Dakhal News
7 May 2024डॉ. दिलीप अग्निहोत्री
कश्मीर घाटी से लाखों हिंदुओं के पलायन के पीछे की त्रासदी को फिल्म 'द कश्मीर फाइल्स' ने उजागर किया है। इस देखकर हर संवेदनशील व्यक्ति आहत हुआ है। शर्मनाक यह है कि इस पर वोटबैंक की सियासत शुरू हो गई है। संसद में अनुच्छेद 370 को कायम रखने के लिए जमीन-आसमान एक करने वाले नेता इस समय कश्मीर की सच्चाई से मुंह छिपा रहे है। भाजपा शासित राज्यों की किसी एक निंदनीय व अप्रिय घटना पर हंगामा करने वाले घाटी के लाखों हिंदुओं की पीड़ा का मखौल उड़ा रहे हैं। इस वोटबैंक की सियासत में आप प्रमुख सबसे आगे निकल गए। उन्होंने फिल्म को झूठा बता कर लाखों पीड़ितों के जख्मों पर नमक छिड़का है। केजरीवाल के लिए ऐसे बयान देना आसान है। उनका राजनीतिक वजूद वोटबैंक की सियासत से जुड़ा है। जो नेता इसे पुरानी बात कह कर नजरअंदाज करने की सलाह दे रहे है,उन्हें पश्चिम बंगाल और केरल के वर्तमान को देखना चाहिए।
यदि वर्तमान सरकार दृढ़ता न दिखाती तो सब कुछ पहले की तरह ही चलता रहता है। यूपीए सरकार के समय प्रधानमंत्री अपने आवास पर कश्मीरी अलगाववादियों का स्वागत करते थे। अब हालात बदले हैं। द कश्मीर फाइल्स ने आतंकी हिंसा व अलगाववाद के प्रति वितृष्णा पैदा की है। इसमें किसी के प्रति बदले का विचार नहीं है, लेकिन अलगाववादियों के मंसूबों से सबक लेने का सन्देश अवश्य है। यह सुनिश्चित होना चाहिए कि भविष्य में इस प्रकार की स्थिति देश के किसी भी क्षेत्र में पैदा न हो। इस लिहाज से पश्चिम बंगाल में चुनाव बाद की हिंसा अवश्य विचलित करने वाली है। जो लोग कश्मीर के अतीत पर चर्चा से बचना चाहते है, उनको पश्चिम बंगाल के वर्तमान पर नजर डालनी चाहिए।
यहां भी विधानसभा चुनाव के बाद खास स्थानों को लक्ष्य बना कर आतंक का वातावरण बनाया गया था। शासन व प्रशासन की भूमिका को लेकर भी सवाल उठे। ऐसा ही कभी कश्मीर घाटी में हुआ करता था। वहां भी आतंकियों व अलगाववादियों की गतिविधियों के सामने शासन प्रशासन नकारा साबित हुआ था। इसी सच्चाई को द कश्मीर फाइल्स में दिखाया गया है। जम्मू-कश्मीर में अलगाववाद की जड़ अनुच्छेद 370 था। यह संविधान का अस्थाई अनुच्छेद था। पिछली सरकारों ने वोटबैंक के लिए इसे हटाने की हिम्मत नहीं की। मोदी सरकार ने यह फैसला लिया। गृहमंत्री अमित शाह ने संसद में कहा कि जम्मू-कश्मीर में एक लंबे रक्तपात भरे युग का अंत अनुच्छेद 370 हटने से होगा। इसके कारण ही सत्तर वर्षों तक जम्मू-कश्मीर,लद्दाख और घाटी के लोगों का बहुत नुकसान हुआ है। यह आतंकवाद की जड़ बन गया था।
फिल्म निर्देशक विवेक अग्निहोत्री ने कहा कि द कश्मीर फाइल्स कश्मीर में हुए नरसंहार में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि देने का तरीका है। अभिनेता पुनीत इस्सर का कहना है कि कश्मीर पर बनी 'हैदर' और 'मिशन कश्मीर' जैसी फिल्में अजीब नेरेटिव सेट करती आई हैं। इन फिल्मों में अन्याय होने की वजह से घाटी के मुस्लिमों को हथियार उठाए दर्शाया गया है। जबकि यह सच्चाई नहीं है। विभाजन के समय पाकिस्तान के लाखों हिन्दू परिवारों का सब कुछ लूट लिया गया था लेकिन हिंदुओं ने कभी हथियार नहीं उठाए। हथियार उठाने को मजबूरी और विवशता का चोला पहनाकर हिंसा का समर्थन नहीं किया जा सकता।
कांग्रेस ने अनुच्छेद 370 हटाने का जमकर विरोध किया था। अब वह कश्मीर फाइल्स पर वैसा ही हंगामा कर रही है। विरोध कर रही पार्टियों को स्वीकार करना चाहिए कि अनुच्छेद 370 से केवल दो -तीन राजनीतिक कुनबों को ही भरपूर लाभ पहुंच रहा था। आमजन को तो इससे नुकसान ही हो रहा था। उस दौर में कश्मीर घाटी में चार दिन की बंदी की गई थी। उसमें हिंदुओं को घाटी छोड़ कर चले जाने की हिदायत दी जा रही थी। तब अलगाववादी सैयद अली शाह जिलानी ने कहा था कि कश्मीर में सेकुलरिज्म नहीं चलेगा। डेमोक्रेसी नहीं चलेगी। उस समय प्रधानमंत्री राजीव गांधी और जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला थे। उस समय यहां पकिस्तान के स्वतंत्रता दिवस पर यहां जश्न मनाया जाता था। भारत के स्वतंत्रता दिवस पर आयोजन की मनाही थी। उसी समय लोकसभा चुनाव में अलगाववादियों ने मतदान के बहिष्कार का आदेश जारी किया था। आज इस फिल्म का विरोध करने वाले उस समय खामोश थे।
वर्तमान सरकार ने घाटी में प्रजातंत्र के सच्चे रूप को बहाल किया है। इससे जम्मू-कश्मीर में सकारात्मक बदलाव हुआ है। अलगाववाद का दशकों पुराने अध्याय का अंत हो गया है। पंचायत चुनाव में मतदाताओं की भागीदारी इसका प्रमाण है। केंद्र की कल्याणकारी योजनाएं प्रदेश को लाभान्वित कर रही हैं। पंचायत चुनाव में केसर की घाटी में कमल खिला।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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29 March 2022
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