सरकार का कार के जरिये वार
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आम आदमी कह सकता है कि कोई कार खरीदे, सरकार को इसमें दखल का क्या हक है? ये व्यक्ति की आर्थिक आजादी व जीवनशैली पर राजकीय हस्तक्षेप है। मगर जब हम इस आंकड़े से रूबरू होते हैं कि देश में दस लाख सालाना आय घोषित करने वालों की संख्या चौबीस लाख है, मगर हर साल पच्चीस से सत्ताइस लाख कारें पिछले तीन सालों में खरीदी गईं। जिनमें पैंतीस हजार लग्जरी कारें हैं। यह आंकड़ा चौंकाता है कि हर साल देश में आयकर रिटर्न भरने वाले 3.65 करोड़ लोगों में से केवल 5.5 लाख लोगों ने ही पांच लाख रुपये से अधिक का आयकर दिया। 

वैसे भी यह बड़ी चिंता की बात है कि 125 करोड़ के देश में आयकर देने वाले इतने कम? यही चिंता सरकार को है कि कैसे आयकर का दायर बढ़ाया जाये। दरअसल, आठ नवंबर को नोटबंदी की घोषणा के बाद कारों की खरीद में अचानक उछाल आया है। यही वजह है कि आयकर विभाग ने कार डीलरों को कार खरीदने वालों, भुगतान के माध्यम और कार श्रेणी की बाबत जानकारी मांगी है। दरअसल लोगों ने पुराने नोट खपाने के लिये महंगी कार खरीदी और कार डीलरों ने पुरानी डेट में खरीद दिखाकर कार की डिलीवरी कर दी।

दरअसल कार की बिक्री में आये अप्रत्याशित उछाल ने  आयकर विभाग को संदेह का मौका दिया। सरकार की लग्जरी कारों पर ज्यादा नजर है। इतना ही नहीं, सरकार ने पुराने नोटों से एलआईसी का तीन साल का प्रीमियम जमा करने वालों की बाबत भी पूछताछ की है। शिकायत मिली है कि लोगों ने काले धन का इस्तेमाल कई सालों का पॉलिसी प्रीमियम जमा करने में किया। वास्तव में काले धन की रोकथाम में सरकार की कोशिश को पलीता लगाने के लिए चतुर-चालाक लोगों ने हर विकल्प अपनाया। कमोबेश यही कहानी प्रॉपर्टी की खरीद में दोहराई गई। नोटबंदी की घोषणा के बाद लोगों ने बड़ी संख्या में फ्लैट, मकान व प्लॉट खरीदे। बिल्डरों ने इसकी पिछली तिथियों में  खरीद दिखाई। सरकार ने इस कोशिश के बाद बारह शहरों में चार दर्जन बिल्डरों को नोटिस जारी किये हैं। नि:संदेह सरकार की दखल की हर कोशिश को तार्किक आधार नहीं दिया जा सकता। मगर यहां एक सवाल कचोटता है कि सवा अरब के इस देश में कितने लोग आयकर दे रहे हैं और कितने लोग आयकर से बचने के लिये चोर रास्तों की तलाश कर रहे हैं।

Dakhal News 29 December 2016

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