सूखे पत्तों पर भी हक बेरहम हवाओं का था
anil dave

श्मशान वैराग्य...शायद सेलफोन, फेसबुक और वॉट्सएप के चलते आपाधापी की इस दुनिया में अब यह भी संभव नहीं। मसला सियासत का हो तो वैराग्य भाव भी व्यर्थ। वैसे भी ‘मूल्य’ आधारित राजनीति के बाद तो संभवतः नैतिकता की बातें सिर्फ बातें ही हैं। लेकिन दिल्ली दरबार में मध्यप्रदेश ब्रांड एम्बेसडर बन रहे केंद्रीय राज्यमंत्री अनिल माधव दवे के अचानक दबे पांव चले जाना सबको सकते में डाल गया। पहले तो उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि। देश और खासतौर से मध्यप्रदेश के लिए बड़ा नुकसान है। इस पर मेरे पारिवारिक मित्र ने चार लाइन भेजी थी जिसे आपके साथ साझा कर रहा हूं... भ्रम था कि सारा बाग अपना है...तूफां के बाद पता चला कि सूखे पत्तों पर भी हक बेरहम हवाओं का था...

संघ के स्वयंसेवक से देखते ही देखते श्री दवे कब इलेक्शन मैनेजर, मीडिया मैनेजर और डैमेज कंट्रोलर से लेकर आज की कॉर्पोरेट पॉलिटिक्स में कब सीईओ बन गए पता ही नहीं चला। तकरीबन डेढ़ दशक के राजनीतिक जीवन में उनकी जैट स्पीड से अपने पराए सब अचंभित थे। शत्रु और मित्र दोनों के लिए वे आउट ऑफ वे जाकर काम करने का जज्बा रखते थे। इसलिए उनके पास छोटे-बड़े इंतजामअलियों की ऐसी टीम थी जो सत्ता और संगठन और करीब-करीब हर मीडिया हाउस में असरदार रसूख रखती थी। बड़े-बड़े मीडिया घरानों के संचालक उनके मुरीद होने के कारण श्रीचरणों में रहते थे। एकाध का तो मैं साक्षी भी रहा हूं। चुनाव के दौरान विज्ञापन और पैसे बांटना एक बड़ा काम हुआ करता है जिसे वह बखूबी अंजाम देते थे। जहां गुड़ की भेली होगी वहां चींिटयों तो आएंगी और ततैया (बरैया) मंडराएंगी भी। दोनों को वह ढंग से साध लेते थे। दवेजी कुशल संगठन के साथ चाणक्य भी थे। इसलिए उनकी रुतबा, रसूख, गुरुर और सत्ता साकेतों में धमक भी थी। यही कारण है कि भारतीय राजनीति के समंदर दिल्ली में अल्पकाल में ही प्रधानमंत्री की निजी पसंद बन गए थे। गाहेबगाहे उनके प्रदेश की राजनीति में धमाकेदार वापसी की संभावनाएं कभी कानोकान तो कभी मीडिया जगत की सुर्खियों में रहती थी जिसके चलते उन्हें लेकर भयमिश्रित माहौल बना रहता था। यह उनके अवसान के बाद भी सत्ता और संगठन में दिखा और महसूस भी हुआ। उनके अंतिम यात्रा से लेकर प्रदेश भाजपा कार्यालय में करीब तीन घंटे चली श्रद्धांजलि सभा में भी इसका अहसास हुआ। इससे पता चलता है उनका कद। दरअसल इतनी लंबी शोक सभा पितृपुरुष कुशाभाऊ ठाकरे, राजमाता विजयराजे सिंधिया, प्यारेलाल खंडेलवाल, नारायण प्रसाद गुप्ता से लेकर हाल ही में दिवंगत हुए पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा की भी नहीं रही। एक बार फिर पता चला कि श्री दवे की टीम में उनसे प्रशिक्षित जो छोटे-बड़े प्रबंधक हैं यह उनकी ही योग्यता का कमान है। संघ के वरिष्ठ पदाधिकारी ने श्रद्धांजलि सभा में उन्हें इवेंट मैनेजर और एक वयोवृद्ध साहित्यकार ने डैमेज कंट्रोलर बताया है। पुष्टि के लिए उन्होंने एक किस्सा भी सुनाया कि किस तरह मुख्यमंत्री के हाथों विमोचित होने जा रही एक पुस्तक का मेटर उड़ जाने पर श्री दवे की युक्ति काम आई थी। पुस्तक पर कवर पेज लगाकर कार्यक्रम संपन्न कराया गया। इस दौरान दवे की कुशलता, चतुराई और अद्वितीय संगठन क्षमता के कई उदाहरण लोगों ने जैसा उन्हेें जाना वैसे बताया। वो टीम को साथ लेकर चलने वाले समय के पाबंद और कठोर निर्णय लेने वाले प्रशासक थे। उनके पास कई दायित्व रहे लेकिन केंद्रीय मंत्री बनने के पहले नर्मदा समग्र और नदी का घर जैसे संस्थान एक राजनेता के प्रकृति प्रेमी होने का प्रमाण देते हैं। उनकी नर्मदा यात्रा भी खासी चर्चित और प्रभावी रही जिसमें उन्होंने हेलिकॉप्टर, स्टीमर और नाव के साथ नर्मदा माई की पैदल परिक्रमा भी की। कुल मिलाकर उनके खाली स्थान की पूर्ति असंभव भले ही न हो, मुश्किल जरूर है। श्री दवे सियासत के आसमान में एक बड़ी संभावना थे। उनके अवसान से लगा जैसे दुपहरी में शाम हो गई हो। उनका जाना सत्ता में सक्रिय लोगों के लिए सदमा भी है सबक भी। पलभर का ठिकाना नहीं है इसलिए सियासत में सूफियाना अंदाज ही मरने के बाद लोगों के दिलों में जिंदा रख सकेगा वरना लोग यही कहेंगे... ‘बहुत गजब नजारा है इस अजीब सी दुनिया का, लोग सबकुछ बटोरने में लगे हैं खाली हाथ जाने के लिए।’

