
Dakhal News

केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली ने करीब चार दशक पूर्व (25 जून, 1975) इंदिरा गांधी सरकार द्वारा लागू "कपटपूर्ण" आपातकाल को याद करते हुए रविवार को कहा कि इसमें संवैधानिक प्रावधानों का इस्तेमाल लोकतंत्र को संवैधानिक आपातकाल में बदलने के लिए किया गया।
"द इमरजेंसी रीविजिटेड" शीर्षक से फेसबुक पोस्ट की तीन भागों की श्रृंखला के पहले भाग में जेटली ने लिखा, "25-26 जून, 1975 की मध्य रात्रि को कई प्रमुख विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया।
मैंने दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रों के विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व किया, जहां हमने आपातकाल का पुतला जलाया। जो कुछ हो रहा था उसके खिलाफ मैंने भाषण दिया। बड़ी तादाद में पुलिस वहां पहुंच गई। मुझे मीसा के तहत गिरफ्तार कर लिया गया। मुझे दिल्ली की तिहाड़ जेल ले जाया गया।
इस तरह 26 जून, 1975 की सुबह मुझे आपातकाल के खिलाफ एक मात्र विरोध प्रदर्शन करने का मौका मिला था और मैं आपातकाल के खिलाफ पहला सत्याग्रही बन गया।
22 साल की उम्र में किए गए इस छोटे से कार्य से मुझे अहसास हुआ कि मैं उन घटनाक्रमों का हिस्सा बन रहा था जो इतिहास का भाग बनने जा रहे थे।
मेरे लिए, इस घटना ने मेरी जिंदगी का भविष्य बदल दिया।" जेटली ने आगे लिखा कि इंदिरा गांधी की नीतियों का त्रासद पक्ष यह था कि उन्होंने ठोस और सतत नीतियों की बजाए लोकप्रिय नारों को प्राथमिकता दी।
केंद्र और राज्यों में जबर्दस्त जनादेश के बावजूद सरकार उसी आर्थिक नीतियों पर चलती रही जो 1960 के आखिर में अपनाई गई थीं। वह मानती थीं कि देश की धीमी विकास दर का कारण तस्करी और आर्थिक अपराध हैं।
Dakhal News
All Rights Reserved © 2025 Dakhal News.
Created By:
![]() |