ऑफिस में ज्यादा काम करके माहौल खराब न करें
bhopal,Do not spoil , environment by working ,more in the office

-जे सुशील-

ज़िंदगी में नौकरी सबकुछ नहीं होता है नौकरी मिल जाए तो छुट्टी लेते रहना चाहिए. मैं जब नौकरी करता था तो शुरू शुरू में हीरो बना. छुट्टी नहीं लेता था. मुझे लगता था कि इससे मुझे लोग हीरो समझेंगे कि बहुत काम करता है. लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं.

हमारे दफ्तर में साल की करीब तीस पैंतीस छुट्टियां होती थीं. मैं लेता नहीं था छुट्टी. लगता था काम बहुत करूंगा तो लोग पसंद करेंगे. दो साल में बहुत छुट्टी जमा हो गई. फिर एक बार जाकर संपादक से कहा कि मेरी इतनी छुट्टियां बची हुई हैं क्या अब ले लूं तो उन्होंने कहा नियम के अनुसार छुट्टियां तीस मार्च को खतम हो जाती हैं. तो आपकी चालीस छुट्टियां पिछले दो साल की खत्म हैं.

मैं बड़ा दुखी हुआ. मैंने बहस की तो उन्होंंने कहा कि आपकी गलती है. हमने तो आपसे कहा नहीं था कि छुट्टियां न लें. आपकी छुट्टी है लेना ही चाहिए. नहीं ली तो आपकी गलती है. उस दिन के बाद मैंने तय कर लिया कि एक एक छुट्टी ज़रूर लेना है दफ्तर में.

मैंने उस दिन के बाद मेडिकल वाली छुट्टियां भी ली. थोड़ी भी तबियत खराब रही या मूड नहीं हुआ तो छु्ट्टी ले ली. सालाना छुट्टियां बचा कर लेने लगा. इससे मेरा जीवन बेहतर हो गया. मैं किताब पढ़ने लगा. आर्ट करने लगा. दफ्तर में कई लोग दिन रात काम करते थे. लेकिन काम की कोई बखत नहीं थी. आगे वही बढ़ रहे थे तो जो मक्खन लगा रहे थे.

कई लोग थे मेरे दफ्तर में जो सुबह आठ बजे आते और रात के आठ बजे जाते. मैं उनको गरियाता रहता था कि तुम लोग माहौल खराब कर रहे हो. मैं अपने अनुभव के बाद कभी भी समय से अधिक नहीं रूका और सार्वजनिक रूप से कहता रहा कि जो आदमी बिना किसी ब्रेकिंग न्यूज़ के दफ्तर में रूक रहा है समझो वो कामचोर है या नाकारा जो आठ घंटे में अपना काम पूरा नहीं कर पाता है.

इससे मक्खनबाज़ों को बहुत दिक्कत हुई और उन्होंने मेरे खिलाफ शिकायतें की कि मैं माहौल खराब कर रहा हूं. लेकिन किसी ने मुझसे कुछ कहा नहीं. मैं इसी तरह से आठ घंटे की शिफ्ट में जितने ब्रेक अलाउड हैं वो भी लेता था.

मैं जानता हूं बहुत लोग सीट पर चिपक कर बैठते हैं और दर्शाते हैं कि वो बहुत महान काम कर रहे हैं. मान लीजिए बात. चार पांच साल के बाद कमर में दर्द होगा तो संपादक बोलेगा कि आपकी गलती है.

हमारे यहां एक वरिष्ठ थे. उनको डेंगू हुआ. छुट्टियां खत्म हो गईं. बीमारी ने उनके पैरों को कमजोर कर दिया था. हमारे यहां संपादक को अधिकार था कि छुट्टियां बढ़ा दे. संपादक ने बढ़ा दीं. एचआर खच्चर था. उसने पैसे काट लिए. बाद में पैसे वापस हुए क्योंकि संपादक अच्छा था.

कहने का मतलब है कि आपको नौकरी में जो अधिकार मिले हैं छुट्टी के वो ज़रूर लीजिए. छुट्टी लेकर आप अहसान नहीं कर रहे हैं. छुट्टी लेंगे तो तरोताजा काम करते रहेंगे तो दफ्तर खुश रहेगा. जो छुट्टी नहीं लेते हैं दफ्तरों में वो मूल रूप से इनसेक्योर और नकारा लोग होते हैं जो कामचोरी करते हैं.

हीरो बनने के लिए काम करना चाहिए. छुट्टी कैंसल कर के क्यों हीरो बनना. जब ज़रूरत होती थी तो मैं छुट्टियां कैंसल कर के भी काम पर लौटा हूं. तो ऐसा नहीं है कि दफ्तर में ज़रूरत हो तो मैं टांग पर टांग चढ़ा कर बैठा हूं लेकिन जबरदस्ती दफ्तर जाने की ज़रूरत नहीं होनी चाहिए.

एक और महानुभाव थे. जब भी किसी व्यक्ति का निधन होता तो ये आदमी छुट्टी हो तो दफ्तर पहुंच जाता और तीन लोगों से फोन पर बाइट लेकर स्टोरी कर देता और एवज में छुट्टी ले लेता. ये सिलसिला चार पांच बार चला फिर किसी ने संपादक को कहा कि जो काम ये घर से आकर करते हैं वो तो यहां दफ्तर में जो बैठा है वो कर सकता है तो इन्हें बेवजह इस आसान काम की छुट्टी क्यों दी जा रही है. बाइलाइन चाहिए तो घर से कर के भेज दें.

संपादक को समझ में आई बात और उनको मना किया गया कि आप दफ्तर आएंगे बिना बुलाए छुट्टी के दिन तो उसकी छुट्टी नहीं मिलेगी. बंदे ने आना तो बंद कर ही दिया फोन वाले इंटरव्यू भी बंद हो गए.

यही सब है. सोचा बता दें. छुट्टी की महिमा अपरंपार है. लेते रहना चाहिए. आदमी का जनम नौकरी करने के लिए नहीं हुआ है जीने के लिए हुआ है. नौकरी कर के आज तक कोई महान नहीं हुआ है.

बाकी इमेज बनाना हो तो अलग बात है. मोदी जी बिना छुट्टी लिए ही लाल हुए जा रहे हैं. हम भी पीएम होंगे तो कभी छुट्टी नहीं लेंगे. वैसे छुट्टी मनमोहन सिंह भी नहीं लेते थे लेकिन बोलते नहीं थे इस बारे में. खैर आजकल तो बोलना छोड़ो फोटो अपलोड करने का भी चलन है.

Dakhal News 15 October 2020

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