भारत में कोरोना संकट के बीच पर्यावरण के अच्छे दिन
bhopal, Environmental good days amid Corona crisis in India
डॉ. निवेदिता शर्मा
 
भारत ही नहीं विश्‍वभर में कोरोना का भय व्‍यप्‍त है, हर कोई अपने जीवन की सुरक्षा में लगा है। सरकारें प्रयत्‍न कर रही हैं लेकिन इंसान पहले से अधिक स्‍वयं के स्‍वास्‍थ्‍य के प्रति सचेत दिख रहे हैं। हर कोई इसी प्रयास में लगा है कि उसे जुखाम, सिरदर्द या बुखार न हो। यही कारण है कि दुनिया के देशों में अधिकांशत: लोग घरों में सीमित हो गए हैं। वस्‍तुत: इस दृश्य के बाहर की एक और दुनिया है, पशु-पक्षियों की। जहां कलतक सुरीली चहचहाहट सुनाई देना बंद-सी हो गई थी, इंसानी खौफ से जिन पक्षियों ने अपने को कहीं किसी घोंसले में छिपा लिया था और जो पशु किसी गुफा या कंदरा में दुबक गए थे, अब बिना भय के विचरण करते देखे जा सकते हैं। शहरों की वीरानी के बीच इनका यूं बिना भय बाहर आकर विचरना, कहीं न कहीं पर्यावरण की द्ष्टि से सुखद संयोग कहा जा सकता है।
 
भारत में तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या व आर्थिक विकास और शहरीकरण व औद्योगीकरण में अनियंत्रित वृद्धि, बड़े पैमाने पर कृषि का विस्तार तथा तीव्रीकरण तथा जंगलों का नष्ट होना इत्यादि भारत में पर्यावरण संबंधी समस्याओं के प्रमुख कारण हैं। इसलिए प्रमुख पर्यावरणीय मुद्दों में वन और कृषि-भूमिक्षरण, संसाधन रिक्तिकरण (पानी, खनिज, वन, रेत, पत्थर आदि), पर्यावरण क्षरण, सार्वजनिक स्वास्थ्य, जैव विविधता में कमी, पारिस्थितिकी प्रणालियों में लचीलेपन की कमी, गरीबों के लिए आजीविका सुरक्षा को शामिल किया गया है। यह अनुमान है कि देश की जनसंख्या आनेवाले कुछ वर्षों में बढ़कर दुनिया में सबसे अधिक आबादी वाले देश चीन को भी पीछे छोड़ देगी। आज विश्‍व के कुल क्षेत्रफल का 2.4% परन्तु विश्व की जनसंख्या का 17.5% धारण कर भारत का अपने प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव काफी बढ़ गया है। पानी की कमी, मिट्टी का कटाव और कमी, वनों की कटाई, वायु और जल प्रदूषण के कारण कई क्षेत्रों पर बुरा असर पड़ता है। ऐसे में सहज समझा जा सकता है कि हमारा पर्यावरण वर्तमान में कितना अधिक मनुष्‍यगत दबाव झेल रहा है।
 
वस्‍तुत: इन परिस्‍थ‍ितियों में कहना होगा कि यह कोरोना का भय सिर्फ पशु-पक्षियों को ही आराम लेकर नहीं आया, मनुष्यों के स्‍वास्‍थ्‍य के दृष्टिकोण से भविष्‍य के लिए आराम लेकर आया है। क्‍योंकि जिस तरह से पर्यावरण में विषैली गैसों का अंतर घटा है, उससे यह तो साफ हो गया है कि जिन तमाम बीमारियों से लोग अनायास ही काल में चले जाते थे, उनमें बहुत बड़ा कारण अशुद्ध हवा था, लेकिन अब हवा का इंडेक्‍स लगातार सुधर रहा है। कोरोना वायरस के भय ने लोगों की अधिक जाने-आने एवं लम्‍बी यात्राओं पर रोक लगी है। देश भर में लॉकडाउन है। इस कारण वातावरण में तेजी से सुधार हो रहा है। स्‍वास्‍थ्‍य मानकों के लिए हवा का स्‍तर जैसा होना चाहिए वह कई जगहों पर आ गया है। अनेक स्‍थानों पर यह आने की प्रक्रि‍या में है।
भारत सरकार के संचालित सिस्टम ऑफ एयर क्वालिटी एंड वेदर फोरकास्टिंग एंड रिसर्च इस समय जो कह रहा है, उसपर हम सभी को गंभीरता से विचार करना होगा और इसके लिए हमें कुछ हद तक खुश भी हो लेना चाहिए। वस्‍तुत: देश के 90 से अधिक शहरों में पिछले कुछ दिनों में न्यूनतम वायु प्रदूषण दर्ज किया गया है। कोरोना वायरस प्रकोप के कारण किए गए उपायों से दिल्ली में पीएम 2.5 में 30 फीसद की गिरावट आई है। अहमदाबाद और पुणे में इसमें 15 फीसद की कमी आई है। नाइट्रोजन ऑक्साइड (एनओएक्स) प्रदूषण का स्तर, जो श्वंसन स्थितियों के जोखिम को बढ़ा सकता है, वह भी कम हो गया है। यहां ध्‍यान देने योग्‍य है कि एनओएक्स प्रदूषण मुख्य रूप से ज्यादा वाहनों के चलने से होता है। एनओएक्स प्रदूषण में पुणे में 43 फीसद, मुंबई में 38 फीसद और अहमदाबाद में 50 फीसद की कमी आई है। 
 
