कोरोना योद्धाओं का हौसला बढ़ा रहे दानवीर
bhopal,  Danavir is encouraging the Corona warriors
सियाराम पांडेय 'शांत'
कोरोना जैसी आपदा से निपटने के लिए दुनिया के अधिकांश देश संजीदा हैं। वहां की सरकारें भी अपने स्तर पर कोरोना से निपटने के लिए हरसंभव प्रयास कर रही हैं। जिस चीन के वुहान शहर से इस महामारी का जन्म हुआ, वहां जनजीवन लगभग पटरी पर आ गया है लेकिन दुनिया के 195 देश कोरोना की मार से त्रााहि-त्राहि कर रहे हैं। चीन में भले ही अब गिने-चुने लोग कोरोना संक्रमित बताए जा रहे होंं लेकिन दुनिया भर में लाखों लोग कोरोना संक्रमित हैं जबकि हजारों लोगों की मौत हो चुकी है। अकेले भारत में कोरोना पीड़ितों व मृतकों की संख्या में भी लगातार इजाफा देखा जा रहा है। इस स्थिति ने भारत सरकार की पेशानी पर बल ला दिया है। केंद्र सरकार ने इस आपदा से बचाव के लिए देशभर में 21 दिनों के लॉकडाउन की घोषणा कर रखी है लेकिन जिस तरह औद्योगिक शहरों से मजदूरों का पलायन शुरू हुआ, उसने सरकार की परेशानियां बढ़ा दी हैं। बड़ी तादाद में घरों की ओर पैदल ही लौट रहे लोग दुनिया भर में चर्चा का विषय बन गए। प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और सोशल मीडिया की सुर्खियां बन गए।
उत्तर प्रदेश सरकार यूं तो कोरोना वायरस के खात्मे के लिहाज से बेहतर प्रयास कर रही थी। एकदिन पूर्व ही उसने सामुदायिक रसोईघर योजना भी आरंभ की थी लेकिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अच्छी सहयोग भावना से भी एक गलत निर्णय ले लिया। बस चलवाकर उन्होंने गरीब मजदूरों की पीड़ा को दूर करने का काम किया। हालांकि एकदिन पूर्व ही वे कई मुख्यमंत्रियों से बात भी कर चुके थे कि वे यूपी के मजदूरों को ठहरने और खाने-पीने का प्रबंध करें। सारे खर्च उत्तर प्रदेश सरकार वहन करेगी लेकिन रात ही में उन्होंने एक हजार बसों की व्यवस्था कर मजदूरों को उनके गंतव्य तक पहुंचाने का निर्णय ले लिया। मानवीय आधार पर देखा जाए तो किसी भी जनप्रतिनिधि को कुछ इसी तरह का निर्णय लेना चाहिए था लेकिन कोरोना वायरस की भयावहता और उसकी संक्रमण प्रकृति के चलते उनके इस निर्णय की नीतीश कुमार ने आलोचना भी की। केंद्र सरकार ने भी मजदूरों को बुलाने के निर्णय पर ऐतराज जाहिर किया। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर केंद्र सरकार की लॉकडाउन योजना को विफल करने की साजिश रचने के आरोप भी लगे लेकिन इन सबसे अलग हटकर यह बात विचार योग्य है कि मौजूदा समय राजनीतिक बहस-मुबाहिसे में फंसने का नहीं है बल्कि इस समय का सही सदुपयोग करने की जरूरत है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तत्काल कर्मचारियों को निर्देश दिया कि जो कर्मचारी जहां हैं, वहीं रहें। लेकिन ऐसा निर्णय करने से पहले हजारों लोग उत्तर प्रदेश आ चुके थे। इतने सारे लोगों को आइसोलेशन वार्ड में डालना संभव नहीं है। फिर भी सरकार इस दिशा में काम कर तो रही ही है।