ये क्या हो रहा है

मध्यप्रदेश की राजनीति में जो कुछ हो रहा है उससे नैतिकता और मूल्य आधारित दावों की धज्जियां उड़ती लगती हैं। सत्ताधारी भाजपा में एक के बाद एक पदाधिकारी और अब मंत्री तक पर आपराधिक मामले दर्ज हो रहे हैं। संगठन-सरकार कार्रवाई करने की बजाए उनके समर्थन में खड़े होकर क्या संदेश देना चाहते हैं? मसलन मंत्री लाल सिंह आर्य को कांग्रेस विधायक माखनलाल जाटव की हत्या के मामले में अदालत ने आरोपी बनाने के निर्देश दिए हैं। लेकिन संगठन उन्हें क्लीनचिट दे रहा है। जबकि एक समय हत्या से जुड़े मामले में सांसद अनूप मिश्रा जब मंत्री थे तब उन्होंने नैतिकता के नाते पद छोड़ िदया था जबकि केस में उनके परिजन आरोपी थे और उनका तो नाम तक नहीं था। अब इसे नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने मुद्दा बना लिया है। वह आर्य के इस्तीफे को लेकर सीएम हाउस के सामने धरना देने की बात कर रहे हैं। जाहिर है भाजपा की नैतिकता के मुद्दे पर बैकफुट पर आएगी। इसके अलावा भाजपा नेताओं पर देशद्रोह के मुकदमे और अब एक प्रकोष्ठ के मीडिया प्रभारी नीरज शाक्य को सेक्स रैकेट चलाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। यह सब चौकाने वाले मामले हैं। दूसरी तरफ मां नर्मदा से रेत नोचने का खेल जारी है। हरदा से पूर्व मंत्री कमल पटेल ने मोर्चा खोल दिया है। मुख्य सचिव समेत कई अधिकारियों के खिलाफ उन्होंने एनजीटी में शिकायत की है। इन सब मुद्दों पर अगले दौर में चर्चा की जाएगी। तब तक तो नैतिकता और भाजपा दोनों की जय-जय...(लेखक IND24 मध्यप्रदेश/छत्तीसगढ़ समूह के प्रबंध संपादक हैं)

Dakhal News 22 May 2017

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