वस्‍तुत: इसीलिए ही आज पर्यावरणविद कह रहे हैं कि पर्यावरण की कीमत पर विकास के जुनून को रोकने होगा। पर्यावरणविद् एन. शिवकुमार की कही बातों को गंभीरता से लेने का भी यह समय है, वह कहते हैं कि एक सप्ताह से भी कम वक्‍त मे ज्यादातर शहरों की हवा शुद्ध हो चुकी है। अगर हम हर महीने 24 घंटे सबकुछ बंद रखें तो कम से कम सभी को साफ हवा मिलेगी। लोगों की लाइफ बढ़ेगी। दवाईयों का खर्च बचेगा और देश के अधिकांश व्‍यक्‍तियों का जीवन सहज-सुखद होगा। इसी तरह से सिस्टम ऑफ एयर क्वालिटी एंड वेदर फोरकास्टिंग एंड रिसर्च के वैज्ञानिकों के साथ देश के अन्‍य वैज्ञानिक भी आज यह स्‍वीकार करते हैं कि आमतौर पर मार्च में प्रदूषण मध्यम श्रेणी (एयर क्वालिटी इंडेक्स रेंज : 100-200) में होता है, जबकि वर्तमान में यह संतोषजनक (एक्यूआइ 50-100) या अच्छी (एक्यूआइ 0-50) श्रेणी का है। यह लॉकडाउन का प्रभाव है। उद्योग, निर्माण और यातायात को बंद करने जैसे स्थानीय कारकों ने वायु की गुणवत्ता को सुधारने में योगदान दिया है। 
 
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट यही बता रही है कि प्रतिबंध से पहले यानी 21 मार्च तक दिल्ली के लोगों को शुद्ध हवा नहीं मिल रही थी। आनंद विहार का एयर क्वालिटी इंडेक्स सिर्फ 63 हो गया है जबकि लॉकडाउन से पहले 248 था। यानी यहां की हवा बेहद खराब थी। यहां यह भी ध्‍यान दिया जा सकता है कि पिछले साल आईक्यू एयर विजुअल द्वारा कराए गए विश्व वायु गुणवत्ता 2019 सर्वे के अनुसार दुनिया के 30 सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में भारत के 21 शहर शामिल हैं। इनमें एनसीआर के लगभग सभी बड़े शहर आते हैं। इस सूची में शामिल गाजियाबाद, गुरुग्राम, फरीदाबाद, पलवल, लखनऊ, बुलंदशहर, जींद, भिवाड़ी और हिसार में 20 मार्च को हवा की गुणवत्ता बेहद खराब थी। दिल्ली का पीएम-10 अपने सामान्‍य लेवल 100 माइक्रो ग्राम क्‍यूबिक मीटर से नीचे सिर्फ 58 पर आ गया है, जबकि पीएम 2.5 भी अपने सामान्य स्तर 60 एमजीसीएम से आधा 31 रह गया है। यह अपने आपमें रिकॉर्ड है। इसी तरह से आज यहां पर अन्‍य शहरों में प्रदूषण नहीं है। 
 
वस्‍तुत: इस लॉकडाउन की स्‍थ‍ितियों में अब वक्‍त आ गया है कि हम सभी सबक लें, सिर्फ इंसान को ही अपने हिसाब से जीने का हक नहीं है, प्रकृति में हर पशु-पक्षी का भी पर्यावरण पर उतना ही अधिकार है, जितना कि मनुष्‍यों का है। यह जानकर और मानकर आज हमारे अपने व्‍यवहार में परिवर्तन लाने की जरूरत आ गई है। कोरोना महामारी आज नहीं तो कल चली ही जाएगी लेकिन फिर कोई वायरस महामारी न बने, इसके लिए जरूरी हो गया है कि हम पर्यावरण के साथ कदम से कदम मिलाकर चलें। आगे भी यूं ही पक्षियों की चहचहाहट बनी रहे और पर्यावरण के आए यह अच्‍छे दिन कभी जुदा ना हों, यह देखना अब हम सभी की जिम्‍मेदारी है।
 
 
(लेखिका सूक्ष्‍म जीव विज्ञान और जैव विविधता विशेषज्ञ हैं।)
Dakhal News 31 March 2020

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