राहत और बचाव के मोर्चे पर पहल करते हुए योगी आदित्यनाथ सरकार ने उत्तर प्रदेश के 27.5 लाख मनरेगा मजदूरों के खाते में डाले 611 करोड़ रुपये की बड़ी राशि डाल भी दी है। कोरोना पीड़ितों और लॉकडाउन के दौरान अपनी नौकरी खो चुके कर्मचारियों की सहायता के लिए दानवीरों ने भी अपने सहयोग के हाथ बढ़ाने आरंभ कर दिए हैं। उप राष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने सभी सांसदों से अपनी विकास निधि से एक करोड़ रुपये पीएम केयर फंड में जमा करने का अनुरोध किया है। लोकसभा के 542 और राज्यसभा के 245 सांसद जिसमें राष्ट्रपति द्वारा नामित 12 सांसद भी शामिल हैं, अगर एक करोड़ का भी सहयोग सांसद निधि से करते हैं तो भी इस समस्या से निपटने के लिए 787 करोड़ होंगे। अगर सभी राज्यों के विधायक और विधान पार्षद इसकी आधी राशि भी सहयोग स्वरूप प्रदान करती है तो भारी भरकम राशि एकत्र हो जाएगी जो इस देश की स्वास्थ्य सुविधाओं को मजबूत करने में सहायक ही नहीं, मील का पत्थर भी बनेगी।
कोरोना वायरस से निपटने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील पर देशवासी बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। छोटे-छोटे बच्चे तक अपना गुल्लक तोड़ रहे हैं और पीएम केयर फंड में जमा कर रहे हैं। पीएम केयर फंड को चौतरफा समर्थन मिल रहा है। यह इस बात का संकेत है कि भारत अपने बलबूते अपनी समस्याओं को शिकस्त देने में समर्थ है। देश की सीमाओं को सुरक्षित रखने वाली सेना और रक्षा मंत्रालय के कर्मचारी भी 500 करोड़ रुपये देने की घोषणा कर चुके हैं। पुलिस, पीएसी के जवान भी अपने तईं ठीक-ठाक आर्थिक सहायता दे रहे हैं। स्वयंसेवी संगठनों ने भी मदद के हाथ बढ़ाए हैं। उद्योग समूहों, फिल्म, खेल और अन्य क्षेत्रों से जुड़ी हस्तियों ने भी मुक्त हाथों से कोरोना पीड़ितों के लिए दान किया है।
टाटा ग्रुप ने 500 करोड़ की आर्थिक सहायता दी है। फिल्म अभिनेता रजनीकांत, प्रभास, अक्षय कुमार, कार्तिक आर्यन आदि ने जमकर कोरोना पीड़ितों की मदद की है। उत्तर प्रदेश क्रिकेट संघ ने 50 लाख, युवा निशानेबाज ईशा ने 30 हजार, शिल्पा शेट्टी और राज कुंद्रा ने 21 लाख, युवा निशानेबाज मनु भाकर ने एक लाख, सचिन तेंदुलकर ने 50 लाख और पूर्व क्रिकेटर सुरेश रैना ने 52 लाख रुपये का योगदान कर यह साबित किया है कि उन्होंने यह धन इसी देश से कमाया है और जब देश ही संकट में है तो देश में कमाए गए धन का सदुपयोग भी देशहित में होना चाहिए। बैडमिंटन खिलाड़ी पीवी सिंधू, पहलवान बजरंग पूनिया, धाविका हिमा दास और बीसीसीआई अध्यक्ष सौरव गांगुली भी कोरोना पीड़ितों के हित में दान कर चुके हैं। भारतीय ओलंपिक संघ ने अगर अपना पूरा सहयोग और योगदान करने का वादा किया है तो उच्चतम न्यायालय के अधिकारी और कर्मचारी भी अपना तीन दिन का वेतन 'पीएम केयर्स फंड में देने की घोषणा कर चुके हैं। साइकिलिंग महासंघ और भारतीय गोल्फ संघ ने पहले ही वित्तीय मदद का वादा कर दिया है। लार्सन एंड टुब्रो 150 करोड़ और टीवीएस मोटर कंपनी 25 करोड़ रुपये देने की घोषणा कर चुकी है। रिलायंस इंडस्ट्रीज, अडानी ग्रुप सहित अन्य कारोबारी समूह अपने समर्थन की घोषणा कर चुके हैं।
