विजयादशमी पर्व
विजयादशमी पर्व

नीलकंठ ,शमी ,बीड़ा और यात्रा  

दशहरा या विजयादशमी पर्व  असत्य पर सत्य की विजय के साथ अन्य कई चीजें भी अपने में समाहित किये है। रावण मरण के आलावा भी इस पर्व का ख़ासा महत्त्व हैं। यात्रा का शुभ दिन ,बीड़ा खाना ,शमी भेंट , शस्त्र पूजन और नीलकंठ दर्शन इसी दिन विशेष महत्त्व रखते हैं। 

विजयादशमी के दिन नवरात्र पर्व का समापन होता है। इस दिन पृथ्वी से मां दुर्गा अपने लोक के लिए प्रस्थान करती हैं। यही वजह है कि विजयादशी को यात्रा तिथि भी कहा गया है। इस दिन किसी भी दिशा में यात्रा करने पर दोष नहीं लगता है।विजयादशमी यूं तो सर्वसिद्ध मुहूर्त है। इस दिन अपराजिता पूजन, शमी पूजन, सीमोल्लंघन, घर वापसी, नारी पूजन, नए वस्त्र व आभूषण धारण करना, राजाओं द्वारा अपने शस्त्र या संपदा का पूजन। राजाओं, सामंतों और क्षत्रियों के लिए यह विशेष महत्व का दिन है।

नीलकंठ दर्शन शुभ

'नीलकंठ तुम नीले रहियो, दूध-भात का भोजन करियो, हमरी बात राम से कहियो।" यह उक्ति गांव-गांव में चर्चित है। इसका अर्थ यही है कि नीलकंठ भगवान का प्रतिनिधि है। दशहरे पर यही कारण है कि इस पक्षी का दर्शन किया जाता है। भगवान शंकर ने विष का पान किया था और वे नीलकंठ कहलाए थे।यह पक्षी भी नीलकंठ है तो इसलिए इसका दर्शन शुभ माना गया है। नीलकंठ को भारत में किसानों का मित्र भी माना गया है क्योंकि यह अनावश्यक कीड़ों-मकोड़ों को खाकर किसान की मदद करता है।

 बीड़ा क्यों

अक्सर रावण के दहन के पश्चात विजयादशमी पर्व पर पान खाने की परंपरा भी है। इसके पीछे लोगों का विश्वास ही मुख्य है। माना जाता है कि इस दिन लोग असत्य पर सत्य की जीत का उत्सव मनाते हैं और बीड़ा खाकर यह बीड़ा उठाते हैं कि वे हमेशा सत्य के मार्ग पर चलेंगे। इसका एक कारण यह भी है कि नवरात्र में श्रद्धालु नौ दिनों तक उपवास रखते हैं और दसवें दिन जब वे भोजन शुरू करते हैं उसके ठीक पाचन में बीड़ा मदद करता है।

शुभकारक शमी पत्तियां 

कथा है कि महर्षि वर्तन्तु का शिष्य था कौत्स। उसकी शिक्षा पूरी होने पर वर्तुन्तु ने उससे गुरुदक्षिणा में 14 करोड़ स्वर्ण मुद्राएं मांगी। इसका इंतजाम करने के लिए वह महाराज रघु के पास गया। रघु दान हेतु खजाना पहले ही खाली कर चुके थे।उन्होंने कौत्स से तीन दिन का समय मांगा और इंद्र पर आक्रमण का विचार किया। इंद्र ने घबराकर कोषाध्यक्ष कुबेर को रघु के राज्य में स्वर्ण मुद्राओं की वर्षा का आदेश दिया। कुबेर ने शमी वृक्ष द्वारा स्वर्ण वर्षा की। जिस दिन यह वर्षा हुई उसी तिथि को विजयादशमी उत्सव मनाया गया। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार शमी वृक्ष का संबंध शनि से भी है। शमी वृक्ष का पूजन शनि के अशुभ प्रभाव से बचाव में सहायक है।इस दिन अपने मित्रजनों को सुनहरे रंग  रंगी शमी की पत्तियां भेंट दी जाती हैं ताकि उनके जीवन में आनंद रूपी स्वर्ण बरसता रहे और वे धन धान्य  से परिपूर्ण रहें। 

आखिर रावण किस बात का प्रतीक है? उसने सोने की लंका नहीं बसाई बल्कि अपने भाई कुबेर से उसकी नगरी छीन ली। उसने साधुओं को मारा और स्त्रियों के साथ दुराचार किया। उसने डर के द्वारा अपना साम्राज्य स्थापित किया। आखिर उसने सीता का अपहरण इसीलिए किया क्योंकि वह अपनी बहन के अपमान का बदला लेना चाहता था।युद्ध में उसने स्वयं से पहले अपने पुत्रों और भाई को लड़ने के लिए भेजा। वह सीता को जीतना चाहता था और राम को भी। रावण केवल स्वयं के लिए जी रहा था। अपने आनंद को वह सबसे ऊपर रखता था। हालांकि वह योगी शिव का भक्त था। उन शिव का जिन्होंने संसार की भौतिकता और सभी वस्तुओं का त्याग कर रखा है।रावण शिव की स्तुति करता रहा और उनके सामने नतमस्तक होता रहा लेकिन दस सिर होने के बावजूद उसने कभी भी शिव के ज्ञान की तरफ ध्यान नहीं दिया। संभव है कि उसने शिव के दर्शन को नहीं समझा, उसने शिव के दर्शन को समझा भी हो तो उनके बताए मार्ग पर चलने का सामर्थ्य रावण नहीं जुटा पाया। रावण के चरित्र की ये कमजोरियां सभी लोगों के लिए उदाहरण है कि वे अपनी इन कमजोरियों पर विजय पाने का प्रयास करें।

 

Dakhal News 10 October 2016

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