विदेश नीतिः मौलिक पहल जरूरी
bhopal, Foreign policy, fundamental initiative necessary
डॉ. वेदप्रताप वैदिक
 
अन्तरराष्ट्रीय राजनीति का खेल कितना मजेदार है, इसका पता हमें चीन और अमेरिका के ताजा रवैयों से पता चल रहा है। चीन हमसे कह रहा है कि हम अमेरिका से सावधान रहें और अमेरिका हमसे कह रहा है कि हम चीन पर जरा भी भरोसा न करें। लेकिन मेरी सोच है कि भारत को चाहिए कि वह चीन और अमेरिका, दोनों से सावधान रहे। आँख मींचकर किसी पर भी भरोसा न करे।
 
चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के अखबार 'ग्लोबल हेरल्ड' ने भारत सरकार को अमेरिकी दादागीरी के खिलाफ चेताया है। उसने कहा है कि अमेरिकी सातवें बेड़े का जो जंगी जहाज 7 अप्रैल को भारत के 'अनन्य आर्थिक क्षेत्र' में घुस आया है, यह अमेरिका की सरासर दादागीरी का प्रमाण है। जो काम पहले उसने दक्षिण चीनी समुद्र में किया, वह अब हिंद महासागर में भी कर रहा है। उसने अपनी दादागीरी के नशे में अपने दोस्त भारत को भी नहीं बख्शा। चीन की शिकायत यह है कि भारत ने अमेरिका के प्रति नरमी क्यों दिखाई ? उसने इस अमेरिकी मर्यादा-भंग का डटकर विरोध क्यों नहीं किया ? चीन का कहना है कि अमेरिका सिर्फ अपने स्वार्थों का दोस्त है। स्वार्थ की खातिर वह किसी भी दोस्त को दगा दे सकता है। 
 
उधर अमेरिकी सरकार के गुप्तचर विभाग ने अपनी ताजा रपट में भारत के लिए चीन और पाकिस्तान को बड़ा खतरा बताया है। उसका कहना है कि चीन आजकल सीमा-विवाद को लेकर भारत से बात जरूर कर रहा है लेकिन चीन की विस्तारवादी नीति से ताइवान, हांगकांग, द.कोरिया और जापान आदि सभी तंग हैं। वह पाकिस्तान को भी उकसाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है।
 
भारत की मोदी सरकार पाकिस्तानी कारस्तानियों को शायद बर्दाश्त नहीं करेगी। यदि किसी आतंकवादी ने कोई बड़ा हत्याकांड कर दिया तो दोनों परमााणुसंपन्न पड़ोसी देश युद्ध की मुद्रा धारण कर सकते हैं। चीन की कोशिश है कि वह भारत के पड़ोसी देशों में असुरक्षा की भावना को बढ़ा-चढ़ाकर बताए और वहां वह अपना वर्चस्व जमाए। वह पाकिस्तानी फौज की पीठ तो ठोकता ही रहता है, आजकल उसने म्यांमार की फौज के भी हौसले बुलंद कर रखे हैं। उसने हाल ही में ईरान के साथ 400 बिलियन डाॅलर का समझौता किया है और वह अफगान-संकट में भी सक्रिय भूमिका अदा कर रहा है जबकि वहां भारत मूकदर्शक है।
 
अब अमेरिका ने घोषणा की है कि वह 1 मई की बजाय 20 सितंबर 2021 को अपनी फौजें अफगानिस्तान से हटाएगा। ऐसी हालत में भारत के विदेश मंत्रालय को अधिक सावधान और सक्रिय होने की जरूरत है। हमारे विदेश मंत्री डाॅ. जयशंकर पढ़े-लिखे विदेश मंत्री और अनुभवी कूटनीतिज्ञ अफसर रहे हैं। विदेश नीति के मामले में जयशंकर यदि कोई मौलिक पहल करेंगे तो भाजपा नेतृत्व उनके आड़े नहीं आएगा।
(लेखक, भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष हैं।)
Dakhal News 14 April 2021

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