देश में एक-एक कर भामाशाह आगे आ रहे हैं लेकिन इन सबके बीच श्रमिकों के पलायन का मामला सर्वोच्च न्यायालय में भी चला गया है। उच्चतम न्यायालय ने कोरोना वायरस के प्रकोप से उत्पन्न दहशत और लॉकडाउन की वजह से बड़ी संख्या में कामगारों के शहरों से अपने पैतृक गांवों की ओर पलायन की स्थिति से निबटने के उपायों पर केन्द्र से रिपोर्ट मांगी है। शीर्ष अदालत ने टिप्पणी की है कि भय की वजह से बहुत संख्या में कामगारों का पलायन कोरोना वायरस से कहीं बड़ी समस्या बन रहा है। वहीं कुछ लोगों द्वारा यह सवाल भी उठाए जा रहे हैं कि जब देश में 1948 से ही प्रधानमंत्री आपदा राहत कोष संचालित है तो अलग से पीएम केयर फंड बनाने की जरूरत क्यों पड़ी? ऐसे लोगों को यह बताना जरूरी है कि पीएम केयर फंड को विशेष रूप से कोरोना वायरस से निपटने के लिए बनाया गया है। इस तरह के कोष कुछ समय के लिए भी चलाए जाते हैं। आवश्यकता पूरी होने पर इन्हे बंद कर दिया जाता है। वहीं प्रधानमंत्री राहत कोष हमेशा संचालित रहते हैं। इसमें कभी भी दान किया जा सकता है। इसमें दान की गई राशि का उपयोग भी देश की समस्याओं से निपटने के लिए ही किया जाता है लेकिन यह किसी विशेष समस्या के लिए नहीं होता है।
लॉकडाउन के चलते देश की अर्थव्यवस्था पटरी से उतरी हुई है। शेयर मार्केट रोज ही दगा दे रहा है। इन सबके बीच भारतीयों के आत्मविश्वास में कहीं कोई कमी नहीं आई है। प्रधानमंत्री की कोशिश कोरोना वायरस को बड़े स्तर पर न फैलने देने की है। लॉकडाउन जैसा बड़ा और कड़ा निर्णय इसीलिए लिया गया है। दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के कल-कारखानों ने जिस तरह कर्मचारियों पर घर जाने का दबाव बनाया, उससे उनकी संवेदनहीनता का पता चलता है। इससे बड़ी तादाद में कर्मचारियों को परेशानी हुई। इसके लिए मन की बात कार्यक्रम में प्रधानमंत्री तक को माफी मांगनी पड़ी लेकिन लॉकडाउन इस देश के हित में है।
जनता मोदी सरकार के निर्णयों के साथ है। कुछ लोगों को अपवाद मानें तो देश की अधिसंख्यक आबादी कोरोना के खिलाफ कमरों में कैद है। अब केंद्र और राज्य सरकारों का दायित्व है कि वह कोरोना पीड़ितों को उचित चिकित्सकीय सुविधा उपलब्ध कराए। साथ ही यह भी सुनिश्चित करे कि घरों में लॉकडाउन का सम्मान कर रहे लोगों को आवश्यक वस्तुओं की कमी, कालाबाजारी का सामना न करना पड़े। सरकार को चाहिए कि वह घर-घर चेकिंग अभियान चलाए। हालांकि उसके पास इतने संसाधन नहीं हैं तथापि इच्छाशक्ति हो तो इस देश के लिए असंभव कुछ भी नहीं। अफवाहों से इस देश को बचाना भी सरकार की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है।
(लेखक हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)

 

 
 
Dakhal News 31 March 2020

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