरकारी बैंक में से कुल 2205 में से पाकिस्तान के हिस्से में 568 और भारत के हिस्से में 1637 बैंक आए थे।
सवाल-8: अंग्रेज भारत के सरकारी कोष में कुल कितना पैसा छोड़ गए थे?
जवाब: 1 मार्च 1947 को अविभाजित भारत के पास कैश और सिक्योरिटी 514 करोड़ रुपए थे, जबकि 15 अगस्त 1947 को 400 करोड़ रुपए बचा था। बंटवारे के एग्रीमेंट में इसे इतना ही लिखा गया था। 325 करोड़ रुपए भारत को और 75 करोड़ रुपए पाकिस्तान के हिस्से में आए। 20 करोड़ रुपए पाकिस्तान को एडवांस दिए गए थे। आजादी के बाद भारत और पाकिस्तान ने सालभर सितंबर 1948 तक एक ही रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की सेवा ली थी।
सवाल-9: माउंटबेटन ने राष्ट्रपति भवन कब खाली किया, भारत के पहले गवर्नर जनरल कब दाखिल हुए?
जवाब: लॉर्ड माउंटबेटन 14-15 अगस्त 1947 की आधी रात को पाकिस्तान और भारत को आजादी मिलने के बाद से 10 महीने तक नई दिल्ली में रहे। उन्होंने जून 1948 तक स्वतंत्र भारत के पहले गवर्नर जनरल के रूप में काम किया। इन दस महीनों में उन्होंने कई राजाओं को भारत में विलय के लिए मनाया।
माउंबेटन के कार्यकाल के दौरान ही सी राजगोपालाचारी वायसराय भवन अब राष्ट्रपति भवन में रह चुके थे। दरअसल, 10 से 24 नवंबर 1947 तक माउंटबेटन अपने भतीजे प्रिंस फिलिप और राजकुमारी एलिजाबेथ की शादी में शामिल होने के लिए इंग्लैंड छुट्टी पर गए थे। इस दौरान सी राजगोपालाचारी को लॉर्ड माउंटबेटन की गैरहाजिरी में कार्यवाहक गवर्नर जनरल बनाया गया था।
सी राजगोपालाचारी ने वायसराय के महल में बेहद सिंपल जीवन बिताया था। वे अपने कपड़े खुद धोते थे और जूते भी खुद ही पॉलिश करते थे। माउंटबेटन ने सरदार वल्लभ भाई पटेल के बाद अपने पद का उत्तराधिकारी राजगोपालाचारी को ही बताया था। आखिरकार उन्हें ही चुना गया। उन्होंने 21 जून 1948 को वायसराय महल में कदम रखा और संविधान लागू होने तक 26 जनवरी 1950 तक इस पद पर रहे।
सवाल-10: क्या महात्मा गांधी आजादी के जश्न में शामिल नहीं हुए?
जवाबः महात्मा गांधी आजादी के जश्न में शामिल नहीं हुए थे। वे बंगाल में थे जहां हिन्दू-मुस्लिम के बीच सांप्रदायिक हिंसा हो रही थी। आजादी के दिन उन्होंने 24 घंटे का व्रत रखा था। उन्होंने नेहरू का भाषण भी नहीं सुना था, क्योंकि उस रात वे जल्दी सोने चले गए थे।
Dakhal News
15 August 2024
All Rights Reserved © 2024 Dakhal News.
Created By: Medha Innovation & Development
|