प्रभुनाथ शुक्ल
राष्ट्रपति बनने के बाद अपनी पहली भारत यात्रा पर आए दुनिया के सबसे शक्तिशाली शख्सियत डोनाल्ड ट्रम्प बेहद खुश और गौरवान्वित दिखे। गुजरात से लेकर मोहब्बत की नगरी आगरा तक बेमिसाल ताज का दीदार कर बेहद खुश हुए। दुनिया के सबसे ताकतवर देश और भारत जैसे बड़े लोकतांत्रिक देश के राष्ट्राध्यक्ष ट्रम्प-मोदी इस दोस्ती को नया आयाम देना चाहते हैं। अपने दो दिवसीय यात्रा में ट्रम्प और मोदी एक-दूसरे से क्या खोया और क्या पाया, यह विश्लेषण का विषय होगा। लेकिन एक बात जो खुलकर सामने आई, वह है हिंदी की अहमियत। मोदी और ट्रम्प की जुगलबंदी ने हिंदी का ग्लोबल मान बढ़ाया है। मोटेरा स्टेडियम में आयोजित कार्यक्रम की मूल थीम हिंदी यानी नमस्ते ट्रम्प पर आधारित थी। लेकिन ट्रम्प और मोदी ने लाखों की भीड़ का हिंदी यानी नमस्ते से अभिवादन किया। अपनी भारत यात्रा के दौरान ट्रम्प ने तीन बार हिंदी में ट्वीट किया।
भारत के अभिजात वर्ग में हिंदी और हिंदी भाषियों को हिकारत की नजरों से भले देखा जाता हो, लेकिन ग्लोबल स्तर पर अमेरिकी राष्ट्रपति ने हिंदी की स्वीकार्यता को निश्चित रूप से बढ़ाया है। ट्रम्प ने हिंदी फिल्म शोले और शाहरुख का भी जिक्र किया। जबकि देश में हिंदी भाषा की स्वीकार्यता पर संसद से लेकर सड़क तक खूब राजनीति होती है। पूर्वोत्तर भारत और दक्षिण भारत में हिंदी को लेकर क्या स्थिति है, सभी जानते हैं। गुजरात में हिंदी भाषियों पर किस तरह जानलेवा हमले हुए यह कहने की बात नहीं है। लेकिन ट्रम्प ने उसी गुजरात की धरती से हिंदी को बड़ा सम्मान दिया है। हिंदी को राजभाषा का दर्जा भले मिल गया हो लेकिन राष्ट्रभाषा का सम्मान आजतक नहीं मिल पाया है। सरकारी परीक्षाओं को हिंदी माध्यम से कराने पर भी राजनीति होती है। अंग्रेजी सोच की हिमायती राजनीति हिंदी बोलने में अपना अपमान और शर्म महसूस करती है। अधिकांश राजनेता अपने ट्वीट अंग्रेजी में करते हैं। जबकि अमेरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने हिंदुस्तान और हिंदी की अहमियत समझते हुए अपनी भारत यात्रा को हिंदीमय बना दिया।
अंग्रेजी के हिमायती यह कह सकते हैं कि ट्रम्प ने यह सब अमेरिका में होने वाले आम चुनाव के लिए किया क्योंकि अमेरिका में भारतीय मूल के 40 लाख लोग रहते हैं। लेकिन आलोचकों को यह सोचना होगा कि दुनिया के सबसे ताकतवर देश के राष्ट्रपति को हिंदी में ट्वीट की क्या जरुरत थी। वह अपनी बात अंग्रेजी में भी कह सकते थे। निश्चित रूप से हिंदी का ग्लोबल मान बढ़ाने में ट्रम्प और मोदी का अहम योगदान है। पहले ट्वीट में उन्होंने लिखा- हम भारत आने के लिए तत्पर हैं। हम रास्ते में हैं, कुछ ही घंटों में हम सबसे मिलेंगे। दूसरे और तीसरे ट्वीट में उन्होंने भारत और अमेरिकी संबंधों का जिक्र किया। इसका असर भी अमेरिका में रहने वाले भारतीय मूल के लोगों पर गहरा होगा। लोग इस ट्वीट के राजनीतिक मायने चाहे जो निकालें, लेकिन सच है कि वैश्विक स्तर पर हिंदी की स्वीकार्यता बढ़ी है।
हिंदी में संबोधन किसी विदेशी राष्ट्राध्यक्ष की कोई नई पहल नहीं है। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा जब 2010 में भारत आए तो उन्होंने भी अपने सत्कार से प्रभावित होकर हिंदी में 'बहुत-बहुत धन्यवाद' बोलकर भारत और भारतीयता के प्रति अभार जताया था। जबकि भाषण का समापन 'जय हिंद' से किया था। विदेशी धरती पर सिर्फ हिंदी नहीं उसकी क्षेत्रीय भाषाओं का भी जलवा कायम रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब अमेरिकी यात्रा पर गए थे तो तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा ने गुजराती भाषा में 'केम छो मिस्टर मोदी' से स्वागत किया था। जब अमेरिका में आम चुनाव हो रहे थे तो वहां भी 'अबकी बार ट्रम्प सरकार' की गूंज सुनाई दी थी। भारत में गढ़ा इस चुनावी जुमले का इस्तेमाल खुद राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने किया था। भारत में 2014 के आम चुनाव में यह चुनावी नारा खूब गूंजा था अबकी बार मोदी सरकार। हिंदी की अहमियत और ग्लोबल स्वीकार्यता तेजी से बढ़ रही है। प्रधानमंत्री अपनी विदेश यात्राओं में हिंदी का खुलकर प्रयोग करते रहे हैं। हिंदी को 'ग्लोबल' बनाने में भी खास योगदान रहा है। अपनी अमेरिकी यात्रा के दौरान ट्रम्प से मुलाकात में उन्होंने हिंदी में भाषण दिया था।
इससे पूर्व भारत के कई राजनेता वैश्विक मंच पर हिंदुस्तान और हिंदी का मान बढ़ाते आए हैं। देश की विदेश मंत्री के पद पर रहीं सुषमा स्वराज आज हमारे बीच नहीं हैं। लेकिन हिंदी के उत्थान और विकास के लिए उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। विदेश मंत्री रहते संयुक्त राष्ट्र संघ में 2017 में उन्होंने हिंदी में भाषण देकर पाकिस्तान को खूब लताड़ लगाई थी। संसद से लेकर वैश्विक मंच पर उन्होंने हिंदी का मान बढ़ाया। भारत रत्न एवं पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का हिंदी प्रेम किसी से छुपा नहीं है। अटल जी ने विदेशी दौरों के समय कई मंचों पर हिंदी में अपनी बात रखी। 1977 में संयुक्त राष्ट्र संघ में उन्होंने अपना पहला भाषण हिंदी में दिया। देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू भी हिंदी के हिमायती थे। उनकी पहल पर ही 14 सितम्बर को 'हिंदी दिवस' मनाया जाता है। 14 सितम्बर 1949 को हिंदी को संविधान सभा में अधिकारिक भाषा सम्मान मिला था। सोशल मीडिया में हिंदी का अच्छा प्रयोग हो रहा है। ट्विटर पर भी हिंदी में काफी ट्वीट किए जा रहे हैं। वक्त आ गया है जब हमें हिंदी की वैश्विक स्वीकार्यता को समझते हुए राजनीति को किनारे रख हिंदी को और समृद्ध बनाने के लिए काम करना चाहिए।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)