किसानों को यों मनाएँ
bhopal,Convince farmers
डॉ. वेदप्रताप वैदिक
किसानों के साथ हुई सरकार की पिछली बात से आशा बंधी थी कि दोनों को बीच का रास्ता मिल गया है। डेढ़ साल तक इन कृषि-कानूनों के टलने का अर्थ क्या है? क्या यह नहीं कि यदि दोनों के बीच सहमति नहीं हुई तो ये कानून हमेशा के लिए टल जाएंगे। सरकार इन्हें थोप नहीं पाएगी। सरकार के पास इससे अच्छा उपाय क्या था? लेकिन पिछले दो-तीन माह में सरकार के असली इरादों को लेकर किसानों में इतना शक पैदा हो गया है कि वे इस प्रस्ताव को भी बहुत दूर की कौड़ी मानकर कूड़े में फेंकने को आमादा हो गए हैं।
इस बीच किसान नेताओं, मंत्रियों और कृषि-विशेषज्ञों से मेरा संपर्क निरंतर बना हुआ है। यह बात मैं कई बार लिख चुका हूं कि सरकार राज्यों को छूट की घोषणा क्यों नहीं कर देती? कृषि राज्य का विषय है। अतः जो राज्य इन कानूनों को मानना चाहें, वे मानें, जो नहीं मानना चाहें, वे न मानें। पंजाब और हरियाणा के किसानों के लिए ये कानून अपने आप खत्म हो जाएंगे। उनकी मांग पूरी हो जाएगी। रही बात शेष राज्यों की तो भाजपा शासित राज्य इन्हें लागू करना चाहें तो कर दें। दो-तीन साल में ही इनकी असलियत पता चल जाएगी। यदि इन राज्यों के किसानों की समृद्धि बढ़ती है तो पंजाब और हरियाणा भी इनका अनुकरण बिना कहे ही करने लगेंगे और यदि भाजपा राज्यों के किसानों को नुकसान हुआ तो केंद्र सरकार इन्हें जारी नहीं रखेगी।
जहां तक न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) का सवाल है, उसे कानूनी रूप नहीं दिया जा सकता है, क्योंकि उससे कम दाम पर खरीदनेवाले को सजा होगी तो बेचनेवाले को उससे पहले होगी। बेहतर तो यह हो कि 23 की बजाय 50 चीजों पर, फलों और सब्जियों पर भी सरकारी मूल्य घोषित हों, जैसे कि केरल की कम्युनिस्ट सरकार ने किया है।
सरकार और किसानों की संयुक्त समिति के विचार का मुख्य विषय यह होना चाहिए कि भारत के औसत मेहनतकश किसानों को (सिर्फ बड़े ज़मींदारों को नहीं) सम्पन्न और समर्थ कैसे बनाया जाए और उनकी उपज को दुगुनी-चौगुनी करके भारत को विश्व का अन्नदाता कैसे बनाया जाए? यदि सरकार इस आशय की घोषणा करे तो हो सकता है कि हमारा गणतंत्र दिवस, गनतंत्र दिवस बनने से रुकेगा, वरना मुझे डर है कि 26 जनवरी को अगर बात बिगड़ी तो वह बहुत दूर तलक जाएगी।
(लेखक सुप्रसिद्ध पत्रकार और स्तंभकार हैं।)
Dakhal News 23 January 2021

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