सपा की कलह-कथा का समाधान
सपा की कलह

उमेश त्रिवेदी

वैसे तो समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो मुलायमसिंह अपने अनुज शिवपालसिंह यादव और अमरसिंह के विरुध्द कुछ भी सुनने को तैयार नहीं है, लेकिन ऐसा नहीं हो पा रहा है। शिवपालसिंह को तो सपा में एक तबके का समर्थन हासिल है, लेकिन अमरसिंह पार्टी में लगभग सभी वरिष्ठ नेताओं के नफरत के कीचड़ में मुलायमसिंह के वीटो की मदद से सीना तानकर खड़े हैं। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के सीनियर मिनिस्टर आजम खान वैसे तो अपनी ऊलजलूल हरकतों और बतौलेबाजी के लिए जाने जाते हैं। मीडिया में वो खबरों की अगंभीर कमोडिटी हैं, जिनके बयानों को राजनीतिक लतीफेबाजी के रूप में हाशिए पर रख कर परोसा जाता रहा है। टीवी स्क्रीन पर भी उनकी खबरों के स्क्रोल लहराते हुए गुम होते रहते हैं। लेकिन मंगलवार को इकानॉमिक टाइम्स के साक्षात्कार में आजम खान उत्तर प्रदेश के संदर्भ में कुछ गंभीर विश्लेषण के साथ सामने आए हैं। मुलायमसिंह यादव के कुनबे के गृहयुध्द में आजम खान जितने अविचलित, निष्पक्ष, बेफिक्र दिख रहे हैं, उतना दूसरे समाजवादी नेता नहीं हैं। इस बेफिक्री के पीछे उनकी अपनी एक सामाजिक-फिलॉसफी है, जिसका मूल मंत्र यही है कि चाहे कुछ भी हो, घुटना पेट की ओर ही मुड़ता है। आजम खान ने मुलायमसिंह यादव के पारिवारिक-वितंडावाद के अलावा उत्तर प्रदेश में राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की भूमिकाओं के बारे में गंभीर जवाब दिए। 

आजम खान ने अमरसिंह को हाशिए पर डालते हुए आरोप लगाया कि भारतीय जनता पार्टी ने अमरसिंह को समाजवादी पार्टी में प्लां्ट किया है। उसके परिणाम सामने देखने को मिल भी रहे हैं, लेकिन याद रखें राजनीतिक यारी-दोस्ती और सामाजिक संबंधों में सबसे ऊपर खून का रिश्ता होता है। खून के रिश्तों के आगे सारी चीजें गौण होती हैं। अमरसिंह के बारे में विचार पहले जैसे ही हैं। अमरसिंह सपा और मुलायम-परिवार की राजनीतिक प्रेत-छाया है, जिसकी शापित परछाइयों के कारण सपा दुर्दिनों को भुगत रही है। अमरसिंह से उनकी अबोले की स्थिति इसलिए है कि अमरसिंह बहुत बड़े आदमी हैं। आजम खान ने सपा में अपने मित्रों को आगाह किया है कि वो यादव-परिवार के झगड़ों में पार्टी नहीं बनें। पारिवारिक-घमासान के बाद इन लोगों का एकीकरण तय है। दुर्दशा उसकी होगी, जो इधर या उधर गले में घंटी बांधने की कोशिश करेगा। आजम खान के समर्थकों को हिदायत है कि दंगल देखो, माथे पर अखाड़े की मिट्टी मत लगाओ। आजम खान का मत है कि सपा में भारी राजनीतिक-खून खराबे के बावजूद उप्र में भाजपा का भविष्य उज्व्। हल नहीं है। लोग दंगे पसंद नहीं करते हैं। भाजपा कट्टरता को बढ़ावा देती है। 1992 में बाबरी विध्वंस के बाद मुसलमान त्योहारों पर मस्जिदों को दुल्हन की तरह सजाने लगे हैं। पहले यह नहीं होता था। सोचिए, यह कट्टरता क्यों बढ़ी?

उप्र में कांग्रेस के हालात के बारे में आजम खान की दो टूक राय यह है कि इतने लंबे समय के बाद भी राहुल गांधी देश को समझने में असमर्थ रहे हैं। लोग उन्हें देश के प्रधानमंत्री के चेहरे के रूप में स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं। उन्हें खुद को जनता के ऊपर थोपना नहीं चाहिए। खून की दलाली से जुड़े बयान का उल्लेख करते हुए आजम खान ने कहा कि गांधी-परिवार की सबसे बड़ी समस्या ही यह है कि उनका भाषा पर अधिकार नहीं है। मेरी समझ में ही नहीं आया कि वो क्या कहना चाह रहे थे, लगता है कि वो कुछ और कहना चाहते थे, कह कुछ और गए...। पहले कांग्रेस और सीपीएम में उनकी विचारधारा के अनुयायी वरिष्ठह नेताओं को महत्वपूर्ण पद सौंपे जाते थे। इसी कारण लालबहादुर शास्त्री देश के प्रधानमंत्री बन सके थे। जब किसी व्यक्ति को ऊपर से थोपा जाता है, तो लोग बेचैन होने लगते हैं। आजम की राय में प्रियंका गांधी के आने से भी उप्र की राजनीति में फर्क नहीं पड़ेगा। प्रियंका राहुल की बनिस्बत एक-दो सीट ज्यादा दिला सकती हैं। कांग्रेस के जीर्णोध्दार के सवाल पर आजम खान ने कहा कि जो व्यक्ति कांग्रेस की मदद कर सकता था, उसे तो इन लोगों ने राष्ट्रपति भवन में बिठा रखा है।[लेखक भोपाल से प्रकाशित सुबह सवेरे के प्रधान संपादक है।]

Dakhal News 27 October 2016

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