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अखाड़ा परिषद ने किया भव्य स्वागत ,गंगोत्री से आरम्भ हुई जल कलश यात्रा
गंगोत्री धाम के कपाट बंद होने के बाद आदि काल से गंगोत्री के रावल द्वारा नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर में भगवान शिव का अभिषेक करने के लिए जल कलश यात्रा निकाली जाती थी। इस यात्रा को पुनः गंगोत्री धाम के रावल शिव प्रकाश महाराज द्वारा शुरू किया गया। 23 वी जल कलश यात्रा को लेकर गंगोत्री धाम के रावल शिव प्रकाश महाराज हरिद्वार निरंजनी अखाड़े पहुंचे। इस मसले पर पेश है अफरीन बानो की ख़ास रिपोर्ट। आदि अनादि काल से परंपरा चली आ रही है की गंगोत्री के कपाट बंद होने के बाद वहां से कलश में जल भरकर नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर में भगवान शिव का अभिषेक किया जाता है। आज उसी परंपरा के तहत गंगोत्री धाम के रावल निरंजनी अखाड़ा पहुंचे। जहां पर उनका अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष श्रीमहंत रवींद्रपुरी महाराज ने भव्य स्वागत किया। गंगोत्री धाम के रावल शिव प्रकाश महाराज का कहना है कि यह अनादि काल से परंपरा चली आ रही है। नेपाल और उत्तराखंड का संबंध रोटी बेटी का है। नेपाल की बेटी की शादी टिहरी के राजा से होती थी। इनका कहना है की आदिकाल से गंगोत्री के रावल नेपाल में गंगा कलश यात्रा को पैदल लेकर जाया करते थे किसी कारण वश यह यात्रा बंद हो गई। मगर मेरे रावल बनने के बाद से आज 23वीं जल कलश यात्रा नेपाल जा रही है। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष श्री महंत रविंद्रपुरी महाराज का कहना है कि गंगोत्री धाम से चलकर आज कलश यात्रा हरिद्वार पहुंची। इस साल की यात्रा दिव्य और भव्य है क्योंकि जिस कलश में गंगाजल भरकर पशुपतिनाथ मंदिर में अभिषेक करने लेजाया जा रहा है। रविंद्रपुरी महाराज का कहना है कि केदारनाथ मंदिर में भगवान शिव का पूजन करने के साथ ही नेपाल के पशुपति नाथ मंदिर में शिव का पूजन करने का काफी महत्व है। क्योंकि पांडवों को कुल के लोगो हत्या का पाप लगा था। तब पांडव केदारनाथ आए थे। मगर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन नहीं दिए और बैल के रूप में छुपाने लगे। उनका सर नेपाल में पशुपति नाथ मंदिर के रूप में विराजमान हुआ और धड़ केदारनाथ के रूप में कहा जाता है केदारनाथ की पूजा तभी सफल होती है जब पशुपतिनाथ में भगवान शिव की आराधना की जाए। अनादि काल से गंगोत्री धाम से पशुपतिनाथ मंदिर पर भगवान शिव का जलाभिषेक करने के लिए गंगा जल से भरा कलश लेकर जाया जाता है कुछ समय पहले इस परंपरा को किसी कारणवश बंद कर दिया गया था। मगर एक बार फिर से सनातन धर्म को एक करने वाली यह परंपरा 23 साल पहले शुरू की गई थी और आज इस परंपरा को निभाने के लिए गंगोत्री के रावल गंगाजल लेकर निरंजनी अखाड़े पहुंचे। इसको लेकर तमाम साधु संतों में भी हर्षोल्लास का माहौल देखने को मिला
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