कमांडो का धक्का और शिवराज का दर्द ...
umesh trivedi

उमेश त्रिवेदी

मुख्यमंत्री शिवराजसिंह के साथ यह अनहोनी दतिया की पीताम्बरा पीठ में उस वक्त घटित हुई, जब वो रविवार 6 नवम्बर को केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथसिंह के साथ वहां पूजा करने पहुंचे थे। इस घटना की सचाई पर परदा इसलिए नहीं डाला जा सकता कि इसे हिन्दुस्तान की सबसे बड़ी न्यूज वेबसाइट दैनिक भास्कर डॉट काम ने पांच फोटो के साथ जारी किया है। खबर का शीर्षक है- ’’एनएसजी कमांडो से लगा धक्का तो दर्द से ऐसे बिलख पड़े मप्र के मुख्यमंत्री’’

घटना का ब्योरा कुछ इस प्रकार है- ’रविवार को झांसी में परिवर्तन रैली के बाद भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और गृहमंत्री राजनाथ सिंह दतिया पीताम्बरा पीठ में पूजा करने आए थे। दतिया एयरपोर्ट पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने उनका स्वागत किया। जब अमित शाह और राजनाथ सिंह पीठ में पूजा-दर्शन करके बाहर निकल रहे थे, तब गृहमंत्री के पीछे चल रहे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को एनएसजी कमांडो ने धक्का मार दिया।’     

जैसा कि अमूमन होता  है कि घटना पर पानी डालने की कोशिशें होंगी, ताकि गफलत की गलबहियां डालकर इसे हड़बड़ी और जल्दबाजी की खोल में लपेट कर छिपाया जा सके, इसकी काली रंगत को कम किया जा सके। यहां मुद्दा यह नहीं है कि मुख्यमंत्री को कितना दर्द हुआ, मुद्दा यह है कि यह सब कुछ हुआ कैसे और क्यों...?  इसे क्यों अनदेखा किया जाना चाहिए? क्यों कबूल किया जाना चाहिए? दतिया के एसपी का यह कहना क्या दर्शाता है कि इतने बड़े कार्यक्रम में यह सब कुछ छोटी-मोटी घटना है, वैसे उनके पास ऐसी कोई शिकायत नहीं आई है? एसपी साहब को क्या यह मुगालता है कि मुख्यमंत्री उनके सामने एफआईआर दर्ज कराएंगे?  यह किसी भी तरीके से अनदेखी करने योग्य घटना नहीं है, सीधे-सीधे प्रोटोकॉल का मामला है, जिसे देखने और समझने की जिम्मेदारी प्रशासन की होती है। मसला उस वक्त और गंभीर हो जाता है, जब ध्यान दिलाने के बाद भी एनएसजी कमांडो उन्हें नजरअंदाज करके आगे बढ़ जाता है। कोई यदि इसे प्रॉफेशनलिज्म का चोगा पहना कर बचाव का रास्ता ढूंढना चाहेगा तो वह और ज्यादा नंगा होगा। एक एनएसजी कमांडो क्या इतना नासमझ हो सकता है कि वह प्रदेश के मुखिया को ही नहीं पहचाने? क्या शिवराजसिंह के स्थान पर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अथवा राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी होते तो क्या वे भी इसी तरह कमांडो की कोहनी के हकदार होते? शिवराजसिंह चौहान पिछले दस वर्षों से मप्र के मुख्यमंत्री हैं। सुरक्षा एजेन्सी के जो कमांडो प्रदेश के मुखिया की अनदेखी कर सकते हैं, वह आम जनता के साथ क्या व्यवहार करते होंगे, यह अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है। मुख्यमंत्री से इतने हलके व्यवहार के बाद इस खबर में भी कोई आश्‍चर्यजनक तत्व नहीं रह जाता है कि सिंचाई एवं जनसंपर्क मंत्री नरोत्तम मिश्रा भी कमांडो के दुर्व्यवहार के शिकार हुए। [लेखक भोपाल से प्रकाशित सुबह सवेरे के प्रधान संपादक है।]

गृहमंत्री राजनाथसिंह  से ही जुड़ी एक दिन पुरानी घटना, दतिया की घटना पर सोचने के नए आयाम देती है। दतिया घटनाक्रम के एक दिन पहले वे रायपुर एयरपोर्ट के अधिकारियों पर इसलिए नाराज हो गए थे कि उनके स्टाफ की सुरक्षा जांच के कारण वायुसेना के उनके विमान को आधा घंटा इंतजार करना पड़ा। राजनाथ सिंह की नाराजी यह थी कि उनके सुरक्षा स्टाफ के साथ यदि एयरपोर्ट के अधिकारियों का यह व्यवहार है तो आम आदमी के साथ उनका सलूक क्या होगा? गृहमंत्री की नाराजी के बाद सीआईएसएफ ने घटना की जांच शुरू कर दी है। यह पता लगाया जा रहा है कि किस स्टेज पर गृहमंत्री को मिले सामान को और उनके पर्सनल सेक्रेटरी को रोका गया था? गृहमंत्री के जाने के बाद किन लोगों ने सुरक्षा-जांच में इतना समय लगाया? 

इस घटना में सरकार के लिए चेतावनी भी है और संकेत भी है कि हमारी सुरक्षा-एजेन्सियों और पुलिस-बल की मानसिकता क्या है? सुरक्षा बल महत्वपूर्ण राजनेताओं की सुरक्षा के लिए होते हैं। यह सुरक्षा राजनेताओं और आम आदमी के बीच दीवार बनकर खड़ी है। इसके साथ हैरतअंगेज बात यह भी है कि इन सुरक्षा एजेन्सियों की जवाबदेही किसके प्रति है। पिछले सप्ताह दिल्ली पुलिस ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को आत्महत्या करने वाले पूर्व सैनिक के परिवार से मिलने के मामले में पांच घंटे हिरासत में रखा था। रविवार को एनएसजी ने मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री को धक्का मार दिया...। दिल्ली पुलिस केजरीवाल के अधीन नहीं है और एनएसजी शिवराजसिंह के अधीन नहीं है। क्या इसके मायने यह हैं कि वे यह परवाह भी नहीं करेंगे कि वो मुख्यमंत्री के संवैधानिक पद पर विराजमान हैं? सुरक्षा बलों की यह निरंकुशता लाइलाज होकर कहीं लोकतंत्र को दीमक की तरह खोखला नहीं कर दे? 

Dakhal News 8 November 2016

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